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Old 13-12-2012, 10:42 PM   #21
rajnish manga
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Default Re: मेरी ज़िंदगी : मेरे शहर

यह मेरा सौभाग्य रहा कि मुझे मास्टर पुरुषोत्तम के माध्यम से राजस्थानी लोक गीतों का परिचय मिला और उनकी मिठास का वास्तविक अनुभव हुआ. राजस्थानी लोक गीतों में वहाँ के जन जीवन की उमंग, तीज त्यौहार, पारिवारिक संबंधों की छेड़ छाड़, विरह-मिलन और मरू भूमि के कण कण में व्याप्त जिजीविषा के दर्शन होते हैं. ये राजस्थानी लोक गीत मुझे सर्वप्रथम मास्टर पुरुषोत्तम की आवाज़ में ही सुनने का सौभाग्य मिला. मेरे विवाह (१९७७) के बाद इन राजस्थानी गीतों को मैंने अपनी धर्मपत्नि को भी गा कर सुनाया तो वह भी इन गीतों से प्रभावित हुये बिना न रही. चूरू तो हम पति-पत्नि दोनों के लिये एक सपनों का शहर बन कर (सोने के मिथीकीय नगर एल डोरेडो – el dorado – की तरह) हमारे अस्तित्व में रच बस गया है.
हाँ, तो मैं बता रहा था कि मास्टर पुरुषोत्तम संगीत में इतने डूब कर गाते थे कि सुनने वालों को अपनी सुध बुध नहीं रहती थी. मुझे अफ़सोस इस बात का है कि उस समय मेरे पास कोई टेप रिकॉर्डर नहीं था अन्यथा उनकी आवाज़ में वो गीत अवश्य रिकॉर्ड करता और रिकॉर्डिंग को उम्रभर सम्हाल कर रखता. मगर ऐसा हो न सका. फिर भी उनके गाये वो गीत अभी भी मेरे ज़ेहन में ज्यों के त्यों सुरक्षित हैं विशेष रूप से उनके द्वारा गाये हुये राजस्थानी गीत जिन्होंने ने मुझे अभिभूत कर दिया था.

Last edited by rajnish manga; 13-12-2012 at 10:45 PM.
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Old 13-12-2012, 10:59 PM   #22
Dark Saint Alaick
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Default Re: मेरी ज़िंदगी : मेरे शहर

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Originally Posted by rajnish manga View Post
प्रिय मित्रो, कुछ अन्तराल के पश्चात मैं आप के बीच पुनः उपस्थित हुआ हूँ इस सूत्र के अगले प्रसंगों के साथ. मुझे आशा है कि यह सिलसिला आगे चलता रहेगा और आपका स्नेह भी पहले की भांति मुझे प्राप्त होता रहेगा. तो मुलाहिज़ा करें मेरे प्रिय नगर चूरू का आगे का हाल:

यहाँ की हवेलियों का रंग रूप रेगिस्तान की रेत के भूरे रंग से मेल खाता है. ऐसा प्रतीत होता है मानो ये हवेलियाँ रेत से ही उपजी हों. मेरी निम्नलिखित कविता उपरोक्त तथ्यों की ही निशानदेही करती है:

उगा रेत से बालुआ ये शहर.
ठिठुराया ठहरा हुआ ये शहर.

श्री हीन होता गया पर बराबर,
है दिल को लुभाता मुआ ये शहर.

सदियों से कीलित मानचित्र जैसा,
शहरों में ईसा हुआ ये शहर.

शांत ऐसे जैसे तपोवन का कोना,
फकीरों की अथवा दुआ ये शहर.

नानक की सूखी रोटी तो है ही,
न हो चाहे हलवा पुआ ये शहर.

पछुआ पवन से छिटका हुआ गाँव,
गावों से छिटका हुआ ये शहर.


यह कविता चूरू शहर को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि है.
आपके दिल से निकली यह आवाज़ निश्चय ही चूरूवासियों के दिल तक पहुंचेगी। आभार आपका।
__________________
दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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Old 15-12-2012, 12:30 AM   #23
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Default Re: मेरी ज़िंदगी : मेरे शहर

मैंने उनसे अनुरोध किया कि वो अपने हाथ से मेरी डायरी में चुने हुए कुछ गीत लिख दें ताकि मैं उन गीतों का अभ्यास कर सकूँ और उन्हें ज़बानी याद कर सकूँ. ऐसा ही हुआ. उन्होंने मेरे अनुरोध को सहर्ष स्वीकार किया और कुछ गीत अपनी सुन्दर लिखाई में मेरी डायरी में लिख कर मुझे दिए. थोड़े ही समय में मुझे वे गीत कंठस्थ हो गए और मैं उन्हें यदा कदा गुनगुनाने लगा. मैं चाहता हूँ कि आप भी इन गीतों का रसास्वादन लें. मुझे खेद है कि वो गीत मैं आपको सुना तो नहीं पाऊंगा, लेकिन डायरी के पन्नों का अविकल टाईप किया हुआ रूप प्रस्तुत कर रहा हूँ. आशा है आपको अच्छा लगेगा:
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Old 15-12-2012, 12:32 AM   #24
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Default Re: मेरी ज़िंदगी : मेरे शहर

(१)
गणगोरया रे मेले पली आया रिज्यो जी.
गणगोरया रे मेले पली आया रिज्यो जी.

