11-02-2015, 11:21 PM | #301 |
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Re: इधर-उधर से
साभार: आनंदी रावत आज, मैंने देखा कुछ बच्चों को खेलते उपवन में, सब प्रफुल्लित, सभी प्रसन्नचित और मस्त खेल में, भिन्न चेहरे,कपडे,भाषा, पर फिर भी एक आँगन में, न कोई चिंता, अहम्, या बैर, सब खिले मुस्कान में, क्या हम कुछ सीखें इन बच्चों से अपने जीवन में? क्यों न बना दें बड़ों की दुनियां भी इनकी जैसी हम? तनावमुक्त,आशावादी,मिलनसार बन, शांत हो मन में, धर्म, भाषा,प्रांत की जगह मानवता जगे जन जन में।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
11-02-2015, 11:24 PM | #302 |
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Re: इधर-उधर से
यह सब सीखें बच्चों से
साभार: अभिषेक मुद्गल गुस्से में आपने बच्चे को डांट दिया और वो नाराज होकर घर के सूने पड़े कोने में जाकर बैठ गया। दस मिनट इंतजार किया,कोई मनाने नहीं आया तो आपके आगे पीछे डोलने लगा। आपने फिर भी मनाने का प्रयास नहीं किया तो किसी न किसी बहाने आपसे बात करने की कोशिश करेगा। आपने हद ही कर दी और नहीं बोले तो खुद ही कान पकड़कर आपके सामने मूर्ति की तरह खड़ा हो जाएगा और बड़ी ही मासूमियत से बोलेगा,आप मुझसे "सॉरी" बोल रहे हैं ना? आपका सारा गुस्सा,अहं और आक्रोश ताश के पत्तों की तरह बिखर जाएगा। निश्चित रूप से आप उसे गले लगाएंगे और भविष्य में गलती नहीं करने की नसीहत देंगे। इतना ही नहीं,डांटने या पीटने का अपराध बोध भी आप महसूस करेंगे। इस बच्चे को किसी ने यह कला नहीं सिखाई कि रूठे हुए अपनों को कैसे मनाना है लेकिन हम बड़ी आसानी से बच्चों से बहुत कुछ सीख सकते हैं।
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11-02-2015, 11:25 PM | #303 |
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Re: इधर-उधर से
यह सब सीखें बच्चों से
माफी में शर्म नहीं: बच्चों और बड़ों में यही अंतर है कि विवाद होने के बाद बच्चा बिना किसी अहं के आपके सामने माफी मांगने के लिए खड़ा हो जाता है लेकिन समझदार कहे जाने के बाद भी बड़े किसी से माफी मांगने को तैयार नहीं होते। बच्चा तो यह चिंतन भी नहीं करता कि वो गलत था या नहीं? फिर भी शांत रहकर माफी मांगने के लिए तैयार रहता है। इसके विपरीत बड़े मन ही मन अपनी गलती स्वीकार करने के बाद भी बात को खत्म करने की पहल नहीं करते। बच्चों की तरह अगर गलत को गलत मान लेने से विवाद खत्म होता है तो इससे सरल और सुगम रास्ता क्या हो सकता है? न चर्चा,न बहस: ऎसा कई बार होता है कि गलती एक बच्चा करता है और डांट दूसरे को पड़ जाती है। कई बार तो दूसरे के हिस्से की पिटाई भी हो जाती है। इसके बाद भी बच्चा न तो अपने अभिभावक के सामने ज्यादा तर्क करता है और न अपना स्पष्टीकरण देने का ज्यादा प्रयास करता है। जब उसे लगता है कि हल्का-फुल्का प्रतिवाद करते ही पापा-मम्मी ज्यादा गुस्सा हो रहे हैं तो वो स्वयं को वहीं रोक लेता है। अभिभावक भी उसके मौन चेहरे को देखकर शांत हो जाते हैं। थोड़ी देर में मामला खत्म हो जाता है। दूसरी तरफ स्वयं अभिभावक का झगड़ा होता है तो तर्क के साथ कुतर्क करने में भी पीछे नहीं रहते। बस बोलते ही चले जाते हैं,ऎसे में सामने वाले का गुस्सा भी सातवें आसमां पर पहुंच जाता है। मुद्दा पीछे रह जाता है और फिजूल की बातों पर विवाद बढ़ जाता हैं। अंतत: बोलचाल के रास्ते ही खत्म हो जाते हैं। बच्चा किसी भी सूरत में बोलचाल के रास्ते बंद नहीं करता। वो हर मामले में बड़ों से बातचीत जारी रखेगा ताकि अपनी बात को कभी न कभी मनवा सके।
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11-02-2015, 11:27 PM | #304 |
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Re: इधर-उधर से
