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Old 14-08-2013, 06:35 PM   #301
jai_bhardwaj
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शायद मेरा पागलपन है, और नहीं तो क्या कह दूँ
मेरे मन का अपनापन है और नहीं तो क्या कह दूँ
समर में हारे होय पराजय, अपनों से हारा है 'जय'
इसे पराजयगान कहूँ या तुम्ही कहो मैं क्या कह दूँ
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
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Old 15-08-2013, 05:00 PM   #302
rajnish manga
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Originally Posted by jai_bhardwaj View Post

शायद मेरा पागलपन है, और नहीं तो क्या कह दूँ
मेरे मन का अपनापन है और नहीं तो क्या कह दूँ
समर में हारे होय पराजय, अपनों से हारा है 'जय'
इसे पराजयगान कहूँ या तुम्ही कहो मैं क्या कह दूँ
जीवन की शतरंज बिछी है, श्वेत -श्याम हैं वर्ग
जीवन के इस महाकाव्य में, अपने छंद औ सर्ग

जीना-मरना, विजय-पराजय, कड़वा-मीठा द्वंद्व
नर्क मिला तो यहीं मिलेगा, यहीं मिलेगा स्वर्ग

अपनापन है पागलपन, पागलपन मय अपनापन
सूफ़ी का पागलपन ही है निशात-स्वर्ग-गुलमर्ग
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Old 15-08-2013, 06:50 PM   #303
jai_bhardwaj
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जीवन की शतरंज बिछी है, श्वेत -श्याम हैं वर्ग
जीवन के इस महाकाव्य में, अपने छंद औ सर्ग

जीना-मरना, विजय-पराजय, कड़वा-मीठा द्वंद्व
नर्क मिला तो यहीं मिलेगा, यहीं मिलेगा स्वर्ग

अपनापन है पागलपन, पागलपन मय अपनापन
सूफ़ी का पागलपन ही है निशात-स्वर्ग-गुलमर्ग
बन्धु रजनीश, निःशब्द होने के बाद बड़ी कठिनाई से ये शब्द-पुष्प चुन सका हूँ आपकी उपरोक्त प्राणबोधी (मुझे तो कालजयी प्रतीत हो रही है) रचना के लिए .... शत शत अभिनन्दन के साथ सादर अर्पित हैं .......



जीवन का यथार्थ कह डाला , सरल - सौम्य भाषा में
तीन रंग से छन्द सजाये, देश-प्रेम की अभिलाषा में
नतमस्तक हो गया आज 'जय', फिर से हे रजनीश!
चमक उठे हो प्रखर सूर्य बन,मन की घोर निराशा में
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
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Old 15-08-2013, 09:19 PM   #304
rajnish manga
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Originally Posted by jai_bhardwaj View Post

बन्धु रजनीश, निःशब्द होने के बाद बड़ी कठिनाई से ये शब्द-पुष्प चुन सका हूँ आपकी उपरोक्त प्राणबोधी (मुझे तो कालजयी प्रतीत हो रही है) रचना के लिए .... शत शत अभिनन्दन के साथ सादर अर्पित हैं .......

जीवन का यथार्थ कह डाला , सरल - सौम्य भाषा में
तीन रंग से छन्द सजाये, देश-प्रेम की अभिलाषा में
नतमस्तक हो गया आज 'जय', फिर से हे रजनीश!
चमक उठे हो प्रखर सूर्य बन,मन की घोर निराशा में
आकर्षक व प्रभावशाली शब्दों से गुंथे हुए आपके उदार और आत्मीयता से परिपूर्ण उद्गार मुझ जैसे एक सामान्य व्यक्ति को विचलित करने के लिये बहुत हैं. मेरे पास शब्द नहीं हैं कि मैं इनका योग्य उत्तर दे सकूं. इस महकते हुए गुलदस्ते के लिये मैं आपका अपने हृदय की गहराई से आभार व्यक्त करता हूँ, जय भाई जी.


उपरोक्त चतुष्पदी के लिये कृपया मेरा विनम्र नमन स्वीकार करें.

Last edited by rajnish manga; 15-08-2013 at 09:22 PM.
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Old 18-08-2013, 08:25 PM   #305
jai_bhardwaj
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हृदय कलश जब छलकेगा तो नयनों से नीर बहेगा ही
मन अन्तर जब दहकेगा तब जिह्वा से तीर चलेगा ही
क्रोध,वियोग,प्रेम और पीड़ा, चित्त को 'जय' बहकाते हैं
क्षमा, दया और त्याग हों साथी, तो मन धीर धरेगा ही
__________________
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Old 19-08-2013, 12:17 AM   #306
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हृदय कलश जब छलकेगा तो नयनों से नीर बहेगा ही
मन अन्तर जब दहकेगा तब जिह्वा से तीर चलेगा ही
क्रोध,वियोग,प्रेम और पीड़ा, चित्त को 'जय' बहकाते हैं
क्षमा, दया और त्याग हों साथी, तो मन धीर धरेगा ही
बहुत सुन्दर, जय जी. इस रचना में आपने जीवन का इतना बड़ा सत्य उजागर किया है कि पढ़ कर मन वीणा के तार झंकृत हो गये. कृपया मेरा धन्यवाद और बधाई स्वीकार करें.
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Old 22-08-2013, 08:29 PM   #307
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बूढ़े और कांपते हाथों ने, कल पकड़ी एक कलाई
युगल नयन तब बरस पड़े,जब राखी एक उठायी
शब्द रहित एक स्मृति गाथा, पढी-सुनी दोनों ने
बहना अस्सी पार कर चुकी, नब्बे का 'जय' भाई

शब्द रहित = मूक भाषा में
स्मृति गाथा = भूली बिसरी स्मृतियाँ
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Old 22-08-2013, 08:31 PM   #308
jai_bhardwaj
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बहुत सुन्दर, जय जी. इस रचना में आपने जीवन का इतना बड़ा सत्य उजागर किया है कि पढ़ कर मन वीणा के तार झंकृत हो गये. कृपया मेरा धन्यवाद और बधाई स्वीकार करें.
बहुत बहुत आभार बन्धु।
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Old 23-08-2013, 08:54 PM   #309
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जब भी कभी उन्माद के पल आ गए
आवेश के अति सघन बादल छा गए
क्रोध की बूँदों से जलमग्न रिश्ते हो गए
सम्बन्ध-च्युत होते ही 'जय' घबरा गए
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Old 31-08-2013, 07:55 PM   #310
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Default Re: छींटे और बौछार

जब तुम्हें दिया तो अक्षत था
सम्पूर्ण चूर्ण बिखरा है मन

भूकंप हुआ धरती खिसकी
क्षण भर में बिखर गया जीवन
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