My Hindi Forum

Go Back   My Hindi Forum > Art & Literature > Hindi Literature
Home Rules Facebook Register FAQ Community

Reply
 
Thread Tools Display Modes
Old 01-08-2013, 12:19 PM   #21
VARSHNEY.009
Special Member
 
Join Date: Jun 2013
Location: रामपुर (उत्*तर प्&#235
Posts: 2,512
Rep Power: 17
VARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really nice
Default Re: कथा संस्कृति

अघोरी का मोह / जयशंकर प्रसाद

आज तो भैया, मूँग की बरफी खाने को जी नहीं चाहता, यह साग तो बड़ा ही चटकीला है। मैं तो....”
“नहीं-नहीं जगन्नाथ, उसे दो बरफी तो जरूर ही दे दो।”
“न-न-न। क्या करते हो, मैं गंगा जी में फेंक दूँगा।”
“लो, तब मैं तुम्ही को उलटे देता हूँ।” ललित ने कह कर किशोर की गर्दन पकड़ ली। दीनता से भोली और प्रेम-भरी आँखों से चन्द्रमा की ज्योति में किशोर ने ललित की ओर देखा। ललित ने दो बरफी उसके खुले मुख में डाल दी। उसने भरे हुए मुख से कहा,-भैया, अगर ज्यादा खाकर मैं बीमार हो गया।” ललित ने उसके बर्फ के समान गालों पर चपत लगाकर कहा-”तो मैं सुधाविन्दु का नाम गरलधारा रख दूँगा। उसके एक बूँद में सत्रह बरफी पचाने की ताकत है। निर्भय होकर भोजन और भजन करना चाहिए।”
शरद की नदी अपने करारों में दबकर चली जा रही है। छोटा-सा बजरा भी उसी में अपनी इच्छा से बहता हुआ जा रहा है, कोई रोक-टोक नहीं है। चाँदनी निखर रही थी, नाव की सैर करने के लिए ललित अपने अतिथि किशोर के साथ चला आया है। दोनों में पवित्र सौहाद्र्र है। जाह्नवी की धवलता आ दोनों की स्वच्छ हँसी में चन्द्रिका के साथ मिलकर एक कुतूहलपूर्ण जगत् को देखने के लिए आवाहन कर रही है। धनी सन्तान ललित अपने वैभव में भी किशोर के साथ दीनता का अनुभव करने में बड़ा उत्सुक है। वह सानन्द अपनी दुर्बलताओं को, अपने अभाव को, अपनी करुणा को, उस किशोर बालक से व्यक्त कर रहा है। इसमें उसे सुख भी है, क्योंकि वह एक न समझने वाले हिरन के समान बड़ी-बड़ी भोली आँखों से देखते हुए केवल सुन लेने वाले व्यक्ति से अपनी समस्त कथा कहकर अपना बोझ हलका कर लेता है। और उसका दु:ख कोई समझने वाला व्यक्ति न सुन सका, जिससे उसे लज्जित होना पड़ता, यह उसे बड़ा सुयोग मिला है।
ललित को कौन दु:ख है? उसकी आत्मा क्यों इतनी गम्भीर है? यह कोई नहीं जानता। क्योंकि उसे सब वस्तु की पूर्णता है, जितनी संसार में साधारणत: चाहिए; फिर भी उसकी नील नीरद-माला-सी गम्भीर मुखाकृति में कभी-कभी उदासीनता बिजली की तरह चमक जाती है।
ललित और किशोर बात करते-करते हँसते-हँसते अब थक गये हैं। विनोद के बाद अवसाद का आगमन हुआ। पान चबाते-चबाते ललित ने कहा-”चलो जी, अब घर की ओर।”
माँझियों ने डाँड़ लगाना आरम्भ किया। किशोर ने कहा-”भैया, कल दिन में इधर देखने की बड़ी इच्छा है। बोलो, कल आओगे?” ललित चुप था। किशोर ने कान में चिल्ला कर कहा-”भैया! कल आओगे न?” ललित ने चुप्पी साध ली। किशोर ने फिर कहा-”बोलो भैया, नहीं तो मैं तुम्हारा पैर दबाने लगूँगा।”
ललित पैर छूने से घबरा कर बोला-”अच्छा, तुम कहो कि हमको किसी दिन अपनी सूखी रोटी खिलाओगे?...”
किशोर ने कहा-”मैं तुमको खीरमोहन, दिलखुश..” ललित ने कहा-”न-न-न.. मैं तुम्हारे हाथ से सूखी रोटी खाऊँगा-बोलो, स्वीकार है? नहीं तो मैं कल नहीं आऊँगा।”
किशोर ने धीरे से स्वीकार कर लिया। ललित ने चन्द्रमा की ओर देखकर आँख बंद कर लिया। बरौनियों की जाली से इन्दु की किरणें घुसकर फिर कोर में से मोती बन-बन कर निकल भागने लगीं। यह कैसी लीला थी!
2
25 वर्ष के बाद
कोई उसे अघोरी कहते हैं, कोई योगी। मुर्दा खाते हुए किसी ने नहीं देखा है, किन्तु खोपड़ियों से खेलते हुए, उसके जोड़ की लिपियों को पढ़ते हुए, फिर हँसते हुए, कई व्यक्तियों ने देखा है। गाँव की स्त्रियाँ जब नहाने आती हैं, तब कुछ रोटी, दूध, बचा हुआ चावल लेती आती हैं। पञ्चवटी के बीच में झोंपड़ी में रख जाती हैं। कोई उससे यह भी नहीं पूछता कि वह खाता है या नहीं। किसी स्त्री के पूछने पर-”बाबा, आज कुछ खाओगे-, अघोरी बालकों की-सी सफेद आँखों से देख कर बोल उठता-”माँ।” युवतियाँ लजा जातीं। वृद्धाएँ करुणा से गद्-गद हो जातीं और बालिकाएँ खिलखिला कर हँस पड़तीं