14-05-2012, 07:32 PM | #21 |
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Re: योगा
अपान मुद्रा अंगूठे से दूसरी अंगुली (मध्यमा) तथा तीसरी अंगुली (अनामिका) के पोरों को मोड़कर अंगूठे के पोर से स्पर्श करने से जो मुद्रा बनती है,उसे अपान मुद्रा कहते हैं..लाभ - यदि मल मूत्र निष्कासन में समस्या आ रही हो,पसीना नहीं आ रहा हो, तो इस मुद्रा के चालीस मिनट के प्रयोग से इस अवधि के मध्य ही शरीर से प्रदूषित विजातीय द्रव्य निष्काषित हो जाते हैं.देखा गया है कि जब औषधि तक का प्रयोग निष्फल रहता है, इस मुद्रा का प्रयोग त्वरित लाभ देता है..
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14-05-2012, 07:38 PM | #22 |
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Re: योगा
अपान वायु मुद्रा मुद्रा बनाने का तरीका- लाभकारी- ये मुद्रा दिल के रोगों में तुरंत ही असर दिखाती है। किसी व्यक्ति को दिल का दौरा पड़ने पर ये मुद्रा करने से तुरंत ही लाभ होता है। दिल के रोगों के साथ-साथ अपानवायु मुद्रा आधे सिर का दर्द भी तुरंत ही कम कर देती है। इसके निरंतर अभ्यास से पेट के सभी रोग जैसे पेट में गैस आदि तथा पुराने रोग जैसे गठिया और जोड़ों के दर्द में लाभ होता है। समय- अपानवायु मुद्रा को सुबह और शाम लगभग 15-15 मिनट तक करना चाहिए। जानकारी- इस मुद्रा को करने से दिल के रोग और ब्लडप्रेशर जैसे रोग पूरी तरह जड़ से समाप्त हो जाते हैं।
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14-05-2012, 07:48 PM | #23 |
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Re: योगा
सूर्य नमस्कार की विधि सूर्य-नमस्कार को सर्वांग व्यायाम भी कहा जाता है, समस्त यौगिक क्रियाऒं की भाँति सूर्य-नमस्कार के लिये भी प्रातः काल सूर्योदय का समय सर्वोत्तम माना गया है। सूर्यनमस्कार सदैव खुली हवादार जगह पर कम्बल का आसन बिछा खाली पेट अभ्यास करना चाहिये। इससे मन शान्त और प्रसन्न हो तो ही योग का सम्पूर्ण प्रभाव मिलता है।प्रथम स्थिति- स्थितप्रार्थनासन सूर्य-नमस्कार की प्रथम स्थिति स्थितप्रार्थनासन की है।सावधान की मुद्रा में खडे हो जायें।अब दोनों हथेलियों को परस्पर जोडकर प्रणाम की मुद्रा में हृदय पर रख लें।दोनों हाथों की अँगुलियाँ परस्पर सटी हों और अँगूठा छाती से चिपका हुआ हो। इस स्थिति में आपकी केहुनियाँ सामने की ऒर बाहर निकल आएँगी। अब आँखें बन्द कर दोनों हथेलियों का पारस्परिक दबाव बढाएँ । श्वास-प्रक्रिया निर्बाध चलने दें।द्वितीय स्थिति - हस्तोत्तानासन या अर्द्धचन्द्रासन प्रथम स्थिति में जुडी हुई हथेलियों को खोलते हुए ऊपर की ऒर तानें तथा साँस भरते हुए कमर को पीछे की ऒर मोडें।गर्दन तथा रीढ की हड्डियों पर पडने वाले तनाव को महसूस करें।अपनी क्षमता के अनुसार ही पीछे झुकें और यथासाध्य ही कुम्भक करते हुए झुके रहें ।तृतीय स्थिति - हस्तपादासन या पादहस्तासन दूसरी स्थिति से सीधे होते हुए रेचक (निःश्वास) करें तथा उसी प्रवाह में सामने की ऒर झुकते चले जाएँ । दोनों हथेलियों को दोनों पँजों के पास जमीन पर जमा दें। घुटने सीधे रखें तथा मस्तक को घुटनों से चिपका दें यथाशक्ति बाह्य-कुम्भक करें। नव प्रशिक्षु धीरे-धीरे इस अभ्यास को करें और प्रारम्भ में केवल हथेलियों को जमीन से स्पर्श कराने की ही कोशिश करें।चतुर्थ स्थिति- एकपादप्रसारणासन तीसरी स्थिति से भूमि पर दोनों हथेलियाँ जमाये हुए अपना दायाँ पाँव पीछे की ऒर फेंके।इसप्रयास में आपका बायाँ पाँव आपकी छाती केनीचे घुटनों से मुड जाएगा,जिसे अपनी छाती से दबाते हुए गर्दनपीछे की ऒर मोडकर ऊपर आसमान कीऒर देखें।