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Old 08-11-2012, 09:58 PM   #21
omkumar
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Default Re: फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी 'मारे गए गुलफ़ाम

हीराबाई ने ओझल होते हुए मंदिर के कँगूरे की ओर देखकर लंबी साँस ली। ''लेकिन देवता ने जाते-जाते कहा, इस राज में कभी एक छोड़कर दो बेटा नहीं होगा। धन हम अपने साथ ले जा रहे हैं, गुन छोड़ जाते हैं। देवता के साथ सभी देव-देवी चले गए, सिर्फ सरोसती मैया रह गई। उसी का मंदिर है।''

देसी घोड़े पर पाट के बोझ लादे हुए बनियों को आते देखकर हिरामन ने टप्पर के परदि को गिरा दिया। बैलों को ललकार कर बिदेसिया नाच का बंदनागीत गाने लगा-
''जी मैया सरोसती, अरजी करत बानी;
हमरा पर होखू सहाई हे मैया, हमरा पर होखू सहाई!''
घोड़ेवाले बनियों से हिरामन ने हुलसकर पूछा, ''क्या भाव पटुआ खरीदते है महाजन?''

लंगड़े घोड़ेवाले बनिये ने बटगमनी जवाब दिया, ''नीचे सताइस-अठाइस, ऊपर तीस। जैसा माल, वैसा भाव।''
जवान बनिये ने पूछा, ''मेले का क्या हालचाल है, भाई? कौन नौटंकी कंपनी का खेल हो रहा है, रौता कंपनी या मथुरामोहन?''

''मेले का हाल मेलावाला जाने?'' हिरामन ने फिर छतापुर-पचीरा का नाम लिया।
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Old 08-11-2012, 09:58 PM   #22
omkumar
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Default Re: फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी 'मारे गए गुलफ़ाम

सूरज दो बाँस ऊपर आ गया था। हिरामन अपने बैलों से बात करने लगा, ''एक कोस जमीन! जरा दम बाँधकर चलो। प्यास की बेला हो गई न! याद है, उस बार तेगछिया के पास सरकस कंपनी के जोकर और बंदर नचानेवाला साहब में झगड़ा हो गया था। जोकरवा ठीक बंदर की तरह दाँत किटकिटाकर किक्रियाने लगा था, न जाने किस-किस देस-मुलुक के आदमी आते हैं!''

हिरामन ने फिर परदे के छेद से देखा, हीराबई एक कागज के टुकड़े पर आँख गड़ाकर बैठी है। हिरामन का मन आज हल्के सुर में बँधा है। उसको तरह-तरह के गीतों की याद आती है। बीस-पच्चीस साल पहले, बिदेसिया, बलवाही, छोकरा-नाचनेवाले एक-से-एक गजल खेमटा गाते थे। अब तो, भोंपा में भोंपू-भोंपू करके कौन गीत गाते हैं लोग! जा रे जमाना! छोकरा-नाच के गीत की याद आई हिरामन को-

''सजनवा बैरी हो ग'य हमारो! सजनवा!
अरे, चिठिया हो ते सब कोई बाँचे; चिठिया हो तो
हाय! करमवा, होय करमवा गाड़ी की बल्ली पर ऊँगलियों से ताल देकर गीत को काट दिया हिरामन ने। छोकरा-नाच के मनुवाँ नटुवा का मुँह हीराबाई-जैसा ही था। कहाँ चला गया वह जमाना? हर महीने गाँव में नाचनेवाले आते थे। हिरामन ने छोकरा-नाच के चलते अपनी भाभी की न जाने कितनी बोली-ठोली सुनी थी। भाई ने घर से निकल जाने को कहा था।
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Old 08-11-2012, 09:58 PM   #23
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Default Re: फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी 'मारे गए गुलफ़ाम

आज हिरामन पर माँ सरोसती सहाय हैं, लगता है। हीराबाई बोली, ''वाह, कितना बढ़िया गाते हो तुम!''
हिरामन का मुँह लाल हो गया। वह सिर नीचा करके हँसने लगा।

