08-11-2010, 08:55 PM | #21 |
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खलीफा हज़रत उमर सादगी से रहते थे / एक दिन कुछ मेहमान आये / खलीफा चिराग की रोशनी में कुछ लिख रहे थे / अचानक चिराग का तेल ख़त्म हो गया / एक मेहमान बोला, " मैं अभी तेल डाले दे रहा हूँ/" खलीफा बोले," मेहमान से खिदमत कराना उचित नहीं है/" - तो मैं आपके नौकर को जगा देता हूँ / - अरे नहीं भाई! उसे सोने दो / देर शाम तक मेहनत करता रहा है अतः उसे जगाना उचित नहीं है / ऐसा कह कर खलीफा स्वयं उठे व चिराग में तेल डाल लिया / यह देख कर मेहमान ने उनसे कहा ," आखिर आपने तकलीफ क्यों उठायी?" खलीफा का जवाब था ," जब मैं तेल डालने के लिए उठा तब भी मैं खलीफा हज़रत उमर था व जब मैंने तेल डाल लिया तब भी खलीफा हज़रत उमर ही हूँ / मेरी सख्सियत में क्या बदलाव आया है ? यदि कोई नहीं तो अपना कार्य कर लेने में क्या हर्ज़ है ? " मेहमान ने खलीफा के बड़प्पन को समझ लिया था /
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
09-11-2010, 11:25 AM | #22 |
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बहुत सुन्दर कहानिया है
भाई अग्निपथ ये कहानिया बहुत सुन्दर है.
फोरम में लिखने के लिए बहुत बहुत धयांवाद |
11-11-2010, 10:33 AM | #23 |
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आप यहाँ अपनी कहानिया लिख सकते है..
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11-11-2010, 12:29 PM | #24 |
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जूठन केशव कि माँ लोगो के बर्तन मांज कर किसी तरह पेट पालने के साथ अपने बच्चे को पढ़ा रही थी. अक्सर उसकी माँ को घरों से बचा हुआ या जूठन और पुराने कपडे मिल जाया करते थे. किसी तरह से उनका काम चल जाता था. लेकिन किशोर केशव के मन में बड़े सवाल उठा करते थे.. जैसे हम गरीब क्यों हैं. हमे जूठन क्यों खाने को मिलती है. लोग धनवान क्यों होते है इत्यादि .. जैसे जैसे वह बड़ा हो रहा थे उतने ही बड़े उसके सवाल होते जा रहे थे. वह अक्सर सोचता था पढ़ लिखकर भी वह क्या बनेगा.. मालिक तो बनने से तो रहा. रहेगा तो नौकर ही. आज उसका मन स्कूल जाने को नहीं था. फिर भी वह अनमने मन से वह स्कूल चला गया. उसके पड़ोस में बाँध का काम चल रहा था. झुग्गी के कुछ बच्चे बाँध में काम करते थे . उनके घरों में टी.वी. इत्यादि सभी थे. उसका मन भी काम करके पैसे कमाने को हो रहा था. आज उसने उसने स्कूल से लौटते वक्त यह निर्णय ले लिया था कि अब वह स्कूल नहीं पढ़ेगा. वह भी काम करके पैसे कमाएगा और अपनी माँ को आराम देगा.. उसके मन में लोगों कि बची जूठन घूम रही थी. ‘ माँ आज से तुम काम नहीं करोगी और हम आज से किसी कि जूठन भी नहीं खायेंगे’ उसने अपनी माँ को अपना निर्णय सुनाया तो उसको माँ को आश्चार्य हुआ कि आज केशव को क्या हो गया. ‘लेकिन बेटा तू करेगा क्या” माँ के इस जबाब से केशव बोला “ माँ आज से में भे बाँध में काम करूँगा और रात को पढाई करूँगा” अगली सुबह को केशव पुरे उत्साह के साथ बाँध पर काम के लिए चल पढ़ा. Last edited by Hamsafar+; 11-11-2010 at 12:36 PM. |
11-11-2010, 12:31 PM | #25 |
