01-11-2012, 12:41 AM | #21 |
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Re: Daastan-e-Mohabbat. . . .
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01-11-2012, 05:34 PM | #22 |
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Re: Daastan-e-Mohabbat. . . .
Continued........us scenery ko dekhte hue mainepura din gujar diya..din bhar main apne room me baitha raha..teesari baar darwaje par dastak hui..lekin is baar darwaje par Ritu nahi Ritu ki maa thi yani ki meri sasu ma..unhone apne hath me cup rakha tha.."Aakash beta coffee ,unhone kaha..""ji shukriya..lekin iski kya jaroorat thi.."maine unke hath se cup lete hue kaha..."Aakash beta raat ko 8 baje ek rasham hain..neeche aa jana.."sanjana ki maa cup dekar chali gayi..main darwaje par hi khade hokar hi coffee test karne laga..tabhi mere kano me kisi ke pukarne ki awaaj padi..main aashcharya se peechhe muda..aur room ke andar aa gaya..lekin andar mere aalawa koyi nahi tha..shayad bathroomme hoga..maine socha..aur bathroom ka gate khola..ek baar wahi awaaj mere kano me gunj uthi..koyi mera nam pukar rahi thi..Aakash phhir se mere kano me wo awaaj padi...main pagalo ki tarah pure room me bhag daud karne laga..lekin awaaj kaha se aa rahi thi..mujhe maloom nahi chala..."Aakash...yaha ..."is baar maine awaaj ki taraf apna gardan ghumaya..mere samne wahi scenery thi.."kya yeawaaj is scenery se aa rahi hain.."maine khud se sawal kiya..main apne hath ko uthakar dheere dheere us scenery ki taraf chalne laga...main ab ekdum se uske pass pahunch chuka tha..apne hatho ko main us scenery ke pass le jane laga..main us scenery ko apne hatho se chhu pata usse pahle hi us scenery me baithi hui ladki ne apna chehra meri taraf kiya..mujhe toh aisa jhatka laga ki mere mu khule ke khule rah gaye..us scenery me baithi hui ladki ki ankho me ansu the..wo meri taraf dekhti..aur rone lagti..main toh jaise apne hosh me hi nahi tha.."Aakash,tum aa gaye ..kab se main tumhara intezar kar rahi hoon.."us ladki ne mujhse kaha..uske ankho se ansu girna band ho chuke the.."k..k..kaun ho tum..aur tum bol kaisi sakti ho..""Aakash main hoon..pahchana nahi..sanjana.."ye sunte hi mere seene me jor ka dard utha.."sanjana..tum aur yaha kaise.."maine apne seene ko sahlate hue kaha.."Aakash..mere kuch kaam adhure hain..jo aaj pure ho jayenge..itna kahte hue sanjanane apne hath scenery se bahar nikal kar mere galo ko chhua..mere galo ko sahlane lagi..agle hi pal puri ki puri sanjana bahar aakar mere samne khadi ho gayi..wo scenery puri tarah white ho chuki thi..sanjana ne mere galo ko sahlate hue..mere hontho ko sahlane lagi..meri ankhe naram ho gayi..mera dil us samay kamjor pad gaya.. Kash ki maine ek baar bhi apne dimak se soch liya hota