आज तेगछिया पर रहनेवाले महावीर स्वामी भी असहाय हैं हिरामन पर। तेगछिया के नीचे एक भी गाड़ी नहीं। हमेशा गाड़ी और गाड़ीवानों की भीड़ लगी रहती हैं यहाँ। सिर्फ एक साइकिलवाला बैठकर सुस्ता रहा है। महावीर स्वामी को सुमरकर हिरामन ने गाड़ी रोकी। हीराबाई परदा हटाने लगी। हिरामन ने पहली बार आँखों से बात की हीराबाई से, साइकिलवाला इधर ही टकटकी लगाकर देख रहा है।

बैलों को खोलने के पहले बाँस की टिकटी लगाकर गाड़ी को टिका दिया। फिर साइकिलवाले की ओर बार-बार घूरते हुए पूछा, ''कहाँ जाना है? मेला? कहाँ से आना हो रहा है? बिसनपुर से? बस, इतनी ही दूर में थसथसाकर थक गए?, जा रे जवानी!''

साइकिलवाला दुबला-पतला नौजवान मिनमिनाकर कुछ बोला और बीड़ी सुलगाकर उठ खड़ा हुआ।
हिरामन दुनिया-भर की निगाह से बचाकर रखना चाहता है हीराबाई को। उसने चारों ओर नजर दौड़ाकर देख लिया, कहीं कोई गाड़ी या घोड़ा नहीं।
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Old 08-11-2012, 09:58 PM   #24
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Default Re: फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी 'मारे गए गुलफ़ाम

कजरी नदी की दुबली-पतली धारा तेगछिया के पास आकर पूरब की ओर मुड़ गई है। हीराबाई पानी में बैठी हुई भैसों और उनकी पीठ पर बैठे हुए बगुलों को देखती रही।
हिरामन बोला, ''जाइए, घाट पर मुँह-हाथ धो आइए!''

हीराबाई गाड़ी से नीचे उतरी। हिरामन का कलेजा धड़क उठा। नहीं, नहीं! पाँव सीधे हैं, टेढ़े नहीं। लेकिन, तलुवा इतना लाल क्यों हैं? हीराबई घाट की ओर चली गई, गाँव की बहू-बेटी की तरह सिर नीचा करके धीरे-धीरे। कौन कहेगा कि कंपनी की औरत है! औरत नहीं, लड़की। शायद कुमारी ही है।

हिरामन टिकटी पर टिकी गाड़ी पर बैठ गया। उसने टप्पर में झाँककर देखा। एक बार इधर-उधर देखकर हीराबाई के तकिये पर हाथ रख दिया। फिर तकिये पर केहुनी डालकर झुक गया, झुकता गया। खुशबू उसकी देह में समा गई। तकिये के गिलाफ पर कढ़े फूलों को उँगलियों से छूकर उसने सूँघा, हाय रे हाय! इतनी सुगंध! हिरामन को लगा, एक साथ पाँच चिलम गाँजा फूँककर वह उठा है। हीराबाई के छोटे आईने में उसने अपना मुँह देखा। आँखें उसकी इतनी लाल क्यों हैं?
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Old 08-11-2012, 09:59 PM   #25
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Default Re: फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी 'मारे गए गुलफ़ाम

हीराबाई लौटकर आई तो उसने हँसकर कहा, ''अब आप गाड़ी का पहरा दीजिए, मैं आता हूँ तुरत।''
हिरामन ने अपना सफरी झोली से सहेजी हुई गंजी निकाली। गमछा झाड़कर कंधे पर लिया और हाथ में बालटी लटकाकर चला। उसके बैलों ने बारी-बारी से 'हुँक-हुँक' करके कुछ कहा। हिरामन ने जाते-जाते उलटकर कहा, ''हाँहाँ, प्यास सभी को लगी है। लौटकर आता हूँ तो घास दूँगा, बदमासी मत करो!''
बैलों ने कान हिलाए।

नहा-धोकर कब लौटा हिरामन, हीराबाई को नहीं मालूम। कजरी की धारा को देखते-देखते उसकी आँखों में रात की उचटी हुई नींद लौट आई थी। हिरामन पास के गाँव से जलपान के लिए दही-चूड़ा-चीनी ले आया है।
''उठिए, नींद तोड़िए! दो मुट्ठी जलपान कर लीजिए!''
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Old 08-11-2012, 09:59 PM   #26
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Default Re: फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी 'मारे गए गुलफ़ाम