तब अघोरी गंगा के किनारे उतर कर चला जाता और तीर पर से गंगा के साथ दौड़ लगाते हुए कोसों चला जाता, तब लोग उसे पागल कहते थे। किन्तु कभी-कभी सन्ध्या को सन्तरे के रंग से जब जाह्नवी का जल रँग जाता है और पूरे नगर की अट्टालिकाओं का प्रतिबिम्ब छाया-चित्र का दृश्य बनाने लगता, तब भाव-विभोर होकर कल्पनाशील भावुक की तरह वही पागल निर्निमेष दृष्टि से प्रकृति के अदृश्य हाथों से बनाये हुए कोमल कारीगरी के कमनीय कुसुम को-नन्हें-से फूल को-बिना तोड़े हुए उन्हीं घासों में हिलाकर छोड़ देता और स्नेह से उसी ओर देखने लगता, जैसे वह उस फूल से कोई सन्देश सुन रहा हो।
-- --
शीत-काल है। मध्याह्न है। सवेरे से अच्छा कुहरा पड़ चुका है। नौ बजने के बाद सूर्य का उदय हुआ है। छोटा-सा बजरा अपनी मस्तानी चाल से जाह्नवी के शीतल जल में सन्तरण कर रहा है। बजरे की छत पर तकिये के सहारे कई बच्चे और स्त्री-पुरुष बैठे हुए जल-विहार कर रहे हैं।
कमला ने कहा-”भोजन कर लीजिए, समय हो गया है।” किशोर ने कहा-”बच्चों को खिला दो, अभी और दूर चलने पर हम खाएँगे।” बजरा जल से कल्लोल करता हुआ चला जा रहा है। किशोर शीतकाल के सूर्य की किरणों से चमकती हुई जल-लहरियों को उदासीन अथवा स्थिर दृष्टि से देखता हुआ न जाने कब की और कहाँ की बातें सोच रहा है। लहरें क्यों उठती हैं और विलीन होती हैं, बुदबुद और जल-राशि का क्या सम्बन्ध है? मानव-जीवन बुदबुद है कि तरंग? बुदबुद है, तो विलीन होकर फिर क्यों प्रकट होता है? मलिन अंश फेन कुछ जलबिन्दु से मिलकर बुदबुद का अस्तित्व क्यों बना देता है? क्या वासना और शरीर का भी यही सम्बन्ध है? वासना की शक्ति? कहाँ-कहाँ किस रूप में अपनी इच्छा चरितार्थ करती हुई जीवन को अमृत-गरल का संगम बनाती हुई अनन्त काल तक दौड़ लगायेगी? कभी अवसान होगा, कभी अनन्त जल-राशि में विलीन होकर वह अपनी अखण्ड समाधि लेगी? ..... हैं, क्या सोचने लगा? व्यर्थ की चिन्ता। उहँ।”
नवल ने कहा-”बाबा, ऊपर देखो। उस वृक्ष की जड़ें कैसी अद्*भुत फैली हुई हैं।”
किशोर ने चौंक कर देखा। वह जीर्ण वृक्ष, कुछ अनोखा था। और भी कई वृक्ष ऊपर के करारे को उसी तरह घेरे हुए हैं, यहाँ अघोरी की पञ्चवटी है। किशोर ने कहा-”नाव रोक दे। हम यहीं ऊपर चलकर ठहरेंगे। वहीं जलपान करेंगे।” थोड़ी देर में बच्चों के साथ किशोर और कमला उतरकर पञ्चवटी के करारे पर चढऩे लगे।
-- --
सब लोग खा-पी चुके। अब विश्राम करके नाव की ओर पलटने की तैयारी है। मलिन अंग, किन्तु पवित्रता की चमक, मुख पर रुक्षकेश, कौपीनधारी एक व्यक्ति आकर उन लोगों के सामने खड़ा हो गया।
“मुझे कुछ खाने को दो।” दूर खड़ा हुआ गाँव का एक बालक उसे माँगते देखकर चकित हो गया। वह बोला, “बाबू जी, यह पञ्चवटी के अघोरी हैं।”
किशोर ने एक बार उसकी ओर देखा, फिर कमला से कहा-”कुछ बचा हो, तो इसे दे दो।”
कमला ने देखा, तो कुछ परावठे बचे थे। उसने निकालकर दे दिया।
किशोर ने पूछा-”और कुछ नहीं है?” उसने कहा-”नहीं।”
अघोरी उस सूखे परावठे को लेकर हँसने लगा। बोला-”हमको और कुछ न चाहिए।” फिर एक खेलते हुए बच्चे को गोद में उठा कर चूमने लगा। किशोर को बुरा लगा। उसने कहा-”उसे छोड़ दो, तुम चले जाओ।”
अघोरी ने हताश दृष्टि से एक बार किशोर की ओर देखा और बच्चे को रख दिया। उसकी आँखें भरी थीं, किशोर को कुतूहल हुआ। उसने कुछ पूछना चाहा, किन्तु वह अघोरी धीरे-धीरे चला गया। किशोर कुछ अव्यवस्थित हो गये। वह शीघ्र नाव पर सब को लेकर चले आये।
नाव नगर की ओर चली। किन्तु किशोर का हृदय भारी हो गया था। वह बहुत विचारते थे, कोई बात स्मरण करना चाहते थे, किन्तु वह ध्यान में नहीं आती थी-उनके हृदय में कोई भूली हुई बात चिकोटी काटती थी, किन्तु वह विवश थे। उन्हें स्मरण नहीं होता था। मातृ-स्नेह से भरी हुई कमला ने सोचा कि हमारे बच्चों को देखकर अघोरी को मोह हो गया।
__________________
Disclamer :- Above Post are Free Available On INTERNET Posted By Somebody Else, I'm Not VIOLATING Any COPYRIGHTED LAW. If Anything Is Against LAW, Please Notify So That It Can Be Removed.
VARSHNEY.009 is offline   Reply With Quote
Old 01-08-2013, 12:19 PM   #22
VARSHNEY.009
Special Member
 
