My Hindi Forum

Go Back   My Hindi Forum > Art & Literature > Hindi Literature
Home Rules Facebook Register FAQ Community

Reply
 
Thread Tools Display Modes
Old 10-01-2011, 12:24 PM   #31
ABHAY
Exclusive Member
 
ABHAY's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: Bihar
Posts: 6,261
Rep Power: 35
ABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud of
Post Re: ~!!आनन्दमठ!!~

ब्रह्मचारी-जिस राह से यहां आये हो, उसी राह से मंदिर से बाहर जाओ! मंदिर के दरवाजे पर तुम्हें स्त्री-कन्या दिखाई देंगी। कल्याणी अभी तक निराहार है। जहां वे दोनों बैठी हैं वहीं भोजन की सामग्री पाओगे। उसे भोजन कराके तुम्हारी जो इच्छा हो करना। अब हम लोगों में से किसी से कुछ देर मुलाकात न होगी। यदि तुम्हारा मन इधर होगा तो समय पर मैं तुमसे मिलूंगा।

इसके बाद ही किसी तरह से एकाएक ब्रह्मचारी अंतर्हित हो गए। महेंद्र ने पूर्व-परिचित राह से लौटकर देखा- नाटय मंदिर में कल्याणी कन्या को लिए हुए बैठी है।

इधर सत्यानंद एक दूसरी सुरंग में जाकर एक अकेली भूगर्भस्थित कोठरी में उतर पड़े। वहां जीवानन्द और भुवानंद बैठे हुए रुपये गिन-गिनकर रख रहे थे। उस कमरे में ढेरों सोना, चांदी, तांबा, हीरे, मोती, मूंगे रखे हुए थे। गत रात खजाने की लूट का माल ये लोग गिन-गिनकर रख रहे थे।

सत्यानंद ने कमरे में प्रवेश कर कहा-जीवानंद! महेंद्र हमारे साथ आएगा। उसके आने से संतानों का विशेष कल्याण होगा। कारण आने से उसके पूर्वजों का संचित धन मां की सेवा में अर्पित होगा। लेकिन जब तक वह तन-मन-वचन से मातृभक्त न हो, तब तक उसे ग्रहण न करना। तुम लोगों के हाथ का काम समाप्त होने पर तुम लोग भिन्न-भिन्न समय में उसका अनुसरण करना, उचित समय पर उसे श्रीविष्णुमंडप में उपस्थित करना, और समय हो या कुसमय हो, उन लोगों की रक्षा अवश्य करना। कारण, जैसे दुष्टों का दमन और दलन संतानों का धर्म है, वैसे ही शिष्टों की रक्षा करना भी संतानों का धर्म है!

अनेक दु:खों के बाद महेंद्र और कल्याणी में मुलाकात हुई। कल्याणी रोकर पछाड़ खा गिरी। महेंद्र और भी रोए। रोने-गाने के बाद आंखों के पोंछने की धूम मच गई। जितने बार आंखें पोंछी जाती थी, उतनीही बार आंसू आ जाते थे। आंसू बंद करने के लिए कल्याणी ने भोजन की बात उठाई। ब्रह्मचारीजी के अनुचर जो खाना रख गए थे, कल्याणी ने उसे खाने के लिए महेंद्र से कहा। दुर्भिक्ष के दिनों में इधर अन्न भोजन की कोई संभावना नहीं थी, फिर भी आसपास जो कुछ है, संतानों के लिए वह सुलभ है। वह जंगल साधारण मनुष्यों के लिए अगम्य है जहां जिस वृक्ष में जो फल होते हैं, उन्हें भूखे लोग तोड़कर खाते हैं, किंतु इस अगम्य वन के वृक्षों का फल कोई नहीं पाता इसलिए ब्रह्मचारी के अनुचर ढेरों फल और दूध लाकर रख जाने में समर्थ हुए। संन्यासीजी की सम्पत्ति में अनेक गौएं भी हैं। कल्याणी के अनुरोध पर महेंद्र ने पहले कुछ भोजन किया, इसके बाद बचा हुआ भोजन अकेले में बैठकर कल्याणी ने खाया। उन लोगों ने थोड़ा दूध कन्या को पिलाया, बाकी बचा हुआ रख लिया- फिर पिलाने की आशा ही तो माता-पिता का संतान के प्रति धर्म है। इसके बाद थकावट और भोजन के कारण दोनों ने निंद्राभिभूत होकर आराम किया।
__________________
Follow on Instagram , Twitter , Facebook, YouTube.
ABHAY is offline   Reply With Quote
Old 10-01-2011, 12:24 PM   #32
ABHAY
Exclusive Member
 
