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Old 27-03-2011, 12:41 PM   #21
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Default Re: ღ॰॰॰ღ बाल कवितायेँ ღ॰॰॰ღ

जहाँ कहूँ मैं बोल बता दे

क्या जाएगी, ओ री चिड़िया

उड़ करके क्या चन्दा के घर

हो आएगी, ओ री चिड़िया।




चन्दा मामा के घर जाना

वहाँ पूछ कर इतना आना

आ करके सच-सच बतलाना

कब होगा धरती पर आना

कब जाएगी, बोल लौट कर

कब आएगी, ओ री चिड़िया

उड़ करके क्या चन्दा के घर

हो आएगी, ओ री चिड़िया।




पास देख सूरज के जाना

जा कर कुछ थोड़ा सुस्ताना

दुबकी रहती धूप रात-भर

कहाँ? पूछना, मत घबराना

सूरज से किरणों का बटुआ

कब लाएगी, ओ री चिड़िया

उड़ करके क्या चन्दा के घर

हो आएगी, ओ री चिड़िया।




चुन-चुन-चुन-चुन गाते गाना

पास बादलों के हो आना

हाँ, इतना पानी ले आना

उग जाए खेतों में दाना

उगा न दाना, बोल बता फिर

क्या खाएगी, ओ री चिड़िया

उड़ करके क्या चन्दा के घर

हो आएगी, ओ री चिड़िया।
__________________
Disclaimer......! "फोरम पर मेरे द्वारा दी गयी सभी प्रविष्टियों में मेरे निजी विचार नहीं हैं.....! ये सब कॉपी पेस्ट का कमाल है..."

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Old 27-03-2011, 12:49 PM   #22
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Default Re: ღ॰॰॰ღ बाल कवितायेँ ღ॰॰॰ღ


एक बार की बात सुनो तुम
चमकीली वह रात सुनो तुम ।
अपने आँगन में उतरी थी
तारों की बारात सुनो तुम ।।

गोलू आओ, बेबू आओ
निक्कू, चीनू तुम भी आओ ।
जब हम तुम जैसे बच्चे थे
मन के खरे और सच्चे थे ।

क़लम डुबो कर लिखते जिसमें
शीशे की दावात सुनो तुम ।।

नीले स्याही का जादू जब
सिर चढ़ कर बोला करता था ।
कोरे पन्नों पर सपनों का
पंछी पर तोला करता था ।

हर उड़ान में शामिल होती
अपने मन की बात सुनो तुम ।।

आम,बेर, इमली, जामुन के
पेड़ हमारे बड़े निकट थे ।
गूलर, नीम और बरगद के
पेड़ साथ ही खड़े विकट थे ।

महुआ झरते फूल सुनहरे
पीपल झरते पात सुनो तुम ।।

खेतों में पकते अनाज की
खुशबू से मन भर जाता था ।
ढिबरी सांझ ढले जब जलती
घन से घन तम डर जाता था ।

धुले-धुले से मन सबके थे
नहीं कहीं थी घात सुनो तुम ।।

लिपे-पुते घर की देहरी पर
ख़ुशियों का बारहमासा था ।
राग रसोई का मौसम तो
अपने घर अच्छा खासा था ।

कितने मन से हम खाते थे
तरकारी और भात सुनो तुम ।।

विद्यालय था तीन कोस पर
कोस अढ़ाई था बाज़ार ।
दूरी बीच नहीं आती थी
चलते थे सब कारोबार ।

अपने आँगन से गंगातट
किलोमीटर सात सुनो तुम ।।

जब तुम कुछ लिख-पढ़ जाओगे
सचमुच आगे बढ़ जाओगे ।
बचपन अपना याद करोगे
घर आँगन आबाद करोगे ।

मीठी यादों ने खिड़की में
रक्खे होंगे कान सुनो तुम ।।
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Disclaimer......! "फोरम पर मेरे द्वारा दी गयी सभी प्रविष्टियों में मेरे निजी विचार नहीं हैं.....! ये सब कॉपी पेस्ट का कमाल है..."

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Old 27-03-2011, 12:51 PM   #23
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Default Re: ღ॰॰॰ღ बाल कवितायेँ ღ॰॰॰ღ


ज्यों निकल कर बादलों की गोद से
थी अभी एक बूँद कुछ आगे बढ़ी
सोचने फिर-फिर यही जी में लगी,
आह ! क्यों घर छोड़कर मैं यों कढ़ी ?

देव मेरे भाग्य में क्या है बदा,
मैं बचूँगी या मिलूँगी धूल में ?
या जलूँगी फिर अंगारे पर किसी,
चू पडूँगी या कमल के फूल में ?

बह गयी उस काल एक ऐसी हवा
वह समुन्दर ओर आई अनमनी
एक सुन्दर सीप का मुँह था खुला
वह उसी में जा पड़ी मोती बनी ।

लोग यों ही हैं झिझकते, सोचते
जबकि उनको छोड़ना पड़ता है घर
किन्तु घर का छोड़ना अक्सर उन्हें
बूँद लौं कुछ और ही देता है कर ।
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Old 27-03-2011, 12:53 PM   #24
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Post Re: ღ॰॰॰ღ बाल कवितायेँ ღ॰॰॰ღ


जहाँ कहूँ मैं बोल बता दे

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हो आएगी, ओ री चिड़िया।




चुन-चुन-चुन-चुन गाते गाना

पास बादलों के हो आना

हाँ, इतना पानी ले आना

उग जाए खेतों में दाना

उगा न दाना, बोल बता फिर

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उड़ करके क्या चन्दा के घर

हो आएगी, ओ री चिड़िया।
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Old 27-03-2011, 12:55 PM   #25
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Post Re: ღ॰॰॰ღ बाल कवितायेँ ღ॰॰॰ღ


कठपुतली
गुस्से से उबली
बोली - ये धागे
क्यों हैं मेरे पीछे आगे ?