Join Date: Jun 2013
Location: रामपुर (उत्*तर प्&#235
Posts: 2,512
Rep Power: 17
VARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really nice
Default Re: कथा संस्कृति

अच्छा स्कूल / दीपक मशाल

वह एक सरकारी प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक था। भलीभांति जानता था कि अपने बच्चे का भविष्य कैसे सुनिश्चित करना है, कैसे संवारना है? तभी तो उसके पैदा होते ही उसने उसके नाम से एक मुश्त रकम जमा कर दी, जिससे कि जब तक बच्चा स्कूल जाने योग्य हो तब तक किसी 'अच्छे स्कूल' में दाखिले लायक धन जमा हो सके।
पर बढ़ती महंगाई का क्या करें कि उसके बेटे की उम्र तो शिक्षा पाने की हो गई लेकिन जमा धन शिक्षा दिलाने लायक ना हुआ। इन चंद सालों में मंहगाई उसकी सोच से दोगुनी रफ़्तार से बढ़ चुकी थी। जो पैसे उसके हाथ आये थे उतने तो मनवांछित स्कूल की एडमिशन फीस देने के लिए भी नाकाफी थे, फिर उसकी आसमान छूती ट्यूशन फीस की बात ही कौन करे। एक बारगी सोचा तो कि “एक-दो साल के लिए अपने ही सरकारी स्कूल में दाखिला दिला दूँ”, लेकिन यह उसकी पत्नी को गंवारा ना हुआ। जब कुछ इंतजाम ना बन पड़ा तो अपने मोहल्ले के ही एक शिशुमंदिर में प्रवेश दिला दिया। यह सोचकर कि, “एक साल यहाँ रहकर अनुशासन तो सीखेगा।। तब तक 'अच्छे स्कूल' के लिए कहीं से बंदोबस्त कर ही लूँगा”।
__________________
Disclamer :- Above Post are Free Available On INTERNET Posted By Somebody Else, I'm Not VIOLATING Any COPYRIGHTED LAW. If Anything Is Against LAW, Please Notify So That It Can Be Removed.
VARSHNEY.009 is offline   Reply With Quote
Old 01-08-2013, 12:20 PM   #23
VARSHNEY.009
Special Member
 
Join Date: Jun 2013
Location: रामपुर (उत्*तर प्&#235
Posts: 2,512
Rep Power: 17
VARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really nice
Default Re: कथा संस्कृति