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पूरी तरह समझौतावादी: इक्का-दुक्का नहीं बल्कि दर्जनों बार आप अपने बच्चों की मांग को पूरा नहीं कर पाते। वो दस मांग करता है तो आम परिवार दो-तीन ही पूरी कर पाते हैं। बच्चे आसानी से समझ जाते हैं कि उनकी हर मांग स्वीकार नहीं हो सकती। खिलौनों के शोरूम में उसने हजार रूपए के खिलौने की तरफ अंगुली की और आपने दो सौ रूपए वाला दिलाया। थोड़े से ना नुकर के बाद वो उसे स्वीकार कर लेता है। निस्संदेह उसके मन में यह चालाकी भी नहीं होती कि हजार रूपए वाले की मांग करो ताकि दो-तीन सौ वाला खिलौना मिल ही जाए। वो तो निश्छल भाव से स्वीकार कर लेता है कि आपने जो दिलाया है वही सही है। दूसरी तरफ हम अपनी हर मांग को शत प्रतिशत पूरा करवाने के लिए अड़ जाते हैं। कई मुद्दों पर तो परिवार में दरार आ जाती है क्योंकि हम छोटी-छोटी बातों पर समझौता करने के लिए तैयार नहीं है। खिलखिलाते चेहरे: किसी भी अनजान बच्चे की तरफ आप एक बार मुस्कुराइए,वो अनजान बना रहेगा। दूसरी बार मुस्कुराइए तो आपके साथ मुस्कुराने लगेगा,तीसरी बार में तो आपसे ज्यादा खिलखिलाएगा। हंसने और हंसाने की हरकतें उसे बहुत पसंद आती हैं। इसके विपरीत कोई रूंआसा और गंभीर चेहरा अपने सामने आते ही वो घबरा जाता है,छिपने लगता है। दरअसल,बच्चों को खिलखिलाना ही पसन्द है। वो अपने जीवन में सिर्फ हंसने के रास्ते ढूंढते हैं। उन पगडंडियों पर चलना पसन्द ही नहीं करते,जो मन को उदास करती हैं,डराती है। हम बच्चों से यह सीख क्यों नहीं लेते कि सिर्फ हंसने और हंसाने के बहाने ढूंढें।
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11-02-2015, 11:35 PM | #305 |
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Re: इधर-उधर से
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अनुशासन ऎसा कितनी बार हुआ है कि आपने कोई गलत काम किया और आपके ही बच्चे ने टोक दिया। जैसे रेडलाइट क्रॉस करते ही उसने रोका। हेलमेट नहीं पहना तो वो याद दिलाया,कमरे की लाइट कई बार वो ही बंद करवाते हैं। खुली पड़ी टोंटी से बहते पानी को वो ही बंद करता है। और तो और आपके कपड़े साफ नहीं है तो वो ही बोलेगा कि यह क्या पहन लिया। दरअसल,बच्चों को हमने जो संस्कार दिए,उन्होंने आत्मसात कर लिए और हम खुद उनसे किनारे हो रहे हैं। बिना किसी शर्म और संकोच के आत्मचिंतन करें तो साफ हो जाएगा कि हमसे ज्यादा अनुशासित तो हमारे बच्चे हैं। प्रतिदिन समय पर उठना,स्कूल जाना,घर आना,होमवर्क करना,नियत समय पर खेलना और इस पूरी दिनचर्या के बीच हर रोज एक जैसी गतिविधियां। यहां तक कि छुट्टी के दिनों में भी बच्चे अपने हिसाब से अपना कार्यक्रम तय कर लेते हैं। उसी के हिसाब से चलने का प्रयास भी करते हैं। इसके विपरीत बड़े अनुशासन तोड़ने में अपनी शान समझते हैं। बच्चा न तो स्वयं नियम तोड़ता है और न दूसरों का नियम तोड़ना सहन करता है।
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11-02-2015, 11:39 PM | #306 |
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Re: इधर-उधर से
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समझने की ललक: मोबाइल,लैपटॉप हो या फिर आई-पैड,आपसे ज्यादा आपके बच्चों को समझ है। हम यह कहकर अपनी लापरवाही छिपाने का प्रयास करते हैं कि बच्चे पढ़ाई छोड़कर मोबाइल या आई पैड छेड़ते हैं। दरअसल,उनमें समझने की ललक है,वो हर चीज को देखना-जानना चाहते हैं। इसके विपरीत हम अपने मोबाइल में सिर्फ उन्हीं एप्लीकेशन का उपयोग करते हैं,जिनकी हमें नियमित जरूरत है। मोबाइल कम्पनी ने हमें और क्या सुविधाएं दी हैं,हम जानने की कोशिश तक नहीं करते क्योंकि सीखने की इच्छा शक्ति को हम खुद