08-12-2010, 01:24 PM | #21 |
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Re: !!मेरी प्रिय कविताएँ !!
तट पर है तरुवर एकाकी, नौका है, सागर में, अंतरिक्ष में खग एकाकी, तारा है, अंबर में, भू पर वन, वारिधि पर बेड़े, नभ में उडु खग मेला, नर नारी से भरे जगत में कवि का हृदय अकेला! |
08-12-2010, 01:25 PM | #22 |
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Re: !!मेरी प्रिय कविताएँ !!
ऐसे मैं मन बहलाता हूँ / हरिवंशराय बच्चन
सोचा करता बैठ अकेले, गत जीवन के सुख-दुख झेले, दंशनकारी सुधियों से मैं उर के छाले सहलाता हूँ! ऐसे मैं मन बहलाता हूँ! नहीं खोजने जाता मरहम, होकर अपने प्रति अति निर्मम, उर के घावों को आँसू के खारे जल से नहलाता हूँ! ऐसे मैं मन बहलाता हूँ! आह निकल मुख से जाती है, मानव की ही तो छाती है, लाज नहीं मुझको देवों में यदि मैं दुर्बल कहलाता हूँ! ऐसे मैं मन बहलाता हूँ! |
08-12-2010, 01:25 PM | #23 |
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Re: !!मेरी प्रिय कविताएँ !!
कवि की वासना / हरिवंशराय बच्चन
कह रहा जग वासनामय हो रहा उद्गार मेरा! १ सृष्टि के प्रारंभ में मैने उषा के गाल चूमे, बाल रवि के भाग्य वाले दीप्त भाल विशाल चूमे, प्रथम संध्या के अरुण दृग चूम कर मैने सुला*ए, तारिका-कलि से सुसज्जित नव निशा के बाल चूमे, वायु के रसमय अधर पहले सके छू होठ मेरे मृत्तिका की पुतलियो से आज क्या अभिसार मेरा? कह रहा जग वासनामय हो रहा उद्गार मेरा! २ विगत-बाल्य वसुंधरा के उच्च तुंग-उरोज उभरे, तरु उगे हरिताभ पट धर काम के धव्ज मत्त फहरे, चपल उच्छृंखल करों ने जो किया उत्पात उस दिन, है हथेली पर लिखा वह, पढ़ भले ही विश्व हहरे; प्यास वारिधि से बुझाकर भी रहा अतृप्त हूँ मैं, कामिनी के कंच-कलश से आज कैसा प्यार मेरा! कह रहा जग वासनामय हो रहा उद्गार मेरा! ३ इन्द्रधनु पर शीश धरकर बादलों की सेज सुखकर सो चुका हूँ नींद भर मैं चंचला को बाहों में भर, दीप रवि-शशि-तारकों ने बाहरी कुछ केलि देखी, देख, पर, पाया न को*ई स्वप्न वे सुकुमार सुंदर जो पलक पर कर निछावर थी ग*ई मधु यामिनी वह; यह समाधि बनी हु*ई है यह न शयनागार मेरा! कह रहा जग वासनामय हो रहा उद्गार मेरा! ४ आज मिट्टी से घिरा हूँ पर उमंगें हैं पुरानी, सोमरस जो पी चुका है आज उसके हाथ पानी, होठ प्यालों पर टिके तो थे विवश इसके लिये वे, प्यास का व्रत धार बैठा; आज है मन, किन्तु मानी; मैं नहीं हूँ देह-धर्मों से बिधा, जग, जान ले तू, तन विकृत हो जाये लेकिन मन सदा अविकार मेरा! कह रहा जग वासनामय हो रहा उद्गार मेरा! ५ निष्परिश्रम छोड़ जिनको मोह लेता विशॿन भर को, मानवों को, सुर-असुर को, वृद्ध ब्रह्मा, विष्णु, हर को, भंग कर देता तपस्या सिदॿध, ऋषि, मुनि सत्तमों की वे सुमन के बाण मैंने, ही दिये थे पंचशर को; शक्ति रख कुछ पास अपने ही दिया यह दान मैंने, जीत पा*एगा इन्हीं से आज क्या मन मार मेरा! कह रहा जग वासनामय हो रहा उद्गार मेरा! ६ प्राण प्राणों से सकें मिल किस तरह, दीवार है तन, काल है घड़ियां न गिनता, बेड़ियों का शब्द झन-झन वेद-लोकाचार प्रहरी ताकते हर चाल मेरी, बद्ध इस वातावरण में क्या करे अभिलाष यौवन! अल्पतम इच्छा यहां मेरी बनी बंदी पड़ी है, विश्व क्रीडास्थल नहीं रे विश्व कारागार मेरा! कह रहा जग वासनामय हो रहा उद्गार मेरा! ७ थी तृषा जब शीत जल की खा लिये अंगार मैंने, चीथड़ों से उस दिवस था कर लिया श्रृंगार मैंने राजसी पट पहनने को जब हु*ई इच्छा प्रबल थी, चाह-संचय में लुटाया था भरा भंडार मैंने; वासना जब तीव्रतम थी बन गया था संयमी मैं, है रही मेरी क्षुधा ही सर्वदा आहार मेरा! कह रहा जग वासनामय हो रहा उद्गार मेरा! ८ कल छिड़ी, होगी ख़तम कल प्रेम की मेरी कहानी, कौन हूं मैं, जो रहेगी विश्व में मेरी निशानी? क्या किया मैंने नही जो कर चुका संसार अबतक? वृद्ध जग को क्यों अखरती है क्षणिक मेरी जवानी? मैं छिपाना जानता तो जग मुझे साधू समझता, शत्रु मेरा बन गया है छल-रहित व्यवहार मेरा! कह रहा जग वासनामय हो रहा उद्गार मेरा! |
08-12-2010, 01:26 PM | #24 |
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Re: !!मेरी प्रिय कविताएँ !!