अज्ञात-गमन / बलराम अग्रवाल

चौराहे के घंटाघर से दो बजने की आवाज़ घनघनाती है। बंद कोठरी में लिहाफ के बीच लिपटे दिवाकर आँखेंखोलकर जैसे अँधेरे में ही सब-कुछ देख लेना चाहते हैं—दो जवान बेटों में से एक, बड़ा, अपनी शादी के तुरंत बाद हीबहू को लेकर नौकरी पर चला गया था। राजी-खुशी के दो-चार पत्रों के बाद तीसरे ही महीने—पूज्य पिताजी, बाहररहकर इतने कम वेतन में निर्वाह करना कितना मुश्किल है! इस पर भी, पिछले माह वेतन मिला नहीं। हो सके तो, कुछ रुपए खर्च के लिए भेज दें। अगले कुछ महीनों में धीरे-धीरे लौटा दूँगा…लिखा पत्र मिला।
रुपए तो दिवाकर क्या भेज पाते। बड़े की चतुराई भाँप उससे मदद की उम्मीद छोड़ बैठे। छोटा उस समय कितनाबिगड़ा था बड़े पर—हद कर दी भैया ने, बीवी मिलते ही बाप को छोड़ बैठे!
इस घटना के बाद एकदम बदल गया था वह। एक-दो ट्यूशन के जरिए अपना जेब-खर्च उसने खुद सँभाल लिया थाऔर आवारगी छोड़ आश्चर्यजनक रूप से पढ़ाई में जुट गया था। प्रभावित होकर मकान गिरवी रखकर भी दिवाकरने उसे उच्च-शिक्षा दिलाई और सौभाग्यवश ब्रिटेन के एक कालेज में वह प्राध्यापक नियुक्त हो गया। वहाँ पहुँचकरवह अपनी राजी-खुशी और ऐशो-आराम की खबर से लेकर दिवाकर ‘ससुर’ और फिर ‘दादाजी’ बन जाने तक कीहर खबर भेजता रहा है। लेकिन वह, यहाँ भारत में, क्या खा-पीकर जिन्दा हैं—छोटे ने कभी नहीं पूछा।
…कल सुबह, जब गिरवी रखे इस मकान से वह बेदखल कर दिए जाएँगे—घने अंधकार में डबडबाई आँखें खोलेदिवाकर कठोरतापूर्वक सोचते हैं…अपने बेटों के पास दो पत्र लिखेंगे…यह कि अपने मकान से बेदखल हो जाने औरउसके बाद कोई निश्चित पता-ठिकाना न होने के कारण आगे से उनके पत्रों को वह प्राप्त नहीं कर पाएँगे।
__________________
Disclamer :- Above Post are Free Available On INTERNET Posted By Somebody Else, I'm Not VIOLATING Any COPYRIGHTED LAW. If Anything Is Against LAW, Please Notify So That It Can Be Removed.
VARSHNEY.009 is offline   Reply With Quote
Old 01-08-2013, 12:20 PM   #24
VARSHNEY.009
Special Member
 
Join Date: Jun 2013
Location: रामपुर (उत्*तर प्&#235
Posts: 2,512
Rep Power: 17
VARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really nice
Default Re: कथा संस्कृति

अतिथि / सतीश दुबे

बम फूटने और बोतलें फेंकने की आवाजें, चीखें, हो–हल्ला, खून–खराबा। हर कोई भाग–दौड़ रहा था। ऐसी ही भीड़ को चीरता हुआ वह बालक ओट ले परे जाकर खड़ा हो गया।
अपने सिर की गोल टोपी व्यवस्थित करते हुए भयाक्रान्त नजरों से जुलूस की खूनी हरकतें देखने लगा। अचानक उसे लगा, उसके बाजू को किसी ने तेजी से दबोचकर उसकी टोपी निकाल ली है।
उसने देखा–वह एक आदमी की गिरफ्त में है।
‘‘हाँ, बोल....’’
‘‘या अब्बा!’’ मौत सिर पर मँडराने के डर से वह चीख पड़ा।
वह आदमी उसे अंदर खींचकर ले गया तथा दोनों कंधों को दबाकर उसे एक पार पर बिठा दिया।
‘‘क्या आप मुझे हलाल करेंगे?’’
‘‘हाँ, तू ऐसे भीड़भाड़–भरे जुलूस में आया क्यों?
‘‘अब्बा ने तो मना किया था, पर मुहल्ले के सभी लड़के तो आ रहे थे।’’ त्यौहार का उल्लास उसके मन में हिलोरे ले रहा था। ‘‘कब से निकला था घर से?’’
‘‘सुबु से। चाचाजान, आप मुझे हलाल मत करिए ना! मेरे अब्बा!’’ वह रोने लगा था।
‘‘अच्छा,चुप हो जा।’’ इशारा पाकर खाने की थाली पत्नी ने उसके सामने रख दी। डर और आतंक से सहमते हुए उसने उस आदमी की ओर देखा।
‘‘खा ले!’’
‘‘मुझे भूख नहीं है।’’ वह डर से काँप रहा था।
‘‘नहीं खाएगा?’’ आदमी का स्वर कुछ तेज था।
बालक को लगा, गंडासा उसकी गर्दन पर ये पड़ा, वो पड़ा।
‘‘अच्छा, खाता हूँ।’’
वह खाने में जुट जाता गया।
‘‘चाचाजान! मेरे अब्बा अकेले हैं, मुझे हलाल मत करो, मुझे जाने दे।’’
‘‘अकेला जाएगा तो मर जाएगा। हम तुझे पहुँचा देंगे।’’
‘‘नहीं....नहीं मरूँगा, अब्बा ने कहा था कि अल्ला तेरे साथ है।’’ वह शकालु डर से लगातार काँपता जा रहा था।
‘‘अच्छा चल, पाजामा में जेब तो है न? इसमें ये टोपी रख ले। तेरा पता क्या है?’’
डसने कागज की चिट पर पता लिखा तथा उसकी अंगुली थामे, कमरे से बाहर निकला।
बाहर रोड पर, वही हो–हल्ला, चीख–पुकार, भाग–दौड़, खून–खराबा।
ुस आदमी ने उसे एक पुलिस को सौंपा, ‘‘इसे इसके घर तक पहुँचा दीजिए, ये रहा पता।...पहुँचा देंगे या इसके लिए भी ऊपर से आर्डर लगेगा।’’ उसका स्वर कुछ ऊँचा हो गया था।
पुलिसमैन ने अचकचाकर उसकी तरफ देखा तथा बच्चे को पुलिस–वैन की ओर ले गया।
बच्चा कृतज्ञता–भरी नजरों से उसकी ओर देखता हुआ आगे बढ़ गया। उसे लगा, उमस–भरी तपन के बीच आया शीतल झोंका उससे दूर हो गया है
__________________
Disclamer :- Above Post are Free Available On INTERNET Posted By Somebody Else, I'm Not VIOLATING Any COPYRIGHTED LAW. If Anything Is Against LAW, Please Notify So That It Can Be Removed.
VARSHNEY.009 is offline   Reply With Quote
Old 01-08-2013, 12:20 PM   #25
VARSHNEY.009
Special Member
 
