03-12-2010, 01:41 PM | #21 | |
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Re: दिल की बात
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क्या कुछ होना बचा है बन्धु? हर इमेल बॉक्स में ५० प्रतिदिन की संख्या में आने वाली स्पैम पर सूत्र ! भीख मांगने की कला (???) पर सूत्र ! व्यक्तिगत संदेशों वाले विषयों पर सूत्र और उन पर बधाइयों का ऐसा तांता जैसे तीन पुश्तों से बाँझ के घर जुड़वां बच्चे पैदा हो गए | अब भी ना चेते तो ... मैं पर्वतारोही हूँ। शिखर अभी दूर है। और मेरी साँस फूलनें लगी है। [/QUOTE] Get a life. |
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03-12-2010, 02:37 PM | #22 |
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Re: दिल की बात
अमित भाई जी,
पतंगे की जिंदगी की चिंता न करें और दिल से सहयोगपूर्ण भाव से सहयोग करें। आपसे काफी उम्मीदें अभी भी जिंदा हैं। पैकिंग को तो एक न एक दिन डस्टबीन का रुख करना ही होगा। अन्दर का समान ही काम आना है। जब तक लोगों का दिल करे पैकिंग को सजाने दें, डिस्प्ले में। अब जो संस्कार मिले हैं उन्हें लोग छोड़ने से रहे। आपसे क्या छिपा है और कनवा राजा वाली कहावत भी हमें तो आप जैसे को बतानी नहीं पड़ेगी। शायद आप जैसा न लिख सकूँगा इस लिये वक्तव्य को दिल पर न लें। |
03-12-2010, 02:42 PM | #23 | |
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Re: दिल की बात
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अगर हमारे वार्तालाप हिन्दी मेँ हो सकते हैँ तो हम उसे देवनागरी मेँ लिपिबद्ध करने मेँ क्योँ असहज महसूस करते हैँ । जहाँ तक मोबाईल से भ्रमण का प्रश्न है मैँ स्वयँ उसी का सफलतापूर्वक प्रयोग करता हूँ । हाँ उर्दू लफ्जोँ मेँ नुक्ते का टकंण करने मेँ असमर्थ रहा । दो भिन्न सदस्योँ को एक साथ उद्धृत कर उत्तर देने मेँ भी तकनीकी अज्ञानतावश असमर्थ रहा किन्तु यह कुछ विवशताओँ के बावजूद बहुत मुफीद है । जहाँ तक रोमन का प्रश्न है कम से कम आपकी बात , विचार , भाव स्पष्ट तो होने चाहिए । आपको अशुद्ध वर्तनी , अशुद्ध शब्द और वाक्य विन्यास से युक्त प्रविष्टियोँ के अधिसँख्य दृष्टान्त मिल जायेँगे जो पढ़ते वक्त कचोटते हैँ । यदि ससमय उनकी एडिटिंग हो जाये तो कितना अच्छा रहे और सदस्य विशेष भी अपनी गलती का अहसास कर अगली बार उस दोष से मुक्त होने का सम्भव प्रयास करेगा । आप गुलाबोँ के मध्य खरपतवार दिखा रहे हैँ परन्तु मुझे तो खरपतवारोँ की नर्सरी मेँ कुछ असहज , किँकर्तव्यविमूढ़ , व्याकुल गुलाब सूखे की मार से बचने के लिए बस बाट जोहते दिखायी दे रहे हैं । वे उन क्षणोँ को कोस रहेँ हैँ जब उन्होने अपने हिस्से का खाद और पानी उन नामुरादोँ को पिलाकर अपने वजूद के लिए ही चुनौती तैयार कर ली । आप मेरे अग्रज हैँ और अनुकरणीय भी । मैँ आपके लेखन का तो प्रशंसक था ही अब यह भी देख रहा हूँ कि शाँतचित्त हो चीजोँ को सुलझाने मेँ भी सिद्धहस्त हैँ । आपके पदेन दायित्वोँ की विवशता का भी भान है मुझे । मुझे आशा ही नहीँ वरन् पूर्ण विश्वास है कि आप जैसे कुशल प्रशासक शीघ्र ही किसी जादुई कीटनाशक से इन खरपतवारोँ को समूल नष्ट कर इस उपवन को महका देँगे । |
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03-12-2010, 02:44 PM | #24 | |
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Re: दिल की बात
वाह क्या खूब…
आपकी रचना बहुत ही सुन्दर है तेजी… Quote:
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03-12-2010, 02:52 PM | #25 | |
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Re: दिल की बात
........