ढोला था बिन रंग रंगीलो फागण बित्यो जावे छे.
ढोला था बिन रंग रंगीलो फागण बित्यो जावे छे.
थारी नाज़ुक धण महलां बैठी आंसू छलकावे छे.
थारी नाज़ुक धण महलां बैठी आंसू छलकावे छे.

रोटी खाता हो तो पाणी अठे आय पीज्यो जी.
गणगोरया रे मेले पली आया रिज्यो जी.

म्हारी द्योरानी जेठाणी दोनू घूमर घाले छे.
म्हारी द्योरानी जेठाणी दोनू घूमर घाले छे.
म्हारा देवरिया जेठूता मिलकर रंग उछालें छे.
म्हारा देवरिया जेठूता मिलकर रंग उछालें छे.

छोटी नणदूली ने आय कर समझाय दीज्यो जी.
गणगोरया रे मेले पली आया रिज्यो जी.

धरती रंग रंगीली होकर मन ही मन मुस्कावे छे ......
(क्षमा करें डायरी में इससे आगे गीत अधूरा ही छोड़ दिया गया है)
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Old 15-12-2012, 12:35 AM   #25
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Default Re: मेरी ज़िंदगी : मेरे शहर

(२)
खड़ी नीम के नीचे मैं तो एकली.
जातोड़ो बटाऊ म्हाने छाने छाने देख ली.

कोण देस से आया कोण देस थे जावोला
कुण्या जीरा कँवर लाडला साँची बात बतावोला.
कोण देस से आया कोण देस थे जावोला
कुण्या जीरा कँवर लाडला साँची बात बतावोला.

म्हें थाणे पूछूं ओ जी भंवर जी एकली.
जातोड़ो बटाऊ म्हाने छाने छाने देख ली.

परदेसां स्यूं आया सासरिये म्हें जावांला.
म्हारी प्यारी गौरी धण न हँस हँस गले लगावां ला.
परदेसां स्यूं आया सासरिये म्हें जावांला.
म्हारी प्यारी गौरी धण न हँस हँस गले लगावां ला.

इब क्यों शरमाओ म्हारी प्यारी गोरड़ी
थे देखो कोई और बटाऊ म्हें तो थाणे देख ली.
खड़ी नीम के नीचे मैं तो एकली.
जातोड़ो बटाऊ म्हाने छाने छाने देख ली.
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Old 16-12-2012, 12:10 AM   #26
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Default Re: मेरी ज़िंदगी : मेरे शहर

(३)
थाने काजलियो बणाल्यूं,
थाने पलकां में रमाल्यूं.
राज पलकां में बन्द कर राखूंली.
राज पलकां में बन्द कर राखूंली.

गोरी पलकां में नींद कैय्याँ आवेली.
म्हारी पलकां पालनिये झुलावेली.
म्हारे नैणां स्यूं दूर दूर कैय्याँ जावो ला जी, दूर कैय्याँ जावो?
थाने तीमणियों बणाल्यूं
म्हारे हिवड़े स्यूं लगाल्यूं
राज चुनरी में ल्यूकाय थाने राखूंली.
राज चुनरी में बन्द कर राखूंली. थाने काजलियो बणाल्यूं ...

गोरी चुनड़ी में तपत सतावेली
ढोला सौरी घणी नींद आवेली
म्हारे हिवड़े स्यूं दूर दूर कैय्याँ जावो ला जी, दूर कैय्याँ जावो
थाने मोतीड़ो बणाल्यूं, म्हारे होटां स्यूं लगाल्यूं
राज नथली में बन्द कर राखूंली
राज नथली में बन्द कर राखूंली. थाने काजलियो बणाल्यूं ...
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Old 16-12-2012, 12:12 AM   #27
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Default Re: मेरी ज़िंदगी : मेरे शहर

(४)
एक गज़ल : अपना जिसे कहा वो बेगाना निकल गया.
(शायर का नाम ‘अमीर’, इससे अधिक ज्ञात नहीं)

अपना जिसे कहा वो बेगाना निकल गया.
शायद वो दोस्ती का जमाना निकल गया.

दिन ज़िन्दगी के मेरे अकेले गुज़र गए
वो करके मुझ से कैसा बहाना निकल गया.

बुलबुल की जिन्दगी सी हुई जिन्दगी मेरी
सैय्याद का भी सच्चा निशाना निकल गया.

टूटे हुये तारों का इक साज़ हूँ मैं ए दोस्त!
इक चोट जो पड़ी तो तराना निकल गया.

इक रोज़ उनकी राह से गुजरा जो मैं अमीर
सब लोग कह उठे कि दीवाना निकल गया.
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Old 16-12-2012, 06:01 AM   #28
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Default Re: मेरी ज़िंदगी : मेरे शहर

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Old 06-01-2013, 11:54 AM   #29
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फोरम के सबसे शानदार सूत्रों में से एक।
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Old 18-02-2013, 11:52 AM   #30
rajnish manga
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Last edited by rajnish manga; 18-02-2013 at 01:21 PM.
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