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Old 06-04-2014, 08:43 AM   #21
bindujain
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Default Re: लघुकथाएँ

डर के आगे जीत है।

एक लड़की कार चला रही थी और पास में उसके पिताजी बैठे थे। राह में एक भयंकर तूफ़ान आया। और लड़की ने पिता से पूछा -- "अब हम क्या करें?" पिता ने जवाब दिया -- "कार चलाते रहो।" तूफ़ान में कार चलाना बहुत ही मुश्किल हो रहा था और तूफ़ान और भयंकर होता जा रहा था।
"अब मैं क्या करू ?" -- लड़की ने पुनः पूछा।
"कार चलाते रहो।" -- पिता ने पुनः कहा।
थोड़ा आगे जाने पर लड़की ने देखा की राह में कई वाहन तूफ़ान की वजह से रुके हुए थे। उसने फिर अपने पिता से कहा -- "मुझे कार रोक देनी चाहिए। मैं मुश्किल से देख पा रही हूँ। यह भयंकर है और प्रत्येक ने अपना वाहन रोक दिया है।" उसके पिता ने फिर निर्देशित किया -- "कार रोकना नहीं. बस चलाते रहो।"
अब तूफ़ान ने बहुत ही भयंकर रूप धारण कर लिया था किन्तु लड़की ने कार चलाना नहीं रोका और अचानक ही उसने देखा कि कुछ साफ़ दिखने लगा है। कुछ किलो मीटर आगे जाने के पश्चात लड़की ने देखा कि तूफ़ान थम गया और सूर्य निकल आया। अब उसके पिता ने कहा -- "अब तुम कार रोक सकती हो और बाहर आ सकती हो।" लड़की ने पूछा -- "पर अब क्यों?" पिता ने कहा -- "जब तुम बाहर आओगी तो देखोगी कि जो राह में रुक गए थे, वे अभी भी तूफ़ान में फंसे हुए हैं। चूँकि तुमने कार चलाने के प्रयत्न नहीं छोड़ा, तुम तूफ़ान के बाहर हो।"
शिक्षा: यह किस्सा उन लोगों के लिए एक प्रमाण है जो कठिन समय से गुजर रहे हैं। मजबूत से मजबूत इंसान भी प्रयास छोड़ देते हैं। किन्तु प्रयास कभी भी छोड़ना नहीं चाहिए। निश्चित ही जिन्दगी के कठिन समय गुजर जायेंगे और सुबह के सूर्य की भांति चमक आपके जीवन में पुनः आयेगी। इसीलिए कहते है "डर के आगे जीत है।

uf
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Old 06-04-2014, 08:45 AM   #22
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Default Re: लघुकथाएँ

