12-03-2011, 09:27 PM | #21 |
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Re: स्वास्थ्य समाचार
गुरुवार को सीनियर हार्ट स्पेशलिस्ट डॉ . के . के . अग्रवाल एनबीटी रीडर्स से सीधे रूबरू हुए। लाइव चैट के जरिए उन्होंने काफी लोगों के सवालों के जवाब दिए। चैट रूम में पहुंचने और सवाल - जवाब का सिलसिला शुरू होने से पहले ऐसा लग रहा था कि लोग उनसे डेंगू , मलेरिया , स्वाइन फ्लू , टाइफाइड और जॉन्डिस जैसी बीमारियों के बारे में पूछने में सबसे ज्यादा रुचि लेंगे , लेकिन लोगों का अलग रुझान देखकर उन्हें काफी हैरानी हुई। डॉ . अग्रवाल ने इस दौरान फिट रहने के कई दिलचस्प फॉर्म्युले भी बताए। डॉ . अग्रवाल ने एक घंटे में 129 सवालों के जवाब दिए। इनमें सबसे ज्यादा सवाल लाइफस्टाइल से जुड़ी दिक्कतों से थे। दूसरे नंबर पर सेक्सुअल डिसॉर्डर और चेस्ट पेन से हार्ट की बीमारियों का खतरा और तीसरे नंबर पर थीं , डेंगू , मलेरिया , एच 1 एन 1 फ्लू जैसी बीमारियां। लोगों के कॉमन सवाल भी कम नहीं थे। जैसे सिक्स पैक ऐब्स बनाने के लिए कौन सा सप्लिमेंट लूं , कौन सी एक्सरसाइज करूं और कितने घंटे जिम करूं आदि। हालांकि इसके लिए सबसे जरूरी चीज यानी डाइट मैनेजमेंट पर लोगों का बिल्कुल भी ध्यान नहीं था। कोई फिटनेस का शॉर्टकट पूछ रहा था तो कोई पेट की चौड़ाई कम करने के तरीके। इनके जवाब में डॉ . अग्रवाल ने बताया कि फिट रहने के लिए 80 का फॉर्म्युला याद रखें - पेट की चौड़ाई , दिल की धड़कन , गंदा कॉलेस्ट्रॉल , खाली पेट शुगर , नीचे का बीपी 80 से कम रखें। रोज 80 मिनट चलें , 80 बार प्राणायाम करें , 80 तालियां बजाएं , 80 बार हंसें , 80 ग्राम से ज्यादा न खाएं , चाय , अल्कोहल 80 एमएल से ज्यादा न पिएं। हार्ट अटैक होने पर एस्पिरिन की गोली चबाने से मौत का खतरा 20 पर्सेंट तक कम हो जाता है। किसी भी तरह की मौत की स्थिति में 10 मिनट तक आत्मा शरीर नहीं छोड़ती। इन 10 मिनटों में प्रति मिनट 100 की स्पीड से मरीज की छाती दबाएं। चेस्ट का जो दर्द 30 सेकंड से कम समय तक रहता है और अगर वह छाती के किसी ऐसे हिस्से में होती है , जहां से उसे तुरंत पहचाना जा सके , तो वह हार्ट से संबंधित नहीं होता। सुबह के समय चेस्ट में दर्द हो , तो उसे इग्नोर न करें। जो चीज पेड़ों से आती हैं , उनमें कॉलेस्ट्रॉल नहीं होता। जो तेल रूम टेंपरेचर में जम जाता है , वह शरीर के अंदर भी जरूर जमेगा। ऐसे में उसे न खाएं। ' च ' से शुरू होने वाली आटिर्फिशल चीजें , जैसे चावल , चीनी , मैदा चपाती , चॉकलेट जैसी चीजों से परहेज करें। नॉर्मल फ्लू , एच 1 एन 1 फ्लू जैसी बीमारियों से बचने के लिए साफ - सफाई का ध्यान रखें और जिसे भी फ्लू है उससे एक हाथ की दूरी बना कर रखें। डेंगू , मलेरिया जैसी बीमारियों से बचाव के लिए मच्छरों का प्रजनन रोकें और जॉन्डिस , टाइफाइड से बचने के लिए पानी उबालकर पिएं। फॉर्म्युला 80 : कमर , धड़कन , गंदा कॉलेस्ट्रॉल , खाली पेट शुगर , नीचे का बीपी 80 से कम रखें। रोज 80 मिनट चलें , 80 बार प्राणायाम करें , 80 तालियां बजाएं , 80 बार हंसें , 80 ग्राम से ज्यादा न खाएं , चाय , अल्कोहल 80 एमएल से ज्यादा न पिएं। ' च ' से रहें दूर : हिंदी वर्णमाला के अक्षर से शुरू होने वाली खाने की चीजों जैसे चावल , चीनी , मैदा चपाती , चॉकलेट जैसी चीजों से परहेज करें।