toh shayad aage hone wali ek ghatna ruk sakti thi..lekin mere dil ne is baat ki mujhe izazat nahi di...shayad sanjana wapas aa gayi hain..maine us waqt itna hisocha..sanjana mere sar ke baal ko sahlanw lagi..usne mujhe khud-b-khud buri tarah apne jism se jakad liya..mere andar hal chal paida ho gayi..maine sanjana ke hontho ko apne hontho me bharkar kaskar chusne laga..hum dono ke honth jab bhi alag hote..hum dono dusari baar aur bhi teji se ek dusare se lipat jate..maine sanjana ko bistar par dhakel diya..,mujhse bardasht nahi ho raha tha...main jaise hi uske hontho ko chusne ke liye jhuka..mere peeth me kuch chubha..sanjana ne mera mu daba liya..meri aawaj mere galetak hi rah gayi..mujhe bahut tej dard ho raha tha,..maine peechhe mud kar dekha..sanjana ke hatho ke nakhun khoon se sane hue the..uske nakhoon bahut hi bade the..usne mujhe jakad rakha tha..main sanjana ki tarafdekh kar chillana chaha..lekin sanjana ne phhir se mera mu daba liya..meri aawaj ke sath mera dam bhi ghutne laga..mera sharir ek dum thanda hone laga,.meri ankh band hone lagi..aur kuch der baad hamesha ke liye..........NEXT DAY-------"inspecter ji ,yahi wo room hainjaha humare damad Aakash ghayal mile the..pata nahi inspecter sir kya ho gaya..sham ko maine khud Aakash ko apne hatho se coffee di thi.."Ritu ki maa ki ankh se ansu chhalak pade...inspecter room ke andar aaya..bistar me bichhi hui chaddar abhi bhi khoon me sanithi..inspecter ne sab jagah dekha..bathroom me,bistar ke neeche..lekin unke hath kuch nahi laga..tabhi inspecter ka dhyan deewar ki taraf gaya..woapne hath me danda ghumate hue deewar par latki hui scenery ke taraf badhe.."ye scenery khali kyun hain,.mera matlab isme white paper daal kar kyun rakha hain"inspecter ne puchha.................THE END............
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14-11-2012, 07:44 AM | #23 |
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Re: Daastan-e-Mohabbat. . . .
Happy diwali all of you
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14-11-2012, 08:01 AM | #24 |
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Re: Daastan-e-Mohabbat. . . .
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अब माई हिंदी फोरम, फेसबुक पर भी है. https://www.facebook.com/hindiforum |
14-11-2012, 08:22 PM | #25 |
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Re: Daastan-e-Mohabbat. . . .
मित्र अलेक्स जी, यदि अन्यथा न लें तो मैं कहना चाहूंगा कि आप googlehindiinputsetup अथवा किसी अन्य सॉफ्टवेयर की सहायता से आसानी से देवनागरी लिपि में लिख सकते हैं. मुझे डर है कि कथा साहित्य में रूचि रखने वाले अनेकों पाठक रोमन लिपि लिखे होने के कारण कहानी का आनंद लेने से वंचित रह जायेंगे.
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19-11-2012, 07:12 AM | #26 | |
