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10-11-2014, 12:35 AM | #1 |
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Re: ------------गुस्सा------------
[QUOTE=kuki;538913]सोनी पुष्पा जी मैं आपकी बात से सहमत हूँ की जब गुस्सा हमारा स्वभाव बन जाता है तो वो वाकई ख़राब होता है ,और सबसे ज़्यादा नुकसान हमें ही पहुंचता है। जैसे आपने कहा की कोई व्यक्ति घर आते ही अपने बीवी -बच्चों पर बरस पड़े तो ये सही नहीं है ,लेकिन कई बार हमें पता
प्रिय kuki जी ,... बिलकुल सही कहा आपने , की जब कोई घर आकर सीधे बरस पड़े तब उसकी वजह जानना बहुत जरुरी होता है न की सामने वाले के गुस्से के सामने आप भी गुस्सा करने लगो और एक बात में यहाँ ये जरुर कहना चाहूंगी की एइसा गुस्सा एक दो दिन की बात हो तब ठीक है किन्तु यदि हर रोज एइसा होते रहे तब घर अखाडा बन जायेगा जहा हमेशा वाकयुद्ध होगा और साथ ही क्लेश के वातावरण में घर के सभी सदस्यों का जीना दूभर हो जायेगा इससे अच्छा ये होगा की घर में आकार अपना गुस्सा निकलने की बजाय घर के सदस्यों से बात की जाय .. इस सूत्र को आगे बढाने के लिए आपकी अभारी हु kuki जी धन्यवाद |
10-11-2014, 01:08 PM | #2 |
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Re: ------------गुस्सा------------
हम चिल्लाते क्यों हैं गुस्से में? एक बार एक संत अपने शिष्यों के साथ बैठे थे। अचानक उन्होंने सभी शिष्यों से एक सवाल पूछा। बताओ जब दो लोग एक दूसरे पर गुस्सा करते हैं तो जोर-जोर से चिल्लाते क्यों हैं? शिष्यों ने कुछ देर सोचा और एक ने उत्तर दिया : हम अपनी शांति खो चुके होते हैं इसलिए चिल्लाने लगते हैं। संत ने मुस्कुराते हुए कहा : दोनों लोग एक दूसरे के काफी करीब होते हैं तो फिर धीरे-धीरे भी तो बात कर सकते हैं। आखिर वह चिल्लाते
क्यों हैं? कुछ और शिष्यों ने भी जवाब दिया लेकिन संत संतुष्ट नहीं हुए और उन्होंने खुद उत्तर देना शुरू किया। वह बोले : जब दो लोग एक दूसरे से नाराज होते हैं तो उनके दिलों में दूरियां बहुत बढ़ जाती हैं। जब दूरियां बढ़ जाएं तो आवाज को पहुंचाने के लिए उसका तेज होना जरूरी है। दूरियां जितनी ज्यादा होंगी उतनी तेज चिल्लाना पड़ेगा। दिलों की यह दूरियां ही दो गुस्साए लोगों को चिल्लाने पर मजबूर कर देती हैं। वह आगे बोले, जब दो लोगों में प्रेम होता है तो वह एक दूसरे से बड़े आराम से और धीरे-धीरे बात करते हैं। प्रेम दिलों को करीब लाता है और करीब तक आवाज पहुंचाने के लिए चिल्लाने की जरूरत नहीं। जब दो लोगों में प्रेम और भी प्रगाढ़ हो जाता है तो वह खुसफुसा कर भी एक दूसरे तक अपनी बात पहुंचा लेते हैं। इसके बाद प्रेम की एक अवस्था यह भी आती है कि खुसफुसाने की जरूरत भी नहीं पड़ती। एक दूसरे की आंख में देख कर ही समझ आ जाता है कि क्या कहा जा रहा है। शिष्यों की तरफ देखते हुए संत बोले : अब जब भी कभी बहस करें तो दिलों की दूरियों को न बढ़ने दें। शांत चित्त और धीमी आवाज में बात करें। ध्यान रखें कि कहीं दूरियां इतनी न बढ़े जाएं कि वापस आना ही मुमकिन न हो।
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12-11-2014, 12:35 AM | #3 | |
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Re: ------------गुस्सा------------
Quote:
बहुत खूब bhai बहुत अछे से इस कहानी के द्वारा गुस्से की वजह को समझाया आपने बहुत बहुत धन्यवाद bhai |
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10-11-2014, 11:18 PM | #4 |
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Re: ------------गुस्सा------------
मित्रों अब मैं क्रोध के सम्बन्ध में अपनी बात आगे बढाता हूं !