ABHAY's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: Bihar
Posts: 6,261
Rep Power: 35
ABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud of
Post Re: ~!!आनन्दमठ!!~

नींद से उठने के बाद दोनों विचार करने लगे-अब कहां चलना चाहिए? कल्याणी ने कहा-घर पर विपद की संभावना समझकर हमने गृहत्याग किया था, लेकिन अब देखती हूं कि घर से भी अधिक कष्ट बाहर है। न हो तो चलो, घर ही लौट चलें! महेंद्र की भी यही इच्छा थी। महेंद्र की इच्छा है कि कल्याणी को घर पर बैठाकर, कोई एक विश्वासी अभिभावक नियुक्त कर, इस परमरमणीय, अपार्थिव पवित्र मातृसेवा-व्रत को ग्रहण करेंगे। अत: इस बात पर वे सहज ही सहमत हो गए। अब दोनो ही प्राणियों ने थकावट दूर होने पर कन्या को गोद में लेकर फिर पदचिन्ह की तरफ यात्रा की।

किंतु पदचिन्ह जाने के लिए किस राह से जाना होगा- उस दुर्भेद्य वन में वे कुछ भी समझ न सके। उन्होंने समझा था कि जंगल पार होते ही हमें राह मिल जाएगी और पदचिन्ह पहुंच सकेंगे। लेकिन वहां तो बन का ही थाह नहीं लगता है। बहुत देर तक वे लोग वन के अंदर इधर-उधर चक्कर लगाते रहे और बार-बार घूम-फिरकर वे लोग मठ में ही पहुंच जाते थे। उन्हें जंगल से पार होनेवाली राह मिलती ही न थी। यह देखते हुए सामने एक वैष्णव वेशधारी खड़े हंस रहे थे। यह देखकर महेंद्र ने रुष्ट होकर उनसे कहा-गोस्वामी! खड़े-खड़े हंसते क्यों हो?

गोस्वामी बोले-तुमलोग इस वन में आए कैसे?

महेंद्र बोले-जैसे भी हो आ ही गए हैं!

गोस्वामी-प्रवेश कर सके तो बाहर क्यों नहीं निकल पाते हो? यह करकर वैष्णव फिर हंसने लगे।

महेंद्र ने वैसे ही रुष्ट स्वर में कहा-हंसते तो हो, लेकिन क्या तुम इसके बाहर निकल सकते हो?

वैष्णव ने कहा-मेरे साथ आओ, मैं राह बता देता हूं। अवश्य ही तुम लोग ब्रह्मचारीजी के संग आए होंगे, अन्यथा न तो कोई यहां आ सकता है, न निकल ही सकता है। अपरिचितों के लिए यह भूल-भुलैया है।

यह सुनकर महेंद्र ने कहा-आप भी सन्तान हैं?

वैष्णव ने कहा-हां, मैं भी सन्तान हूं। मेरे साथ आओ। तुम्हें राह दिखाने के लिए ही मैं यहां खड़ा हूं।

महेंद्र ने पूछा -आपका नाम क्या है?

