28-11-2011, 10:50 PM | #21 | |
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Re: खुद पर लिखवाएं ग़ज़ल
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बहुत ही बढ़िया.. यह कविता तो यादगार रहेगी...
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अब माई हिंदी फोरम, फेसबुक पर भी है. https://www.facebook.com/hindiforum |
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28-11-2011, 11:12 PM | #22 |
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Re: खुद पर लिखवाएं ग़ज़ल
अलैक जी,
आपकी विलक्षण प्रतिभा को नमन है । |
29-11-2011, 01:32 AM | #23 |
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Re: खुद पर लिखवाएं ग़ज़ल
यह आपका बड़प्पन है, मित्र ! आपने मुझे जो सम्मान दिया, वह आपकी ज़र्रानवाज़ी है ! दरअसल ईश्वर रूपी प्रकृति नियंता ने यह खूबी सभी को प्रदान की है, बस, लोग उसका उपयोग नहीं करते ! मेरा मानना है कि एक दिन आप प्रयास करके देखें ! आप मुझसे भी आकर्षक, मुझसे भी पठनीय और मुझसे भी सारगर्भित सृजन इस फोरम में प्रस्तुत करने में स्वयं को सक्षम पाएंगे ! मैं आपका तहे-दिल से शुक्र-गुज़ार हूं ! इस सूत्र पर आपका आवागमन यूं ही जारी रहेगा, ऎसी आशा है ! धन्यवाद !
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु |
30-11-2011, 05:53 PM | #24 |
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Re: खुद पर लिखवाएं ग़ज़ल
वाह क्या बात है अलैक जी, आनंद आ गया. बहुत ही उत्कृष्ट रचनाये आपने पेश की हैं. फोरम के श्रेष्ट सूत्रों में से एक.
और मेरा नंबर कब आएगा वो भी बताये .
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==========हारना मैने कभी सिखा नही और जीत कभी मेरी हुई नही ।==========
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30-11-2011, 06:19 PM | #25 |
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Re: खुद पर लिखवाएं ग़ज़ल
आपका अनुरोध पंजीकृत हो गया है, मित्र ! नंबर आते ही आप पर भी रचना नमूदार होगी ! धन्यवाद !
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01-12-2011, 11:01 PM | #26 | |
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Re: खुद पर लिखवाएं ग़ज़ल
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आपकी विलक्षण, प्रतिभा को नमन है । आपही के कारण, हिन्दी फोरम चमन है ।। देकर सभी को, बधाईयों की दावत । महफिल लूटना, आपका बड़प्पन है ।। सभी को सराहते, दुलारते नवागतों को । समूची फोरम पर निर्बाध आवागमन है ।। पठनीय सामग्री से आलोकित फोरम । ये भी अनोखी कला, सारगर्भित-सृजन है ।। अलैक जी, किसी भी गलती के लिये माफी का तलगार हूँ । |
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25-12-2011, 08:28 AM | #27 |
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Re: खुद पर लिखवाएं ग़ज़ल
bade bhaai itane achchhe sutra ko rok kyon rakha hai.
is dhara ko bahne den......
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घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
01-01-2012, 01:56 PM | #28 | |||
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Re: खुद पर लिखवाएं ग़ज़ल
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क्योंकि हर एक फ्रेंड जरूरी होता है. |
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02-01-2012, 02:05 AM | #29 |
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Re: खुद पर लिखवाएं ग़ज़ल
कोई ख़ास वज़ह नहीं है बन्धु ! दरअसल कई सहयोगियों के अचानक अवकाश ले लेने से दफ्तर में काम अचानक बढ़ गया, इसलिए अभी समय नहीं निकाल पा रहा ! सृजन, वह भी विषय-केन्द्रित, के लिए एक माहौल की जरूरत होती है और काफी माथापच्ची करनी पड़ती है ! आपने ध्यान दिया होगा कि कुछ सूत्रों को छोड़ कर मैं शेष पर कोई कार्य नहीं कर पा रहा हूं और अन्य मित्रों के सूत्रों पर जाना बहुत कम हो गया है ! बस दो-चार दिन और ... स्थिति फिर अनुकूल होगी और सभी सूत्रों के साथ यह भी पुनः अपनी गति पा लेगा ! धन्यवाद !
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु |
18-01-2012, 11:50 PM | #30 |
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Re: खुद पर लिखवाएं ग़ज़ल
मित्रो। सबसे पहले इस सूत्र में अरसे से अनुपस्थिति के लिए क्षमाप्रार्थी हूं। एक कारण तो मैं पूर्व में ही बता चुका हूं, दूसरा यह कि निशांतजी पर सृजन ने मुझे बहुत उत्पीड़ित किया। इन दिनों मेरे पास समय की बहुत कमी थी और उस पर सितम यह कि मैं जब भी उन पर कुछ रचने के लिए कलम उठाता, कुछ न कुछ ऐसा घटित हो जाता कि कोरा कागज़ कोरा ही रह जाता। ऐसा इसलिए नहीं हो रहा था मित्र निशान्त के बारे में लिखने के लिए मेरे पास मुद्दे कम थे, बल्कि उनके विषय में सोचते ही विचारों का एक ऐसा विशालकाय पर्वत मेरे सामने होता कि सभी को समाहित करने लिए एक पूरी पुस्तक चाहिए और बेचारा मैं वह सब कुछ महज़ एक ग़ज़ल में समाहित करने का ख्वाहिशमंद था।
अंततः मैंने शुरुआत कुछ यूं की - मित्र निशांत को बख्शी है कुदरत ने ऎसी माया नज़र न आएं फोरम पे तो घिर आए अंधियारा एक हाथ में हास्य की सिद्धि, दूजे रिद्धि इल्मी सीरत इनकी खालिस इल्मी लेकिन फिल्मी काया ... पर मुझे ख़ास मज़ा नहीं आया। मुझे लगा कि यह ...यह भला मैं फोरम पर कैसे प्रस्तुत कर सकता हूं । दूसरे मुझे एहसास हुआ कि दूसरे शे'र से मिलता-जुलता कुछ मैं मित्र सिकंदर वाली रचना में प्रस्तुत कर चुका हूं, अतः नई जद्दो-जहद शुरू हुई । अंततः जो सामने आया वह यह है - (हालांकि मेरा मानना है कि यह भी मित्र निशांत का प्रतिनिधि आईना नहीं है और उनकी बहुत सी ख़ुसूसियात इसमें शामिल होने से वंचित रह गई हैं, फिर भी ...)
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु Last edited by Dark Saint Alaick; 19-01-2012 at 02:32 AM. |
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