कहते हैं तारे गाते हैं / हरिवंशराय बच्चन
सन्नाटा वसुधा पर छाया, नभ में हमनें कान लगाया, फ़िर भी अगणित कंठो का यह राग नहीं हम सुन पाते हैं कहते हैं तारे गाते हैं स्वर्ग सुना करता यह गाना, पृथ्वी ने तो बस यह जाना, अगणित ओस-कणों में तारों के नीरव आंसू आते हैं कहते हैं तारे गाते हैं उपर देव तले मानवगण, नभ में दोनों गायन-रोदन, राग सदा उपर को उठता, आंसू नीचे झर जाते हैं कहते हैं तारे गाते हैं |
08-12-2010, 01:26 PM | #25 |
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क़दम बढाने वाले: कलम चलाने वाले / हरिवंशराय बच्चन
अगर तुम्हारा मुकाबला दीवार से है, पहाड़ से है, खाई-खंदक से, झाड़-झंकाड़ से है तो दो ही रास्ते हैं- दीवार को गिराओ, पहाड़ को काटो, खाई-खंदक को पाटो, झाड़-झंकाड़ को छांटो, दूर हटाओ और एसा नहीं कर सकते- सीमाएँ सब की हैं- तो उनकी तरफ पीठ करो, वापस आओ। प्रगति एक ही राह से नहीं चलती है, लौटने वालों के साथ भी रहती है। तुम कदम बढाने वालों में हो कलम चलाने वालो में नहीं कि वहीं बैठ रहो और गर्यवरोध पर लेख-पर-लेख लिखते जाओ। |
08-12-2010, 01:27 PM | #26 |
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Re: !!मेरी प्रिय कविताएँ !!
किस कर में यह वीणा धर दूँ / हरिवंशराय बच्चन
देवों ने था जिसे बनाया, देवों ने था जिसे बजाया, मानव के हाथों में कैसे इसको आज समर्पित कर दूँ? किस कर में यह वीणा धर दूँ? इसने स्वर्ग रिझाना सीखा, स्वर्गिक तान सुनाना सीखा, जगती को खुश करनेवाले स्वर से कैसे इसको भर दूँ? किस कर में यह वीणा धर दूँ? क्यों बाकी अभिलाषा मन में, विकृत हो यह फिर जीवन में? क्यों न हृदय निर्मम हो कहता अंगारे अब धर इस पर दूँ? किस कर में यह वीणा धर दूँ? |
08-12-2010, 01:27 PM | #27 |
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Re: !!मेरी प्रिय कविताएँ !!
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Pushp ki Abhilasha ------------------------------------------------------- Chaah nahin main surbala ke gehano mein gootha jaun Chaah nahin premi maala mein bindh pyaari ko lalchaun Chaah nahin samraaton ke shav par he hari daala jaun Chaah nahin devon ke sir par chadhun bhaagya par ithlaun Mujhe thod lena ban-mali, us path par dena tum phenk Matra-bhoomi par sheesh chadhane, jis path jayen veer anek. Written By: Makhanlal Chaturvedi
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08-12-2010, 01:27 PM | #28 |
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Re: !!मेरी प्रिय कविताएँ !!
कोई पार नदी के गाता / हरिवंशराय बच्चन
कोई पार नदी के गाता! भंग निशा की नीरवता कर, इस देहाती गाने का स्वर, ककड़ी के खेतों से उठकर, आता जमुना पर लहराता! कोई पार नदी के गाता! होंगे भाई-बंधु निकट ही, कभी सोचते होंगे यह भी, इस तट पर भी बैठा कोई, उसकी तानों से सुख पाता! कोई पार नदी के गाता! आज न जाने क्यों होता मन, सुन कर यह एकाकी गायन, सदा इसे मैं सुनता रहता, सदा इसे यह गाता जाता! कोई पार नदी के गाता! |
08-12-2010, 01:29 PM | #29 |
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कोशिश करने वालों की / हरिवंशराय बच्चन
लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की हार नहीं होती। नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है, चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है। मन का विश्वास रगों में साहस भरता है, चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है। आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती, कोशिश करने वालों की हार नहीं होती। डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है, जा जा कर खाली हाथ लौटकर आता है। मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में, बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में। मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती, कोशिश करने वालों की हार नहीं होती। असफलता एक चुनौती है, स्वीकार करो, क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो। जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम, संघर्ष का मैदान छोड़ मत भागो तुम। कुछ किये बिना ही जय जय कार नहीं होती, कोशिश करने वालों की हार नहीं होती। |
08-12-2010, 01:30 PM | #30 |
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कोई गाता मैं सो जाता / हरिवंशराय बच्चन
संस्रिति के विस्तृत सागर में सपनो की नौका के अंदर दुख सुख कि लहरों मे उठ गिर बहता जाता, मैं सो जाता । आँखों में भरकर प्यार अमर आशीष हथेली में भरकर कोई मेरा सिर गोदी में रख सहलाता, मैं सो जाता । मेरे जीवन का खाराजल मेरे जीवन का हालाहल कोई अपने स्वर में मधुमय कर बरसाता मैं सो जाता । कोई गाता मैं सो जाता मैं सो जाता मैं सो जाता |
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