बहुत ही सही और उचित सलाह पर सभी सदस्यों पर यह दबाव न बनाया जाये, साथ ही साथ साहित्यिक और देवनागरी से जरूरी है कि एक भयमुक्त समाज का निर्माण किया जाये। जो की अभी शैशव काल में है मित्र अनिल जी। हार्दिक धन्यवाद। Quote:
Last edited by YUVRAJ; 03-12-2010 at 02:56 PM. Reason: edit |
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03-12-2010, 02:58 PM | #26 |
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Re: दिल की बात
और उन पर बधाइयों का ऐसा तांता जैसे तीन पुश्तों से बाँझ के घर जुड़वां बच्चे पैदा हो गए |
क्या उपमा दी है मान गये गुरु आपके पाण्डित्य को ।मेरा सलाम कुबूल करेँ । |
03-12-2010, 10:35 PM | #27 | |
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Re: दिल की बात
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सब जान समझ गए हम, अब क्या कहें विधाता ! कल जो लिखते थे गंध, आज बन रहे हैं ज्ञाता !!! धर्म, लाज, सम्बन्ध और कुल के वो हर्ता मूछें मोड़, सीना तान बन रहे दुःख हर्ता !!! प्रेम, भाव, संस्कार का जो एक लेश भी ये पाते! बिना किसी के कहे शर्म से खुद ही मर जाते ! |
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03-12-2010, 11:20 PM | #28 |
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Re: दिल की बात
हम जमीं के चाँद तारों में रहे मसरूफ यूं,
आसमां के चाँद तारे, बेरहम हँसते रहे !! हमने जैसे ही कलम की नोक कागज़ पे रखी हम इधर रोते रहे कागज़ कलम हँसते रहे !!
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
03-12-2010, 11:54 PM | #29 |
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Re: दिल की बात
खुद को श्रेष्ठ बताकर दूसरे को कमजोर समझना ये कहां कि बुद्धिमानता है ।
फोरम के हर एक सदस्य का फोरम के लिए महत्वपूर्ण है बिना सभी के सहयोग से कोई भी अकेला कुछ नही कर सकता है एक या दो गुलाब से माला नही बनाई जा सकती है ।
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Disclaimer......! "फोरम पर मेरे द्वारा दी गयी सभी प्रविष्टियों में मेरे निजी विचार नहीं हैं.....! ये सब कॉपी पेस्ट का कमाल है..." click me
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04-12-2010, 12:42 AM | #30 | |
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Re: दिल की बात
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अनिल भाई, राम राम / आज ताजमहल देखने में अद्वितीय अवश्य प्रतीत होता है किन्तु क्या किसी ने ऐसे भव्य भवनों की नींव में लगे टेढ़े मेढ़े और बदरंग पत्थरों को देखा और सराहा है ? हम जब भी किसी मंदिर के शीर्ष में लगे त्रिशूल की चमक से चमत्कृत हो रहे हों तो हमें उसी मंदिर की सीढ़ियों के विषय में भी सोचना होगा ! आप और अमित भाई ने सर्वथा उचित ही कहा है कि अभी इस पटल का वह स्वरुप नहीं आया है जिसकी कल्पना हम सभी ने की है ..... और सच कहूं तो उस कल्पना का पांच प्रतिशत अंश भी अभी नहीं दिख रहा है यहाँ ... / हम फिर से यही कहेंगे कि हम सभी (प्रबंधन व सदस्य) एक ही प्रयास कर रहे हैं कि हम अपनी कल्पना को साकार कर सकें किन्तु हम यह भी जानते हैं कि यह कार्य चुटकियों का नहीं है क्योंकि '' रोम एक दिन में नहीं निर्मित हुआ था/' हमें आप सभी का सहयोग एवं अथक धैर्य वांछित है / मित्र, नया नया नलकूप लगाने पर आरम्भ में कई दिनों तक बालू मिश्रित पानी आता है किन्तु कुछ दिनों के उपरान्त बालू का अंश मात्र नहीं रह जाता है / कुछ दिनों के बाद तो हम बालूमिश्रित जल प्राप्ति के दिनों को भूल भी जाते हैं / हम निरंतर स्वच्छता की तरफ अग्रसर हैं / पूर्ण स्वच्छ और कल्पना के मूर्त रूप में समय कितना लगेगा, यह भविष्य की कोख में है / धन्यवाद /
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