06-08-2013, 09:29 PM | #291 |
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Re: छींटे और बौछार
मनः पटल पर यादों के, चित्र दिखाया मुझको चित्रों में थे मित्र अनेकों अग्रज और अनुज भी स्मृतियों ने कभी हँसाया कभी रुलाया मुझको
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
07-08-2013, 09:38 AM | #292 |
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Re: छींटे और बौछार
Sidhe Aur saral shabdon men baat kahne ki aapki ada Ka koi sani nahin
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घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
07-08-2013, 07:35 PM | #293 | |
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Re: छींटे और बौछार
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मेरे हृदय के रीतेपन का एक कारण आपकी अनुपस्थिति भी है बन्धु !!
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07-08-2013, 07:55 PM | #294 |
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Re: छींटे और बौछार
हीरो, ढेबर, अमित की तिकड़ी, साथ जुड़े थे कुर्रम जी
मुन्ने, तारा, शाम, अक्श जी, और भले से जलवा जी गुल्लू, विक्रम, अभय, नमन 'जय', भोलू व कल्याण बारी - बारी छूटे रोहित , खालिद, जीत, सिकंदर जी!!
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08-08-2013, 12:18 AM | #295 | |
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Re: छींटे और बौछार
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always watch this thread because this is close to my heart.
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घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
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09-08-2013, 06:25 PM | #296 | |
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Re: छींटे और बौछार
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हृदय वीणा बज उठी, पंक्तियों पे दृष्टि पडी मन निनाद कर उठा, धड़कने मचल उठी शब्द कंठ में फँसे,'जय' अश्रुधार बह चली आपके स्नेह से अन्तर-गागर छलक उठी
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10-08-2013, 07:55 PM | #297 |
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Re: छींटे और बौछार
कविता 'जय' अनबूझ पहेली, कविता गीली रेत कविता बहती धार नदी सी, कविता उर्वर खेत कविता घाव हरे करती है. कविता दुःख हरती कविता मन के भाव उकेरे, कविता जीवन देत
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10-08-2013, 08:53 PM | #298 |
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Re: छींटे और बौछार
वर्षा की बूँद गिरी, वसुधा गुनगुना उठी
धरती के गीत सुन प्रकृति मुस्कुरा उठी हँसती प्रकृति देख मानव भी हँस पडा झूमते हृदय में 'जय' विरह वेदना उठी
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11-08-2013, 08:19 PM | #299 |
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Re: छींटे और बौछार
वह देखो अँधियारे पथ पर, सरपट दौड़ रहा है
आधे मन का बोझ लिए वो खटपट दौड़ रहा है भूखे बच्चे की स्मृति से ऊर्जा उसे मिली 'जय' अन्न नहीं है उदर में उसके, झटपट दौड़ रहा है सूत्र भ्रमण करते हुए मुझे उत्साहित करने के लिए आप सभी बंधुओं का हृदय से आभार।
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14-08-2013, 06:34 PM | #300 |
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Re: छींटे और बौछार
हम अपनी कब्र के जानिब, दो कदम तेरे ला पाए
कुछ लम्हों की दास्ताँ, 'जय' तुमको सुना पाए ! अश्कों से तर-ब-तर रही हो, गोया मेरी ज़िन्दगी बरसों के बाद आज खुल कर, हम मुस्कुरा पाए!!
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