दायाँ घुटना जमीन पर सटा हुआ तथा पँजा अँगुलियों पर खडा होगा। ध्यान रखें, हथेलियाँ जमीन से उठने न पायें। श्वास-प्रक्रिया सामान्य रूप से चलती रहे।पंचम स्थिति- भूधरासन या दण्डासन एकपादप्रसारणासन की दशा से अपने बाएँ पैर को भी पीछे ले जाएँ और दाएँ पैर के साथ मिला लें ।हाथों को कन्धोंतक सीधा रखें । इस स्थिति में आपका शरीर भूमि पर त्रिभुज बनाता है , जिसमें आपके हाथ लम्बवत् और शरीर कर्णवत् होते हैं।पूरा भार हथेलियों और पँजों पर होता है। श्वास-प्रक्रिया सामान्य रहनी चाहिये अथवा केहुनियों को मोडकर पूरे शरीर को भूमि पर समानान्तर रखना चाहिये। यह दण्डासन है।षष्ठ स्थिति - साष्टाङ्ग प्रणिपात पंचम अवस्था यानि भूधरासन से साँस छोडते हुए अपने शरीर को शनैःशनैः नीचे झुकायें। केहुनियाँ मुडकर बगलों में चिपक जानी चाहिये। दोनों पँजे, घुटने, छाती, हथेलियाँ तथा ठोढी जमीन पर एवं कमर तथा नितम्ब उपर उठा होना चाहिये । इस समय 'ॐ पूष्णे नमः ' इस मन्त्र का जप करना चाहिये । कुछ योगी मस्तक को भी भूमि पर टिका देने को कहते हैं ।सप्तम स्थिति - सर्पासन या भुजङ्गासन छठी स्थिति में थॊडा सा परिवर्तन करते हुए नाभि से नीचे के भाग को भूमि पर लिटा कर तान दें। अब हाथोंको सीधा करते हुए नाभि से उपरी हिस्से को ऊपर उठाएँ। श्वास भरते हुए सामने देखें या गरदन पीछे मोडकर ऊपर आसमान की ऒर देखने की चेष्टा करें । ध्यान रखें, आपके हाथ पूरी तरह सीधे हों या यदि केहुनी से मुडे हों तो केहुनियाँ आपकी बगलों से चिपकी हों । अष्टम स्थिति- पर्वतासन सप्तम स्थिति से अपनी कमर और पीठ को ऊपर उठाएँ, दोनों पँजों और हथेलियों पर पूरा वजन डालकर नितम्बों को पर्वतशृङ्ग की भाँति ऊपर उठा दें तथा गरदन को नीचे झुकाते हुए अपनी नाभि को देखें ।नवम स्थिति - एकपादप्रसारणासन (चतुर्थ स्थिति) आठवीं स्थिति से निकलते हुए अपना दायाँ पैर दोनों हाथों के बीच दाहिनी हथेली के पास लाकर जमा दें। कमर को नीचे दबाते हुए गरदन पीछे की ऒर मोडकर आसमान की ऒर देखें ।बायाँ घुटना जमीन पर टिका होगा ।दशम स्थिति - हस्तपादासन नवम स्थिति के बाद अपने बाएँ पैर को भी आगे दाहिने पैर के पास ले आएँ । हथेलियाँ जमीन पर टिकी रहने दें । साँस बाहर निकालकर अपने मस्तक को घुटनों से सटा दें । ध्यान रखें, घुटने मुडें नहीं, भले ही आपका मस्तक उन्हें स्पर्श न करता हो ।एकादश स्थिति - ( हस्तोत्तानासन या अर्धचन्द्रासन ) दशम स्थिति से श्वास भरते हुए सीधे खडे हों। दोनों हाथों की खुली हथेलियों को सिर के ऊपर ले जाते हुए पीछे की ऒर तान दें ।यथासम्भव कमर को भी पीछे की ऒर मोडें।द्वादश स्थिति -स्थित प्रार्थनासन ( प्रथम स्थिति ) ग्यारहवीं स्थिति से हाथों को आगे लाते हुए सीधे हो जाएँ । दोनों हाथों को नमस्कार की मुद्रा में वक्षःस्थल पर जोड लें । सभी उँगलियाँ परस्पर जुडी हुईं तथा अँगूठा छाती से सटा हुआ । कोहुनियों को बाहर की तरफ निकालते हुए दोनों हथेलियों पर पारस्परिक दबाव दें।
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15-05-2012, 10:00 AM | #24 |
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Re: योगा
