07-01-2015, 09:14 PM | #21 |
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Re: खलील जिब्रान और उनकी रचनायें
क्योंकि प्रेम तुम्हें जिस प्रकार मुकुट पहनाता है उसी प्रकार सूली पर भी चढ़ाएगा. जिस प्रकार वह तुम्हारा विकास करता है, उसी प्रकार वह तुम्हारी कांट-छांट भी करता है. जिस प्रकार वह तुम्हारी उंचाई तक चढ़ कर सूर्य की किरणों में कांपती हुई तुम्हारी कोमल कोंपलों की भी देखभाल करता है, उसी प्रकार तुम्हारी गहराइयों में उतर कर, भूमि में गड़ी हुई तुम्हारी जड़ों को भी झकझोर डालता है. अनाज की बालियों की तरह वह तुम्हें अपने अंक में भर लेता है. तुम्हें स्वच्छ करने के लिए कूटता है. वह तुम्हारी भूसी दूर करने के लिए तुम्हें फटकारता है. तुम्हें पीस कर श्वेत बनता है. तुम्हें नरम बनाने के लिए तुम्हें गूंथता है. और अंततः वह तुम्हें अपनी पवित्र अग्नि में सेंकता है जिससे तुम प्रभु के थाल की पवित्र रोटी बन सको. प्रेम तुम्हारे साथ यह सारी लीला इसलिए करता है कि तुम अपने अंतरतम के रहस्यों को समझ सको और उसी ज्ञान द्वारा दिव्य हृदय का एक अंश बन सको. >>>
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07-01-2015, 09:16 PM | #22 |
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Re: खलील जिब्रान और उनकी रचनायें
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लेकिन यदि तुम भयवश केवल प्रेम की शान्ति और प्रेम के उल्लास की ही कामना करते हो तो तुम्हारे लिए यही अच्छा होगा कि तुम अपनी नग्नता को ढक लो प्रेम को कूटने वाले खलिहान से बाहर निकल जाओ और ऋतुहीन संसार में जा बसों, जहाँ तुम न पूरी तरह हँस पाओगे और न पूरी तरह रो पाओगे. प्रेम किसी को अपने आपके सिवा न कुछ देता है और न कुछ अपने आप के सिवा कुछ लेता है. प्रेम न किसी का स्वामी बनता है और न किसी को अपना स्वामी बनाता है. क्योंकि प्रेम प्रेम में ही पूर्ण है. जब तुम प्रेम करो तो यह मत कहो कि ‘ईश्वर मेरे हृदय में है.” बल्कि यह कहो कि “मैं ईश्वर के हृदय में हूँ.” और तुम यह कभी न सोचना कि तुम प्रेम का पथ निर्धारित कर सकते हो, क्योंकि प्रेम यदि तुमको अधिकारी समझता है तो स्वयं तुम्हारी राह निर्धारित करता है. >>>
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07-01-2015, 09:17 PM | #23 |
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Re: खलील जिब्रान और उनकी रचनायें
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प्रेम अपने आपको सम्पूर्ण करने के सिवा और कुछ नहीं चाहता. यदि तुम प्रेम करो और तुम्हारे हृदय में भावनाएं उठें तो वे यह होनी चाहियें – “मैं द्रवित हो सकूँ और एक बहते हुए झरने की तरह रात्रि को सुमधुर गीत से भर सकूँ. अत्यंत कोमलता की वेदना को अनुभव कर साकुं. अपने प्रेम की अनुभूति से मैं घायल हो सकूँ. अपनी इच्छा से और हँसते हँसते मैं अपना रक्त-दान कर सकूँ. पंख फैलाता हुआ हृदय ले कर मैं प्रभात वेला में जाग सकूँ तथा एक और प्रेममय दिन पाने के लिए धन्यवाद दे सकूँ. दोपहर को विश्राम कर सकूँ और प्रेम के परम आनंद में विलीन हो सकूँ. दिन ढलने पर कृतज्ञताभरा हृदय ले कर घर लौट सकूँ. और फिर रात्रि में प्रियतम के लिए प्रार्थना और होठों पर उसकी प्रशंसा के गीत लेकर सो सकूँ. **
