19-04-2012, 02:26 PM | #21 |
Banned
Join Date: Nov 2010
Location: राँची, झारखण्ड
Posts: 3,682
Rep Power: 0 |
Re: ममता बनर्जी के कार्टून
ममता : संघर्ष से कार्टून तक बंगाल में बदल गयी मां, माटी-मानुष की परिभाषा पश्चिम बंगाल में कुछ भी ममता बनर्जी के हक में अच्छा नहीं हो रहा है. अपना कार्टून बनाने वाले प्रोफेसर को जेल भिजवाने वाले ममता के लोग अब वामपंथियों से जातीय दुश्मनी पर उतर आये हैं. वे वामपंथियों से रिश्तेदारी तो दूर, उनसे बातचीत करने से भी परहेज करने लगे हैं. कल तक ममता के साथ खड़ा बुद्धिजीवी वर्ग भी दूर हो चला है. झुग्गी-झोपड़ी हटाने का विरोध करने वाले वैज्ञानिक को जेल में ठूंस दिया गया, तो एक अन्य वैज्ञानिक के घर दिनदहाड़े गुंडों ने घुस कर सबके सामने उनकी बेटी को निर्वस्त्र कर दिया. इन अराजकताओं के चलते बंगाल में ममता की लोकप्रियता में भारी गिरावट हुई है, लेकिन उनके सलाहकार उन्हें इन सच्चइयों से रूबरू नहीं होने देना चाहते. |
19-04-2012, 02:28 PM | #22 |
Banned
Join Date: Nov 2010
Location: राँची, झारखण्ड
Posts: 3,682
Rep Power: 0 |
Re: ममता बनर्जी के कार्टून
बंगाल का नया संकट संसदीय राजनीति का वह चेहरा है, जिसे बहुसंख्य तबके ने इस उम्मीद से जिया कि लोकतंत्र आयेगा. लेकिन सत्ता ने उसी जमीन पर अपना सियासी हल चलाना शुरू कर दिया, जिसने लोकतंत्र की दुहाई देकर सत्ता पायी.
अगर बंगाल के सियासी तौर-तरीकों में बीते चार दशकों को तौलें, तो याद आ सकता है कि एक वक्त सिद्धार्थ शंकर रे सत्ता की हनक में नक्सलबाड़ी को जन्म दे बैठे. फिर नक्सलबाड़ी से निकले वामपंथी मिजाज ने सिंगूर से लेकर नंदीग्राम तक, जो लकीर खींची, उसने ममता के मां, माटी मानुष की थ्योरी को सत्ता की ड्योढ़ी तक पहुंचा दिया. लेकिन इन सियासी प्रयोग में वामपंथ की एक महीन लकीर हमेशा मार्क्स-एंगेल्स को याद करती रही. शायद इसीलिए तीन दशक की वामपंथी सत्ता को उखाड़ने के लिए ममता की पहल से कई कदम आगे वामपंथी बंगाल ही चल रहा था, जिसे यह मंजूर नहीं था कि कार्ल मार्क्स और फ्रेड्रिक एंगेल्स को पढ़ कर वामपंथी सत्ता ही वामपंथ भूल जाये. लेकिन सत्ता पलटने के बाद वाम बंगाली हतप्रभ है कि अब तो कार्ल मार्क्स और एंगेल्स ही सत्ता को बर्दाश्त नहीं है. वाम विचार से प्रभावित अखबार भी सत्ता को मंजूर नहीं है. जिस अतिवाम के हिंसक प्रयोग को वामपंथी सत्ता की काट के लिए मां, माटी, मानुष का नारा लगा कर ममता ने इस्तेमाल किया, उसी अतिवाम के किशनजी का इनकांउटर करा कर ममता ने संकेत दे दिये कि जब संसदीय सियासत ही लोकतंत्र का मंदिर है, तो इसके नाम पर किसी की भी बलि दी ही जा सकती है. इस कड़ी में अस्पतालों में दुधमुंहे बच्चों की मौत के लिए भी पल्ला झाड़ना हो या फिर बलात्कार के मामले में भुक्तभोगी को ही कटघरे में खड़ा करने का सत्ता का स्वाद और इन सबके बीच खुद पर बनते कार्टून को भी बर्दाश्त ना कर पाने की हनक. ये परिस्थितियां सवाल सिर्फममता को लेकर नहीं करतीं, बल्कि संसदीय चुनाव की जीत में ही समूची स्वतंत्रता, लोकतंत्र और जनता की नुमाइंदगी के अनूठे सच पर भी सवाल खड़ा करती है |
19-04-2012, 02:29 PM | #23 |
Banned
Join Date: Nov 2010
Location: राँची, झारखण्ड
Posts: 3,682
Rep Power: 0 |
Re: ममता बनर्जी के कार्टून
ये सवाल ऐसे हैं जो किसी भी राज्य के लिए सबसे जरूरी हैं. क्योंकि इसी की जमीन पर खड़े होकर किसी भी राज्य को विकास की धारा से जोड़ा जा सकता है. या कहें आम आदमी को अपने स्वतंत्र होने का एहसास होता है.
