14-11-2017, 12:06 AM | #21 |
Super Moderator
Join Date: Aug 2012
Location: Faridabad, Haryana, India
Posts: 13,293
Rep Power: 242 |
Re: किस्सा तीन बहनों का
अपनी कुशलता की सूचना देने के लिए जो खंजर बहमन ने परीजाद को दिया था वह उसे रोजाना म्यान से निकल कर देखती। जिस दिन बहमन काला पत्थर बना उस दिन परवेज ने कहा, परीजाद, आज मुझे खंजर दो। आज भैया का हाल मैं मालूम करना चाहता हूँ। परीजाद ने उसे खंजर दे दिया। उसने म्यान से उसे निकाला तो उसकी नोक से उसे खून की बूँद निकलती दिखाई दी। परवेज ने हाथ से खंजर फेंक दिया और हाय-हाय करने लगा। परीजाद को भी जब खून टपकाता हुआ खंजर दिखाई दिया तो वह चिल्ला-चिल्ला कर रोने लगी और सिर पटक-पटक कर कहने लगी, हाय भैया, मेरी नादानी से तुम्हारी जान गई। न जाने किस मनहूस घड़ी में वह कमबख्त बुढ़िया आई थी। न वह आती न यह झंझट होता। मक्कार ने मुझे बेकार के लालच में डाल दिया। मैंने उसके साथ ऐसा सद्व्यवहार किया और उसने मुझे इसका ऐसा बदला दिया। अब मिले तो उस कलमुँही की बोटियाँ नोच लूँ। मेरे प्यारे भाई की जान उसी के दिलाए लालच के कारण गई। हे भगवान, तू भैया को जिंदा घर लौटा, चाहे मेरी मौत भेज दे। भैया न रहे तो चिड़िया, पेड़ और पानी को पा कर भी मैं क्या करूँगी। मुझे यह चीजें नहीं चाहिए, मुझे और भी कुछ नहीं चाहिए। मुझे सिर्फ मेरा भाई चाहिए।
__________________
आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
15-11-2017, 03:01 PM | #22 |
Super Moderator
Join Date: Aug 2012
Location: Faridabad, Haryana, India
Posts: 13,293
Rep Power: 242 |
Re: किस्सा तीन बहनों का
किस्सा तीन बहनों का
परीजाद बहमन की बातों को याद करके देर तक रोती रही। परवेज भी आँसू बहाता रहा। फिर उसने कहा, परीजाद, अब रोने-धोने से कुछ नहीं होगा। अब मैं जाता हूँ। मैं पता लगाऊँगा कि भैया किसी प्राकृतिक कारण से मरे हैं या किसी शत्रु ने उन्हें मारा है। किसी ने उन्हें मारा होगा तो मैं उसे जीता नहीं छोड़ूँगा, भैया की मौत का बदला जरूर लूँगा। परीजाद ने बहुत समझा कर उसे रोकना चाहा। वह बोली, मैंने एक भाई तो खोया ही है, दूसरे को मौत के मुँह में नहीं जाने दूँगी। बड़े भैया तुम से कुछ कम बहादुर नहीं थे। लेकिन परवेज ने उसकी एक भी बात न सुनी। उसने दूसरे दिन सुबह अपनी साहस यात्रा पर जाने की तैयारी शुरू कर दी। दूसरे दिन उसके रवाना होने के समय परीजाद रो कर बोली, बड़े भैया ने तो अपनी कुशल जानने को एक राह भी बताई थी, तुम्हारा हाल मुझे कैसे मालूम होगा? परवेज ने उसे मोतियों की एक माला दी। उसने कहा, देखो, इसके सारे मोती अलग-अलग हैं। इसे उँगलियों पर चलाने से एक-एक मोती उँगलियों में आता है। जब तक यह मोती ऐसे ही रहें तो समझ लेना कि मैं ठीक-ठाक हूँ। जिस दिन यह एक-दूसरे से चिपक जाएँ और माला न फेरी जा सके तो समझ लेना कि मैं भी दुनिया में नहीं रहा। यह कह कर परवेज निकल पड़ा।
__________________
आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
