10-03-2013, 08:10 PM | #21 |
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Re: फ़िल्मी दुनिया/ क्या आप जानते है?
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ईश्वर का दिया कभी 'अल्प' नहीं होता,जो टूट जाये वो 'संकल्प' नहीं होता,हार को लक्ष्य से दूर ही रखना,क्यूंकि जीत का कोई 'विकल्प' नहीं होता. |
17-03-2013, 05:22 PM | #22 |
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Re: फ़िल्मी दुनिया/ क्या आप जानते है?
क्या आप जानते हैं –
पुराने ज़माने की प्रसिद्ध अभिनेत्री शकीला ने 1950 से लेकर 1963 तक लगभग 70 फिल्मों में काम किया. उनका जन्म 1939 में हुआ था और उनका वास्तविक नाम बादशाह जहाँ था. बाल कलाकार के रूप में 1950 में फिल्म दास्तान से अपना फ़िल्मी सफ़र शुरू करने वाली शकीला ने फिल्म ‘मदमस्त‘ से नायिका की भूमिकायें शुरू की. उनको देव आनंद (सी.आई.डी.), राज कपूर (श्रीमान सत्यवादी), और शम्मी कपूर (चाईना टाउन) जैसे दिग्गज अभिनेताओं के साथ भी काम करने का सुअवसर प्राप्त हुआ लेकिन उनकी इमेज स्टंट फिल्मों की हीरोइन के तौर पर अधिक रही. इन फिल्मों में ‘हातिमताई’, ‘खुल जा सिम सिम’ और ‘लाल परी’ आदि प्रमुख है. स्टंट फिमों में महिपाल के साथ उनकी जोड़ी बहुत हिट रही. अन्य प्रमुख फ़िल्में: आरपार/ नूर महल/ बेगुनाह/ काली टोपी लाल रुमाल/ रेशमी रुमाल/ नक़ली नवाब/ उस्तादों के उस्ताद आदि. उस्तादों के उस्ताद 1963 में प्रदर्शित उनकी अंतिम फिल्म थी. और हिंदी फिल्मों के जाने माने अभिनेता जगदीश राज ने अपने फ़िल्मी जीवन में लगभग 125 फिल्मों में एक पुलिस इंस्पेक्टर का किरदार निभाया. यह भी अपनी तरह का एक अनोखा रिकॉर्ड है. उन्होंने सन 1959 में रिलीज़ हुई फिल्म ‘कंगन’ में सर्वप्रथम पुलिस इंस्पेक्टर की भूमिका निभाई थी. Last edited by rajnish manga; 17-03-2013 at 06:58 PM. |
17-03-2013, 05:24 PM | #23 |
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Re: फ़िल्मी दुनिया/ क्या आप जानते है?
क्या आप जानते हैं –
1975 में रमेश सिप्पी की बॉक्स ऑफिस पर ज़बरदस्त सफलता प्राप्त करने वाली और कई रिकॉर्ड बनाने वाली फिल्म ‘शोले’ से पहले भी इसी नाम से एक फिल्म 1953 में प्रदर्शित की गई थी. बी.आर.चोपड़ा की यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर कोई ख़ास धमाल नहीं कर सकी. हाँ, इस फिल्म में अमीरबाई कर्नाटकी के गाये कुछ गीत बहुत लोकप्रिय हुए जैसे – जादूगर भगवान अनोखा जादूगर भगवान – आदि. इस फिल्म का संगीत दिया था धनीराम और नरेश ने. अपनी गायकी और अभिनय की यादें छोड़ कर अमीर बाई कर्नाटकी 7 मार्च 1965 को 53 वर्ष की उम्र में पक्षाघात की वजह से इस संसार को अलविदा कह गयीं. और हिंदी फिल्मों में अरुण कुमार नाम के एक गायक और संगीतकार हुए है जो हिंदी फिल्म संसार में प्यार और आदरपूर्वक दादामोनी के नाम से विख्यात अभिनेता अशोक कुमार के मौसेरे भाई थे. उन्होंने पहले फिल्मों में पार्श्व गायन भी किया जैसे 1938 में प्रदर्शित होने वाली बोम्बे टाकीज की फिल्म ‘निर्मला’ में गायन किया था और उसके बाद भी कंगन, झूला, किस्मत, ज्वारभाटा आदि में उन्होंने गीत गाये. 1953 में प्रदर्शित होने वाली फिल्म ‘परिणीता’ में उन्होंने संगीत निर्देशन भी किया. इस फिल्म में अशोक कुमार नायक की भूमिका कर रहे थे. इस फिल्म में कई गीत थे लेकिन निम्नलिखित दो गीत बहुत लोकप्रिय हुए :- 1. आशा भोंसले द्वारा गाया गीत ‘गोरे गोरे हाथों में मेहंदी लगाय के’ 2. मन्ना डे द्वारा गाया हुआ गीत ‘चली राधे रानी, अखियों में पानी, अपने मोहन से मुखड़ा मोड़ के’ Last edited by rajnish manga; 17-03-2013 at 05:27 PM. |
17-03-2013, 06:59 PM | #24 |
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Re: फ़िल्मी दुनिया/ क्या आप जानते है?