Join Date: Jun 2013
Location: रामपुर (उत्*तर प्&#235
Posts: 2,512
Rep Power: 17
VARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really nice
Default Re: कथा संस्कृति

अथ ध्यानम् / बलराम अग्रवाल

आलीशान बंगला। गाड़ी। नौकर-चाकर। ऐशो-आराम। एअरकंडीशंड कमरा। ऊँची, अलमारीनुमा तिजौरी। करीने से सजा रखी करेंसी नोटों की गड्डियाँ। माँ लक्ष्मी की हीरे-जटित स्वर्ण-प्रतिमा।
दायें हाथ में सुगन्धित धूप। बायें में घंटिका। चेहरे पर अभिमान। नेत्रों में कुटिलता। होंठ शान्त लेकिन मन में भयमिश्रित बुदबुदाहट।
“नौकरों-चाकरों के आगे महनत को ही सब-कुछ कह-बताकर अपनी शेखी आप बघारने की मेरी बदतमीजी का बुरा न मानना माँ, जुबान पर मत जाना। दिल से तो मैं आपकी कृपा को ही आदमी की उन्नति का आधार मानता हूँ, महनत को नहीं। आपकी कृपा न होती तो मुझ-जैसे कंगले और कामचोर आदमी को ये ऐशो-आराम कहाँ नसीब था माँ। आपकी जय हो…आपकी जय हो।”
__________________
Disclamer :- Above Post are Free Available On INTERNET Posted By Somebody Else, I'm Not VIOLATING Any COPYRIGHTED LAW. If Anything Is Against LAW, Please Notify So That It Can Be Removed.
VARSHNEY.009 is offline   Reply With Quote
Old 01-08-2013, 12:21 PM   #26
VARSHNEY.009
Special Member
 
Join Date: Jun 2013
Location: रामपुर (उत्*तर प्&#235
Posts: 2,512
Rep Power: 17
VARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really nice
Default Re: कथा संस्कृति

अदला-बदली / ख़लील जिब्रान / बलराम अग्रवाल

एक गरीब कवि की एक बार शहर के एक चौराहे पर एक धनी मूर्ख से मुलाकात हो गई। उन्होंने बहुत-सी बातें कीं लेकिन सबकी सब बेमतलब।
तभी उस सड़क का फरिश्ता उधर से गुजरा। उसने उन दोनों के कन्धों पर अपने हाथ रखे। एक चमत्कार हुआ : दोनों के विचार आपस में बदल गए।
इसके बाद वे अपने-अपने रास्ते चले गए।
चमत्कार हुआ।
कवि ने रेत देखी। उसे मुठ्ठी में उठाया और धार बनकर उसमें से उसे रिसते देखता रहा।
और मूर्ख! अपनी आँखें बन्दकर बैठ गया; लेकिन अनुभव कुछ न कर सका हृदय में घुमड़ते बादलों के सिवा।
__________________
Disclamer :- Above Post are Free Available On INTERNET Posted By Somebody Else, I'm Not VIOLATING Any COPYRIGHTED LAW. If Anything Is Against LAW, Please Notify So That It Can Be Removed.
VARSHNEY.009 is offline   Reply With Quote
Old 01-08-2013, 12:21 PM   #27
VARSHNEY.009
Special Member
 
Join Date: Jun 2013
Location: रामपुर (उत्*तर प्&#235
Posts: 2,512
Rep Power: 17
VARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really nice
Default Re: कथा संस्कृति