15-11-2017, 03:02 PM | #23 |
Super Moderator
Join Date: Aug 2012
Location: Faridabad, Haryana, India
Posts: 13,293
Rep Power: 242 |
Re: किस्सा तीन बहनों का
किस्सा तीन बहनों का
बीस दिन की यात्रा के बाद वह वहीं पहुँचा जहाँ वह सिद्ध तपस्वी बैठा था। उसने आदरपूर्वक सिद्ध को प्रणाम किया और पूछा, क्या आप बता सकेंगे कि मुझे बोलनेवाली चिड़िया, गानेवाला पेड़ और सोने का पानी कहाँ से मिल सकते हैं? तपस्वी ने कहा, बेटे, वह राह बहुत खतरनाक है। तुम वहाँ जाने का इरादा न करो और यहीं से लौट जाओ। वहाँ से अभी तक कोई वापस नहीं आया है। एक महीने से भी कम हुआ तुम्हारी ही शक्ल-सूरत का एक नौजवान मेरे लाख रोकने पर भी उधर गया था। वह भी नहीं लौटा है। परवेज ने कहा, वह मेरा बड़ा भाई था। यह तो मुझे मालूम है कि वह जीवित नहीं है, लेकिन मैं यह नहीं जानता कि वह कैसे मरा, किसी प्राकृतिक कारण से मरा या किसी दुश्मन ने उसे मारा। सिद्ध ने कहा, मैं तुम्हें बताता हूँ। बहुत-से आदमी मेरी चेतावनी के बावजूद उस राह पर गए और काले पत्थर बन कर वहीं पर रह गए। तुम्हारे भाई के साथ भी यही हुआ है। तुम मेरी बात मानो और लौट जाओ वरना तुम भी काला पत्थर बन कर यहाँ हमेशा पड़े रहोगे।
__________________
आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
15-11-2017, 03:05 PM | #24 |
Super Moderator
Join Date: Aug 2012
Location: Faridabad, Haryana, India
Posts: 13,293
Rep Power: 242 |
Re: किस्सा तीन बहनों का
किस्सा तीन बहनों का
परवेज ने कहा, मैं आपका आभारी हूँ कि आप मेरे हितचिंतक हैं लेकिन मैं आगे पाँव बढ़ा चुका हूँ, पीछे नहीं हट सकता। आप मुझे वह रास्ता अवश्य बताएँ। सिद्ध ने कहा, मैं तुम्हारे साथ चल सकता तो कोई बात नहीं थी किंतु बुढ़ापे के कारण मैं नहीं जा सकूँगा। तुम जिद करते हो तो जाओ। यह गेंद ले लो। इसे जमीन पर रखोगे तो यह खुद लुढ़कने लगेगी और तुम इसके पीछे लग जाना। पहाड़ के नीचे जा कर यह रुकेगा और तुम उसी पहाड़ पर चढ़ जाना। तुम्हारे पीछे से किसी तरह की आवाजें आएँ तुम पीछे मुड़ कर न देखना वरना तुम भी पत्थर बन जाओगे। ऊपर जा कर तुम्हें बोलनेवाली चिड़िया मिलेगी और वही तुम्हें अन्य दो चीजों का पता बताएगी। परवेज सिद्ध को माथा नवा कर सवार हो कर चला। गेंद उसे रास्ता दिखाती जा रही थी। कुछ देर बाद एक पहाड़ की तलहटी में जा कर गेंद रुक गई। परवेज घोड़े को वहीं खड़ा करके पहाड़ पर चढ़ने लगा। दो-चार ही कदम गया होगा कि उसने सुना कि पीछे से कोई डाँट कर कह रहा है, अबे ओ बदमाश, बदतमीज, कहाँ बढ़ा जा रहा है। रुक जा कमबख्त, तुझे सजा दूँ। परवेज को जल्दी क्रोध आ जाता था। उसने गालियाँ सुनीं तो उसका खून खौल गया और वह तपस्वी द्वारा दी हुई चेतावनी को भूल गया। उसने म्यान से तलवार खींच ली और पलट कर देखा कि गाली देनेवाले के टुकड़े-टुकड़े कर दूँ। किंतु पीछे देखते ही वह काले पत्थर का ढोंका बन गया और उसके घोड़े का भी यही हाल हुआ।