वैष्णव ने उत्तर दिया-मेरा नाम धीरानंद स्वामी है।

यह कहकर धीरानंद आगे-आगे चले और कल्याणी के साथ महेंद्र पीछे-पीछे। धीरानंद ने एक बड़ी सी दुर्गम राह से उन्हें जंगल के बाहर कर दिया और आगे की राह बता दी। इसके बाद वे फिर जंगल में पलटकर गायब हो गए।

बुरी बात ही मां-बाप के मुंह से पहले निकलती है- जहां अधिक प्रेम होता है, वहां भय भी बहुत अधिक होता है। महेंद्र ने यह कभी देखा न था कि टिकिया पहले कितनी बड़ी थी। अब उन्होंने टिकिया अपने हाथ में उठाकर मजे में उसे देखकर कहा-मालूम तो होता है कि कुछ खा गई है।
__________________
Follow on Instagram , Twitter , Facebook, YouTube.
ABHAY is offline   Reply With Quote
Old 10-01-2011, 12:25 PM   #33
ABHAY
Exclusive Member
 
ABHAY's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: Bihar
Posts: 6,261
Rep Power: 35
ABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud of
Post Re: ~!!आनन्दमठ!!~

कल्याणी को कुछ ऐसा ही विश्वास हुआ। टिकिया हाथ में लेकर बहुत देर तक वह भी उसकी जांच करती रही। इधर कन्या ने दो-एक घूंट रस जो चूस लिया था, उससे उसकी दशा बिगड़ने लगी- वह छटपटाने लगी, रोने लगी, अंत में कुछ बेहोश सी हो पड़ी। तब कल्याणी ने पति से कहा-अब क्या देखते हो? जिस राह पर भगवान ने बुलाया है, उसी राह पर सुकुमारी चली, मुझे भी वही राह लेनी पड़ेगी।

यह कहकर कल्याणी ने उस टिकिया को उठाकर मुंह में डाल लिया और एक क्षण में निगल गई।

महेंद्र रोने लगे-क्या किया, कल्याणी! अरे तुमने यह क्या किया है?….

कल्याणी ने कोई उत्तर न देकर पति के पैरों की धूलि माथे लगाई, फिर बोली-प्रभु! बात बढ़ाने से बात बढ़ेगी…मैं चली।

कल्याणी! यह क्या किया?- कहकर महेंद्र चिल्लाकर रोने लगे।

बड़े ही धीमे स्वर में कल्याणी बोली-मैंने अच्छा ही किया है, इस नाचीज औरत के पीछे तुम अपनी मातृभूमि की सेवा से वंचित रहते। देखो मैं देववाक्य का उल्लंघन कर रही थी, इसलिए मेरी कन्या गई। थोड़ी और अवहेलना करने से तुम पर विपत्ति आती।

महेंद्र ने रोते हुए कहा-अरे, तुम्हें कहीं बैठाकर मैं चला जाता, कल्याणी!- कार्य सिद्ध हो जाने पर फिर हम लोग मिलकर सुखी होते। कल्याणी! मेरी सर्वस्व! तुमने यह क्या!! जिस भुजा के बल पर मैं तलवार पकड़ता, हाय! तुमने वही भुजा काट दी। तुम्हें खोकर मैं क्या रह पाऊंगा।….

कल्याणी-कहां मुझे ले जाते?- कहां स्थान है? मां-बाप, सगे-संबंधी सब इस दुर्दिन में चले गए हैं। किसके घर में जगह है, कहां जाने का विचार है? कहां ले जाओगे? मैं कालग्रह हूं- मैंने मरकर अच्छा ही किया है! मुझे आशीर्वाद दो, मैं उस आलोकमय लोक में जाकर तुम्हारी प्रतीक्षा में रहूं और फिर तुम्हें पाउं।

यह कहकर कल्याणी ने फिर स्वामी का पदरेणु ग्रहण किया। महेंद्र कोई उत्तर न देकर रोते ही रहे। कल्याणी फिर अति मृदु, अति मधुर, अतीव स्नेहमय कंठ से बोली-देखो, देवताओं की इच्छा, किसकी मजाल है कि उसका उल्लंघन कर सके! मुझे जाने की आज्ञा उन्होंने दी है, तो क्या मैं किसी तरह भी रुक सकती हूं? मैं स्वयं न मरती तो कोई मार डालता! मैंने आत्महत्या कर अच्छा ही किया है। तुमने देशोद्धार का जो व्रत लिया है, उसे तन-मन-धन से पूरा करो- इसी में तुम्हें पुण्य होगा- इसी पुण्य से मुझे भी स्वर्गलाभ होगा। हम दोनों ही साथ-साथ अक्षय स्वर्गमुख का उपभोग करेंगे।
__________________
Follow on Instagram , Twitter , Facebook, YouTube.
ABHAY is offline   Reply With Quote
Old 10-01-2011, 12:26 PM   #34
ABHAY
Exclusive Member
 