अधर / अन्तरा करवड़े

आज रितेश और प्रियंका बड़े खुश थे। खुद की मेहनत के बल पर उन्होने शहर के सबसे महँगे और पॉश कहे जाने वाले इलाके में एक अत्याधुनिक फ्लैट खरीद लिया था। बीसवीं मंजिल पर बसा उनका ये नया आशियाना सचमुच बड़ा खूबसूरत था। चौबीसों घण्टे की वीडियो कैमरा और वॉईस फैसिलिटी से सुसज्जित सिक्युरिटी¸ एक पावर स्टेशन¸ प्राईवेट बस स्टॉप¸ पार्क¸ जिम¸ पूल¸ प्ले जोन¸ क्या नहीं था वहाँ!
रितेश को सबसे ज्यादा पसंद आई थी उसके फ्लॅट की सी व्यू गैलेरी। कितना मनमोहक दृश्य दिखाई देता था वहाँ से ! आज तक वे ग्राऊण्ड फ्लोर की इस छोटी सी पुरानी जगह पर रहते आए थे।
प्रियंका को तो जैसे पर लग गये थे। नये घर की सजावट¸ बुक शैल्फ¸ कर्टन्स¸ फर्नीचर और बी न जाने क्या क्या था उसक लिस्ट में।
अनमना सा कोई था तो उनका पाँच वर्ष का प्रशांत। उसे बिल्कुल भी समझ में नहीं आ रहा था कि इस जगह को छोड़कर वे आखिर उस इतनी ऊँची इमारत में क्यों रहने जाएँगे? उसकी चिंता भी वाजिब थी। उसकी सबसे अच्छी साथी यानी उसकी दहलीज पर दाना चुगने आती चिड़िया अब भूखी रहा करेंगी।
उसने एक बार नये घर में जाकर देखा था। कोई भी पेड उसके घर की बराबरी नहीं कर पा रहा था। तो क्या ये सब भूल जाना होगा उसे?
"क्या बात है प्रशांत? देखो मैं तुम्हारी मनपसंद कार्टून सी डी लाया हूँ।" रितेश ने उसे मनाते हुए कहा। प्रशांत ने कोई जवाब नहीं दिया।
तभी जोर जोर से खाँसती प्रियंका अंदर आई। "पिछली गली में कचरे के नाम पर क्या क्या जलाते है? दम घुटने लगता है कभी - कभी।"
"कुछ ही दिनों की तो बात है डियर! फिर तो हम इतने ऊँचे चले जाएँगे कि तुम बस देखती रहना।" प्रशांत ने सपनीली आँखों से उसे देखा।
"सचमुच! मुझे तो ऐसा लग रहा है कि कब ये कबाड़खाना छोडकर वहाँ शिफ्ट होंगे हम। कितना साफ¸ पोल्यूशन फ्री¸ एकदम हाई सोसाईटी फील के जैसा।" प्रियंका को अपना प्रिय विषय मिल गया था।
दोनों ने देखा कि इस नये घर को लेकर प्रशांत उतना उत्साहित नहीं है जितना कि उसे होना चाहिये।
"प्रशांत! बेटा हम थोड़े ही दिनों के बाद अपने नये घर में शिफ्ट होने वाले है। क्यों न हम तुम्हारे यहाँ वाले दोस्तों के लिये एक पार्टी अरेंज करें?" प्रियंका ने उसे टटोलते हुए पूछा।
"और फिर प्रशांत¸ नया घर तो बड़ी ऊँचाई पर है वहाँ से सब कुछ कितना अच्छा लगेगा है ना?" रितेश ने उसे मनाते हुए कहा। दोनों ही उसकी प्रतिक्रिया देखना चाह रहे थे।
"लेकिन पापा!"
"बोलो बेटा!"
"वहाँ पर न तो कोई पेड़ पौधे रहेंगे¸ न पंछी। ये सब बहुत नीचे होगा। और न ही हम चाँद तारों को छू सकते है¸ ये बहुत ऊपर होगा। ऐसी बीच वाली स्टेज को तो अधर में लटकना कहते है ना?"
दोनों के पास कोई उत्तर नहीं था।
उधर आँगन में¸ चावल के दानों पर अपना हक जताती एक चिया चहचहा रही थी।
__________________
Disclamer :- Above Post are Free Available On INTERNET Posted By Somebody Else, I'm Not VIOLATING Any COPYRIGHTED LAW. If Anything Is Against LAW, Please Notify So That It Can Be Removed.
VARSHNEY.009 is offline   Reply With Quote
Old 01-08-2013, 12:21 PM   #28
VARSHNEY.009
Special Member
 
Join Date: Jun 2013
Location: रामपुर (उत्*तर प्&#235
Posts: 2,512
Rep Power: 17
VARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really nice
Default Re: कथा संस्कृति