__________________
आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
16-11-2017, 09:54 AM | #25 |
Super Moderator
Join Date: Aug 2012
Location: Faridabad, Haryana, India
Posts: 13,293
Rep Power: 242 |
Re: किस्सा तीन बहनों का
किस्सा तीन बहनों का
परवेज के जाने के बाद परीजाद को बहमन की यात्रा के समय से भी अधिक शंका बनी रहती थी। वह बहमन के दिए खंजर को तो कभी-कभी ही देखती थी किंतु परवेज की दी हुई माला को अपने गले में डाले रहती और हमेशा उसके मोतियों पर हाथ फेर कर उनकी दशा को देखती रहती थी। चुनांचे ज्यों ही परवेज काले पत्थर की शिला के रूप में परिवर्तित हुआ उसके कुछ ही देर बार परीजाद को उसकी मृत्यु का हाल मालूम हो गया क्योंकि माला के मोती एक-दूसरे से ऐसे चिपक गए थे कि माला फेरना असंभव था। परीजाद उस समय तो दुख के कारण अचेत हो गई किंतु बाद में होश आने पर उसने फैसला किया कि दोनों भाइयों को मौत के मुँह में भेजने के बाद अब मेरे जीवन का भी कोई अर्थ नहीं है। उसने भी घुड़सवारी और शस्त्र संचालन की शिक्षा ली थी और उसमें साहस की कमी न थी। उसने मर्दाने कपड़े पहने, हथियार लगाए और घोड़े पर सवार हो गई। उसने गृह-प्रबंधक को आदेश दिया कि जब तक वह वापस न आए वह खुद महल की देखभाल करे, किसी प्रबंध में कमी न होने पाए।
__________________
आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
16-11-2017, 09:55 AM | #26 |
Super Moderator
Join Date: Aug 2012
Location: Faridabad, Haryana, India
Posts: 13,293
Rep Power: 242 |
Re: किस्सा तीन बहनों का
किस्सा तीन बहनों का
बीस दिन तक घोड़े पर चलने के बाद वह भी उसी तपस्वी सिद्ध पुरुष के पास पहुँची। उसने प्रणाम करके बोली, सिद्ध पिता, कृपया मुझे बताएँ कि बोलनेवाली चिड़िया, गानेवाला पेड़ और सुनहरा पानी कहाँ मिलेगा। वृद्ध ने कहा, तुमने कपड़े तो आदमियों जैसे पहने हैं किंतु स्पष्टतः तुम स्त्री हो जैसा तुम्हारा स्वर बता रहा है। मुझे मालूम है कि वे चीजें कहाँ हैं, लेकिन तुम उन्हें क्यों पूछ रही हो? परीजाद बोली, जब से मैंने उनके बारे में सुना है तभी से उन्हें पाने की इच्छा है। तपस्वी ने कहा, हैं तो वे चीजें संग्रहणीय लेकिन उन्हें प्राप्त करने के मार्ग में बड़े खतरे हैं। तुम लड़की हो, तुम्हारे लिए अच्छा यही है कि अपनी इच्छा पर संयम रखो और उन्हें प्राप्त करने का विचार छोड़ दो। बड़े-बड़े बहादुर उस राह पर जा कर वापस नहीं लौटे हैं। घर लौट जाओ। परीजाद बोली, तपस्वी पिता, बीस दिन चल कर तो मैं यहाँ पहुँची हूँ। अब तो यहाँ से यूँ ही वापस नहीं जा सकती। आप कृपया मुझे विस्तार से बताएँ कि उस मार्ग में क्या क्या खतरे हैं ताकि मैं उनसे निबटने का उपाय ढूँढ़ सकूँ। मेरा विचार है कि अगर मैं सोच-समझ कर आगे बढ़ूँगी तो हर तरह के खतरों का सामना कर सकूँगी। आप कृपया मेरा मार्गदर्शन करें।
__________________
आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
16-11-2017, 09:58 AM | #27 |
Super Moderator