ABHAY's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: Bihar
Posts: 6,261
Rep Power: 35
ABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud of
Post Re: ~!!आनन्दमठ!!~

इधर बालिका एक बार दूध की उल्टी कर सम्भलने लगी। उसके पेट में जिस परिमाण में विष गया था, वह घातक नहीं था। लेकिन महेंद्र का ध्यान उस समय उधर न था। उन्होंने कन्या को कल्याणी की गोद में दे दोनों का प्रगाढ़ अलिंगन कर फूट-फूटकर रोना शुरू किया। उसी समय वन में से मधुर किंतु मेघ-गंभीर शब्द सुनाई पड़ने लगा-

हरे मुरारे मधुकैटभारे!

गोपाल गोविंद मुकुंद शौरे!

उस समय कल्याणी पर विष का प्रभाव हो रहा था, चेतना कुछ लुप्त हो चली थी। उन्होंने अवचेतन मन से सुरा, मानो वैकुण्ठ से यह अपूर्व ध्वनि उभरकर गूंज रही है-

हरे मुरारे मधुकैटभारे!
गोपाल गोविंद मुकुंद शौरे!

तब कल्याणी ने अप्सरानिंदित कंठ से बड़े ही मोहक स्वर में गाया-

हरे मुरारे मधुकैटभारे!

वह महेंद्र से बोली- कहो हरे मुरारे मधुकैटभारे!

वन में गूंजने वाले मधुर स्वर और कल्याणी के मधुर स्वर पर विमुग्ध होकर कातर हृदय से एक मात्र ईश्वर को ही सहाय समझाकर महेंद्र ने भी पुकारा-

हरे मुरारे मधुकैटभारे!…..

तब मानो चारों तरफ से ध्वनि होने लगी–

हरे मुरारे मधुकैटभारे!….

और मानो वृक्ष के पत्तों से भी आवाज निकलने लगी-

हरे मुरारे मधुकैटभारे!….

नदी के कलकल ध्वनि में भी वही शब्द हुआ-

हरे मुरारे मधुकैटभारे!….

अब महेंद्र अपना शोक संताप भूल गए, उन्मत्त होकर वे कल्याणी के साथ एक स्वर से गाने लगे-

हरे मुरारे मधुकैटभारे!….
__________________
Follow on Instagram , Twitter , Facebook, YouTube.
ABHAY is offline   Reply With Quote
Old 10-01-2011, 12:26 PM   #35
ABHAY
Exclusive Member
 
ABHAY's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: Bihar
Posts: 6,261
Rep Power: 35
ABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud of
Post Re: ~!!आनन्दमठ!!~

जंगल में से भी उसके स्वर से मिली हुई वाणी निकली-

हरे मुरारे मधुकैटभारे!….

कल्याणी का कंठ क्रमश: क्षीण होने लगा, फिर भी वह पुकार रही थी-

हरे मुरारे मधुकैटभारे!….

इसके बाद ही उसका कंठ क्रमश: निस्तब्ध होने लगा, कल्याणी के मुंह से अब शब्द नहीं निकलता- आंखें ढंक गई, अंग शीतल हो गए। महेंद्र समझ गए कि कल्याणी ने हरे मुरारे कहते हुए बैकुंठ प्रयाण किया। इसके बाद ही पागलों की तरह उच्च स्वर से वन को कम्पित करते हुए पशु-पक्षियों को चौंकाते हुए महेंद्र पुकारने लगे-

हरे मुरारे मधुकैटभारे!….

इसी समय किसी ने आकर उनका अलिंगन किया और उसी स्वर में वह भी कहने लगा-

हरे मुरारे मधुकैटभारे!….