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Re: Daastan-e-Mohabbat. . . .
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29-11-2012, 06:08 PM | #27 |
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Re: Daastan-e-Mohabbat. . . .
You should definatlely make a movie of this story
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29-11-2012, 06:48 PM | #28 |
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Re: Daastan-e-Mohabbat. . . .
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17-12-2012, 09:33 PM | #29 |
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Re: Daastan-e-Mohabbat. . . .
एक पुलिस वाले की मौत....
उस शहर में तीन लोग रहते थे| यों तो दुनिया का कोई शहर ऐसा नहीं है जहां ज्यादा लोग रहते हों क्योंकि रहते तो वे हैं जो ' रहने ' की परिभाषा में आते हैं बाकि तो दो टांगों वाले जिनावरों की भीडक़ा रेला होता है जो सुबह से शाम तक सिटी बसों , टेम्पों , तांगों और लोकल ट्रेनों में धक्के खाता है| बेटे की नौकरी और बेटी की शादी की उधेडबुन में ही मानव तन नष्ट करता है मजदूरी कर शाम को ताडी पीना या ऑफिस से आकर लम्बा - लम्बा पादना और अफसरों को गाली देना मगर सामने मिमियाना बस इसी में उम्र तमाम करता है| उस शहर में तीन लोग रहते थे| यों तो जितना बडा शहर होता है उतने ही रहने वालों की संख्या भी ज्यादा होती है , दो टांगों वालों का रेवड भी ज्यादा होता है| वो शहर दरअसल छोटा शहर था , जिला मुख्यालय| आबादी पांचेक लाख| रहने वाले तो तीन| एक एक्स , एक वाई और एक जेड़| क्यूं ये नाम ठीक है न ? वैसे भी रहने वाले ' घणनामी ' होते हैं उनके लिए उपयुक्तनाम ढूंढना एक मुश्किल और दुष्कर कार्य होता है| कुछ लोग उन्हें हुकुम , कुछ अन्नदाता , कुछ माई - बाप , कुछ सर , कुछ साब , कुछ हमारे लोकप्रियऔर पता नहीं क्या - क्या कहते हैं| जबकि सच्चे नाम उनके लोमडदास , बिच्छूमल , नागनाथ से ज्यादा अंतरंगता रखते हुए होते हैं| खैर उस शहर में तीन लोग रहते थे| एक्स , वाई , जेड़| तीनों तीन खेमोंमें बंटे हुए| एक्स का खेमा लाल , वाई का खेमा ' रंग निरपेक्ष ' और जेड़ का खेमा हथौडा| वे तीनों यदा - कदा - सर्वदा अपने रहने का प्रमाण देते रहते थे| ' जिंदाबाद - मुर्दाबाद ' ' तुम संर्घष करो हम तुम्हारे साथ हैं| ' ' नहीं सहेंगे , नहीं सहेंगे| ' वगैरह वगैरह उनके मुख्य आराध्य थे| वे सबको मानते थे बस नहीं मानते थे तो एक दूसरे को| यों होली - दीवाली - ईद - बकरीद कोई त्यौहार ऐसा नहींहोता था , जब तीनों एक दूसरे के गले नहीं मिलते थे या गलबहियांनहीं होते मगर ज्यों ही अलग हुए नहीं कि एक दूसरे को गालियां देते , मां बहन करते , भौंकार मारते , अवाम को भडक़ाते , नारे लगवाते , बंद करवाते , कानून नहीं बना हुआ हो तो कानून बनवाते और बना हुआ हो तो तुडवाते| एक से बढ क़र एक चटखारेदार लफ्फाजी करते| ऊपर वाले ने तीनों को पर्सनेलिटी एक सी बख्शी थी| सांवला रंग , भद्दी तोंद , किसी बनैले सुअर सी थूथन वाला मुंह , लाल अधमुंदी आंखें| हुंकार मारते तो तोंदमें भीषण कंपन होता| उन तीनों ने पूरे शहर को गधा बना रखा