Join Date: Aug 2012
Location: Faridabad, Haryana, India
Posts: 13,293
Rep Power: 242 |
Re: किस्सा तीन बहनों का
किस्सा तीन बहनों का
वृद्ध तपस्वी ने परीजाद को वे सारी बातें बताईं जो उसने बहमन और परवेज को बताई थीं। उसने कहा, खतरे सिर्फ तब तक हैं जब तक कोई पहाड़ की चोटी पर न पहुँच जाए। फिर तुम्हें बातें करनेवाली चिड़िया मिलेगी और वह तुम्हें गानेवाले पेड़ और सुनहरे पानी के स्थानों को भी बताएगी। लेकिन पहाड़ चढ़ने के समय अप्रिय और कटु शब्द सुनाई देंगे। रास्ते के सारे काले पत्थर आदमी ही हैं जो उन तीनों चीजों की खोज में गए थे किंतु गालियों या धमकियों से डर कर या क्रुद्ध हो कर पीछे देखते ही काले पत्थर की शिला बन गए। परीजाद ने कहा, मतलब यह है कि वे केवल शब्द हैं और किसी का कुछ बिगाड़ नहीं सकते अगर कोई पीछे मुड़ कर न देखे। सिद्ध पिता, आप विश्वास करें कि यद्यपि मैं स्त्री हूँ तथापि सुने हुए किसी शब्द से विचलित नहीं हूँगी। मैं न तो इन आवाजों से भयभीत हूँगी न उन पर क्रोध करूँगी। मैं पूरा आत्मसंयम रखूँगी। इसके अलावा मैं अपने दोनों कानों में कस कर रूई ठूँस लूँगी ताकि मुझे वे आवाजें सुनाई ही न दें।
__________________
आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
16-11-2017, 09:59 AM | #28 |
Super Moderator
Join Date: Aug 2012
Location: Faridabad, Haryana, India
Posts: 13,293
Rep Power: 242 |
Re: किस्सा तीन बहनों का
किस्सा तीन बहनों का
सिद्ध ने मुस्कुरा कर कहा, बेटी, मालूम होता है कि तुम्हारे ही भाग्य में है। इतने लोग वहाँ गए हैं किंतु यह उपाय किसी को अभी तक नहीं सूझा। बस, सब कुछ इस पर निर्भर है कि चाहे जो कुछ सुनाई दे आदमी उसका असर अपने मन पर न पड़ने दे। परीजाद ने कहा, विश्वास रखिए कि मैं आपकी दी हुई सलाह पूरी तरह मानूँगी। अब आप यह बता दीजिए कि पहाड़ को कौन-सा रास्ता जाता है। बूढ़े तपस्वी ने कहा, बेटी, तुम होशियार तो बहुत मालूम होती हो लेकिन मैं एक बार फिर तुम्हें सलाह दूँगा कि घर लौट जाओ। परीजाद आगे जाने की जिद पर अड़ी रही तो वृद्ध ने मजबूर हो कर अन्य लोगों की भाँति उसे भी मार्ग प्रदर्शन करनेवाली गेंद दी और कहा, इसे भूमि पर डाल दो। यह अपने आप लुढ़कती हुई पहाड़ के नीचे जा कर रुक जाएगी। तुम वहीं घोड़े से उतरना और पहाड़ पर चढ़ना शुरू कर देना। परीजाद ने ऐसा ही किया और तेजी से लुढ़कती हुई गेंद के पीछे घोड़ा दौड़ाने लगी।
__________________
आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
18-11-2017, 07:57 AM | #29 |
Super Moderator
Join Date: Aug 2012
Location: Faridabad, Haryana, India
Posts: 13,293
Rep Power: 242 |
Re: किस्सा तीन बहनों का
किस्सा तीन बहनों का