अक्ल का इस्तेमाल

एक गाँव में एक बढ़ई रहता था। वह शरीर और दिमाग से बहुत मजबूत था। एक दिन उसे पास के गाँव के एक अमीर आदमी ने फर्नीचर फिट करने के लिए बुलाया। जब वहाँ का काम खत्म हुआ तो लौटते वक्त शाम का हो गई तो उसने काम के मिले पैसों की एक पोटली बगल मे दबा ली और ठंड से बचने के लिए कंबल ओढ़ लिया। वह चुपचाप सुनसान रास्ते से घर की और रवाना हुआ।
कुछ दूर जाने के बाद अचानक उसे एक लुटेरे ने रोक लिया। वह शरीर से तो बढ़ई से कमजोर था पर उसकी कमजोरी को उसकी बंदूक ने ढक रखा था। अब बढ़ई ने उसे सामने देखा तो लुटेरा बोला, "जो कुछ भी तुम्हारे पास है सभी मुझे दे दो नही तो मैं तुम्हें गोली मार दूँगा।" यह सुनकर बढ़ई ने पोटली
उस लुटेरे को थमा दी और बोला, "ठीक है यह रुपये तुम रख लो मगर मैं घर पहुँच कर अपनी बीवी को क्या कहुंगा। वो तो यही समझेगी कि मैने पैसे जुए मे उड़ा दिए होंगे। तुम एक काम करो, अपने बंदूक की गोली से मेरी टोपी मे एक छेद कर दो ताकि मेरी बीवी को लूट का यकीन हो जाए।" लुटेरे ने बड़ी शान से बंदूक से गोली चलाकर टोपी मे छेद कर दिया। अब लुटेरा जाने लगा तो बढ़ई बोला, "एक काम और कर दो, जिससे बीवी को यकीन हो जाए कि लुटेरों के गैंग ने मिलकर लुटा हो। वरना मेरी बीवी मुझे कायर समझेगी। तुम इस कंबल मे भी चार-पाँच छेद कर दो।" लुटेरे ने खुशी खुशी कंबल मे गोलियाँ चलाकर छेद कर दिए। इसके बाद बढ़ई ने अपना कोट भी निकाल दिया और बोला, "इसमें भी एक दो छेद कर दो ताकि सभी गॉंव वालों को यकीन हो जाए कि मैंने बहुत संघर्ष किया था।"
इस पर लुटेरा बोला, "बस कर अब। इस बंदूक मे गोलियां भी खत्म हो गई हैं।' यह सुनते ही बढ़ई आगे बढ़ा और लुटेरे को दबोच लिया और बोला, "यही तो मैं चाहता था। तुम्हारी ताकत सिर्फ ये बंदूक थी। अब ये भी खाली है। अब तुम्हारा कोई जोर मुझ पर नही चल सकता है। चुपचाप मेरी पोटली मुझे वापस दे दो वरना …।" यह सुनते ही लुटेरे की सिट्टी पिट्टी गुम हो गई और उसने तुरंत ही पोटली बढई को वापिस दे दी और अपनी जान बचाकर वहाँ से भागा। आज बढ़ई की ताकत तब काम आई जब उसने अपनी अक्ल का सही ढंग से इस्तेमाल किया। इसलिए कहते है कि मुश्किल हालात मे अपनी अक्ल का ज्यादा इस्तेमाल करना चाहिए तभी आप मुसीबतों से आसानी से निकल सकते हैं

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Old 06-04-2014, 08:50 AM   #23
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Default Re: लघुकथाएँ

पंडित का एक वैश्या से प्रश्न ......

एक पंडित जी कई वर्षों तक काशी में शास्त्रों का अध्ययन करने के बाद अपने गांव लौटे। गांव के एक किसान ने उनसे पूछा, पंडित जी आप हमें यह बताइए कि पाप का गुरु कौन है? प्रश्न सुन कर पंडित जी चकरा गए, क्योंकि भौतिक व आध्यात्मिक गुरु तो होते हैं, लेकिन पाप का भी गुरु होता है, यह उनकी समझ और अध्ययन के बाहर था। पंडित जी को लगा कि उनका अध्ययन अभी अधूरा है, इसलिए वे फिर काशी लौटे। फिर अनेक गुरुओं से मिले। मगर उन्हें किसान के सवाल का जवाब नहीं मिला। अचानक एक दिन उनकी मुलाकात एक वेश्या से हो गई। उसने पंडित जी से उनकी परेशानी का कारण पूछा, तो उन्होंने अपनी समस्या बता दी। वेश्या बोली, पंडित जी..! इसका उत्तर है तो बहुत ही आसान, लेकिन इसके लिए कुछ दिन आपको मेरे पड़ोस में रहना होगा। पंडित जी के हां कहने पर उसने अपने पास ही उनके रहने की अलग से व्यवस्था कर दी। पंडित जी किसी के हाथ का बना खाना नहीं खाते थे, नियम-आचार और धर्म के कट्टर अनुयायी थे। इसलिए अपने हाथ से खाना बनाते और खाते। इस प्रकार से कुछ दिन बड़े आराम से बीते, लेकिन सवाल का जवाब अभी नहीं मिला।
एक दिन वेश्या बोली, पंडित जी...! आपको बहुत तकलीफ होती है खाना बनाने में। यहां देखने वाला तो और कोई है नहीं। आप कहें तो मैं नहा-धोकर आपके लिए कुछ भोजन तैयार कर दिया करूं। आप मुझे यह सेवा का मौका दें, तो मैं दक्षिणा में पांच स्वर्ण मुद्राएं भी प्रतिदिन दूंगी।
स्वर्ण मुद्रा का नाम सुन कर पंडित जी को लोभ आ गया। साथ में पका-पकाया भोजन। अर्थात दोनों हाथों में लड्डू। इस लोभ में पंडित जी अपना नियम-व्रत, आचार-विचार धर्म सब कुछ भूल गए। पंडित जी ने हामी भर दी और वेश्या से बोले, ठीक है, तुम्हारी जैसी इच्छा। लेकिन इस बात का विशेष ध्यान रखना कि कोई देखे नहीं तुम्हें मेरी कोठी में आते-जाते हुए। वेश्या ने पहले ही दिन कई प्रकार के पकवान बनाकर पंडित जी के सामने परोस दिया। पर ज्यों ही पंडित जी खाने को तत्पर हुए, त्यों ही वेश्या ने उनके सामने से परोसी हुई थाली खींच ली। इस पर पंडित जी क्रुद्ध हो गए और बोले, यह क्या मजाक है? वेश्या ने कहा, यह मजाक नहीं है पंडित जी, यह तो आपके प्रश्न का उत्तर है।
यहां आने से पहले आप भोजन तो दूर, किसी के हाथ का भी नहीं पीते थे,मगर स्वर्ण मुद्राओं के लोभ में आपने मेरे हाथ का बना खाना भी स्वीकार कर लिया।
यह लोभ ही पाप का गुरु है।
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Old 06-04-2014, 08:54 AM   #24
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Default Re: लघुकथाएँ