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13-03-2011, 05:20 AM | #22 |
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Re: स्वास्थ्य समाचार
ऐसी जानकारी के लिये धन्यवाद भाईजान
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Gaurav kumar Gaurav |
14-03-2011, 11:57 AM | #23 |
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Re: स्वास्थ्य समाचार
कैंसर का इलाज अब संभव?
वैज्ञानिकों ने यह पता लगाया कि कैसे कैंसर का एक खास प्रकार उसके इलाज में कारगर है, जिसके आधार पर उन्होंने दावा किया है कि कैंसर का इलाज संभव है। डंडी विश्वविद्यालय और ब्रिटेन के कैंसर रिसर्च संस्थान की अगुवाई में वैज्ञानिकों के अंतरराष्ट्रीय दल ने टीजीएफबीआर नामक एक जीन की पहचान की है, जो दुर्लभ त्वचा कैंसर एमएसएसई के लिए जिम्मेदार है। दरसअल, त्वचा कैंसर कुछ सप्ताह तक बड़ी तेजी से बढ़ता है वैसे ही जैसे ट्यूमर बढ़ता है। वैज्ञानिकों के अनुसार, यह दोषी जीन सभी तरह के कैंसर में पाया जाता है और यह खोज विभिन्न प्रकार के कैंसर के इलाज के लिए नई दवा का मार्ग प्रशस्त कर सकता है। कैंसर रिसर्च यूके के डॉ. लेस्ली वाकर ने कहा, अनुसंधान कैंसर को परास्त करने के हमारे लक्ष्य के समीप पहुंचने की दिशा एक अगला कदम है।
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14-03-2011, 10:03 PM | #24 |
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Re: स्वास्थ्य समाचार
बहुत मस्त और अच्छा जनकारी है
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ईश्वर का दिया कभी 'अल्प' नहीं होता,जो टूट जाये वो 'संकल्प' नहीं होता,हार को लक्ष्य से दूर ही रखना,क्यूंकि जीत का कोई 'विकल्प' नहीं होता. |
14-03-2011, 10:33 PM | #26 |
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Re: स्वास्थ्य समाचार
फैट-फ्री तेल के नाम पर कंपनियों का खेल
खाने के तेल की कंपनियां अपने प्रॉडक्ट्स पर 'कॉलेस्ट्रॉल-फ्री' या 'फैट-फ्री' लिखकर दिल के मरीजों की संख्या बढ़ा रही हैं। हालांकि एक हद तक वेजिटेबल ऑयल 'कॉलेस्ट्रॉल-फ्री' होते हैं क्योंकि कॉलेस्ट्रॉल का बाहरी सोर्स सिर्फ और सिर्फ जानवर हैं। हमारे शरीर में लीवर में जो कॉलेस्ट्रॉल बनता है, उसके अलावा दूध और दूध से बनी चीजें और मीट आदि खाने से कॉलेस्ट्रॉल बनता है। ऐसे में खाने के तेलों की पैकिंग पर 'कॉलेस्ट्रॉल-फ्री' लिखा जाना तो गलत नहीं है, पर उस पर 95 फीसदी 'फैट-फ्री' लिखा जाना लोगों को भ्रमित कर तेल बेचने के लिए मार्केटिंग फंडा है। जीरो ऑयल खाने के इस्तेमाल की बात कहनेवाले साओल यानी 'साइंस एंड आर्ट ऑफ लिविंग' के जनक डॉ. बिमल छाजेड़ का दावा है कि खाने के तेल की कंपनियां पैकिंग पर सही जानकारी