लेकिन जब सत्ता का मतलब ही संविधान हो जाये, तो फिर क्या-क्या हो सकता है, यह बंगाल की माली हालत को देख कर समझा जा सकता है. जहा संसदीय राजनीति के जरिये सत्ता बनाये रखने या सत्ता पलटने को ही लोकतंत्र मान लिया गया. और हर आम बंगाली का राजनीतिकरण सत्ता ने कर दिया. उसकी एवज में बीते तीन दशक में बंगाल पहुंचा कहां? यह आज खड़े होकर देखा जा सकता है. क्योंकि कभी साढ़े बारह लाख लोगो को रोजगार देने वाला जूट उद्योग ठप हो चुका है. जो दूसरे उद्योग लगे भी उनमें ज्यादातर बंद हो गये हैं. इसी वजह से 40 हजार एकड़ जमीन इन ठप पड़े उघोगों की चहारदीवारी अभी भी है. यह जमीन दुबारा उघोगों को देने के बदले सत्ता से सटे दलालों के जरिये व्यावसायिक बाजार और रिहायशी इलाकों में तब्दील हो रही हैं. चूंकि बीते दो दशकों में बंगाल के शहर भी फैले हैं तो भू-माफिया और बिल्डरों की नजर इस जमीन पर है. और औसतन वाम सत्ता के दौर में अगर हर सौ कार्यकत्र्ता में से 23 कार्यकत्र्ता की कमाई जमीन थी. तो ममता के दौर में सिर्फआठ महीनों में हर सौ कार्यकर्ता में से 32 की कमाई जमीन हो चुकी है. बंगाल का सबसे बड़ा संकट यही है कि उसके पास आज की तारीख में कोइ उद्योग नहीं है, जहां उत्पादन हो. हिंदुस्तान मोटर का उत्पादन एक वक्त पूरी तरह ठप हो गया था. हाल में उसे शुरू किया गया, लेकिन वहां मैनुफेक्चरिंग का काम खानापूर्ति जैसा ही है. डाबर की सबसे बडी इंडस्ट्री हुगली में थी. वहां ताला लग चुका है. एक वक्त था हैवी इलेक्तिट्रकल की इंडस्ट्री बंगाल में थी. फिलिप्स का कारखाना बंगाल में था. वह भी बंद हो गया . कोलकाता शहर में ऊषा का कारखाना था, जहां लॉकआउट हुआ और अब उस जमीन पर देश का सबसे बडा मॉल खुल चुका है. बंगाल की राजनीति ने नैनो के जरिये किसान की राजनीति को उभार कर यह संकेत तो दिये कि हाशिये पर उत्पादन को नहीं ले जाया जा सकता है, लेकिन जो रास्ता पकड़ा उसमें उदारवादी अर्थव्यवस्था के उन औजारों को ही अपनाया, जो उत्पादन नहीं सर्विस दें. क्योंकि सर्विस सेक्टर का मतलब है नगद फसल. |
20-04-2012, 09:13 AM | #24 |
Administrator
|
Re: ममता बनर्जी के कार्टून
अरविन्द जी आपने काफी रोचक जानकारी दी, आपका बहुत बहुत धन्यवाद.
__________________
अब माई हिंदी फोरम, फेसबुक पर भी है. https://www.facebook.com/hindiforum |
20-04-2012, 09:14 AM | #25 |
Administrator
|
Re: ममता बनर्जी के कार्टून
__________________
अब माई हिंदी फोरम, फेसबुक पर भी है. https://www.facebook.com/hindiforum |
20-04-2012, 09:14 AM | #26 |
Administrator
|
Re: ममता बनर्जी के कार्टून
__________________
अब माई हिंदी फोरम, फेसबुक पर भी है. https://www.facebook.com/hindiforum |
20-04-2012, 09:15 AM | #27 |
Administrator
|
Re: ममता बनर्जी के कार्टून
__________________
अब माई हिंदी फोरम, फेसबुक पर भी है. https://www.facebook.com/hindiforum |
20-04-2012, 09:15 AM | #28 |
Administrator
|
Re: ममता बनर्जी के कार्टून
__________________
अब माई हिंदी फोरम, फेसबुक पर भी है. https://www.facebook.com/hindiforum |
20-04-2012, 09:15 AM | #29 |
Administrator
|
Re: ममता बनर्जी के कार्टून
__________________
अब माई हिंदी फोरम, फेसबुक पर भी है. https://www.facebook.com/hindiforum |
21-04-2012, 07:02 PM | #30 |
Administrator
|
Re: ममता बनर्जी के कार्टून
__________________
अब माई हिंदी फोरम, फेसबुक पर भी है. https://www.facebook.com/hindiforum |
Bookmarks |
Tags |
cartoons, mamata banerjee, mamata cartoons, political cartoons, toons |
|
|