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![]() प्रेरणादायक टिप्पणी के लिए धन्यवाद रजनीश जी!
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#32 |
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प्रेम नही है बस का!
![]() प्रेम नही है बस का, यह प्रेम नही है बस का, क्युं तुमने मजाक बना के रक्खा है बेबस का? प्रेम नही है बस का, यह प्रेम नही है बस का, जिस दिन से डेपो पर देखी, कन्या एक कंवारी जारि है अपनी भी तब से उसकी बस में सवारी! कभी तो देखेगी मुड के, आधार है ईस ढाढस का... प्रेम नही है बस का, यह प्रेम नही है बस का, नाम पुछै का डर...कितना लागे मै ही जानुं । उस बस के नंबर से मै उस लडकी को पहेचानुं, सबके आगे ईसी डर को नाम दिया आलस का... प्रेम नही है बस का, यह प्रेम नही है बस का, सोचता हुं मै की एसा काश हो तो अच्छा प्रेमीयों लिए, बस का पास हो तो अच्छा, चार आने हो गए, जो रस्ता था पैसे दस का, प्रेम नही है बस का, यह प्रेम नही है बस का। एक दिन वह लडकी, कोई लडका संग ले आई, बस हडताल मेरे सारे सपनों को करवाई। बहुत दिनों के बाद ये जाना...भाई था वो उसका! प्रेम नही है बस का, यह प्रेम नही है बस का। अब जल्दी ही उसको मेरे मन की बात बताउंगा, पब्लिक पीटे या कंडक्टर, बिलकुल ना घबराउंगा। बस-रानी वरदान दो मुझको थोडे से साहस का! प्रेम नही है बस का, यह प्रेम नही है बस का। दीप (९-७-१५) आज फोरम पर कुछ एसा घटा जिसने मुझे हास्यकविता लिखने को प्रेरित किया! मैने यह भी सोचा की पुराने जमाने का काव्य बनाउं। सो प्रस्तुत है पुराने जमाने की ताज़ा हास्य कविता, जो अभी अभी पुरी हुई है और एक्स्परिमेन्टल है! कविता के काल, अदाकार और अदाकारा का अंदाजा आप तसवीर से लगा सकते हो ।
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Last edited by Deep_; 09-07-2015 at 10:14 PM. |
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#33 |
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वाह! वाह! यह तो कमाल की कविता है. आपकी इस experimental रचना का जवाब नहीं, दीप जी.
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#34 |
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धन्यवाद रजनीश जी! कब से आपकी टिप्पणी का ईंतेजार था!
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#35 | |
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बहुत बढिया दीप जी...... आपने तो वाकई बडी मजेदार कविता लिखी है....... ![]() ![]()
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It's Nice to be Important but It's more Important to be Nice |
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#36 |
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यह गाना थोडा बहुत रेकोर्ड कर के भी देखा है।
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#37 |
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तुम से कुछ ना होगा
![]() ना, तुम से कुछ ना होगा, पहनो कोई भी चोगा । ना, तुम से कुछ ना होगा । राग तुम अपना ही गाओ, रो लो अपना रोना, बस खुद को ही बडा दिखाओ, कहो औरो को बोना। अपनी ही जो हांके जाए, बनेगा पंडित पोगा । ना, तुम से कुछ ना होगा, पहनो कोई भी चोगा । गलती सब की बतलाता है, दंड भी देता जाता, ऐसा ही हुं में...बोल के किस को क्या समज़ाता? किसने बनाया तुम को पुरी दुनिया का दरोगा? ना, तुम से कुछ ना होगा, पहनो कोई भी चोगा । छोटे छोटे सुख छोड़ कर, कितना धन है झड़पा? तेरे मन के कल्पित सुख में तन है कितना तड़पा ? तन की ईन्द्रियों के वश में मन ने कितना भोगा ? ना, तुम से कुछ ना होगा, पहनो कोई भी चोगा । ना, तुम से कुछ ना होगा, पहनो कोई भी चोगा । ना, तुम से कुछ ना होगा । दीप (3.12.15)
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#38 |
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![]() ![]() मेरा सुंदर सपना तुट गया, गुब्बारा फुलाया, फुट गया! मेरा सुंदर सपना तुट गया, मेरा सुंदर सपना तुट गया! ![]() जब हाथ चवन्नी आई थी, गोलेवाला आया ही नहीं, जब आया तो मेरे वाला...रंग 'हरा' लाया ही नहीं! ![]() जिस दिन मुझे वह रंग मिला, गोला हाथों से छूट गया.... मेरा सुंदर सपना तुट गया, मेरा सुंदर सपना तुट गया! मुश्किल तो पतंग उडाना था, मुझे दौड के थक जाना था, गलती से ही वह पतंग उड़ी, खुशियों का नहीं ठिकाना था... फिर डोर तुटी मेरे हाथों से, पतंग कोई दुजा लूट गया! ![]() मेरा सुंदर सपना तुट गया, मेरा सुंदर सपना तुट गया! किताबों की अलमारी थी, पढ-पढ दोपहरी गुज़ारी थी, सोचा कुछ धंधा हो जाए, किताबें दी उधारी थी.... भाड़ा मांगा जो किताबों का, हर दोस्त मुझ से रुठ गया! मेरा सुंदर सपना तुट गया, मेरा सुंदर सपना तुट गया! ![]()
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#39 |
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दीप जी, कई दिन बाद आपका पुनः आने पर स्वागत है, आपकी व्यस्तता को हम समझ सकते हैं. आशा है आप अपनी उपस्थिति जल्दी जल्दी दर्ज कराते रहेंगे.
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अभिवादन के लिए धन्यवाद रजनीश जी ।
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