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Old 01-11-2010, 12:24 AM   #31
jai_bhardwaj
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जान लेनी ही थी तो कह दिया होता
मुस्कराने की क्या जरूरत थी

यह हालिया बयान तुमने पढ़ा नहीं है ?
'जय' फिर अब किसी से बावफा नहीं है !!
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

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Old 01-11-2010, 12:30 AM   #32
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मेरे रोजे हराम हो गए , 'जय' तेरे ही कारण !
जालिम ने मुझे फिर से गम को खिला दिया //
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Old 02-11-2010, 11:50 PM   #33
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अगर मैं डाल से टूटा तो, बोलो फिर कहाँ जाऊँ
तुम्हारा साथ यदि छूटा तो, बोलो फिर कहाँ जाऊँ
तुम्हारी आँख में स्थिर अभी, 'जय' आंसू बन करके
पलक झपकाओगे यदि तो, बोलो फिर कहाँ जाऊँ //
__________________
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Old 03-11-2010, 12:07 AM   #34
jai_bhardwaj
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तुम्हारी आँख में आंसू तो मेरी आँख में भी हैं
मगर दोनों के आंसू में थोड़ी 'जय' खराबी है /
तनिक महसूस करलो तुम इन्हें हलके से छू करके
तुम्हारे आंसू ठन्डे हैं, मेरे आंसू में गर्मी है //
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Old 03-11-2010, 12:30 AM   #35
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जय भैया ! एक दम झकास सूत्र है आपका. मजा आ गया, झकजोर दिया आपने.
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Old 03-11-2010, 04:03 AM   #36
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जयभाई......सूत्र की सुरुआत धमाकेदार की है और अब तो अनजाना जी का साथ भी है तो उमीद करते है की एक से बढकर एक प्रस्तुति की भरमार होंगी......
धन्यवाद.
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Old 03-11-2010, 06:13 PM   #37
ndhebar
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धोखे से लूट ले जा सकते हो तुम भी,

पर कोशिश न करना कीमत लगाने की,

जिसके बदले में बिक जाये इमान मेरा,

औकात इतनी नहीं अभी इस ज़माने की/
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घर से निकले थे लौट कर आने को
मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए
बिगड़ैल
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Old 03-11-2010, 11:56 PM   #38
jai_bhardwaj
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धोखे से लूट ले जा सकते हो तुम भी,

पर कोशिश न करना कीमत लगाने की,

जिसके बदले में बिक जाये इमान मेरा,

औकात इतनी नहीं अभी इस ज़माने की/
बंजारा इक घूम रहा है प्रियतम की गलियों में
खोज रहा है साथी अपना तितली में कलियों में
प्रेम के बदले प्रेम मिलेगा ऐसी 'जय' गलियाँ हैं
धोखे से जो साथी लूटें, वे गिने जायेंगे छलियों में
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Old 03-11-2010, 11:57 PM   #39
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हम नहीं कहते, ज़माना भर ये कहता है
तेरा यह शबाब है या कोई लावा बहता है
पास जिसके तुम रहो, 'जय' दूर जाना चाहता
दूर जिससे तुम रहो, नजदीकियों को मरता है
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Old 03-11-2010, 11:58 PM   #40
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चलो, आओ, सब मिल करे, नया एक खेल खेलेंगे
जो बैठे सामने होंगे, उन्हें 'जय' आज खोजेंगे !!
हमारा हश्र यह होगा, बनेगें चोर फिर फिर से ,
भले ही जीभ चुप हो ले, आँख से आप बोलेंगे !!
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