क्या आप जानते हैं कि –
हिंदी सिनेमा में अपने सशक्त अभिनय और प्रभावशाली उपस्थिति के कारण अपनी अलग पहचान बनाने वाली वरिष्ठ अभिनेत्री निरूपा रॉय ने हिंदी फिल्मों में अपने अभिनय का सूत्रपात 1946 में होमी वाडिया की फिल्म ‘अमर राज’ से किया था. इससे पहले उन्होंने अभिनय की शुरुआत गुजराती फिल्म ‘रनक देवी’ से की थी जो उनके सौभाग्य से बॉक्स ऑफिस पर सफल रही और वे रातों रात स्टार बन गयीं. और निरूपा रॉय का जन्म 4 जनवरी 1937 को एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था. उनके पिता का नाम भगा भाई था जो रेलवे में फिटर की नौकरी करते थे. निरुपा रॉय का बचपन का नाम कांता था जो शादी के बाद कोकिला हुआ और फिल्मों में आने के बाद निरूपा रॉय हो गया. 14 वर्ष की कांता का विवाह किशोर चन्द्र बलसारा से कर दिया गया जो नाम बदल लेने के बाद कमल रॉय के नाम से जाने गए. दरअस्ल, कमल खुद गुजराती फिल्मों में काम करना चाहते थे, अतः बी.एम.व्यास से मुलाक़ात की. बी.एम.व्यास ने उन्हें इंकार कर दिया लेकिन उनकी पत्नि यानि निरूपा रॉय को अपनी नयी फिल्म ‘रनक देवी’ में काम करने के लिए तैयार हो गए. इसके लिए उन्होंने 150 रूपए मासिक वेतन पर निरूपा रॉय को साइन किया. Last edited by rajnish manga; 18-03-2013 at 06:54 PM. |
17-03-2013, 08:00 PM | #25 |
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Re: फ़िल्मी दुनिया/ क्या आप जानते है?
बहुत ही रोचक जानकारियाँ हैं। रजनीश जी, इस सूत्र को लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद।
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अब माई हिंदी फोरम, फेसबुक पर भी है. https://www.facebook.com/hindiforum |
17-03-2013, 11:08 PM | #26 |
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Re: फ़िल्मी दुनिया/ क्या आप जानते है?