अनमोल ख़ज़ाना /श्याम सुन्दर अग्रवाल

अपनी अलमारी के लॉकर में रखी कोई वस्तु जब पत्नी को न मिलती तो वह लॉकर का सारा सामान बाहर निकाल लेती। इस सामान में एक छोटी-सी चाँदी की डिबिया भी होती। सुंदर तथा कलात्मक डिबिया। इस डिबिया को वह बहुत सावधानी से रखती। उसने डिबिया को छोटा-सा ताला भी लगा रखा था। मुझे या बच्चों को तो उसे हाथ भी न लगाने देती। वह कहती, “इसमें मेरा अनमोल ख़ज़ाना है, जीते जी किसी को छूने भी न दूँगी।” एक दिन पत्नी जल्दी में अपना लॉकर बंद करना भूल गई। मेरे मन में उस चाँदी की डिबिया में रखा पत्नी का अनमोल ख़ज़ाना देखने की इच्छा बलवती हो उठी। मैने डिबिया बाहर निकाली। मैने उसे हिला कर देखा। डिबिया में से सिक्कों के खनकने की हल्की-सी आवाज सुनाई दी। मुझे लगा, पत्नी ने डिबिया में ऐतिहासिक महत्त्व के सोने अथवा चाँदी के कुछ सिक्के संभाल कर रखे हुए हैं। मेरी उत्सुकता और बढ़ी। कौन से सिक्के हैं? कितने सिक्के हैं? उनकी कितनी कीमत होगी? अनेक प्रश्न मस्तिष्क में उठ खड़े हुए। थोड़ा ढूँढ़ने पर डिबिया के ताले की चाबी भी मिल गई। डिबिया खोली तो उसमें से एक थैली निकली। कपड़े की एक पुरानी थैली। थैली मैने पहचान ली। यह मेरी सास ने दी थी, मेरी पत्नी को। जब सास मृत्युशय्या पर थी और हम उससे मिलने गाँव गए थे। आँसू भरी आँखों और काँपते हाथों से उसने थैली पत्नी को पकड़ाई थी। उसके कहे शब्द आज भी मुझे याद हैं–‘ले बेटी ! तेरी माँ के पास तो बस यही है देने को।’ मैने थैली खोल कर पलटी तो पत्नी का अनमोल ख़ज़ाना मेज पर बिखर गया। मेज पर जो कुछ पड़ा था, उसमें वर्तमान के ही कुल आठ सिक्के थे– तीन सिक्के दो रुपये वाले, तीन सिक्के एक रुपये वाले और दो सिक्के पचास पैसे वाले। कुल मिला कर दस रुपये। मैं देर तक उन सिक्कों को देखता रहा। फिर मैने एक-एक कर सभी सिक्कों को बड़े ध्यान से थैली में वापस रखा ताकि किसी को भी हल्की-सी रगड़ न लग जाए।
__________________
Disclamer :- Above Post are Free Available On INTERNET Posted By Somebody Else, I'm Not VIOLATING Any COPYRIGHTED LAW. If Anything Is Against LAW, Please Notify So That It Can Be Removed.
VARSHNEY.009 is offline   Reply With Quote
Old 01-08-2013, 12:22 PM   #29
VARSHNEY.009
Special Member
 
Join Date: Jun 2013
Location: रामपुर (उत्*तर प्&#235
Posts: 2,512
Rep Power: 17
VARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really nice
Default Re: कथा संस्कृति

अनहोनी / दीपक मशाल

बड़ी अनहोनी हो गई। नेता जी को हमलावरों ने घायल कर दिया। सुना है वो सुबह सुबह मंदिर जा रहे थे लेकिन रास्ते में ही मोटरसाइकिल सवार दो अज्ञात हमलावरों ने अचानक उनपर ताबड़तोड़ गोलियां बरसा दीं। उनके बहते खून ने समर्थकों का खून खौला दिया। देखते ही देखते उनके चाहने वालों का हुजूम जमा हो गया।
थोड़ी देर में ही नेता ओपरेशन थियेटर में थे और बाहर समर्थकों के सब्र का बाँध टूट रहा था। किसी ने कहा- 'इस सब में पुलिस की मिलीभगत है।'
फिर क्या था। २०० लोगों की भीड़ थाने की तरफ बढ़ चली। लाठी, बल्लम, हॉकी स्टिक, मिट्टी का तेल, पेट्रोल सब जाने कहाँ से प्रकट होते चले गए। रास्ते में जो भी वाहन मिलता उसमे आग लगा दी जाती। दुकानें बंद करा दी गयीं। जो नहीं हुईं वो लूट ली गईं।
इस सब से बेखबर वो आज भी थाने के पास वाले चौराहेपर अपना रिक्शा लिए खड़ा था, जो उसके पास तो था पर उसका नहीं था। हाँ किराए पर रिक्शा लिया था उसने। आज साप्ताहिक बाज़ार का दिन था, उसे उम्मीद थी कि कम से कम आज तो रिक्शे के किराए के अलावा कुछ पैसे बचेंगे जिससे उसके तीनों बच्चे भर पेट खाना खा सकेंगे और कुछ और बच गए तो बुखार में तपती बीवी को दवा भी ला देगा।
दूर से आती भीड़ को उसने देखा तो लेकिन उसके मूड का अंदाजा ना लगा पाया। या शायद सोचा होगा कि उस गरीब से उनकी क्या दुश्मनी?
पर जब तक वो कुछ समझ सकता रिक्शा पेट्रोल से भीग चुका था। एक जलती तीली ने पल भर में बच्चों के निवाले और उसकी बीवी की दवा जला डाली।
अगले दिन नेता जी की हालत खतरे से बाहर थी। हमलावर पकड़े गए। नेता जी ने समर्थकों का उनके प्रति अगाध प्रेम दर्शाने के लिए आभार प्रकट किया।
रिक्शावाले के घर का दरवाज़ा सूरज के आसमान चढ़ने तक नहीं खुला। अनहोनी की आशंका से पड़ोसियों ने अभी-अभी पुलिस को फोन किया है।
__________________
Disclamer :- Above Post are Free Available On INTERNET Posted By Somebody Else, I'm Not VIOLATING Any COPYRIGHTED LAW. If Anything Is Against LAW, Please Notify So That It Can Be Removed.
VARSHNEY.009 is offline   Reply With Quote
Old 01-08-2013, 12:22 PM   #30
VARSHNEY.009
Special Member
 