स्व मूल्यांकन (Self Appraisal)

एक चौदह पंद्रह साल का लड़का एक टेलीफोन बूथ पर जाकर एक नंबर लगाता है और किसी के साथ बात करता है, बूथ मालिक उस लड़के की बात को ध्यान से सुनता रहता है ;
लड़का : किसी महिला से कहता है कि, मैंने बैंक से कुछ क़र्ज़ लिया है और मुझे उसका क़र्ज़ चुकाना है, इस कारण मुझे पैसों की बहुत जरुरत है, मैडम क्या आप मुझे अपने बगीचे की घास काटने की नौकरी दे सकती हैं..? महिला : (दूसरी तरफ से) मेरे पास तो पहले से ही घास काटने वाला माली है..
लड़का : परन्तु मैं वह काम आपके माली से आधी तनख्वाह पर कर दूंगा..
महिला : तनख्वाह की बात ही नहीं है मैं अपने माली के काम से पूरी तरह संतुष्ट हूँ..
लड़का : (और निवेदन करते हुए) घास काटने के साथ साथ मैं आपके घर की साफ़ सफाई भी कर दूंगा वो भी बिना पैसे लिए..
महिला : धन्यवाद और ना करके फोन काट दिया..लड़का चेहरे पर विस्मित भाव लिए फोन रख देता है..
बूथ मालिक जो अब तक लड़के की सारी बातों को सुन चूका होता है,लड़के को अपने पास बुलाता है..
दुकानदार : बेटा मेरे को तेरा स्वभाव बहुत अच्छा लगा, मेरे को तेरा सकारात्मक बात करने का तरीका भी बहुत पसंद आया..अगर मैं तेरे को अपने यहाँ नौकरी करने का ऑफ़र दूं तो क्या तू मेरे यहाँ काम करेगा..??
लड़का : नहीं, धन्यवाद.
दुकानदार : पर तेरे को नौकरी की सख्त जरुरत है और तू नौकरी खोज भी रहा है.
लड़का : नहीं श्रीमान मुझे नौकरी की जरुरत नहीं है मैं तो नौकरी कर ही रहा हूँ, वो तो मैं अपने काम का मूल्यांकन कर रहा था..मैं वही माली हूँ जिसकी बात अभी वो महिला फोन पर कर रही थी..!!!

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Old 06-04-2014, 08:57 AM   #25
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Default Re: लघुकथाएँ

दृष्टिकोण का फ़र्क...