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निरूपा रॉय द्वारा अनेक धार्मिक और पौराणिक फिल्मों में काम करने के फलस्वरूप वे देवी के रूप में पहचानी जाने लगीं. इसी कड़ी में फिल्म ‘हर हर महादेव’ का नाम विशेष रूप उल्लेखनीय है. 1953 में ‘दो बीघा ज़मीन’ में अपने श्रेष्ठ अभिनय के कारण उनको अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हुयी.बाद में 1955 में प्रदर्शित होने वाली फिल्म ‘मुनीम जी’ में पहली बार वे माँ की भूमिका में आयीं. उसके बाद तो उनके पास माँ के रोल वाले प्रस्ताव आने लगे. न चाहते हुए भी उन्होंने माँ और बहन के रोल करने शुरू कर दिए. फिल्म ‘जंजीर’ और ‘राम और श्याम’ में किये उनके अभिनय को कौन भुला सकता है. और निरूपा रॉय ने अपने पचास साल से अधिक के सक्रिय जीवन में लगभग 270 फिल्मों में काम किया जिनमे यह फ़िल्में उल्लेखनीय हैं – हर हर महादेव/ दसावतार/ राम जन्म/ दो बीघा जमीन/ तीन बत्ती चार रास्ता/ गर्म कोट/ जनम जनम के फेरे/ अमर सिंह राठौर/ वीर दुर्गा दास/ लाल किला/ रानी रूपमति/ गुमराह/ पूर्व और पश्चिम/ दीवार/ मुकद्दर का सिकंदर आदि आदि. Last edited by rajnish manga; 18-03-2013 at 07:04 PM. |
19-03-2013, 06:13 PM | #27 |
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Re: फ़िल्मी दुनिया/ क्या आप जानते है?
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[img]http://myhindiforum.com/attachment.p...1&d=1363696086[/img] हिंदी फिल्म इंडस्ट्री और अपने करोड़ों चाहने वालों के बीच स्वर कोकिला के नाम से विख्यात पार्श्व गायिका लता मंगेशकर अपनी आवाज़ को ईश्वर की देन मानती हैं. वे मानती हैं कि यह शायद उनके पूर्व जन्मों के कर्मों का फल था जो वे संगीत के महान ज्ञाता पं. दीना नाथ मंगेशकर के यहाँ पैदा हुयीं. नियति ने उनके सर से पिता का साया बहुत जल्द छीन लिया और उन्हें परिवार के भरण पोषण के लिए छोटी उम्र में ही संघर्ष के रास्ते पर चलना पड़ा. आज लता जी 82 वर्ष (जन्म 8 सितम्बर 1929) की आयु में भी संगीत के प्रति उतनी ही समर्पित और उत्साहित रहती हैं जितना 25 वर्ष की उम्र में थीं. हाँ अब शरीर की देखभाल की वजह से बाहर आना जाना कम हो गया है. उनके पिता और भाई की वजह से संघर्ष के दिनों में भी लता जी में आत्म विश्वास कूट कूट कर भरा हुआ था. वे औपचारिक तौर पर किसी स्कूल या कॉलेज में जा कर पढाई नहीं कर सकीं. लेकिन उन्हें पढाई का बहुत शौक था. बचपन में वे डॉक्टर या प्रोफ़ेसर बनना चाहती थी लेकिन वे मानती हैं कि जिस क्षेत्र में भी वह जातीं शीर्ष पर रहतीं. उन्होंने कभी परिस्थितियों से हार नहीं मानी. जब उनके पिता चल बसे तो पिता के सर पर काफी क़र्ज़ था. जिम्मेदारियां व्यक्ति को सब सिखा देती हैं एक बार की बात है कि पिता का क़र्ज़ चुकाते हुए उनके पास कुछ न बचा. ऐसे में घर बचाए रखने के लिए उन्हें 270 रुपयों की जरुरत आ पड़ी. जिसका इंतजाम नहीं हो आ रहा था. उन्हें पिता की नाटक कम्पनी में अभिनय का कुछ अनुभव था और उन्हें लगा कि फिल्मों में काम कर के ही तुरन्त पैसा मिल सकता है. और ऐसा हुआ भी. उन्हें नव स्टूडियो की फिल्म ‘पहली मंगला गौर’ में काम अवसर मिला और उसके एवज में एडवांस के तौर पर 300 रुपये का भुगतान मिल गया. इन रुपयों से आई मुसीबत टल गई. वे मानती हैं कि उन्हें फिल्मों में अभिनय करना कभी अच्छा नहीं लगा. Last edited by rajnish manga; 19-03-2013 at 06:31 PM. |
19-03-2013, 06:14 PM | #28 |
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Re: फ़िल्मी दुनिया/ क्या आप जानते है?
