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Old 27-08-2013, 12:25 AM   #21
rajnish manga
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Default मेरी कहानियाँ / क्या समझा था क्या निकला?

मेरी कहानियाँ / क्या समझा था क्या निकला?

एक सिद्ध पुरुष थे. उनके भक्त उन्हें ईश्वर का अवतार मानते. वे हवा में हाथ उठाते और उनके हाथ में बहुत आश्चर्यजनक रूप से वस्तुएं प्रगट हो जातीं जैसे फूल, फल, हीरे, विदेशी घड़ियाँ और करेंसी नोट इत्यादि.

कुछ लोग ख़ुफ़िया तौर पर सिद्धपुरुष के जीवन की छानबीन सूक्ष्मता से कर रहे थे. उन लोगों को सिद्धपुरुष के बहुत से क्रिया-कलाप रहस्यमय प्रतीत हए.

अन्ततः, ख़ुफ़िया रिपोर्टों के प्रकाश में सिद्धपुरुष के आश्रम पर रेड पड़ गयी. वहां बहुत से तस्कर भाई और उनका तस्करी का कुछ माल बरामद हुआ. भक्तों के साथ सिद्धपुरुष को भी हिरासत में ले लिया गया.

अखबारों में उनके कारनामों के बारे में पढ़ पढ़ कर उनके अधिकतर भक्त और उन्हें अवतार मानने वाले सज्जन बहुत लज्जा का अनुभव करते. सोचते – क्या समझा था, क्या निकला.

पुलिस ने एक सप्ताह का रिमांड ले लिया. सिद्धपुरुष किसी से कुछ नहीं बोले. रात में उन्हें पुलिस लॉक-अप में ही रखा गया.

अगली सुबह तहलका मच गया. सिद्धपुरुष अपने सैल में नहीं थे. गेट पर ज्यों का त्यों ताला लटका हुआ था. कहीं पर सींखचे काटे जाने का भी चिन्ह नहीं था. फिर क्या हुआ? धरती निगल गई या आसमान खा गया? क्या वे वास्तव में सिद्ध पुरुष थे?

उनके भक्त पुनः स्वयं को लज्जित अनुभव कर रहे थे – क्या समझा था, क्या निकला?
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Old 27-08-2013, 12:42 AM   #22
Dark Saint Alaick
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Default Re: मेरी कहानियाँ / क्या समझा था क्या निकला?

श्रेष्ठ लघुकथा है, मित्र। यह अनेक सन्देश देती है, लेकिन मैं इससे जो सन्देश ग्रहण कर रहा हूं, वह यह है कि आंखों-देखी, कानों सुनी बात सदैव सच नहीं होती। किसी भी बात अथवा घटना को परखने के बाद ही, उस पर यकीन करें। इस श्रेष्ठ प्रस्तुति के लिए धन्यवाद।
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Old 27-08-2013, 11:31 PM   #23
rajnish manga
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Default मेरी कहानियाँ / गलती की सजा

मेरी कहानियाँ / गलती की सजा

विजिलेंस वालों ने रिश्वत लेते आखिर उसे रंगे हाथों पकड़ ही लिया. फ़ौरन चार्जशीट और सस्पेंशन ऑर्डर आ गये. पकडे गये कर्मचारी की सारे विभाग में निंदा हो रही थी.

हैड साहब कह रहे थे – “मुझे सत्रह साल हो गये. मैं भी खाता हूँ, कौन नहीं खाता? लेकिन मजाल है किसी ने आज तक मुझ पर उंगली उठाई हो. एक ये हैं कि ... “

कैशियर ने समर्थन किया, “अरे हैड साहब, वाजिब खायेगा तो पचेगा, गैर-वाजिब खायेगा तो कैसे चलेगा? ऐसे ही लोग डिपार्टमेंट की बदनामी करवाते है.”

किसी ने रोक कर कहा, “यार उस बेचारे की तो नौकरी खतरे में है और तुम उसी को कोस रहे हो.”

इस पर एक मोटे से क्लर्क ने जैसे निंदा प्रस्ताव का उपसंहार करते हए कहा, “जो जैसा करेगा वो वैसा ही भरेगा भाई.”
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Old 27-08-2013, 11:41 PM   #24
rajnish manga
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Default मेरी कहानियाँ / लक्ष्मी

मेरी कहानियाँ / लक्ष्मी

“तीन लाख”

“पांच लाख”

“कुछ तो कम कीजिये .. ”

“पांच से कम नहीं होगा, मदन लाल जी...”