बहुत समय पहले की बात है ,किसी गाँव में एक किसान रहता था . वह रोज़ भोर में उठकर दूर झरनों से स्वच्छ पानी लेने जाया करता था . इसकाम के लिए वह अपने साथ दो बड़े घड़े ले जाता था , जिन्हें वो डंडे में बाँध कर अपने कंधे पर दोनों ओर लटका लेता था .

उनमे से एक घड़ा कहीं से फूटा हुआ था, और दूसरा एक दम सही था . इस वजह से रोज़ घर पहुँचते -पहुचते किसान के पास डेढ़ घड़ा पानी ही बच पाता था .ऐसा दो सालों से चल रहा था .

सही घड़े को इस बात का घमंड था कि वो पूरा का पूरा पानी घर पहुंचता है और उसके अन्दर कोई कमी नहीं है, वहीँ दूसरी तरफ फूटा घड़ा इस बात से शर्मिंदा रहता था कि वो आधा पानी ही घर तक पंहुचा पाता है और किसान की मेहनत बेकार चली जाती है . फूटा घड़ा ये सब सोच कर बहुत परेशान रहने लगा और एक दिन उससे रहा नहीं गया ,

उसने किसान से कहा , “ मैं खुद पर शर्मिंदा हूँ और आपसे क्षमा मांगना चाहता हूँ?”

“क्यों ? “ , किसान ने पूछा , “ तुम किस बात से शर्मिंदा हो ?”

“शायद आप नहीं जानते पर मैं एक जगह से फूटा हुआ हूँ , और पिछले दो सालों से मुझे जितना पानी घर पहुँचाना चाहिए था बस उसका आधा ही पहुंचा पाया हूँ , मेरे अन्दर ये बहुत बड़ी कमी है , और इस वजह से आपकी मेहनत बर्बाद होती रही है .”, फूटे घड़े ने दुखी होते हुए कहा.

किसान को घड़े की बात सुनकर थोडा दुःख हुआ और वह बोला , “ कोई बात नहीं , मैं चाहता हूँ कि आज लौटते वक़्त तुम रास्ते में पड़ने वाले सुन्दर फूलों को देखो .” घड़े ने वैसा ही किया , वह रास्ते भर सुन्दर फूलों को देखता आया , ऐसा करने से उसकी उदासी कुछ दूर हुई पर घर पहुँचते – पहुँचते फिर उसके अन्दर से आधा पानी गिर चुका था, वो मायूस हो गया और किसान से क्षमा मांगने लगा .

किसान बोला ,” शायद तुमने ध्यान नहीं दिया पूरे रास्ते में जितने भी फूल थे वो बस तुम्हारी तरफ ही थे , सही घड़े की तरफ एक भी फूल नहीं था . ऐसा इसलिए क्योंकि मैं हमेशा से तुम्हारे अन्दर की कमी को जानता था , और मैंने उसका लाभ उठाया . मैंने तुम्हारे तरफ वाले रास्ते पर रंग - बिरंगे फूलों के बीज बो दिए थे , तुम रोज़ थोडा- थोडा कर के उन्हें सींचते रहे और पूरे रास्ते को इतना खूबसूरत बना दिया .

आज तुम्हारी वजह से ही मैं इन फूलों को भगवान को अर्पित कर पाता हूँ और अपना घर सुन्दर बना पाता हूँ . तुम्ही सोचो अगर तुम जैसे हो वैसे नहीं होते तो भला क्या मैं ये सब कुछ कर पाता ?”

दोस्तों हम सभी के अन्दर कोई ना कोई कमी होती है , पर यही कमियां हमें अनोखा बनाती हैं . उस किसान की तरह हमें भी हर किसी को वो जैसा है वैसे ही स्वीकारना चाहिए और उसकी अच्छाई की तरफ ध्यान देना चाहिए, और जब हम ऐसा करेंगे तब “फूटा घड़ा” भी “अच्छे घड़े” से मूल्यवान हो जायेगा.

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Old 06-04-2014, 05:26 PM   #26
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Quote:
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स्व मूल्यांकन (self appraisal)

....