तब उस अनंत ईश्वर की महिमा से, उस अनंत वन में अनंत पथगामी शरीर के सामने दोनों जन अनंत नाम-स्मरण करने लगे। पशु-पक्षाी नीरव थे, पृथ्वी अपूर्व शोभामयी थी- इस परम पावन गीत के उपयुक्त मंदिर था वह। सत्यानंद महेंद्र को बांहों में संभाल कर बैठ गए।

महेंद्र विस्मित, स्तम्भित होकर चुप हो रहे। ऊपर पेड़ पर कोई पक्षी बोल उठा, पपीहा अपनी बोली से आकाश गुंजाने लगा, कोकिल सप्त-स्वरों में गाने लगी, भृंगराज की झनकार से जंगल गूंज उठा। पैरों के नीचे तरिणी मृदु कल्लोल कर रही थी। बहुतेरे वन्य पुष्पों के सौरभ से मन हरा हो रहा था। कहीं-कहीं नदी-जल को सूर्य-रश्मि चमका रही थी। कहीं ताड़ के पत्ते हवा के झोंके से मरमरा रहे थे। दूर नीली पर्वत-श्रेणी दिखाई पड़ रही थी। दोनों ही जन मुग्ध-नीरव हो यह सब देखते रहे। बहुत देर बाद कल्याणी ने फिर पूछा-क्या सोच रहे हो?

महेंद्र-यही सोचता हूं कि क्या करना चाहिए? यह स्वपन् केवल विभीषिका मात्र है, अपने ही हृदय में पैदा होकर अपने ही में लीन हो जाता है। चलो, घर चलें!

कल्याणी-जहां ईश्वर तुम्हें जाने को कहते हैं, तुम वहीं जाओ!

यह कहकर कल्याणी ने कन्या अपने पति की गोद में दे दी। महेंद्र ने उसे अपने गोद में लेकर पूछा-और तुम…तुम कहां जाओगी?
__________________
Follow on Instagram , Twitter , Facebook, YouTube.
ABHAY is offline   Reply With Quote
Old 10-01-2011, 12:27 PM   #36
ABHAY
Exclusive Member
 
ABHAY's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: Bihar
Posts: 6,261
Rep Power: 35
ABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud of
Post Re: ~!!आनन्दमठ!!~

कल्याणी अपने दोनों हाथों से दोनों आंखों को ढंके हुए, साथ ही मस्तक पकडे़ हुए बोली-मुझे भी भगवान ने जहां जाने को कहा है वहीं जाऊंगी।

महेंद्र चौंक उठे। बोले-वहां कहां? कैसे जाओगी?

कल्याणी ने अपने पास की वही जहर की डिबिया दिखाई।

महेंद्र ने डरते हुए भौंचक्का होकर कहा-यह क्या? जहर खाओगी?

कल्याणी-मन में तो सोचा था, खाऊंगी, लेकिन…

कल्याणी चुप होकर विचार में पड़ गई, महेंद्र उसका मुंह ताकते रहे- प्रति निमेश वर्ष-सा प्रतीत होने लगा। उन्होंने देखा कि कल्याणी ने बात पूरी न कही, अत: बोले-लेकिन के बाद आगे क्या कह रही थीं?

कल्याणी-मन में था कि खाऊंगी, लेकिन तुम्हें छोड़कर, सुकुमारी कन्या को छोड़कर बैकुंठ जाने की भी मेरी इच्छा नहीं होती। मैं न मरूंगी!

यह कहकर कल्याणी ने विष की डिबिया जमीन पर रख दी। इसके बाद दोनों ही पत्**नी-पुरुष भूत-भविष्य की अनेक बातें करने लगे। बातें करते हुए दोनों ही अन्यमनस्क हो उठे। इसी समय खेलते-खेलते सुकुमारी कन्या ने विष की डिबिया उठा ली। उसे किसी ने न देखा।

सुकुमारी ने मन में सोचा कि बढि़या खेलने की चीज है। उसने इस डिबिया को एक बार बाएं हाथ में लेकर दाहिने हाथ से खींचा। इसके बाद दाहिने हाथ से पकड़कर बाएं हाथ से खींचा। इसके बाद दोनों हाथों से उसे खींचना शुरू किया। फल यह हुआ कि डिबिया खुल गई, उसमें से जहर की टिकिया बाहर गिर पड़ी।

