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Old 28-01-2015, 01:29 PM   #341
VARSHNEY.009
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Default Re: व्यंग्य सतसई

इधर भी गधे हैं उधर भी गधे हैं,
जिधर देखता हूं गधे ही गधे हैं।
गधे हंस रहे आदमी रो रहा है,
हिन्दोस्तां में ये क्या हो रहा है।
जवानी का आलम गधों के लिए है,
ये संसार सालम गधों के लिए है।
जमाने को उनसे हुआ प्यार देखो,
गधों के गले में पड़े हार देखो।
ये सर उनके कदमों पे कुरबान कर दो,
हमारी तरफ से ये ऐलान कर दो।
कि एहसान हम पे है भारी गधों के,
हुए आज से हम पुजारी गधों के।
पिलाए जा साकी पिलाए जा डट के,
तू व्हिस्की के मटके पे मटके।
मैं दुनिया को अब भूलना चाहतू हूं,
गधों की तरह फूलना चाहता हूं।
घोड़ों को मिलती नहीं घास देखो,
गधे खा रहे हैं च्यवनप्राश देखो।
यहां आदमी की कहां कब बनी है,
ये दुनिया गधों के लिए ही बनी है।
जो गलियों में डोले वो कच्चा गधा है,
जो कोठे पे बोले वो सच्चा गधा है।
जो खेतों में दीखे वो फसली गधा है,
जो माइक पर चीखे वो असली गधा है।
मैं क्या बक रहा हूं ये क्या कह गया हूं,
नशे की पिनक में कहां बह गया हूं।
मुझे माफ करना में भटका हुआ हूं,
ये ठर्रा था भीतर जो अटका हुआ था!
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