31-01-2014, 09:32 PM | #21 |
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Re: लौह-ओ-कलम (स्याही और कलम)
जन्म: 1 जनवरी 1950 जन्मस्थान: इंदौर (मध्य प्रदेश) प्रमुख कृतियाँ: नाराज़ (ग़ज़ल-संग्रह) आदि.
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31-01-2014, 09:38 PM | #22 |
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Re: लौह-ओ-कलम (स्याही और कलम)
ग़ज़ल
हमारे मुह में तुम्हारी जुबान थोड़ी है
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31-01-2014, 09:40 PM | #23 |
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Re: लौह-ओ-कलम (स्याही और कलम)
अपनी पहचान मिटाने को कहा जाता है.
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31-01-2014, 09:43 PM | #24 |
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Re: लौह-ओ-कलम (स्याही और कलम)
ग़ज़ल
चेहरों की धूप आँखों की गहराई ले गया| चेहरों की धूप आँखों की गहराई ले गया|
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01-02-2014, 10:36 PM | #25 |
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Re: लौह-ओ-कलम (स्याही और कलम)
जां निसार अख्तर नाम: जां निसार अख्तर जन्म: 14 फरवरी 1914 मृत्यु: 19 अगस्त 1976 जन्म स्थान: ग्वालियर किताबें: नज़रे-बुतां, सिलासिल, जाविदां, पिछली पहर, घर आंगन, ख़ाक-ए-दिल आदि. उर्दू पुस्तक “ख़ाक-ए-दिल” के लिये उन्हें 1976 का साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ. संचयन अन्य कार्य: उन्होंने बहुत सी हिंदी फिल्मों के लिये गीत भी लिखे जो बेहद मकबूल हुये.
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01-02-2014, 10:39 PM | #26 |
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Re: लौह-ओ-कलम (स्याही और कलम)
ग़ज़ल
कलाम: जां निसार अख्तर फ़ुरसत-ए-कार फ़क़त चार घड़ी है यारों
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01-02-2014, 10:42 PM | #27 |
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Re: लौह-ओ-कलम (स्याही और कलम)
ग़ज़ल
कलाम: जां निसार अख्तर हम आप क़यामत से गुजर क्यूँ नहीं जाते |
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01-02-2014, 10:50 PM | #28 |
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Re: लौह-ओ-कलम (स्याही और कलम)
अब एक गीत
सन् 1966 में बनी फिल्म "सुशीला" का निम्नलिखित गीत जां निसार अख्तर साहब का लिखा हुआ है जिसे कर्णप्रिय धुन से संवारा है सी. अर्जुन ने और जिसे स्वर दिया तलत महमूद और मुहम्मद रफ़ी ने:- ग़म की अंधेरी रात मेंदिल को ना बेक़रार कर
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01-02-2014, 10:58 PM | #29 |
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Re: लौह-ओ-कलम (स्याही और कलम)
गोपाल दास ‘नीरज’ नाम: गोपाल दास ‘नीरज’ जन्म: 4 जनवरी 1925 जन्म स्थान: पुरावली, इटावा, उत्तर प्रदेश. कुछ प्रमुख कृतियाँ: दर्द दिया है, प्राण गीत, आसावरी, नीरज की पाती, लहर पुकारे, मुक्तकी, गीत-अगीत, विभावरी, संघर्ष, अंतरध्वनी, बादलों से सलाम लेता हूँ आदि. सम्मान: केंद्र सरकार द्वारा पद्मश्री (1991) व पद्मभूषण (2007) अलंकरण पुरस्कार: विश्व उर्दू परिषद् पुरस्कार / उ.प्र. सरकार द्वारा संचालित यश भारती एवं एक लाख रुपये का पुरस्कार (1994) फिल्म गीत लेखन के लिये तीन बार फिल्म फेयर पुरस्कार
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01-02-2014, 11:02 PM | #30 |
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Re: लौह-ओ-कलम (स्याही और कलम)
ग़ज़ल
अब तो मजहब कोई ऐसा भी चलाया जाए अब तो मजहब कोई ऐसा भी चलाया जाए,
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