हीराबाई आँख खोलकर अचरज में पड़ गई। एक हाथ में मिट्टी के नए बरतन में दही, केले के पत्ते। दूसरे हाथ में बालटी-भर पानी। आँखों में आत्मीयतापूर्ण अनुरोध!
''इतनी चीजें कहाँ से ले आए!''
''इस गाँव का दही नामी है। चाह तो फारबिसगंज जाकर ही पाइएगा।''हिरामन ने कहा, ''तुम भी पत्तल बिछाओ। क्यों? तुम नहीं खाओगे तो समेटकर रख लो अपनी झोली में। मैं भी नहीं खाऊँगी।''
''इस्स!'' हिरामन लजाकर बोला, ''अच्छी बात! आप खा लीजिए पहले!''
''पहले-पीछे क्या? तुम भी बैठो।''

हिरामन का जी जुड़ा गया। हीराबाई ने अपने हाथ से उसका पत्तल बिछा दिया, पानी छींट दिया, चूड़ा निकालकर दिया। इस्स! धन्न है, धन्न है! हिरामन ने देखा, भगवती मैया भोग लगा रही है। लाल होठों पर गोरस का परस! पहाड़ी तोते को दूध-भात खाते देखा है?
दिन ढल गया।
टप्पर में सोई हीराबाई और जमीन पर दरी बिछाकर सोए हिरामन की नींद एक ही साथ खुली। मेले की ओर जानेवाली गाड़ियाँ तेगछिया के पास रुकी हैं। बच्चे कचर-पचर कर रहे हैं।
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Old 08-11-2012, 09:59 PM   #27
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हिरामन हड़बड़ाकर उठा। टप्पर के अंदर झाँककर इशारे से कहा, दिन ढल गया! गाड़ी में बैलों को जोतते समय उसने गाड़ीवानों के सवालों का कोई जवाब नहीं दिया। गाड़ी हाँकते हुए बोला, ''सिरपुर बाजार के इसपिताल की डागडरनी हैं। रोगी देखने जा रही हैं। पास ही कुड़मागाम।''
हीराबाई छत्तापुर-पचीरा का नाम भूल गई। गाड़ी जब कुछ दूर आगे बढ़ आई तो उसने हँसकर पूछा, ''पत्तापुर-छपीरा?''
हँसते-हँसते पेट में बल पड़ गए हिरामन के... ''पत्तापुर-छपीरा! हा-हा वे लोग छत्तापुर-पचीरा के ही गाड़ीवान थे, उनसे कैसे कहता! ही-ही-ही!''
हीराबाई मुस्कराती हुई गाँव की ओर देखने लगी।

सड़क तेगछिया गाँव के बीच से निकलती है। गाँव के बच्चों ने परदेवाली गाड़ी देखी और तालियाँ बजा-बजाकर रटी हुई पंक्तियाँ दुहराने लगे,
''लाली-लाली डोलिया में
लाली रे दुलहनिया
पान खाए!''
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Old 08-11-2012, 09:59 PM   #28
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हिरामन हँसा। दुलहिनिया लाली-लाली डोलिया! दुलहिनिया पान खाती है, दुलहा की पगड़ी में मुँह पोंछती है। ओ दुलहिनिया, तेगछिया गाँव के बच्चों को याद रखना। लौटती बेर गुड़ का लड्डू लेती आइयो। लाख वरिस तेरा हुलहा जीए! कितने दिनों का हौसला पूरा हुआ है हिरामन का! ऐसे कितने सपने देखे हैं उसने! वह अपनी दुलहिन को लेकर लौट रहा है। हर गाँव के बच्चे तालियाँ बजाकर गा रहे हैं। हर आँगन से झाँककर देख रही हैं औरतें। मर्द लोग पूछते हैं, ''कहाँ की गाड़ी है, कहाँ जाएगी?' उसकी दुलहिन डोली का परदा थोड़ा सरकाकर देखती है। और भी कितने सपने गाँव से बाहर निकलकर उसने कनखियों से टप्पर के अंदर देखा, हीराबाई कुछ सोच रही है। हिरामन भी किसी सोच में पड़ गया। थोड़ी देर के बाद वह गुनगुनाने लगा-
''सजन रे झूठ मति बोलो, खुदा के पास जाना है।
नहीं हाथी, नहीं घोड़ा, नहीं गाड़ी,
वहाँ पैदल ही जाना है। सजन रे।''