गेंद पर्वत के नीचे जा कर रुक गई तो वह घोड़े से उतर पड़ी और उसकी गर्दन पर लगाम डालने के बाद उसने अपने कानों में ठूँस-ठूँस कर रूई भर ली और धीरे-धीरे पहाड़ पर चढ़ने लगी। उसके पीछे आवाजें होने लगीं किंतु वे कानों में रूई ठुँसी होने के कारण उसे सुनाई न दीं और वह बढ़ती गई। फिर पीछे से आनेवाली आवाजें और तेज हुईं। यह आवाजें भी उसे धीमी सुनाई दीं और उन्होंने उसके मस्तिष्क को बिल्कुल विचलित नहीं किया। फिर उसे ऐसी गालियाँ सुनने को मिलीं जो स्त्रियों के लिए होती हैं और बड़ी अपमानजनक होती हैं। परीजाद को एक क्षण तो बुरा लगा किंतु फिर वह उन गालियों पर हँस पड़ी। इसी तरह उस भयानक चढ़ाई को दृढ़ता और संयम से पूर्ण करने के बाद वह शिखर पर पहुँची तो देखा कि एक पिंजड़े में एक सुंदर चिड़िया मधुर स्वर में गा रही है। परीजाद को देखते ही वह सिंह की तरह गरज कर बोली, ए लड़की, खबरदार मेरे पास न आना। परीजाद इस पर हँसने लगी और दौड़ कर चोटी पर पहुँच गई। वहाँ भूमि समतल थी। उसने दौड़ कर चिड़िया के पिंजड़े पर हाथ रखा और बोली, चिड़िया रानी, आज से मैं तुम्हारी मालकिन हूँ और तुम मेरे कब्जे में रहोगी। फिर उसने कानों की रूई निकाल दी। चिड़िया बोली, तुम ठीक कह रही हो। अब मैं सदैव तुम्हारी सेवा और हित साधना करती रहूँगी। मैं पिंजड़े में बंद रहती हूँ किंतु संसार की कोई बात नहीं जो मुझे मालूम नहीं है। तुम्हारा हाल इतना जानती हूँ जितना तुम भी नहीं जानतीं और मेरे कारण तुम्हें अयाचित लाभ मिलेगा। अब तुम मेरी स्वामिनी हुई और तुम्हारी सेवा करना मेरा धर्म है। इस समय तुम बताओ कि मुझ से क्या चाहती हो। मैं बगैर ना-नुकुर के उसे करूँगी।
__________________
आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
18-11-2017, 07:59 AM | #30 |
Super Moderator
Join Date: Aug 2012
Location: Faridabad, Haryana, India
Posts: 13,293
Rep Power: 242 |
Re: किस्सा तीन बहनों का
किस्सा तीन बहनों का
चिड़िया की बातों से परीजाद को प्रसन्नता हुई यद्यपि उसे अपने भाइयों के विनाश का बड़ा दुख भी था। उसने चिड़िया से कहा, मुझे तुमसे बहुत-सी बातें पूछनी हैं। सबसे पहले यह बात बताओ कि मुझे सुनहरा पानी कहाँ मिलेगा। चिड़िया ने जो मार्ग बताया उस पर चल कर परीजाद सुनहरे पानी के कुंड पर पहुँची और एक चाँदी की सुराही में, जो वह अपने साथ ले गई थी, अच्छी तरह पानी भर कर ले आई। फिर उसने चिड़िया से गानेवाले पेड़ के बारे में पूछा। चिड़िया ने कहा, तुम्हारे पीछे की ओर एक बड़ा जंगल है। यह जंगल बहुत दूर नहीं है। उसी में गानेवाला पेड़ मिलेगा। तुम्हें आसानी से मालूम हो जाएगा कि कौन-सा पेड़ है क्योंकि संगीत सिर्फ उसी से निकल रहा होगा। परीजाद ने कहा, यह तो ठीक है, लेकिन मैं उस पेड़ को उखाड़ कर लाऊँगी कैसे। चिड़िया बोली, पेड़ नहीं उखड़ेगा, तुम सिर्फ एक टहनी तोड़ कर ले आओ। जब तुम अपनी वाटिका की भूमि में उसे लगाओगी तो वह कुछ ही समय में पूरे वृक्ष के रुप में परिवर्तित हो जाएगी। देखनेवाले ताज्जुब करेंगे कि एक ही दिन में यह पूरा पेड़ कैसे आ गया।
__________________
आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
Bookmarks |
Tags |
किस्सा तीन, किस्सा बहनों का, तीन बहने, kissa, kissa teen bahno ka |
|
|