लड़का : नहीं श्रीमान मुझे नौकरी की जरुरत नहीं है मैं तो नौकरी कर ही रहा हूँ, वो तो मैं अपने काम का मूल्यांकन कर रहा था..मैं वही माली हूँ जिसकी बात अभी वो महिला फोन पर कर रही थी..!!!

काश! हर व्यक्ति स्व-मूल्यांकन की प्रणाली को अपना सकता- किसी भी रूप में.

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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
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Old 07-04-2014, 09:10 AM   #27
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अच्छे में बुरा और बुरे में अच्छा छुपा है..


परियां भेस बदलकर घूमने निकली थीं। उन्होंने बुजुर्ग महिलाओं का रूप धर लिया था। घूमते घमते रात हो गई, तो वे सामने दिख रहे एक आलीशान मकान के दरवाजो पर पहुंच गईं। वह एक अमीर का घर था। वृद्धाओं के वेश में परियों ने उससे रात के लिए आश्रय मांगा। वह जमाना समाज में अतिथि देवा भव: की भावना वाला था। इसलिए अमीर चाहकर भी मना न कर सका। लेकिन उसने उन्हें घर के किसी कमरे में ठहराने की बजाय तहख़ाने में ठहरा दिया। परियों ने वहां किसी तरह रात काटी। सुबह एक परी की नजर तहख़ाने की टूटती दीवाल पर पड़ी, तो उसने जादू से उसकी मरम्मत कर दी। अलगी रात वे एक ग़रीब के घर पहुंचे। वह परिवार भले ही ग़रीब था, लेकिन सभी सदस्य परियों की खातिर के लिए आतुर हो उठे।

उन्होंने उन्हें अपने हिस्से का खाना खिलाया और सबसे अच्छे कमरे में सुलाया। सुबह जब परियां जाने लगीं, तो उन्होंने देखा कि उस ग़रीब की पत्नी रो रही थी। पूछने पर पता चला कि उस परिवार की आय का बड़ा सहारा, एक बकरी रात को अचानक मर गई। दूसरी परी ने पहली को मुस्कराते हुए देखा, तो समझ गई कि यह उसी की करतूत है। उसने पूछा कि तुमने र्दुव्*यवहार करने वाले अमीर की दीवार बिना कहे सुधार दी, जबकि इस सज्जन परिवार की आय का सहारा ही छीन लिया! पहली परी ने बताया, ‘दरअसल, तहख़ाने की दीवार में सोने की सैकड़ों मुहरें दबी थीं। अगर दीवार जरा और उखड़ती, तो मुहरें बाहर झांकने लगतीं। इसलिए मैंने दीवार की मरम्मत कर दी, ताकि मुहरें हमेशा वहीं दबी रहें। दूसरी तरफ़, कल इस ग़रीब परिवार की स्त्री पर मौत आई थी, लेकिन मैंने उसे बकरी की तरफ़ मोड़ दिया था।’


सबक- चीजें या घटनाएं जैसी दिखती हैं, वैसी होती नहीं हैं। सो, कोई भी धारणा तात्कालिक नहीं, अंतिम परिणाम के आधार पर बनाई जानी चाहिए। अक्सर बुराई में भी अच्छाई छुपी होती है
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Old 07-04-2014, 12:17 PM   #28
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सबक-


चीजें या घटनाएं जैसी दिखती हैं, वैसी होती नहीं हैं। सो, कोई भी धारणा तात्कालिक नहीं, अंतिम परिणाम के आधार पर बनाई जानी चाहिए। अक्सर बुराई में भी अच्छाई छुपी होती है.

लघुकथा बहुत रोचक तथा शिक्षाप्रद है.
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अपना-पराया

किसी होटल के मालिक ने एक लड़का नौकर रखा| उसकी उम्र अधिक नहीं थी| वह लड़का बड़ा भला और भोला था, बहुत ही ईमानदार और मेहनती था| एक दिन वह लड़का शीशे के गिलास धो रहा था| संयोग से एक गिलास उसके हाथ से फिसल गया और फर्श से टकराकर चूर-चूर हो गया| मालिक ने गिलास के गिरने और टूटने की आवाज सुनी तो दौड़ता हुआ आया और लाल-पिला होकर बोला - "क्यों रे बदमाश, यह क्या हुआ?"