हीराबाई ने पूछा, ''क्यों मीता? तुम्हारी अपनी बोली में कोई गीत नहीं क्या?''
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Old 08-11-2012, 10:00 PM   #29
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हिरामन अब बेखटक हीराबाई की आँखों में आँखें डालकर बात करता है। कंपनी की औरत भी ऐसी होती है? सरकस कंपनी की मालकिन मेम थी। लेकिन हीराबाई! गाँव की बोली में गीत सुनना चाहती है। वह खुलकर मुस्कराया, ''गाँव की बोली आप समझिएगा?''
''हूँ-ऊँ-ऊँ!'' हीराबाई ने गर्दन हिलाई। कान के झुमके हिल गए।

हिरामन कुछ देर तक बैलों को हाँकता रहा चुपचाप। फिर बोला, ''गीत जरूर ही सुनिएगा? नहीं मानिएगा? इस्स! इतना सौक गाँव का गीत सुनने का है आपको! तब लीक छोड़नी होगी। चालू रास्ते में कैसे गीत गा सकता है कोई!''
हिरामन ने बाएँ बैल की रस्सी खींचकर दाहिने को लीक से बाहर किया और बोला, ''हरिपुर होकर नहीं जाएँगे तब।''

चालू लीक को काटते देखकर हिरामन की गाड़ी के पीछेवाले गाड़ीवान ने चिल्लाकर पूछा, ''काहे हो गाड़ीवान, लीक छोड़कर बेलीक कहाँ उधर?''
हिरामन ने हवा में दुआली घुमाते हुए जवाब दिया, ''कहाँ है बेलीकी? वह सड़क नननपुर तो नहीं जाएगी।'' फिर अपने-आप बड़बड़ाया, ''इस मुलुक के लोगों की यही आदत बुरी है। राह चलते एक सौ जिरह करेंगे। अरे भाई, तुमको जाना है, जाओ। देहाती भुच्च सब!''
नननपुर की सड़क पर गाड़ी लाकर हिरामन ने बैलों की रस्सी ढीली कर दी। बैलों ने दुलकी चाल छोड़कर कदमचाल पकड़ी।
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Old 08-11-2012, 10:00 PM   #30
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हीराबाई ने देखा, सचमुच नननपुर की सड़क बड़ी सूनी है। हिरामन उसकी आँखों की बोली समझता है, ''घबराने की बात नहीं। यह सड़क भी फारबिसगंज जाएगी, राह-घाट के लोग बहुत अच्छे हैं। एक घड़ी रात तक हम लोग पहुँच जाएँगे।

हीराबाई को फारबिसगंज पहुँचने की जल्दी नहीं। हिरामन पर उसको इतना भरोसा हो गया कि डर-भय की कोई बात नहीं उठती है मन में। हिरामन ने पहले जी-भर मुस्करा लिया। कौन गीत गाए वह! हीराबाई को गीत और कथा दोनों का शौक है इस्स! महुआ घटवारिन? वह बोला, ''अच्छा, जब आपको इतना सौक है तो सुनिए महुआ घटवारिन का का गीत। इसमें गीत भी है, कथा भी है।''

कितने दिनों के बाद भगवती ने यह हौसला भी पूरा कर दिया। जै भगवती! आज हिरामन अपने मन को खलास कर लेगा। वह हीराबाई की थमी हुई मुस्कुराहट को देखता रहा।

''सुनिए! आज भी परमार नदी में महुआ घटवारिन के कई पुराने घाट हैं। इसी मुलुक की थी महुआ! थी तो घटवारिन, लेकिन सौ सतवंती में एक थी। उसका बाप दारू-ताड़ी पीकर दिन-रात बेहोश पड़ा रहता। उसकी सौतेली माँ साच्छात राकसनी! बहुत बड़ी नजर-चालक। रात में गाँजा-दारू-अफीम चुराकर बेचनेवाले से लेकर तरह-तरह के लोगों से उसकी जान-पहचान थी। सबसे घुट्टा-भर हेल-मेल। महुआ कुमारी थी। लेकिन काम कराते-कराते उसकी हड्डी निकाल दी थी राकसनी ने। जवान हो गई, कहीं शादी-ब्याह की बात भी नहीं चलाई। एक रात की बात सुनिए!''
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