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09-01-2015, 09:42 PM | #24 |
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Re: खलील जिब्रान और उनकी रचनायें
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चूहा और बिल्ली एक दिन संध्या समय क कवि की एक किसान से भेंट हो गयी. कवि एकान्तप्रिय था और किसान संकोची प्रकृति का था. फिर भी दोनों आपस में बातचीत करने लगे. किसान ने कहा, “मैं तुम्हें एक छोटी सी कहानी सुनाता हूँ, जिसे मैंने अभी हाल ही में सुना था. एक बार एक चूहा जाल में फंस गया.जब वह खुशी खुशी वहां राखी हुई मिठाई खा रहा था, तो पास ही एक बिल्ली भी खड़ी थी. चूहा पहले तो कुछ डरा लेकिन फिर उसने सोचा कि वह तो इस जाल में सुरक्षित है. तब वह बिल्ली उससे बोली, “मेरे मित्र, यह तुम्हारा अंतिम निवाला है.” “निस्संदेह,” चूहे ने उत्तर दिया, ”मुझे तो एक जीवन मिला है, इसलिए मुझे मरना भी एक बार पड़ेगा. पर अपनी बात सोचो. लोग कहते हैं कि तुम्हें नौ जीवन मिले हैं. इसका मतलब यह नहीं कि तुम्हें मरना भी तो नौ बार ही पड़ेगा?” इतना कह कर किसान ने कवि की ओर देख कर पूछा, “क्या तुम्हें यह कहानी अजीब नहीं लगती?” कवि ने इसका कोई उत्तर नहीं दिया, लेकिन अपने आप से यह कहता हुआ आगे चल दिया कि निस्संदेह, हम भी उस बिल्ली के समान हैं. हमें नौ जीवन प्राप्त हैं. निस्संदेह नौ जीवन, हमें मरना भी नौ बार ही पड़ेगा, नौ बार. कदाचित इससे तो अच्छा था कि हमें भी चूहे की तरह एक ही जीवन मिला होता - जाल में फंसा हुआ एक किसान का जीवन, हाथों में अपना अंतिम ग्रास लिए हुए. क्या हम जंगल में रहने वाले शेर जैसे जंगली जानवरों के ही भाई-बंद नहीं हैं?
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09-01-2015, 09:44 PM | #25 |
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Re: खलील जिब्रान और उनकी रचनायें
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ईश्वर की खोज दो व्यक्ति एक घाटी में घूम रहे थे. उनमे से एक ने पहाड़ की ओर इशारा करते हुए कहा, “वहां देख रहे हो. वहां पर एक कुटी है. यहाँ एक व्यक्ति रहता है जिसने बहुत दिनों से वैराग्य ले रखा है. वह ईश्वर की खोज में लगा हुआ है. संसार में उसकी और कोई कामना नहीं है.” दूसरे व्यक्ति ने कहा, “जब तक यह व्यक्ति इस कुतिया का त्याग कर के हमारे संसार में वापिस नहीं आ जाता, तब तक उसे चैन नहीं मिलेगा. ईश्वर की प्राप्ति तो बाद की बात है. उसे चाहिए कि वह हम लोगों के सुख-दुःख का भागी बने, हमारे उत्सवों में हमारे साथ नाचे और गाये तथा गमीं में रोने वाले व्यक्तियों का साथ दे.” पहला व्यक्ति इस बात को सुन कर कुछ संतुष्ट हुआ किंतु कुछ सोच कर बोला, “जो तुम कह रहे हो, मैं उससे सहमत हूँ, फिर भी मैं मानता हूँ कि यह सन्यासी एक सत्पुरुष है और उन लोगों की तुलना में जो अपने गुणों का प्रदर्शन करते रहते हैं, वह अपने को छिपा कर भी संसार का अधिक उपकार करते हैं.”