था| वे इशारा करते और शहर ढेंचू ढेंचूं करता| बस फर्क इतना कि वे जिधर इशारा करते उधर से ही शहर ढेंचू ढेंचूं करता| उनको अजान , प्रार्थना या आरती से कोई खास अपनत्व नहीं था| वे पिछले जनम के गिरगिट थे| जनता भोली , थोडी मूरख , थोडी भली होती है| कुल जमा वोट पडते 50 प्रतिशत , इसमें से 10 प्रतिशत खारिज हो जाते , 20 प्रतिशत फर्जी होते , पांच प्रतिशत दूसरे छुटभैय्यों को मिलते और बचे पन्द्रह में से जिसे 7 5 प्रतिशत वोट मिलते बस वही लोकप्रियजननायकहृदयसम्राटजनता का प्याराआंखों का तारा बन जाता| पूरी आबादी से 7 5 प्रतिशत वोट वाला सभी का नायक बनेगा| इस प्रकार के अद्भुत आनंद की सृष्टि इस शहर के लोकतंत्र में ही संभवथी| वे तीनों कभी ये जानने का प्रयास नहींकरते थे कि वोट 50 प्रतिशत ही क्यों पडे ? 100 प्रतिशत क्यों नहीं ? बाकि प्रचास प्रतिशत का क्या हुआ ? वे जानते थे कि बाकि प्रचास प्रतिशत वे लोग हैं जो वोट देने न ही जाएं तो अच्छा वरना सारा गणित गुड ग़ोबर हो सकता है| वैसे भी पच्चास प्रतिशत बेचारे किस्म के बुध्दिजीवी होते हैं जो स्वतन्त्रता की पचास सीढियां चढक़र हांफ चुके हैं| लोकतन्त्र को कुंए में ढकेल खुद किसी खेजडी क़े नीचे सो चुके हैं| पूछने पर खींसें निपोर कर कहेंगे कि '' एक सांपनाथ एक नागनाथ , क्या करें वोट देकर ? वाह भाई वाह| इसलिए उन तीनों का राज था| शहर चिडी चुप था| उनके गुर्गे - चंपूपूरे शहर में फैले हुए मजाल कि कोई उनकी शान में गुस्ताखी करे| शेष भीड क़भी तबादले के लिए फडफ़डाती तो कभी मुहल्ले में हैंडपंप खुदवाने के लिए खदबदाती| वे सब कुछ करते| विमान द्वारा दिल्ली धोकने से लगतार ' सुलभ शौचालय ' का फीता काटने तक| तब दो टांगों वाला रेवड उनकी जय जयकार करता| उस शहर में वे तीनों रहते थे| अमनचैन , सुखशांति , शहर के किनारों तक पसरा हुआ आराम| चैन खींचना , पर्स मारना , आत्महत्या , हत्या बलवा , बलात्कार , मादक पदार्थों की तस्करी अब ये सब तो शहर में होगा तो होगा ही मगर इन सबका यह मतलब तो नहीं कि शहर में अमनचैन नहीं है ? आप देखिए जब भी शहर में कोई मेला प्रदर्शनी लगती है , पूरा शहर दौडा आता है| भेल - पूरी खाता है| बच्चे आईसक्रीम खाते हैं| कुछ वर्गों की बीवियां पर्स आगे लटकाए घूमती हैं और मर्द , बच्चे गोद में लिए साथ - साथ चलते हैं , तो कुछ वर्गों में मर्द आगे चलते हैं बीवियां पर्स लटकाए बच्चों के साथ पीछे| युवतियां यह जानते हुए भी कि शोहदे फिकरे कसेंगे फिर भी अजीब और विचित्र वेशभूषा में मेलों में आऐंगी| खिचडी हिंगलिश बोलेंगी| स्वयं को ऐश्वर्या याकरीना के समक्ष तोलेंगी| आप अमन और शान्ति क्या चाहते हैं ? अब छेड - छाड अौर बदतमज़ी तो होगी ही| आप भी सब्र रखो| बुध्दिजीवी ठाली कौम है| क़रती कुछ नहीं और ' थूक बिलौने ' सबसे सबसे आगे| सो यह तो मानना पडेग़ा कि शहर में अमन चैन है| वो भी उन तीनों के कारण है क्योंकि उनके चम्पू यही बता रहे हैं| आप वही तो मानेंगे जो कोई बताएगा| अपनी अक्ल का इस्तेमाल करते तो वोट पचास की जगह सौ प्रतिशत नहीं पडते ?
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Kitni ajeeb thi teri ishq-e-mohabbat.... ki ek Aankh Samundar bani to dooji Pyas.... |
17-12-2012, 09:36 PM | #30 |