नहीं देतीं। इन तेलों में कॉलेस्ट्रॉल का ही रूप ट्राइग्लिसराइड मौजूद होता है, जो दिल की धमनियों में रुकावट पैदा करता है। कानून के शिकंजे से बचने के लिए एक स्टार लगाकर कहीं बहुत ही छोटे शब्दों में उस पर 'सैचुरेटिड ट्राइग्लिसराड्स' भी लिख दिया जाता है, जो सामान्य ढंग से पढ़ने में नहीं आता। असल में, खाने के तेल की पैकिंग पर लिखी भाषा ऐसी होती है कि लोग सोचते हैं कि यह तेल उनकी सेहत, खासकर धमनियों को नुकसान नहीं पहुंचाएगा। लेकिन कोई भी तेल ऐसा नहीं है, जो दिल की सेहत को नुकसान नहीं पहुंचाता हो। खाने में तेल की जरूरत नहीं : जब तेल सेहत के लिए अच्छा नहीं है तो फिर लोग खाने में उसका इस्तेमाल क्यों करते हैं? असल में एक गलत धारणा है कि तेल के बिना खाना स्वादिष्ट नहीं बनता। सच यह है कि स्वाद तेल से नहीं, मसालों से आता है। वैसे भी, तेल का अपना कोई स्वाद नहीं होता, बल्कि अजीब-सा स्वाद होता है।
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16-03-2011, 05:48 PM | #27 | |
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Re: स्वास्थ्य समाचार
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मीट की जगह चिकेन खाइए
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घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
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16-03-2011, 09:13 PM | #28 | |
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Re: स्वास्थ्य समाचार
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19-03-2011, 01:46 AM | #29 |
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Re: स्वास्थ्य समाचार
हाई ब्लड प्रेशर क्यों होता है, पता चला शरीर में आखिर किस वजह से हाई ब्लड प्रेशर होता है, ब्रिटिश वैज्ञानिकों ने यह जानने का दावा किया है। अब हाई बीपी के इलाज के नए तरीके ढूंढे जा सकते हैं। शरीर किस तरह से ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करता है, इसके एक जरूरी स्टेप के बारे में कैंब्रिज यूनिवर्सिटी और नॉटिंघम यूनिवर्सिटी के रिसर्चरों ने पता लगाया है। यह भी पता चला है कि इस प्रक्रिया में कब गड़बड़ी हो जाती है। स्टडी से जुड़े प्रो. रॉबिन कैरल कहते हैं कि हमने मुख्य प्रक्रिया का पहला कदम जान लिया है। रिसर्चरों का मानना है कि इस प्रक्रिया को फोकस में रखकर गड़बडि़यां रोकी जा सकती हैं और हाइपरटेंशन पर काबू पाया जा सकेगा। मौजूदा दवाइयों का फोकस ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करने वाली प्रक्रिया के आखिरी स्टेज पर होता है। नई स्टडी से उम्मीद है कि शुरुआती स्थिति में ही हाई ब्लड प्रेशर रोका जा सकेगा। दुनिया भर में लाखों लोग हाइपरटेंशन से परेशान हैं। इससे उन्हें हार्ट अटैक और स्ट्रोक का खतरा होता है। रिसर्चरों ने यह जानकारी तब हासिल की, जब वे प्री-इक्लेम्पसिया की स्टडी कर रहे थे। प्रेग्नेंसी के दौरान हाई ब्लड प्रेशर की यह स्थिति जच्चा-बच्चा दोनों के लिए जानलेवा हो सकती है। ब्लड प्रेशर पर कंट्रोल एंजियोटेंसिन नाम के हामोर्न्स के जरिये होता है। इसकी बड़ी डोज रक्त नलिकाओं को सिकोड़ देती है, जिससे ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है। 