बाप के कपड़े के ऊपर वह टिकिया गिरी- सुकुमारी ने उसे देखा, मन में सोचा, कि यह एक दूसरी खेलने की चीज है डिबिया के दोनों ढक्कन उसने छोड़ दिए और उस टिकिया को उठा लिया।

डिबिया को सुकुमारी ने मुंह में क्यों नहीं डाला, नहीं कहा जा सकता। लेकिन टिकिया में उसने जरा भी विलम्ब न किया? प्रप्तिमात्रेण भोक्तव्य– सुकुमारी ने उस जहर की टिकिया को मुंह में डाल लिया।

क्या खाया? अरे क्या खाया? गजब हो गया!…
__________________
Follow on Instagram , Twitter , Facebook, YouTube.
ABHAY is offline   Reply With Quote
Old 10-01-2011, 12:28 PM   #37
ABHAY
Exclusive Member
 
ABHAY's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: Bihar
Posts: 6,261
Rep Power: 35
ABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud of
Post Re: ~!!आनन्दमठ!!~

यह कहती हुई कल्याणी ने कन्या के मुंह में उंगली डाल दी। उसी समय दोनों ने देखा कि विष की डिबिया खाली पड़ी हुई है। सुकुमारी ने सोचा कि यह भी खेल की चीज है, अत: उसने उसे दांतों से दबा लिया और माता का मुंह देखकर मुस्कराने लगी। लेकिन जान पड़ता है, इसी समय जहर का कड़वा स्वाद उसे मालूम पड़ा और उसने मुंह बिगाड़कर खोल दिया- वह टिकिया दांतों में चिपकी हुई थी। माता ने तुरंत निकाल कर उसे जमीन पर फेंक दिया। लड़की रोने लगी।

टिकिया उसी तरह पड़ी रही। कल्याणी तुरंत नदी-तट पर जाकर अपना आंचल भिगो लाई और लड़की के मुंह में जल देकर उसने धुलवा दिया। बड़ी ही कातर वाणी से कल्याणी ने महेंद्र से पूछा-क्या कुछ पेट में गया होगा?
__________________
Follow on Instagram , Twitter , Facebook, YouTube.
ABHAY is offline   Reply With Quote
Old 10-01-2011, 12:29 PM   #38
ABHAY
Exclusive Member
 
ABHAY's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: Bihar
Posts: 6,261
Rep Power: 35
ABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud of
Post Re: ~!!आनन्दमठ!!~

आनन्दमठ भाग-5
इधर राजधानी की शाही राहों पर बड़ी हलचल उपस्थित हो गई। शोर मचने लगा कि नवाब के यहां से जो खजाना कलकत्ते आ रहा था, संन्यासियों ने मानकर सब छीन लिया। राजाज्ञा से सिपाही और बल्लमटेर संन्यासियों को पकड़ने के लिए छूटे। उस समय दुर्भिज्ञ-पीडि़त प्रदेश में वास्तविक संन्यासी रह ही न गए थे। कारण, वे लोग भिक्षाजीवी ठहरे, जनता स्वयं खाने को नहीं पाती तो उन्हें वह कैसे दे सकती है? अतएव जो असली संन्यासी भिक्षुक थे, वे लोग पेट की ज्वाला से व्याकुल होकर काशी-प्रयाग चले गए थे। आज ये हलचल देखकर कितनों ने ही अपना संन्यासी वेष त्याग दिया। राज्य के भूखे सैनिक, संन्यासियों को न पाकर घर-घरमें तलाशी लेकर खाने और पेट भरने लगे। केवल सत्यानन्द ने किसी तरह भी अपने गैरिक वस्त्रों का परित्याग न किया।

उसी कल्लोलवाहिनी नदी-तट पर, शाही राह के बगल में पही पेड़ के नीचे कल्याणी पड़ी हुई है। महेंद्र और सत्यानंद परस्पर अलिंगनबद्ध होकर आंसू बहाते हुए भगवन्नाम-उच्चारण में लगे हुए हैं। उसी समय एक जमादार सिपाहियों का दल लिए हुए वहां पहुंच गया। संन्यासी के गले पर एक बारगी हाथ ले जाकर जमादार बोला-यह साला संन्यासी है!