लता जी विनायक राव जी (साठ व सत्तर के दशक की जानी मानी अभिनेत्री नंदा के पिता) की कम्पनी में नौकरी नौकरी करने लगीं. वे ही लता को 1943 में मुंबई ले कर भी आये. जल्द ही उनका स्वर्गवास हो गया और लता जी का अभिनय भी ऊसके साथ ही छूट गया. अगस्त 1947 में ही उनको फिल्मों म गाने का मौका भी मिल गया. उसके बाद तो गाने का सिलसिला शुरू हो गया और वक़्त उन पर हमेशा मेहरबान रहा. लता जी मानती हैं कि यदि व्यक्ति में सच्ची साधना, ईश्वर में आस्था और अपने आप में विश्वास हो तो आपको कोई ताकत आगे बढ़ने से नहीं रोक सकती.
उन पर दोष लगाया जाता है कि उन्होंने नए कलाकारों को आगे आने से रोका. लता जी इस से सहमत नहीं हैं. वे यह मानती हैं कि यह इलज़ाम बिलकुल बेबुनियाद है. हाँ,प्रतिस्पर्धा हर क्षेत्र में होती है चाहे वो अभिनय का क्षेत्र हो या गायन का. वे कहती हैं कि संगीत से जुड़े हर व्यक्ति की वे इज्ज़त करती हैं और चाहती हैं के संगीत फलता फूलता रहे. |
19-03-2013, 06:17 PM | #29 |
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Re: फ़िल्मी दुनिया/ क्या आप जानते है?
लता जी गायन में महान गायक-अभिनेता कुंदन लाल सहगल को अपना आअदर्श मानती हैं. उनको यह अफ़सोस है कि उन्हें सहगल साहब के साथ कोई गीत गाने का मौका नहीं मिला और न ही उनसे कभी मिल पायीं.
गाने से पहले वे अपनी चप्पल कमरे के बाहर उतार देती हैं. लता जी गायन को पूजा मानती हैं और केवल सफ़ेद साड़ी पहनती हैं. केवल हर दिन के अनुसार साड़ी का बार्डर अलग अलग रंग का होता है. लता जी जीवन को एक उत्सव या संगीत मानती हैं; जीवन के हर क्षेत्र में संगीत व्याप्त है. सूर्योदय, सूर्यास्त, चन्द्रमा की शीतलता, नदियों की कल कल, झरनों का झर झर, कोयल की कूक, फसलें, दिन, रात, रोशनी, अंधकार आदि सभी परिवर्तनों में संगीत बसा हुआ है. प्रकृति की हर चीज में अलग अलग रूपों में व्याप्त इन भावों का समग्र ही संगीत है. |
19-03-2013, 06:19 PM | #30 |
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Re: फ़िल्मी दुनिया/ क्या आप जानते है?
लता जी मानती हैं कि संगीत में कभी पूर्णता नहीं आ सकती. यह तो सागर की तरह अनंत है और पूरे जीवन की साधना के बाद इसकी कुछ बूँदें ही मिल पाती है. वे बिना किसी कोताही के आज भी रियाज़ करती हैं भले ही पहले के मुकाबले कुछ कम समय दे पाती हैं. वे बताती हैं कि स्वयं में ईश्वर को देखना ध्यान है, दूसरे में ईश्वर को देखना प्रेम है और सब में ईश्वर को देखना ज्ञान है. यही ज्ञान हमें अनेकता में एकता का दर्शन कराता है. यही हमें बताता है कि आने वाला कल बीते हुए कल से सुन्दर होगा. वे मानती हैं कि ध्यान, योग और चिंतन आदमी को प्रज्ञावान बनाते हैं. प्रज्ञावान व्यक्ति अधिक जानकारी के अभाव में भी सृजनात्मक हो सकता है. जैसे नदी में पानी को देखना एक बात है और पानी के चक्र या बदलते स्वरूपों में छुपे सौन्दर्य को देखना बिलकुल दूसरी बात है. वे यह भी मानती है कि प्रतिभा, अवसर और आत्म शक्ति इन तीनों के योग से आप अपनी मंजिल के नज़दीक पहुँच जाते हैं.
(साभार: ‘आहा ज़िंदगी’ / सितम्बर 2005 के विवरण पर आधारित) |
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