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Re: Daastan-e-Mohabbat. . . .
उस शहर में तीन लोग रहते थे और अचानक चौथा रहने आ गया| बस यहीं से जलजला शुरु हुआ| ' रह ' तो तीन ही सकते थे| बाकी रेवड में शामिल हो जाओ एक हाऊसिंग बोर्ड का मकान किश्तों पे खरीदलो| ' लूण - तेल-लकडी ' क़े हल में गृहस्थी काटो| जवान लडक़ी को घर भेजना , दहेज देना , बेटे की नौकरी की जुगाड क़रवाना , मोहल्ले के गुंडों कोरिरियाकर नमस्ते करना और मर जाना बस यही आपके हिस्से में है| सो चौथा रहने आ गया| चौथा कदकाठी से सामान्य मगर पट्ठा मजबूत , तीखे तेवरों , बेधती आंखों और दहाड क़े लिए ख्यातनाम| वो पुलिसवाला था , जिले का बडा अफसर| वर्दी खूब फबती , ऊपर से आई पीएस का तमगा| ये नए छोरेभी अफसर बनते ही अपनी पे आ जाते हैं| अरे भाईसरकारी वर्दी मिली है तो सलाम मारो जो ' रहते ' हैं उनकी हाजरी बजाओ बाकि दो टांगों वाले रेवड क़ो जी भर के हांको और लक्ष्मीपूजन में व्यस्त रहो मगर सिरफिरों का आप क्या कर सकते हैं ? साले! ईमानदारी , कानून , डयूटी , लॉ एण्ड आर्डर सभी लटका कर घूमते हैं| अरे भाई और भी तो एस पी हैं| बैठे हैं आराम से| पदोन्नति समय पर हो जाती है| जो ' रहते ' हैं वो सिफारिश भी तो करते हैं| सेल्यूट बजा दो| मगर नहीं , खब्ती कोई बस में से थोडे ही उतरते हैं ? ऐसे ही तो नजर आते हैं|
सो चौथा ' रहने ' आया तो तीन ' रहने ' वालों को तो ' उंगली ' हो गयी| एक्स , वाई , जेड़ और अब ' पी '| मामला जमा नहीं| वैसे हवाएं ' पी ' के आने से पहले ही संदेशा ले आई थीं कि आदमी कडक़ है| उसूलों वाला है , दस साल में तेरह ट्रान्सफर झेल चुका है| ऐसा नहीं कि पी के शहर आने की बात पर एक्स , वाई , जेड़ ने अपनेअपने स्त्रोत नहीं टटोले ? आराम की जिन्दगी में बेकार खलल होगा सो ऊपर तक समझाते रहे कि यह आदमी पार्टी के लिए ठीक नहीं है| कार्यकर्ताओं का मनोबल तोडेग़ा मगर ' ठीकरी घडा फोड ग़यी ' और पी इस शहर में आ गया| '' चौप्प साले! है तो खाकी वर्दी पहने एक आदमी| तुम साले इतने! मुफ्त का खा खाके मुटिया रहे हो| अगेन्स्ट नहीं कर सकते ? हो गई राजनीति| बोरी बिस्तर समेटकर गांव में परचूनी की दुकान खोलनी पडेग़ी| ' एक्स ने अपने चंपुओं को गरिआया| '' अभी तेल देखो तेल की धार देखो| नया नया आया है , उतार देंगे सारी हेकडी| '' एक्स का ध्यानरखो| उसका खेमा क्या करता है| बाकि मैं हूं ना| '' वाई ने अपने चंपुओं को पुचकारा| '' इसकी मां का अपने लोगों पर हाथ डाला ना तो साले की पत्थर रगड दूंगा| जनप्रतिनिधि हूं कोई मजाक नहीं| ऐसे खाकी वर्दी वाले मेरी बांयीं जेब में थोक के भाव रहते हैं और ज्यादा स्याणपट्टी करी तो तुम साले किस दिन के लिए हो धिक् है तुम्हें '' जेड ने अपने चंपुओं को धिक्कारा| शहर की भीड अचकचा गई| दो टांगो वाला रेवड टांगों पर उचक उचक कर झांकने लगा| अखबार में खबर थी कि एस पी ने कानून और व्यवस्था सुधारने का ऐलान कियाहै| सारे थानेदार मुस्तैद हो गए| सिपाहियों ने बेल्ट कस लिए| यातायाता का हवलदार वक्त पर चौराहे पर खडा होने लगा| शहर में गश्त बढा दी गई| मगर हैरानी कि ' तू डाल - डाल , मैं पात - पात ' वाली स्टाइल में अपराधों का ग्राफ बढने लगा| रेवड फ़िर भागने लगा| ऐसा कैसे हो