ही खत्म कर चुके हैं। बच्चे मोबाइल और आई पैड का शानदार उपयोग कर लेते हैं। कारण साफ है कि वो सब कुछ जानना और उपयोग में लेना चाहते हैं। बच्चों की तरह हमें भी तमाम उपकरणों के बारे में सामान्य और विशेष जानकारियां होनी चाहिए। सवाल दर सवाल: कई बार हम बच्चे के सवाल दर सवाल पूछने से परेशान हो जाते हैं। एक सवाल का जवाब दिया नहीं कि दूसरा तैयार। वो अपने मन में उठ रही हर जिज्ञासा को शांत करना चाहता है। हमारे जवाब से एक और सवाल निकालकर वो अपनी जिज्ञासा शांत करना चाहता है। एक ही मुद्दे पर इतने सवालों की झड़ी लगाएगा कि फिर उसमें पूछने के लिए कुछ नहीं रहेगा। अगर आप इसे पूरा नहीं करेंगे तो वो दूसरे के पास जाएगा। पापा नहीं तो दादा और दादा नहीं तो दादी।
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11-02-2015, 11:45 PM | #307 |
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Re: इधर-उधर से
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कहीं न कहीं से तो जवाब लाएगा ही: अब तो बच्चे अपने सवाल "गूगल" पर डालने लगे हैं। इसके विपरीत बड़े हर उस सवाल को टाल जाते हैं जो उनके लिए उस वक्त काम का नहीं है। हो सकता है कि जीवन के किसी और मोड़ पर वो जानकारी काम आ जाए। हम सवाल टाल जाते हैं और बच्चा हमें जवाब देने के लिए मजबूर करता है। क्यों न हम भी मन में उठे हर सवाल का जवाब ढूंढने का सिलसिला शुरू करें। सुनने की आदत दो पीढियों में हमेशा पटती है,बुजुर्ग और बच्चों में। दरअसल,बुजुर्ग अपने जीवन के अनुभव बांटना चाहते हैं लेकिन युवा और प्रौढ़ पीढ़ी के पास सुनने के लिए वक्त नहीं है। दूसरी तरफ बच्चे बड़ों की दुनिया के बारे में बहुत कुछ जानना चाहते हैं। ऎसे में दादा-दादी के अनुभव उनके लिए पाठ साबित होते हैं। वो तल्लीन होकर बुजुर्गो की बात सुनते हैं और मन ही मन सबक भी सीख लेते हैं। कई बार बड़ों की बातें ही बच्चों के लिए जीवन संघर्ष का मार्ग प्रशस्त कर देती हैं। उन अनुभवों से ही वो अपने जीवन का रास्ता तय करने का मानस बना लेते हैं। अभाव में नैया पार लगाने की कला तो दादा-दादी ही बता पाते हैं। युवा और प्रौढ़ पीढ़ी भी अगर बुजुर्गो के साथ बैठना शुरू कर दे तो निश्चित रूप से कई परेशानियां दूर हो जाएंगी। **
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12-02-2015, 01:25 PM | #308 |
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Re: इधर-उधर से
डेविड और गोलियेथ
किसी गाँव में गोलिएथ नामक दैत्य बार-बार आकर वहां के निवासियों को खा जाता था. एक दिन गाँव में डेविड नामक 15 वर्षीय गड़रिया अपने मित्र से मिलने के लिए आया. उसने अपने मित्र से पूछा – “तुम सभी मिलकर उस दैत्य का सामना क्यों नहीं करते?” भयभीत मित्र ने डेविड से कहा – “लगता है कि तुमने अभी गोलिएथ को देखा नहीं है. वह इतना विशाल है कि हम उसे मार नहीं सकते!” डेविड ने कहा – “अच्छा! यदि वह वाकई बहुत विशाल है तो इतना निश्चित है कि उसपर लगाया गया निशाना चूक नहीं सकता”. और कहते हैं कि डेविड ने एक दिन गोलिएथ पर गुलेल से निशाना साधकर उसे गिरा दिया और पलक झपकते ही उसे अपनी तलवार से मार दिया. इस कहानी में डेविड की शारीरिक शक्ति नहीं बल्कि उसके नज़रिए ने उसे गोलिएथ पर विजय दिलाई.
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13-02-2015, 05:28 PM | #309 |
Diligent Member
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Re: इधर-उधर से
sundar ati sundar ..
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14-02-2015, 12:09 AM | #310 |
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Re: इधर-उधर से
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