मित्रों सदियों से ऋषि—मुनि, साधु—संत कहते आये है कि ये मत करो, वो मत करो ! ..और कोई पुछ ले कि क्यो ? तो वो कारण भी बता देते है कि इससे ये होगा... उससे वो हो जायेगा !! ...और ये सब कहते सुनते सदियां बित गई पर कोई सुधारा नहीं हुआ ! सब कुछ जस का तस है ! ...कारण कि उन्होने कभी भी वास्तविकता को लोगो में परोसा ही नहीं ! ...और इसका भी कारण था कि इन सब बुराईयों को सही रूप में समझने के लिए पर्याप्त धैर्य, लगन, चिन्तन, मनन, विषद् अध्ययन, और व्यवहारि ज्ञान की आवश्यकता थी ! जिसकी साधारण जन मानस में अपेक्षा व्यर्थ थी !.....और कदाचित् बताते भी तो निरसता के कारण उब कर भाग जाते ! इसीलिए उन्होने इसे सरस बनाया और विभीन्न कहानियों और दृष्टान्तो से इन बुराईयों से अवगत कराया और इनसे होने वाले नुकसान आदि को बताया ! क्रमश:.... |
11-11-2014, 07:35 PM | #5 |
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Re: ------------गुस्सा------------
इसमें इतनी लम्बी-चौड़ी बहस करने की क्या ज़रुरत है? फिल्म में पाँच मिनट के एक गीत में सारा गुस्सा दूर हो जाता है. उदाहरण के लिए प्रस्तुत है वर्ष १९८२ में लोकार्पित हिंदी फिल्म देश प्रेमी का एक गीत- नफ़रत की लाठी तोड़ो, लालच का खंजर फेंको ज़िद के पीछे मत दौड़ो, तुम प्रेम के पंछी हो देश प्रेमियों, आपस में प्रेम करो देश प्रेमियों ... देखो, ये धरती, हम सब की माता है सोचो, आपस में, क्या अपना नाता है हम आपस में लड़ बैठे, हम आपस में लड़ बैठे तो देश को कौन सम्भालेगा कोई बाहर वाला अपने घर से हमें निकालेगा दीवानों होश करो, मेरे देश प्रेमियों ... मीठे, पानी में, ये ज़हर न तुम घोलो जब भी, कुछ बोलो, ये सोच के तुम बोलो भर जाता है गहरा घाव जो बनता है गोली से पर वो घाव नहीं भरता जो बना हो कड़वी बोली से तो मीठे बोल कहो, मेरे देश प्रेमियों ... तोड़ो, दीवारें, ये चार दिशाओं की रोको, मत राहें इन, मस्त हवाओं की पूरब पश्चिम उत्तर दक्खिन वालों मेरा मतलब है इस माटी से पूछो क्या भाषा क्या इसका मज़हब है फिर मुझसे बात करो, मेरे देश प्रेमियों ...
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12-11-2014, 12:33 AM | #6 |
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Re: ------------गुस्सा------------
[QUOTE=Rajat Vynar;539427]इसमें इतनी लम्बी-चौड़ी बहस करने की क्या ज़रुरत है? फिल्म में पाँच मिनट के एक गीत में सारा गुस्सा दूर हो जाता है. उदाहरण के लिए प्रस्तुत है वर्ष १९८२ में लोकार्पित हिंदी फिल्म देश प्रेमी का एक गीत- नफ़रत की लाठी तोड़ो, लालच का खंजर फेंको ज़िद के
... रजत जी भले ही ये गाना फिल्मी है किन्तु शब्द सही हैं इसके गाने के द्वारा ही सही आपने अच्छा लिखा है बहुत बहुत धन्यवाद रजत जी |
12-11-2014, 12:30 AM | #7 |
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Re: ------------गुस्सा------------
[QUOTE=Arvind Shah;539291]मित्रों अब मैं क्रोध के सम्बन्ध में अपनी बात आगे बढाता हूं !