इसी तरह एक दूसरे ने महेंद्र को पकड़ा। कारण, जो संन्यासी का साथी है वह अवश्य संन्यासी होगा। तीसरा एक सैनिक घास पर पड़े हुए कल्याणी के शरीर की तरफ लपका- उसने देखा की औरत मरी हुई है, संन्यासी न होने पर भी हो सकती है। उसने उसे छोड़ दिया। बालिका को भी यही सोच कर उसने छोड़ दिया। इसके बाद उन सबने और कुछ न कहा, तुरंत बांध लिया और ले चले दोनों जन को। कल्याणी की मृत देह और कन्या बिना रक्षक के पेड़ के नीचे पड़ी रही। पहले तो शोक से अभिभूत और ईश्वर के प्रेम में उन्मत्त हुए महेंद्र प्राय: विचेतन अवस्था में थे- क्या हो रहा था, क्या हुआ- इसे वह कुछ समझ न सके। बंधन में भी उन्होंने कोई आपत्ति न की। लेकिन दो-चार कदम अग्रसर होते ही वे समझ गए कि ये सब मुझे बांध लिए जा रहे है- कल्याणी का शरीर पड़ा हुआ है, उसका अंतिम संस्कार नहीं हुआ- कन्या भी पड़ी हुई है। इस अवस्था में उन्हें हिंस्त्र पशु खा जा सकते हैं। मन में यह भाव आते ही महेंद्र के शरीर में बल आ गया और उन्होंने कलाइयों को मरोड़कर बंधन को तोड़ डाला। फिर पास में चलते जमादार को इस जोर की लात लगायी कि वह लुड़कता हुआ दस हाथ दूर चला गया। तब उन्होंने पास के एक सिपाही को उठाकर फेंका। लेकिन इसी समय पीछे के तीन सिपाहियों ने उन्हें पकड़कर फिर विवश कर दिया। इस पर दु:ख से कातर होकर महेंद्र ने संन्यासी से कहा-आप जरा भी मेरी सहायता करते, तो मैं इन पांचों दुष्टों को यमद्वार भेज देता।
__________________
Follow on Instagram , Twitter , Facebook, YouTube.
ABHAY is offline   Reply With Quote
Old 10-01-2011, 12:29 PM   #39
ABHAY
Exclusive Member
 
ABHAY's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: Bihar
Posts: 6,261
Rep Power: 35
ABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud of
Post Re: ~!!आनन्दमठ!!~

सत्यानंद ने कहा-मेरे इस बूढ़े शरीर में बल ही कहां है? मैं तो जिन्हें बुला रहा हूं, उनके सिवा मेरा कोई सहारा नहीं है। जो होना है- वह होकर रहेगा, तुम विरोध न करो। हम इन पांचों को पराजित कर न सकेंगे। देखें, ये हमें कहां ले जाते हैं….. भगवान् हर जगह रक्षा करेंगे!

इसके बाद इन लोगों ने मुक्ति की फिर कोई चेष्टा न की, चुपचाप सिपाहियों के पीछे-पीछे चलने लगे। कुछ दूर जाने पर सत्यानंद ने सिपाहियों से पूछा-बाबा! मैं तो हरिनाम कह रहा था, क्या भगवान का नाम लेने में भी कोई बाधा है? जमादार समझ गया कि सत्यानंद भले आदमी हैं। उसने कहा-तुम भगवान का नाम लो, तुम्हें रोकूंगा नहीं। तुम वृद्ध ब्रह्मचारी हो, शायद तुम्हारे छुटकारे का हुक्म हो जाएगा। मगर यह बदमाश फांसी पर चढ़ेगा!

