24-10-2011, 07:29 PM | #32181 |
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Re: दोस्तों की "चौपाल".
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24-10-2011, 07:30 PM | #32182 |
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Re: दोस्तों की "चौपाल".
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24-10-2011, 07:32 PM | #32183 |
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Re: दोस्तों की "चौपाल".
चलता हूँ दोस्तों. शुभ रात्रि. और आप सबको शुभ दीपावली.
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24-10-2011, 07:33 PM | #32184 |
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Re: दोस्तों की "चौपाल".
अरे मनीष जी इतनी जल्दी आये और चल दिए..
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24-10-2011, 07:34 PM | #32185 |
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Re: दोस्तों की "चौपाल".
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24-10-2011, 07:38 PM | #32186 |
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Re: दोस्तों की "चौपाल".
विषय गंभीर है, पर थोड़े में कहने की कोशीश करता हूँ।
१. स्कूल का सिलेबस हल्का होता जा रहा है, कुछ खास पढने-समझने के लिए है नहीं। २. १९९१ के आर्थिक उदारी-करण की वजह से जो शहरी लोगों में संपनता आई, उसने इन बच्चों के घरों में अचानक खुब सारी सुविधाएँ जुटा दीं ३. समाज का खुला-पन बड़े-छोटे के रिश्ते को बराबरी के रिश्ते में बदल दिया। (मैं अपनी छोटी बहन से आज भी "आप" में बात करता हूँ, पर मेरी बेटी मुझे "तुम" बोलती है) ४. बच्चों के माता-पिता के पास समय की कमी हो गई है जिसको वे पैसे से पूरा करते हैं, और ज्यादातर बच्चे इस स्थिति का लाभ (गलत तरीके से) उठाते हैं ५. अब के बच्चों को पता है कि वे एजुकेशन लोन की वजह से बी०ई० और एम०बी०ए० तो हो हीं जाएँगे, सो पढ़ने की कोई वजह नहीं है । सब आसान हो गया है जरा गौर से आज के cbse की पढ़ाई और सिलेबस को देखिए और अपने दिन याद कीजिए, इतने से भी आपको सब समझ में आ जाएगा। |
24-10-2011, 07:40 PM | #32187 |
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Re: दोस्तों की "चौपाल".
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24-10-2011, 07:46 PM | #32188 |
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Re: दोस्तों की "चौपाल".
अब मुझे भी विदा दीजिए.मैं भी जाना चाहता हूँ। शुभ रात्रि...
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24-10-2011, 07:48 PM | #32189 |
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Re: दोस्तों की "चौपाल".
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24-10-2011, 07:49 PM | #32190 |
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Re: दोस्तों की "चौपाल".
इसी हालात पर मैंने कभी एक कविता लिखी थी, यहां प्रस्तुत है उसका एक अंश -
बाज़ार जाती बेटी को मैंने दिए रुपए और कहा, लौटते समय केऍफ़सी से चिकन लेती आना शायद उनहत्तर रुपए का आएगा उसने पूछा, उनहत्तर माने सिक्सटी नाइन कहते हुए सहसा मेरी नज़र टीवी पर थी, जहां चमक रहा था 'इंडिया शाइनिंग' और लुप्त हो रहा था 'मेरा भारत महान' !
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