29-11-2010, 10:47 PM | #21 |
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Re: प्रेम, प्रणय और धोखा
इसी सन्दर्भ में एक बानगी है ...... हम अकेले हैं हमसे बात तो करो ! हमारी सुन लो और अपनी कहो !! उम्र भर कौन साथ रहता है यारो! एक दो पल तो मेरे साथ रहो !! अकेले आये हैं हम अकेले जायेंगे भी न संग आता कोई ना संग जाता है !! रिश्ते बनते हैं, बिगड़ जाते हैं यहाँ स्मृतियों का मेला ही शेष रह जाता है !!
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
29-11-2010, 11:40 PM | #22 |
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Re: प्रेम, प्रणय और धोखा
नींद को मैं पुकारा बहुत रात तक
नींद आयी न जब तो मैं घबरा गया सो गयी थी धरा सो गया था गगन मैं अकेला मगर जागता रह गया बात करता रहा मैं स्वयं से स्वयं और समय भी निरंतर सिमटता रहा पर तभी तेरा चेहरा मुझे दिख गया मैं चाँद को देखते देखते सो गया !!
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30-11-2010, 04:27 AM | #23 |
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Re: प्रेम, प्रणय और धोखा
Pranam bhai ji.dil jeet liya aapne.
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30-11-2010, 05:41 AM | #24 |
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Re: प्रेम, प्रणय और धोखा
तलाश करो कोई तुम्हें मिल जायेगा,
मगर हमारी तरह कौन तुम्हें चाहेगा, कोई चाहत की नजरों से तुम्हें देखेगा, मगर आँखें हमारी कहां से लायेगा। |
30-11-2010, 05:46 AM | #25 |
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Re: प्रेम, प्रणय और धोखा
हर खामोशी का मतलब इन्कार नहीं होता,
हर नाकामियों का मतलब हार नहीं होता, तो क्या हुआ अगर हम तुम्हें न पा सके, सिर्फ पाने का मतलब प्यार नहीं होता। |
30-11-2010, 08:31 AM | #26 |
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Re: प्रेम, प्रणय और धोखा
ए धोखे प्यार के धोखे हमने दिल पर सहे रो रो के कि किसी से कोइ प्यार ना करे
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30-11-2010, 11:39 PM | #27 |
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Re: प्रेम, प्रणय और धोखा
जलते हुए अंगारों को न पानी से बुझाओ
धुआँ उठेगा , तो सभी लोग जान जायेंगे डाल दो राख फिर थोड़ी सी प्रतीक्षा करो कोई जानेगा नहीं,'जय' स्वयं बुझ जायेंगे
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01-12-2010, 05:37 PM | #28 |
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Re: प्रेम, प्रणय और धोखा
मीठा सा इश्क लागे, कडवी जुदाई ! यार मेरा सच्चा लागे, झूठी खुदाई !! चांदनी ने तन पे मेरे चादर बिछाई ! ओढा जो तुने मुझको साँसे लौट आई !! ये आलम है, इश्क इश्क ये आलम है........................!!!
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"खैरात में मिली हुई ख़ुशी मुझे अच्छी नहीं लगती,
मैं अपने दुखों में भी रहता हूँ नवाबों की तरह !!" |
01-12-2010, 08:06 PM | #29 |
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Re: प्रेम, प्रणय और धोखा
"मुसलसल"
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घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
01-12-2010, 08:11 PM | #30 |
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Re: प्रेम, प्रणय और धोखा
दिल में दर्द दबाने की, आँखों में नमी छुपाने की
हर कोशिश कर के हार गए, हम तेरी याद भूलाने की तेरी चाहत में हमने, हर दर्द को समझा थोड़ा था उस रोज बिखर गए टूट के हम, जब तुमने भी मुंह मोडा था रोते रहे थे रात भर, बाकी फिर भी समंदर था जाने कितना दर्द अभी भी, इस सीने के अंदर था फिर आदत हो गयी दिल को, वक़्त गम के साथ बिताने की हर कोशिश कर के हार गए, हम तेरी याद भूलाने की
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घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
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