11-11-2010, 05:22 PM | #21 |
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तोरा मन दर्पण कहलाये
भले बुरे सारे कर्मों को, देखे और दिखाये तोरा मन दर्पण कहलाये.... मन ही देवता, मन ही ईश्वर, मन से बड़ा न कोय मन उजियारा जब जब फैले, जग उजियारा होय इस उजले दर्पण पे प्राणी, धूल न जमने पाये तोरा मन दर्पण कहलाये ... सुख की कलियाँ, दुख के कांटे, मन सबका आधार मन से कोई बात छुपे ना, मन के नैन हज़ार जग से चाहे भाग लो कोई, मन से भाग न पाये तोरा मन दर्पण कहलाये ... |
11-11-2010, 05:23 PM | #22 |
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वैष्णव जन तो
वैष्णव जन तो तेने कहिये जे पीड़ परायी जाणे रे पर दुख्खे उपकार करे तोये मन अभिमान ना आणे रे वैष्णव जन तो तेने कहिये जे ... सकळ लोक मान सहुने वंदे नींदा न करे केनी रे वाच काछ मन निश्चळ राखे धन धन जननी तेनी रे वैष्णव जन तो तेने कहिये जे ... सम दृष्टी ने तृष्णा त्यागी पर स्त्री जेने मात रे जिह्वा थकी असत्य ना बोले पर धन नव झाली हाथ रे वैष्णव जन तो तेने कहिये जे ... मोह माया व्यापे नही जेने द्रिढ़ वैराग्य जेना मन मान रे राम नाम सुन ताळी लागी सकळ तिरथ तेना तन मान रे वैष्णव जन तो तेने कहिये जे ... वण लोभी ने कपट- रहित छे काम क्रोध निवार्या रे भणे नरसैय्यो तेनुन दर्शन कर्ता कुळ एकोतेर तारया रे वैष्णव जन तो तेने कहिये जे .. |
11-11-2010, 10:24 PM | #23 |
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बहुत ही अच्छा कार्य किया है मित्र कहानीकार जी. बड़े ही नेक विचार हैं आपके.
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12-11-2010, 07:11 AM | #24 |
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आरती उतारे हम तुम्हारी साईँ बाबा ।
चरणों के तेरे हम पुजारी साईँ बाबा ॥ विद्या बल बुद्धि, बन्धु माता पिता हो तन मन धन प्राण, तुम ही सखा हो हे जगदाता अवतारे, साईँ बाबा । आरती उतारे हम तुम्हारी साईँ बाबा ॥ ब्रह्म के सगुण अवतार तुम स्वामी ज्ञानी दयावान प्रभु अंतरयामी सुन लो विनती हमारी साईँ बाबा । आरती उतारे हम तुम्हारी साईँ बाबा ॥ आदि हो अनंत त्रिगुणात्मक मूर्ति सिंधु करुणा के हो उद्धारक मूर्ति शिरडी के संत चमत्कारी साईँ बाबा । आरती उतारे हम तुम्हारी साईँ बाबा ॥ भक्तों की खातिर, जनम लिये तुम प्रेम ज्ञान सत्य स्नेह, मरम दिये तुम दुखिया जनों के हितकारी साईँ बाबा । आरती उतारे हम तुम्हारी साईँ बाबा ॥ Last edited by Hamsafar+; 12-11-2010 at 07:13 AM. |
12-11-2010, 07:13 AM | #25 |
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आरती करत जनक कर जोरे।
बड़े भाग्य रामजी घर आए मोरे॥ जीत स्वयंवर धनुष चढ़ाये। सब भूपन के गर्व मिटाए॥ तोरि पिनाक किए दुई खण्डा। रघुकुल हर्ष रावण मन शंका॥ आई है लिए संग सहेली। हरिष निरख वरमाला मेली॥ गज मोतियन के चौक पुराए। कनक कलश भरि मंगल गाए॥ कंचन थार कपुर की बाती। सुर नर मुनि जन आये बराती॥ फिरत भांवरी बाजा बाजे। सिया सहित रघुबीर विराजे॥ धनि-धनि राम लखन दोऊ भाई। धनि-धनि दशरथ कौशल्या माई॥ राजा दशरथ जनक विदेही। भरत शत्रुघन परम सनेही॥ मिथिलापुर में बजत बधाई। दास मुरारी स्वामी आरती गाई॥ |
12-11-2010, 07:17 AM | #26 |
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आरती कीजै नरसिंह कुंवर की।