20 बरस से स्टडी कर रहे वैज्ञानिकों का कहना है कि हमने इन हार्मोंस के विकास का पहला स्टेप ढूंढ लिया है। अब हम ऐसा इंतजाम करेंगे, जिससे यह हार्मोन अधिक मात्रा में विकसित हो। इससे हाई ब्लड प्रेशर की शुरुआत को ही रोका जा सकेगा। महज 10 साल में गोली भी आ सकती है। प्री-इक्लेम्पसिया का भी नया इलाज ढूंढा जा सकता है।
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20-03-2011, 12:50 PM | #30 |
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Re: स्वास्थ्य समाचार
बच्चों को पालने में टेंशन न पालें
तनावग्रस्त माता-पिता के लालन-पालन का नकारात्मक तरीका उनके बच्चों पर भी असर डालता है। एक स्टडी में वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि इससे बच्चों में तनाव की स्थिति पैदा हो सकती है। अमेरिका की मेरीलैंड यूनिवर्सिटी के रिसर्चरों ने एक स्टडी में पाया कि तनावग्रस्त महिला अपने बच्चों से गुस्से से पेश आती है, जिसका असर उन पर नकारात्मक पड़ता है। लाइवसाइंस ने स्टडी के प्रमुख मनोवैज्ञानिक लेआ डगहार्टी के हवाले से कहा कि माता-पिता के लिहाज से यह स्टडी काफी अहम है। स्टडी इस बात को ध्यान में रखकर की गई है कि बच्चे के जीवन का शुरुआती व्यवहार कैसे तनाव को जन्म देता है और क्या माता-पिता के बच्चे को पालने के तरीके का इससे कुछ लेना देना है। रिसर्चरों ने तीन से चार साल की उम्र के बीच के 160 बच्चों और उनके माता-पिता पर स्टडी की। इनमें बालक और बालिकाओं का बराबर अनुपात था और उनके माता-पिता अधिकतर मध्यम वर्ग के थे। उन्होंने पहले माता-पिता की डिप्रेशन की हिस्ट्री जानी और पैरंट्स व बच्चों से मिले। माता-पिता से बच्चों के साथ खेलने को कहा गया। रिसर्चरों ने इस दौरान माता-पिता द्वारा बच्चों की आलोचना, उनके प्रति गुस्सा और हताशा जैसे पहलुओं पर गौर किया। फिर बच्चों पर कुछ प्रयोग किए गए। मसलन एक खाली कमरे में बच्चों को छोड़ा गया और उनसे बातचीत के लिए एक अजनबी पुरुष को भेजा गया। एक अन्य प्रयोग में उन्हें एक पारदर्शी बंद संदूक दिया गया जिसके ताले में चाबी फिट नहीं आती थी। तनाव देखने के लिए तीसरे प्रयोग में बच्चों को गिफ्ट का लालच दिया गया लेकिन बाद में खाली डिब्बा उन्हें थमा दिया गया। डगहार्टी ने बताया कि प्रयोग के दौरान बच्चों के तनाव को बढ़ाने वाले हॉर्मोन कार्टिसोल का स्तर देखा गया। उन्होंने कहा कि केवल तनावग्रस्त माता-पिता का होना ही कार्टिसोल को नहीं बढ़ाता लेकिन अगर तनावग्रस्त मां हो और बच्चे से गुस्से से पेश आए तो उसके हॉर्मोन के स्तर में तेजी आएगी। साइक्लोजिकल साइंस में छपी रिपोर्ट के अनुसार बच्चों में तनाव और झुंझलाहट से लालन-पालन के बीच संबंध के बारे में अभी और अध्ययन किया जाना है।
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