बेचारा बालक वैसे ही डर रहा था, मालिक की भाव-भंगिमा देखकर उसके रहे-सहे होश भी गायब हो गए| अपने बचाव में वह कुछ कहे कि उससे पहले ही मालिक ने एक हाथ से कसकर उसका कान उमेठा और दूसरे से तड़ातड़ पांच-सात चांटे लगा दिए| बालक के मुंह से दबी हुई एक चीख निकलने को हुई, पर वह पी गया और कोई चारा भी तो नहीं था| मालिक ने दांत पीसते हुए उसे और उसकी सारी जमात को चुन-चुनकर गालियां दीं और जी भरकर उसे कोसा| फिर वह ज्योंही जाने को मुड़ा कि उसका लड़का आ गया| पिता के तमतमाए हुए चेहरे को देखकर वह उलटे पैरों लौटने को हुआ कि घबराहट में उसका पैर फिसल गया और प्लेटों की अलमारी पर गिरा| कई कीमती प्लेटें नीचे गिरकर टुकड़े-टुकड़े हो गईं| पिता ने दौड़कर अपने उस इकलौते बेटे को उठा लिया और प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बोला - "क्यों बेटे, तुम्हें चोट तो नहीं लगी?"

फिर प्लेटों के टुकड़ों की ओर देखकर बेटे को सांत्वना देते हुए कहा - "कोई बात नहीं है, ऐसा तो हो ही जाता है|"

कुछ कदम पर खड़े नौकर ने मालिक के चेहरे पर व्याप्त ममता को देखा और अपनी उम्र के उस लड़के पर निगाह डाली| अचानक उसने पाया कि उसके गालों पर पड़ी चांटों की मार जोर से कसक उठी है और रोकते-रोकते भी उसकी आंखों से आंसुओं की कई बड़ी-बड़ी बूंदें टपक पड़ीं| उसे भगवान ने छोटी उम्र में ही अपने पराए का भेद समझा दिया था|


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Default Re: लघुकथाएँ

असली मर्द

अरब देश की बात है| एक राजा था| उसके बड़े-ठाठ-बाट थे| उसके पास किसी चीज की कमी न थी|

एक दिन वह राजा लड़ाई पर गया| उसके पास खाने-पीने का सामन इतना था कि उसे लादने के लिए तीन सौ ऊंटों की जरूरत पड़ी|

दुर्भाग्य से वह दुश्मन से हार गया और बंदी बना लिया गया| उसके पास उसका रसोइया खड़ा था|

राजा ने कहा - "मुझे भूख लगी है| कुछ खाने को तैयार कर दो|"

रसोइए के पास मांस का एक टुकड़ा बचा था| उसने उसे देगची में डालकर उबलने को रख दिया| कहीं कुछ साग-सब्जी मिल जाए तो अच्छा होगा, यह सोचकर वह खोज में निकल पड़ा|

इतने में एक कुत्ता वहां आया| मांस की गंध से उसने अपना मुंह देगची में डाल दिया| संयोग से देगची में उसका मुंह अटक गया|

उसने मुंह निकालने की बहुत कोशिश की| जब मुंह न निकला तो देगची को लेकर ही वह वहां से भागा|

राजा ने वह दृश्य देखा तो जोर से हंस पड़ा| पास में एक संतरी खड़ा था| उसने राजा की हंसी सुनी तो उसे बड़ा अचरज हुआ| उसने कहा - "आप इतनी मुसीबत में हैं तब भी हंस रहे हैं| क्या बात है?"

राजा ने जवाब दिया - "मुझे यह सोचकर हंसी आ रही है कि कल तक मेरे रसोई के सामान को ले जाने के लिए तीन सौ ऊंटों की जरूरत होती थी, अब उसके लिए एक कुत्ता ही काफी है|"

किसी ने ठीक ही कहा है कि सुख में तो सभी खुश रहते हैं, लेकिन असली मर्द तो वह है जो मुसीबत में भी हंस सके|


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