सकता है कि कानून की व्यवस्था किसी रेडलाइट ऐरिया जैसी हो गयी कि छापे मारो पर सुधरती नहीं| यातायात के लिए चौराहे पर मार्किंग की गयी| जेब्रा क्रॉसिंग बनाए गए| वन वे कौन कौनसा मार्ग होगा यह खबर अगले दिन अखबारों में दे दी गई| टैक्सीचालक वर्दी पहनें और दोपहिया चलाने वाले हैलमेट पहनें यह व्यवस्था तयकी गई| पच्चीस तारीख से सब कुछ शुरु| '' चलो तनख्वाह से पहले खर्चा - पाणी निकल आऐगा| एक हवलदार बुदबुदाया| '' अरे ऐसे अफसर आते जाते रहते हैं भैया| व्यवस्थाएं तो ऐसे हीचलती हैं| एक हिनहिनाया| एक ही सप्ताह में छ: सिपाही निलंबित क्योंकि पेशी पर जातेअपराधी किसी तरह हथकडी सहित या खुलवा कर फरार हो गए| ' हॉक ' गश्तीदल के चार सिपाहियों को लाइनहाजिर कर दिया क्योंकि वे रात को पौने दो बजे तरकीब से घर चले गए थे| परेड अब अनिवार्य होगी| पुलिसवालों की तौंद स्वीकार्य नहीं होगी|एस पी जनदरबार लगाएंगे| '' मर गए ये कुछ ज्यादा ही है भई| '' एक बोला| '' चलो कोई तो मर्द आया| '' दूसरे ने टोका| रेवड फ़िर भागते - भागते रुक गया| टांगों पर उचक उचक कर देखने लगा| पता नहीं क्या हुआ रेवड सरपट भागा| शहर में चोरी - लूटपाट बढ ग़ई| हर रोज ' चोर चोर ' सुनाई देने लगा| पता नहीं कुकुरमुत्तों की तरह इतने चोर कैसे उग आए ? '' जितने भी हिस्ट्रीशीटर हैं , सबको अन्दर कर दो , कोई खुला नहीं घूमे| '' पी का आदेश और थानों से जीपें उडी सो एच एस अंदर| ढेर सारे चम्पू| व्यवस्थाएं सुधरी मगर कुर्सी चरमरा गयी| '' स्साला ज्यादा स्याणा है| '' एक्स गुर्राया| '' वर्दी उतरवा दूंगा साले की| '' वाई तिलमिलाया| '' औकात दिखा दूंगा साले की| '' जेड मिनमिनाया| '' पुलिस थानों में मानवीय व्यवहार होना चाहिए| व्यवस्थाएं इसप्रकार हो कि लोग थाने में आते घबराएं नहीं| थाने न्याय की प्रथम सीढी हो| आम आदमी को राहत मिले| शिकायत मिली तो खैर नहीं| '' नए एस पी के आदेश धडधडाते हुए सडक़ों पर दौडने लगे| चम्पू अंदर है| आका बाहर| कुछ सूझ भी तो नहीं रहा| '' एक साथ चोरी शुरू कर! '' एक्स , वाई , जेड़ का हुक्म आया| शहर में फिर से चोरियां शुरु| आए रोज अखबारों में कानून व्यव्स्था के बिगडने का नजारा , मलाई मार के| '' पुलिस निकम्मी है| '' '' पुलिस नकारा है| '' '' अपराधियों से मिली है| '' एक्स , वाई , जेड़ के कथन समाचार पत्रों में कत्थक करने लगे| हैलो! मैं होममिनिस्टर! भई पी क्या बात है ? मैं यह क्या सुन रहा हू/| इतनी अशान्ति ? तुम्हारे जैसे मर्दुए अफसर के रहते ? कुछ भी करो मुझे हर कीमत पर अमन और चैन चाहिए| '' रात को नौ नौ बजे तक नया एस पी मीटिंग्स कर कानून व्यवस्था में सुधार के लिए जूझ रहा है| अगले दिन जाब्ता कलेक्ट्री के बाहर लगा रहा| टैम्पो वाले वर्दी नहीं पहनना चाहते हैं| धरना - प्रदर्शन तो तय है| '' जो हमको वर्दी पहनाएगामिट्टी में मिल जाएगा| '' एक्स बिनावर्दी के टेम्पो चालकों के शरीर में उतर गया| दोनों तरफ रास्ता जाम| जुलूस शहर के मुख्य मार्गोंसे होता हुआ कलेक्ट्री पहुंचा| बाकायदा पी का पुतला जला| सभा हुई| हर वक्ताएक्स का इशारा पाते ही ' भौं - भौं ',' भौं - भौं ' करता सामने बैठे श्रोता तुरंत पूंछ हिलाकर कूं - कूं करते हैं|
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