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कर्त्तव्य दिल्ली कि बस अपनी रफ़्तार से चल रही थी. कन्डक्टर हर स्टॉप पर सवारियों को बताते जाता कि कौनसा स्टॉप आने वाला है और साथ ही सबको यह भी बताता कि बिना टिकट यात्रा करना कानूनन अपराध है. उसको काम में व्यस्त देखते हुए मैंने उत्सुकतावस् उससे पूछ ही लिया “ भाई साहब आप अपना काम बड़ी इमानदारी से करते हो .. दिल्ली कि और बसों में तो कन्डक्टर पूछने पर ही बताता है वह भी नखरे के साथ” वह मुस्कुराया और बोला “श्रीमान मुझे नहीं मालूम कि और क्या करते हैं लेकिन यह मेरा कर्त्तव्य है कि मुझे अपनी सवारियों का पूरा ध्यान रखना चाहिए उन्हें मेरी गाडी में किसी भी प्रकार कि तकलीफ नहीं होनी चाहिए क्योंकि सरकार मुझे इसी बात का वेतन देती है” उसका जबाब सुनकर मुझे बड़ी खुशी हुई. में सोचने लगा काश भारत का हर नागरिक उसकी तरह अपने कर्तव्यों का पालन करे तो कितना अच्छा हो. Last edited by Hamsafar+; 11-11-2010 at 12:36 PM. |
11-11-2010, 12:35 PM | #26 |
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कटु सत्य मनुली मेरे घर पर झाड पोंछे का काम करती थी. वह अक्सर अपने ५ साल को लड़की को अपना काम बटाने के लिए लाया करती थी. मुझे उसकी लड़की पर बड़ा तरस आता थी कि इसकी तो स्कूल जाने कि उम्र ही और वह उससे अभी से काम कराने लगी .. एक दिन मैंने मनुली से कहा “मनुली तू इस बच्चे को स्कूल क्यों नहीं भर्ती करा देती पढ़ लिख जायेगी” “ अरे दीदी स्कूल पढके ये तो निकम्मी और नाकारा हो जायेगी. बड़ी बड़ी बातें करेगी जो हमारी समझ के बहार होगी “ मनुली ने मुह बिचकाकर कहा. श्याद मनुली को मेरी बात अच्छी नहीं लगी, मुझे गुस्सा भी बहुत आया को लोग अपने बच्चो को पढाने के लिए क्या क्या नहीं करते और ये है कि लगता कि पागल हो गयी हँ. खैर निर्णय तो उसी को लेना है. एक दिन मैंने उसको फिर समझाने कि कोशिश कि “देख ये पढेगी लिखेगी तो इसे अच्छी नौकरी मिल सकती है किसी बड़ी पोस्ट पर भी जा सकती है तुम्हारे कुल का नाम रोशन कर सकती है” उसने बात काटते हुए कहा “ रहने दो दीदी आपकी बड़ी लड़की ने भी तो एम्.ए. किया है उसे आज तक नौकरी नहीं मिली ऊपर से आप को उसकी शादी के लिए कोई पढ़ा लिखा लड़का भी तो नहीं मिल रहा है . आप तो बड़े लोग हैं दहेज दे कर शादी भी कर देंगे लेकिन हम लोग कहाँ से ये सब कर पायेंगे” उसने मन का सारा गुबार निकाल फेंका. मैं एकदम निरुत्तर हो गई थी क्योंकि मेरे पास इन सबका कोई जबाब नहीं था .... |
11-11-2010, 12:37 PM | #27 |
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तनख्वा पत्नी ने बड़े प्यार से रसोईघर से आवाज लगाईं. “सुनो जी आज शाम डिन्नर में क्या खाना पसंद करेंगे” पति कि निगाह दिवार पर टके हुए कलेंडर पर गई. उसकी आँखों के आगे महीने का आखिरी अंक मुह चिढा रहा था. अरे तनख्वा मिलने में अभी एक दिन और बाकी है और जेब...... पति ने मन मसोसते हुए कहा! “प्रिये...सुनो बहुत दिन से खिचडी नहीं खाई है चलो आज खिचड़ी एन्जॉय करते हैं” |
11-11-2010, 12:42 PM | #28 | |
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अभी तो यह अपने आप ही उपर रहेगा..
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11-11-2010, 01:01 PM | #29 |
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मजदूरी और टिप शहर का मशहूर नेता के बेटे कि शादी थी. बेंड बाजे बज रहे थे. मैंने एक बेंड बजाने वाले से मजाक में पुछा “भाई क्या बात है नेता जी के बेटे कि शादी तो तुम जोर शोर से बेंड बजा रहा हो. और कहीं होते हो तो भागने कि लगी रहती है” वो बोला “शाब जोश तो आ जाएगा ना क्योंकि मजदूरी के साथ टिप, पीने को दारु और लजीज खाना जो खाने को मिलेगा.” Last edited by Hamsafar+; 11-11-2010 at 01:09 PM. |
11-11-2010, 03:46 PM | #30 |
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यह सूत्र किसी भी प्रकार से साहित्य से सम्बंधित नहीं है
इसलिए प्रविष्टियों को "चुटीले और चुटकुले...." "रस रंग" में भेजा जा रहा है |
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