इसके बाद ब्रह्मचारी मृदु स्वर से गाने लगे-

धीर समीरे तटिनी तीरे बसति बने बनबारी।
मा कुरु धनुर्धर गमन विलम्बनमतिविधुरा सुकुमारी॥…..
इत्यादि।

नगर में पहुंचने पर वे लोग कोतवाल के समीप उपस्थित किए गए। कोतवाल ने नवाब के पास इत्तिला भेजकर संप्रति उन्हें फाटक के पास की हवालात में रखा। वह कारागार अति भयानक था, जो उसमें जाता था, प्राय: बाहर नहीं निकलता था, क्योंकि कोई विचार करने वाला ही न था। वह अंग्रेजों के जेलखाना नहीं था और न उस समय अंग्रेजों के हाथ में न्याय था। आज कानूनों का युग है- उस समय अनियम के दिन थे। कानून के युग से जरा तुलना तो करो!

रात हो गई। कारागार में कैद सत्यानंद ने महेंद्र से कहा-आज बड़े आनंद का दिन है। कारण, हम लोग कारागार में कैद है। कहो-हरे मुरारे!

महेंद्र ने बड़े कातर स्वर में कहा-हरे मुरारे!
__________________
Follow on Instagram , Twitter , Facebook, YouTube.
ABHAY is offline   Reply With Quote
Old 10-01-2011, 12:30 PM   #40
ABHAY
Exclusive Member
 
ABHAY's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: Bihar
Posts: 6,261
Rep Power: 35
ABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud of
Post Re: ~!!आनन्दमठ!!~

सत्यानंद-कातर क्यों होते हो, बेटे! तुम्हारे इस महाव्रत को ग्रहण करने पर तुम्हें स्त्री-कन्या का त्याग तो करना ही पड़ता, फिर तो कोई संबंध रह न जाता।…..

महेंद्र-त्याग एक बात है, यमदण्ड दूसरी बात! जिस शक्ति के सहारे मैं यह व्रत ग्रहण करता, वह शक्ति मेरी स्त्री-कन्या के साथ ही चली गई।

सत्यानंद-शक्ति आएगी- मैं शक्ति हूं! महामंत्र से दीक्षित होओ, महाव्रत ग्रहण करो। महेंद्र ने विरक्त होकर कहा-मेरी स्त्री और कन्या को स्यार और कुत्ते खाते होंगे- मुझसे किसी व्रत की बात न कहिए!

सत्यानंद-इस बारे में चिंता मत करो! संतानों ने तुम्हारी स्त्री की अन्त्येष्टि क्रिया करके तुम्हारी लड़की को उपयुक्त स्थल में रख छोड़ा है।

महेंद्र विस्मित हुए, उन्हें इस बात पर जरा भी विश्वास न हुआ। उन्होंने पूछा-आपने कैसे जाना? आप तो बराबर मेरे साथ हैं।

सत्यानंद-हम महामंत्र से दीक्षित हैं- देवता हमारे प्रति दया करते हैं। आज रात को तुम यह संवाद सुनोगे और आज ही तुम कैदखाने से छूट भी जाओगे।

महेंद्र कुछ न बोला। सत्यानंद ने समझ लिया कि महेंद्र को मेरी बातों का विश्वास नहीं होता। तब सत्यानंद बोले-तुम्हें विश्वास नहीं होता? परीक्षा करके देखो! यह कहकर सत्यानंद कारागार के द्वार तक आए। क्या किया, यह महेंद्र को कुछ मालूम न हुआ, पर यह जान गए कि उन्होंने किसी से बातचीत की है। उनके लौट आने पर महेंद्र ने पूछा-क्या परीक्षा करूं?
__________________
Follow on Instagram , Twitter , Facebook, YouTube.
ABHAY is offline   Reply With Quote
Reply

Bookmarks


Posting Rules
You may not post new threads
You may not post replies
You may not post attachments
You may not edit your posts

BB code is On
Smilies are On
[IMG] code is On
HTML code is Off



All times are GMT +5. The time now is 07:41 PM.


Powered by: vBulletin
Copyright ©2000 - 2024, Jelsoft Enterprises Ltd.
MyHindiForum.com is not responsible for the views and opinion of the posters. The posters and only posters shall be liable for any copyright infringement.