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13-01-2015, 09:37 PM | #26 |
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Re: खलील जिब्रान और उनकी रचनायें
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मेले में एक जगह मेला लगा हुआ था जिसमे भाग लेने के लिए किसी देहात से एक लडकी आयी जिसका चेहरा गुलाब के फूल की तरह खिला हुआ था, जिसके बालों में सूर्यास्त की छटा और होठों पर प्रातःकाल की ताजगी भरी मुस्कान थी. वहाँ आये हुए मनचले लोगों ने जैसे ही उसे वहां देखा, वे उसके चारों ओर मंडराने लगे. कोई उसके साथ नाचना चाहता था और कोई उसके सम्मान में भोज का प्रस्ताव रख रहा था. वे सभी नौजवान उसके गुलाबी होठों को चूम लेना चाहते थे. आखिर वह एक मेला ही तो था. लेकिन बेचारी लडकी यह देख कर एक दम सकपका गयी. उसे नवयुवकों का यह व्यवहार अच्छा नहीं लगा. कितनो को उसने बुरा-भला कहा और कुछ को तो चपत भी लगानी पड़ी. हार कर वह उनसे पीछा छुड़ा कर भागी. घर वापिस आते हुए वह सोचती रही, “मैं तो इनसे तंग आ गयी. कितने असभ्य लोग थे. कितना असह्य था उन लोगों का व्यवहार.” उस मेरे और उन युवकों के बारे में सोचते हुए उस नवयुवती ने एक वर्ष बिता दिया. इस बार वह फिर मेले में आयी- उसी तरह गुलाब के फूलों जैसे गाल लिए और बालों में सूर्यास्त की सुनहरी किरणे और होठों पर सूर्योदय की मुस्कान लिए हुए. वही नवयुवक जब उसके सामने आये तो उन्होंने अपनी निगाहें फेर लीं, उसे देखा तक नहीं. उसे सारा दिन आलेले रहना पड़ा. किसी ने उसे पूछा तक नहीं. शाम को घर लौटते समय वह मन ही मन बड़बड़ाती जा रही थी, “मैं तो तंग आ गयी. कितने असभ्य और जंगली है ये लोग. कितना असह्य था उनका व्यवहार.”
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13-01-2015, 09:39 PM | #27 |
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Re: खलील जिब्रान और उनकी रचनायें
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वज्रपात एक दिन आँधी के साथ खूब तेज पानी बरसा. एक इसाई पादरी गिरजाघर में बैठा था. इतने में वहां एक स्त्री आयी जो ईसाई नहीं थी. उसने पादरी के सामने खड़े हो कर कहा, “मैं इसाई नहीं हूँ. क्या मेरे लिए भी नरक की ज्वाला से बचने का कोई उपाय है?” पादर ने स्त्री की ओर देख कर कहा, “नहीं, मुक्ति केवल उनके लिए है, जिन्होंने इसाई धर्म में विधिवत दीक्षा ली है.” पादरी के मुँह से यह शब्द अभी निकले ही थे कि अचानक एक ज़ोरदार आवाज के साथ आकाश से बिजली गिरी जिसमे गिरजाघर जल कर राख हो गया और चारों ओर आग ही आग दिखाई देने लगी. नगर के बाशिंदे दौड़े दौड़े वहां आये और उन्होंने बचाव कार्य शुरू कर दिया. उन लोगों ने उस स्त्री को तो बचा लिया लेकिन पादरी को वे मौत के मुंह से नहीं बचा सके.
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13-01-2015, 10:09 PM | #28 |
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Re: खलील जिब्रान और उनकी रचनायें
Bahut hi khubsurat kahaniyaan
Dhnywad rajneesh ji
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************************************ मेरी चित्रशाला : दिल दोस्ती प्यार ....या ... . तुमने मजबूर किया हम मजबूर हो गये ,... तुम बेवफा निकले हम मशहूर हो गये .. एक " तुम " और एक मोहब्बत तेरी, बस इन दो लफ़्ज़ों में " दुनिया " मेरी.. ************************************* |
20-01-2015, 08:12 PM | #29 |
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Re: खलील जिब्रान और उनकी रचनायें
आप इस सूत्र को पसंद करते हैं इसके लिए आपका हार्दिक धन्यवाद, मित्र देवराज जी.
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20-01-2015, 08:15 PM | #30 |
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Re: खलील जिब्रान और उनकी रचनायें
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आस्तिक और नास्तिक एक ही तो हैं साभार: रामकुमार “अंकुश” अफकार नामक एक प्राचीन नगर में किसी समय दो विद्वान् रहते थे. उनके विचारों में बड़ी भिन्नता थी. एक दुसरे की विद्या की हंसी उड़ाते थे. क्योंकि उनमे से एक आस्तिक था और दूसरा नास्तिक. एक दिन दोनों बाजार में मिले और अपने अनुयायियों की उपस्थिति में ईश्वर के अस्तित्व पर बहस करने लगे घंटों बहस करने के बाद एक दुसरे से अलग हुए. उसी शाम नास्तिक मंदिर में गया और बेदी के सामने सिर झुका कर अपने पिछले पापों के लिए क्षमा याचना करने लगा। ठीक उसी समय दूसरे विद्वान ने भी, जो ईश्वर की सत्ता में विश्वास करता था, अपनी पुस्तकें जला डालीं, क्योंकि अब वह नास्तिक बन गया था... >>>
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