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#21 |
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![]() श्री रजनीश जी एवं रफीक जी, आप दोनों द्वारा ईस सूत्र पर अति उपयोगी जानकारी देने के लिए में आपका हृदय से आभारी हू.........
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#22 |
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![]() शेरे हिदुस्तान श्री चंद्रशेखर आजाद...... ![]() चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई, 1906 को एक आदिवासी ग्राम भावरा में हुआ था। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में इनका नाम एक क्रांतिकारी के रूप मशहूर है। उनके पिता पंडित सीताराम तिवारी उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के बदर गांव के रहने वाले थे। भीषण अकाल पड़ने के कारण वे अपने एक रिश्तेदार का सहारा लेकर 'अलीराजपुर रियासत' के ग्राम भावरा में जा बसे थे। इस समय भावरा मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले का एक गांव है। चंद्रशेखर जब बड़े हुए तो वह अपने माता–पिता को छोड़कर भाग गये और बनारस जा पहुंचे। उनके फूफा जी पंडित शिवविनायक मिश्र बनारस में ही रहते थे। कुछ उनका सहारा लिया और कुछ खुद भी जुगाड़ बिठाया तथा 'संस्कृत विद्यापीठ' में भर्ती होकर संस्कृत का अध्ययन करने लगे। उन दिनों बनारस में असहयोग आंदोलन की लहर चल रही थी। विदेशी माल न बेचा जाए, इसके लिए लोग दुकानों के सामने लेटकर धरना देते थे। 1919 में हुए जलियांवाला बाग नरसंहार ने उन्हें काफी दुखी किया था :......... दैनिक भास्कर के सौजन्य से :.........
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#23 |
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![]() शेरे हिदुस्तान श्री चंद्रशेखर आजाद...... ![]() एक आदिवासी ग्राम भावरा के अधनंगे आदिवासी बालक मिलकर दीपावली की खुशियां मना रहे थे। किसी बालक के पास फुलझड़ियां थीं, किसी के पास पटाखे थे और किसी के पास मेहताब की माचिस। बालक चंद्रशेखर के पास इनमें से कुछ भी नहीं था। वह खड़ा–खड़ा अपने साथियों को खुशियां मनाते हुए देख रहा था। जिस बालक के पास मेहताब की माचिस थी, वह उसमें से एक तीली निकालता और उसके छोर को पकड़कर डरते–डरते उसे माचिस से रगड़ता और जब रंगीन रौशनी निकलती तो डरकर उस तीली को जमीन पर फेंक देता था। बालक चंद्रशेखर से यह देखा नहीं गया, वह बोला - "तुम डर के मारे एक तीली जलाकर भी अपने हाथ में पकड़े नहीं रह सकते। मैं सारी तीलियां एक साथ जलाकर उन्हें हाथ में पकड़े रह सकता हूं।" जिस बालक के पास मेहताब की माचिस थी, उसने वह चंद्रशेखर के हाथ में दे दी और कहा - "जो कुछ भी कहा है, वह करके दिखाओ तब जानूं" :......... दैनिक भास्कर के सौजन्य से :.........
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#24 |
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जानकारी भरा सुन्दर सूत्र,
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#25 |
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#26 |
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![]() शेरे हिदुस्तान श्री चंद्रशेखर आजाद...... ![]() बालक चंद्रशेखर ने माचिस की सारी तीलियां निकालकर अपने हाथ में ले लीं। वे तीलियां उल्टी–सीधी रखी हुई थीं, अर्थात कुछ तीलियों का रोगन चंद्रशेखर की हथेली की तरफ भी था। उसने तीलियों की गड्डी माचिस से रगड़ दी। भक्क करके सारी तीलियां जल उठीं। जिन तीलियों का रोगन चंद्रशेखर की हथेली की ओर था, वे भी जलकर चंद्रशेखर की हथेली को जलाने लगीं। असह्य जलन होने पर भी चंद्रशेखर ने तीलियों को उस समय तक नहीं छोड़ा, जब तक की उनकी रंगीन रौशनी समाप्त नहीं हो गई। जब उसने तीलियां फेंक दीं तो साथियों से बोला- "देखो हथेली जल जाने पर भी मैंने तीलियां नहीं छोड़ीं" :......... दैनिक भास्कर के सौजन्य से :.........
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#27 | |
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#28 |
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अमर शहीद चंद्रशेखर आज़ाद के विषय में विषय में पढ़ते हुये और सोचते हुये हर भारतवासी का सिर गर्व से उठ जाता है और हृदय देशभक्ति की भावना से भर जाता है. इस महान क्रांतिकारी पर यह आलेख दे कर आपने सभी पाठकों पर उपकार किया है. कृपया धन्यवाद स्वीकार करें.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
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#29 | |
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उत्तम प्रतिक्रिया एवं धन्यवाद व्यक्त करने के लिए आपका हार्दिक आभार.........
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#30 |
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![]() शेरे हिदुस्तान श्री चंद्रशेखर आजाद...... ![]() उसके साथियों ने देखा कि चंद्रशेखर की हथेली काफी जल गई थी और बड़े–बड़े फफोले उठ आए थे। कुछ लड़के दौड़ते हुए उसकी मां के पास घटना की खबर देने के लिए जा पहुंचे। उसकी मां घर के अन्दर कुछ काम कर रही थी। चंद्रशेखर के पिता पंडित सीताराम तिवारी बाहर के कमरे में थे। उन्होंने बालकों से घटना का ब्योरा सुना और वे घटनास्थल की ओर लपके। बालक चंद्रशेखर ने अपने पिताजी को आते हुए देखा तो वह जंगल की तरफ़ भाग गया। उसने सोचा कि पिताजी अब उसकी पिटाई करेंगे। तीन दिन तक वह जंगल में ही रहा। एक दिन खोजती हुई उसकी मां उसे घर ले आई। उसने यह आश्वासन दिया था कि तेरे पिताजी तेरे से कुछ भी नहीं कहेंगे" :......... दैनिक भास्कर के सौजन्य से :.........
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अमर शहीद, चंद्रशेखर आजाद, बार-बार देखें, भगतसिंह, राजगुरु व सुखदेव, हजार बार देखें, funny videos |
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