तब तक दूसरी कठपुतलियां
बोलीं कि हां हां हां
क्यों हैं ये धागे
हमारे पीछे-आगे ?
हमें अपने पांवों पर छोड़ दो,
इन सारे धागों को तोड़ दो !

बेचारा बाज़ीगर
हक्का-बक्का रह गया सुन कर
फिर सोचा अगर डर गया
तो ये भी मर गयीं मैं भी मर गया
और उसने बिना कुछ परवाह किए
जोर जोर धागे खींचे
उन्हें नचाया !

कठपुतलियों की भी समझ में आया
कि हम तो कोरे काठ की हैं
जब तक धागे हैं,बाजीगर है
तब तक ठाट की हैं
और हमें ठाट में रहना है
याने कोरे काठ की रहना है
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Old 27-03-2011, 12:59 PM   #26
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Post Re: ღ॰॰॰ღ बाल कवितायेँ ღ॰॰॰ღ


कबूतर
भोले-भाले बहुत कबूतर
मैंने पाले बहुत कबूतर
ढंग ढंग के बहुत कबूतर
रंग रंग के बहुत कबूतर
कुछ उजले कुछ लाल कबूतर
चलते छम छम चाल कबूतर
कुछ नीले बैंजनी कबूतर
पहने हैं पैंजनी कबूतर
करते मुझको प्यार कबूतर
करते बड़ा दुलार कबूतर
आ उंगली पर झूम कबूतर
लेते हैं मुंह चूम कबूतर
रखते रेशम बाल कबूतर
चलते रुनझुन चाल कबूतर
गुटर गुटर गूँ बोल कबूतर
देते मिश्री घोल कबूतर।
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Old 27-03-2011, 01:04 PM   #27
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Post Re: ღ॰॰॰ღ बाल कवितायेँ ღ॰॰॰ღ


मन को करता है मतवाला ।
कम्प्यूटर है बहुत निराला ।।

यह तो एक अनिवार्य भाग है ।
कम्प्यूटर का यह दिमाग है ।।

चलते इससे हैं प्रोग्राम ।
सी०पी०यू०है इसका नाम ।।

गतिविधियाँ सब दिखलाता है ।
यह मॉनीटर कहलाता है ।।

सुन्दर रंग हैं न्यारे-न्यारे ।
आँखों को लगते हैं प्यारे ।।

इसमें कुंजी बहुत समाई ।
टाइप इनसे करना भाई ।।

सोच-सोच कर बटन दबाना ।
हिन्दी-इंग्लिश लिखते जाना ।।

यह चूहा है सिर्फ़ नाम का ।
माउस होता बहुत काम का ।।

यह कमाण्ड का ऑडीटर है ।
इसके वश में कम्प्यूटर है ।।

कविता लेख लिखो जी भर के ।
तुरन्त छाप लो इस प्रिण्टर से ।।

नवयुग का कहलाता ट्यूटर ।
बहुत काम का है कम्प्यूटर ।।
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Old 27-03-2011, 01:49 PM   #28
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यह मेरा कम्प्यूटर प्यारा,
इसमें ज्ञान भरा है सारा।

भइया इससे नेट चलाते,
नई-नई बातें बतलाते।

यह प्रश्नों का उत्तर देता,
पल भर में गणना कर लेता।

माउस, सी०पी०यू०, मानीटर,
मिलकर बन जाता कम्प्यूटर।

इसमें ही की-बोर्ड लगाते,
जिससे भाषा को लिख पाते।

नया ज़माना अब है आया,
हमने नया खजाना पाया।

बड़ा अनोखा है यह ट्यूटर,
सभी सीख लो अब कम्प्यूटर।
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Old 27-03-2011, 01:51 PM   #29
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Post Re: ღ॰॰॰ღ बाल कवितायेँ ღ॰॰॰ღ


बीता जून जुलाई आई
आओ भैय करें पढ़ाई,
छोड़े ऊल-जलूल घुमाई
अब पढ़ने की बारी आई।
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Old 27-03-2011, 01:55 PM   #30
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कितना सारा काम करूँ मैं
फिर भी गधा कहाता
किससे कहूँ मैं पीड़ा अपनी
किसे नियम बतलाता।

लादो चाहे कितना बोझा
चुपचाप लदवाता
मैं भी करूँ आराम कभी तो
मन में मेरे आता।

शीतल अष्टमी के दिन केवल
अपनी सेवा पाता
बाकी दिन मैं मेहनत करता
नज़र न कभी चुराता।

खाना जैसा देते मुझको
चुपचाप मैं खाता
शिकवे-शिकायत कभी न करता
नखरे न दिखलाता।

मैं जिसकी करता हूँ सेवा
समझूँ उसको दाता
कर्म करूँ गीता भी कहती
कर्म से मेरा नाता ।।
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