________________ बंध-मुद्रा _______________ पाइल्स या बवासीर एक ऐसा रोग है जिसमें रोगी का स्वास्थ्य काफी दयनीय हो जाता है। साथ ही असहनीय पीड़ा भी सहन करना पड़ती है। योग शास्त्र में इस रोग की पीड़ा से निपटने के लिए श्रेष्ठ मुद्रा महामुद्रा बताई गई है।महामुद्रा महामुद्रा की विधि किसी स्वच्छ और साफ स्थान पर कंबल या दरी बिछाकर दोनों पैरों को सामने फैलाकर बैठ जाएं। अब दाहिने पैर को मोड़ते हुए एड़ी को गुदा द्वार के नीचे रखें। इसके बाद झुकते हुए बाएं पैर के अंगूठे को दोनों हाथों से पकड़ें तथा सांस लें। मूल बंध एवं जालंधर बंध लगाएं। कुंभक करते हुए अंतर्चेतना को ऊध्र्वमुखी बनाने का प्रयास करें। कुण्डली चक्रों का ध्यान करें एवं बंध हटाएं। धीरे-धीरे रेचक क्रिया करें। यही क्रम दाहिने पैर से करें। एवं यथा संभव कुंभक करें। यह मुद्रा कम से कम 4-5 बार करें। जालंधर बंध, पूरक, रेचक, कुंभक आदि से संबंधित लेख पूर्व में प्रकाशित किए जा चुके हैं। मुद्रा के लाभ इस मुद्रा से पेट संबंधी रोग जैसे कब्ज, एसीडिटी, कब्ज, अपच जैसी बीमारियां दूर होती हैं। बवासीर और प्रमेह का नाश होता है। ध्यान के लिए उत्कृष्ट एवं कुंडली जागरण में यह मुद्रा काफी फायदेमंद है। बढ़ी हुई तिल्ली एवं क्षय रोग (टीबी) में भी यह मुद्रा लाभ पहुंचाती है। पुराना बुखार भी इस मुद्रा से ठीक हो जाता है
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Last edited by ~VIKRAM~; 15-05-2012 at 10:04 AM. |
15-05-2012, 02:48 PM | #25 |
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Re: योगा
पाचन तंत्र के लिए महामुद्रा स्वामी ज्योतिर्मयानंद की पुस्तक से अंश झुककर बाएँ पैर के अँगूठे को दोनों हाथों से पकड़े। सिर को नीचे झुका कर बाएँ घुटने का स्पर्श कराएँ। इस स्थिति को जानुशिरासन भी कहते हैं। महामुद्रा में जानुशिरासन के साथ-साथ, बंध और प्राणायाम, किया जाता है। श्वास लीजिए। श्वास रोकते हुए जालंधर बंध करें (ठुड्डी को छाती के साथ दबाकर रखें)। श्वास छोड़ते हुए उड्डीयान बंध (नाभी को पीठ में सटाना) करें। इसे जितनी देर तक कर सकें करें। दाहिने पैर को सीधा रखते हुए बाई एड़ी से कंद को दबाकर इसी क्रिया को पुन: करें। आज्ञाचक्र पर ध्यान करें। भ्रू मध्य दृष्टि रखें। इसके अतिरिक्त सुषुम्ना में कुंडलिनी शक्ति के प्रवाह पर भी ध्यान कर सकते हैं। जितनी देर तक आप इस मुद्रा को कर सकें उतनी देर तक करें। इसके पश्चात महाबंध और महाभेद का अभ्यास करें। महामुद्रा, महाबंध और महाभेद को एक दूसरे के बाद करना चाहिए। लाभ : यह मुद्रा महान सिद्धियों की कुँजी है। यह प्राण-अपान के सम्मिलित रूप को सुषुम्ना में प्रवाहित कर सुप्त कुंडलिनी जाग्रत करती है। इससे रक्त शुद्ध होता है। यदि समुचित आहार के साथ इसका अभ्यास किया जाय तो यह सुनबहरी जैसे असाध्य रोगों को भी ठीक कर सकती है। बवासीर, कब्ज, अम्लता और शरीर की अन्य दुष्कर व्याधियाँ इस के अभ्यास से दूर की जा सकती हैं। इसके अभ्यास से पाचन क्रिया तीव्र होती है तथा तंत्रिकातंत्र स्वस्थ और संतुलित बनता है।
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Last edited by ~VIKRAM~; 15-05-2012 at 06:03 PM. |
18-05-2012, 06:47 PM | #26 |
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Re: योगा
shilpa ji ab aap hi hoga ki class le ..
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Last edited by ~VIKRAM~; 18-05-2012 at 06:55 PM. |
18-05-2012, 06:57 PM | #27 |
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18-05-2012, 07:00 PM | #28 |
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19-05-2012, 04:07 PM | #29 |
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Last edited by ~VIKRAM~; 19-05-2012 at 04:12 PM. |
19-05-2012, 04:08 PM | #30 |
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