वेद विमल यश गाउँ मेरे प्रभुजी॥ पहली आरती प्रह्लाद उबारे। हिरणाकुश नख उदर विदारे॥ दुसरी आरती वामन सेवा। बल के द्वारे पधारे हरि देवा॥ तीसरी आरती ब्रह्म पधारे। सहसबाहु के भुजा उखारे॥ चौथी आरती असुर संहारे। भक्त विभीषण लंक पधारे॥ पाँचवीं आरती कंस पछारे। गोपी ग्वाल सखा प्रतिपाले॥ तुलसी को पत्र कंठ मणि हीरा। हरषि-निरखि गावे दास कबीरा |
12-11-2010, 07:19 AM | #27 |
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जय-जय रविनन्दन जय दुःख भंजन
जय-जय शनि हरे॥टेक॥ जय भुजचारी, धारणकारी, दुष्ट दलन॥१॥ तुम होत कुपित नित करत दुखित, धनि को निर्धन॥२॥ तुम घर अनुप यम का स्वरूप हो, करत बंधन॥३॥ तब नाम जो दस तोहि करत सो बस, जो करे रटन॥४॥ महिमा अपर जग में तुम्हारे, जपते देवतन॥५॥ सब नैन कठिन नित बरे अग्नि, भैंसा वाहन॥६॥ प्रभु तेज तुम्हारा अतिहिं करारा, जानत सब जन॥७॥ प्रभु शनि दान से तुम महान, होते हो मगन॥८॥ प्रभु उदित नारायन शीश, नवायन धरे चरण। जय शनि हरे। |
12-11-2010, 07:24 AM | #28 |
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आरती कीजै रामचन्द्र जी की। हरि-हरि दुष्टदलन सीतापति जी की॥ पहली आरती पुष्पन की माला। काली नाग नाथ लाये गोपाला॥ दूसरी आरती देवकीन्दन। भक्त उबारन कंस निकन्दन॥ तीसरी आरती त्रिभुवन मोहे। रत्**न सिंहासन सीता रामजी सोहे॥ चौथी आरती चहुं युग पूजा। देव निरंजन स्वामी और न दूजा॥ पांचवीं आरती राम को भावे। रामजी का यश नामदेव जी गावें॥ |
12-11-2010, 07:33 AM | #29 |
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आरती कीजै सरस्वती की,
जननि विद्या बुद्धि भक्ति की। आरती .. जाकी कृपा कुमति मिट जाए। सुमिरण करत सुमति गति आये, शुक सनकादिक जासु गुण गाये। वाणि रूप अनादि शक्ति की॥ आरती .. नाम जपत भ्रम छूट दिये के। दिव्य दृष्टि शिशु उध हिय के। मिलहिं दर्श पावन सिय पिय के। उड़ाई सुरभि युग-युग, कीर्ति की। आरती .. रचित जास बल वेद पुराणा। जेते ग्रन्थ रचित जगनाना। तालु छन्द स्वर मिश्रित गाना। जो आधार कवि यति सती की॥ आरती.. सरस्वती की वीणा-वाणी कला जननि की॥ |
12-11-2010, 07:35 AM | #30 |
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आरती कीजै हनुमान लला की ।
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ॥ जाके बल से गिरिवर काँपे रोग दोष जाके निकट न झाँके । अंजनि पुत्र महा बलदायी संतन के प्रभु सदा सहायी ॥ आरती कीजै हनुमान लला की । दे बीड़ा रघुनाथ पठाये लंका जाय सिया सुधि लाये । लंका सौ कोटि समुद्र सी खाई जात पवनसुत बार न लाई ॥ आरति कीजै हनुमान लला की । लंका जारि असुर संघारे सिया रामजी के काज संवारे । लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे आन संजीवन प्राण उबारे ॥ आरती कीजै हनुमान लला की । पैठि पाताल तोड़ि यम कारे अहिरावन की भुजा उखारे । बाँये भुजा असुरदल मारे दाहिने भुजा संत जन तारे ॥ आरति कीजै हनुमान लला की । सुर नर मुनि जन आरति उतारे जय जय जय हनुमान उचारे । कंचन थार कपूर लौ छाई आरती करती अंजना माई ॥ आरती कीजै हनुमान लला की । जो हनुमान जी की आरति गावे बसि वैकुण्ठ परम पद पावे । आरती कीजै हनुमान लला की । दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ॥ |
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