मित्रों सदियों से ऋषि—मुनि, साधु—संत कहते आये है कि ये मत करो, वो मत करो ! ..और कोई पुछ ले कि क्यो ? तो वो कारण भी बता देते है कि इससे ये होगा... उससे वो हो जायेगा !! ...और ये सब कहते सुनते सदियां बित गई पर कोई सुधारा नहीं हुआ ! सब कुछ जस का तस है ! ...कारण कि उन्होने कभी भी वास्तविकता को लोगो में परोसा ही नहीं ! ...और इसका भी कारण था कि इन सब बुराईयों को सही रूप में समझने के लिए पर्याप्त धैर्य, लगन, चिन्तन, मनन, विषद् अध्ययन, बहुत खूब अरविन्द शाह जी ,.. हमे इंतज़ार रहेगा आपकी लेखनी के द्वारा दिए गए सारे समाधान का बहुत बहुत धन्यवाद आप इतने अच्छे से समझा रहे हो |
14-11-2014, 04:26 PM | #8 | |
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Re: ------------गुस्सा------------
Quote:
तो मित्रों इन साधु—संतो द्वारा बताई मोटी—मोटी बातों के पिछे छुपी असल बात को हमारे मुल विषय क्रोध (गुस्सा)के बारे में जानते है ! सम्पूर्ण विश्व में ढेरों दर्शन प्रचलित है जिनमें से हरेक ने अपनी—अपनी तरह से क्रोध के बारे में व्यख्या की है । इनमें से एक जैन दर्शन के सपन्दर्भ में बात करूंगा ! जैन दर्शन में मोटे तौर पर इन चार को कषाय माना है — क्रोध, मान, माया और लोभ ! इन सब का मुल स्त्रोत माना है — राग को ! राग का मतलब आसक्ती, लगाव, मोह आदि है ! दूनिया में आपको जहां कहीं भी क्रोध होता नज़र आये तो पक्का समझना कि इसके मुल में यही राग है ! राग यानि आसक्ती, लगाव, मोह आदि से अपेक्षा का जन्म होता है और जब अपेक्षा पुरी नहीं होती तो क्रोध का जन्म होता है । कैसे ..? इसका धरातलिय अध्ययन आगे करेंगे तब तक आप भी विचार किजिये !!! क्रमश:... |
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15-11-2014, 03:40 PM | #9 |
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Re: ------------गुस्सा------------
[QUOTE=Arvind Shah;539928]तो मित्रों इन साधु—संतो द्वारा बताई मोटी—मोटी बातों के पिछे छुपी असल बात को हमारे मुल विषय क्रोध (गुस्सा)के बारे में जानते है !
सम्पूर्ण विश्व में ढेरों दर्शन प्रचलित है जिनमें से हरेक ने अपनी—अपनी तरह से क्रोध के बारे में व्यख्या की है । इनमें से एक जैन दर्शन के सपन्दर्भ में बात करूँगा .. हार्दिक धन्यवाद अरविन्दजी आपके विचारो को जानकर ख़ुशी हुई ... आगे आप लिखें इसका इंतज़ार रहेगा |
16-11-2014, 08:37 PM | #10 | |
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Re: ------------गुस्सा------------
Quote:
मित्रों अब मेरी कही बातों को समझने के लिए रजनिशजी द्वारा पोस्ट की गई पोस्ट संख्या 8 में दिये इन उदाहरणों को समझते है— 1. कुछ पियक्कड़ लोगो ने एक बच्चे से सिगरेट लाने के लिए कहा. बच्चे के इनकार करने पर उसे जान से मार दिया गया. ...... इस उदाहरण में पियक्कड लोगों की आसक्ति सीगरेट में थी और उसे प्रस्तुत करने की अपेक्षा बच्चे से थी ! जो पुरी नहीं हुई और गुस्सा आया !! 2. दिल्ली में कार पार्किंग को ले कर दो पडौसियों में झगड़ा हो गया. गुस्से में हथियार निकल आये जिसमें एक लड़के की जान चली गई. इस उदाहरण में आसक्ति पार्कींग स्थान की थी और दोनों पार्टीयों को एक दूसरे से अपेक्षा थी की वो गाड़ी पार्क करेगा !! इस उदाहरण में दूसरा कारण अपने ईगो की आसक्ति का भी हो सकता है !! 3. तिहाड़ जेल में एक कैदी ने दूसरे कैदी को टूथपेस्ट नहीं दी तो दूसरे ने पहले कैदी की हत्या कर दी. इस उदाहरण में आसक्ति टूथपेस्ट की थी और अपेक्षा दूसरे कैदी द्वारा उसे प्रस्तुत करने की थी !! 4. पति पत्नी में झगड़ा हुआ तो पति ने क्रोध में आ कर बच्चों समेत पत्नी की हत्या कर दी और खुद को पुलिस के हवाले कर दिया. ये उदाहरण थोड़ा लिक से हट कर है ! इसमें मुल कारण तो वही है पर ज्यादा कारण मानसिक विकृति है !! क्रमश:... |
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