Join Date: Jun 2013
Location: रामपुर (उत्*तर प्&#235
Posts: 2,512
Rep Power: 17
VARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really nice
Default Re: कथा संस्कृति

अनुताप / सुकेश साहनी

“बाबूजी आइए---मैं पहुँचाए देता हूँ।”एक रिक्शेवाले ने उसके नज़दीक आकर कहा।
“असलम अब नहीं आएगा।” “क्या हुआ उसको ?” रिक्शे में बैठते हुए उसने लापरवाही से पूछा। पिछले चार-पाँच दिनों से असलम ही उसे दफ्तर पहुँचाता रहा था।
“बाबूजी, असलम नहीं रहा---”
“क्या?” उसे शाक-सा लगा, “कल तो भला चंगा था।”
“उसके दोनों गुर्दों में खराबी थी, डाक्टर ने रिक्शा चलाने से मना कर रखा था,” उसकी आवाज़ में गहरी उदासी थी, “कल आपको दफ्तर पहुँचा कर लौटा तो पेशाब बंद हो गया था, अस्पताल ले जाते समय उसने रास्ते में ही दम तोड़ दिया था---।”
आगे वह कुछ नहीं सुन सका। एक सन्नाटे ने उसे अपने आगोश में ले लिया---कल की घटना उसकी आँखों के आगे सजीव हो उठी। रिक्शा नटराज टाकीज़ पार कर बड़े डाकखाने की ओर जा रहा था। रिक्शा चलाते हुए असलम धीरे-धीरे कराह रहा था।बीच-बीच में एक हाथ से पेट पकड़ लेता था। सामने डाक बंगले तक चढ़ाई ही चढ़ाई थी।एकबारगी उसकी इच्छा हुई थी कि रिक्शे से उतर जाए। अगले ही क्षण उसने खुद को समझाया था-‘रोज का मामला है---कब तक उतरता रहेगा---ये लोग नाटक भी खूब कर लेते हैं, इनके साथ हमदर्दी जताना बेवकूफी होगी--- अनाप-शनाप पैसे माँगते हैं, कुछ कहो तो सरेआम रिक्शे से उतर पड़ा था, दाहिना हाथ गद्दी पर जमाकर चढ़ाई पर रिक्शा खींच रहा था। वह बुरी तरह हाँफ रहा था, गंजे सिर पर पसीने की नन्हीं-नन्हीं बूंदें दिखाई देने लगी थीं---।
किसी कार के हार्न से चौंककर वह वर्तमान में आ गया। रिक्शा तेजी से नटराज से डाक बंगले वाली चढ़ाई की ओर बढ़ रहा था।
“रुको!” एकाएक उसने रिक्शे वाले से कहा और रिक्शे के धीरे होते ही उतर पड़ा। रिक्शे वाला बहुत मज़बूत कद काठी का था। उसके लिए यह चढ़ाई कोई खास मायने नहीं रखती थी। उसने हैरानी से उसकी ओर देखा। वह किसी अपराधी की भाँति सिर झुकाए रिक्शे के साथ-साथ चल रहा था।
__________________
Disclamer :- Above Post are Free Available On INTERNET Posted By Somebody Else, I'm Not VIOLATING Any COPYRIGHTED LAW. If Anything Is Against LAW, Please Notify So That It Can Be Removed.
VARSHNEY.009 is offline   Reply With Quote
Reply

Bookmarks


Posting Rules
You may not post new threads
You may not post replies
You may not post attachments
You may not edit your posts

BB code is On
Smilies are On
[IMG] code is On
HTML code is Off



All times are GMT +5. The time now is 11:44 AM.


Powered by: vBulletin
Copyright ©2000 - 2024, Jelsoft Enterprises Ltd.
MyHindiForum.com is not responsible for the views and opinion of the posters. The posters and only posters shall be liable for any copyright infringement.