“देखिये, मैं एक से तीन तक आ गया हूँ ... आप भी तो कुछ कम करें, भाई साहब .. “

“किस बात के कम करूं. लड़का इंजीनियर है ... “

“फिर भी, मैं बड़ी आशाएं ले कर आपके पास आया हूँ ... मेरी आपसे विनती है कि ... “

“इस मामले को छोड़ कर मैं अन्य किसी भी विषय में आपकी बात मानने के लिए तैयार हूँ. पुरानी यारी कम थोड़े ही हो सकती है ... ”

“हनुमान प्रसाद जी, मेरी लड़की एक दम लक्ष्मी है लक्ष्मी .. “

“छोड़िये इस बात को, मदन लाल जी ...फिलहाल तो आप धन-लक्ष्मी की बात करो ... ”

मदन लाल जी से अब ज़ब्त न हुआ ... जाने के लिये एक दम उठ खड़े हुये. उन्हें उस जगह पर जले हुये मांस की दुर्गन्ध आने लगी थी.
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Old 27-08-2013, 11:46 PM   #25
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Default मेरी कहानियाँ / निर्माण कार्य

मेरी कहानियाँ / निर्माण कार्य

लोकल बॉडी के चुनाव हुये तो शहर के वार्ड नंबर 13 से सुभाष चंद जी विजयी घोषित किये गये. पिछली बार एक महिला चुनाव में विजयी हुई थी जो अपने पार्षद पति की मृत्यु के बाद उन के स्थान पर चुनाव लड़ी थीं. उनके कार्य काल में कुछ विशेष कार्य नहीं हुआ था.

नये पार्षद युवक थे और उत्साही थे. सबसे बड़ी बात यह थी कि वे एम.एल.ए. के भी नज़दीक थे. उन्होंने चुनाव के छः माह बाद ही प्रशासन से प्रोजेक्ट पास करवाया और वार्ड के उन इलाकों में जहां सड़कें टूटी हुई थीं या जहां बरसात का पानी जमा हो जाता था, वहां सीमेंट वाली सड़कों के निर्माण का कार्य शुरू करवा दिया. दो माह में लगभग सभी पॉकेट्स में सड़कें बन कर तैयार हो गयी जिसका जनता ने स्वागत किया.

वार्ड में एक पॉकेट ऐसी थी जहां सड़कें अभी तक खस्ता हालत में थीं. कारण? कारण यह था कि उस पॉकेट में विरोधी दल के एक नेता रहते थे. **

Last edited by rajnish manga; 28-08-2013 at 02:37 PM.
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Old 28-08-2013, 04:08 AM   #26
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Default Re: मेरी कहानियाँ / निर्माण कार्य

रजनीशजी, कथा कुछ अधूरी प्रतीत होती है, अथवा अंत परिपक्व नहीं लगता। मेरी दृष्टि में, कथा का सबसे बेहतर अंत 'कारण यह था कि उस पॉकेट में विरोधी दल के एक नेता रहते थे ...' पंक्ति पर ही है। कुछ और छूट लेना चाहें, तो '...पार्षद उम्मीदवार को वोट नहीं दिया था' ... पर विराम हो जाना चाहिए, बाद की 'सफाई' कथा को बेवज़ह कमजोर करती है। हां, मैं कथा का अंत इस पंक्ति से करना पसंद करूंगा '... और अगला चुनाव वे हार गए।' धन्यवाद।
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Old 28-08-2013, 02:48 PM   #27
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Default Re: मेरी कहानियाँ / निर्माण कार्य

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Originally Posted by Dark Saint Alaick View Post

रजनीशजी, कथा कुछ अधूरी प्रतीत होती है, अथवा अंत परिपक्व नहीं लगता। मेरी दृष्टि में, कथा का सबसे बेहतर अंत 'कारण यह था कि उस पॉकेट में विरोधी दल के एक नेता रहते थे ...' पंक्ति पर ही है। कुछ और छूट लेना चाहें, तो '...पार्षद उम्मीदवार को वोट नहीं दिया था' ... पर विराम हो जाना चाहिए, बाद की 'सफाई' कथा को बेवज़ह कमजोर करती है। हां, मैं कथा का अंत इस पंक्ति से करना पसंद करूंगा '... और अगला चुनाव वे हार गए।' धन्यवाद।
अलैक जी, उक्त लघुकथा के विषय में आपकी टिप्पणी बहुत सटीक है. कथा या लघुकथा में कथा के अंतिम बिंदु का महत्व सर्वोपरि है. अतः आपकी बात से सहमत होते हुये इसे irony वाले बिंदु पर लाकर समाप्त कर दिया गया है. आपका हार्दिक धन्यवाद.
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Old 28-08-2013, 10:22 PM   #28
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Old 28-08-2013, 10:23 PM   #29
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