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Old 05-02-2014, 03:29 PM   #31
rajnish manga
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Default Re: लोककथा संसार

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Originally Posted by internetpremi View Post
ref: उत्तर भारत की लोक कथा चिड़िया का दाना

moral:
One should know at what level to pull strings!


आपने इस कहानी का सार ठीक बताया है. यहाँ मुझे यह बताने में बड़ी प्रसन्नता हो रही है कि यह कहानी चूं चूं चिड़िया की यह कहानी मेरी माता जी मुझे मेरे बचपन में पंजाबी में सुनाया करती थीं.

Quote:
Originally Posted by internetpremi View Post
ref: पाप की जड़

it is true.
There is enough for everyone's need.
Never enough for one's greed.
Greed for more and more is the root of all sin.
आपकी प्रतिक्रिया हेतु आभार प्रगट करता हूँ.

Quote:
Originally Posted by internetpremi View Post
re: सच्चा ईनाम
will any modern politician / ruler ever ask for such a boon from god?
In bihar, a politician stole even the fodder for animals!
This is kaliyug after all.
आपने उचित कहा कि आज के नेता व सेवक तो अपने भाग्य विधाता को ही बेच सकते हैं. बहुत बहुत धन्यवाद, मित्र विश्वनाथ जी.
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Originally Posted by internetpremi View Post
ref: बदी का फल

lying witnesses.
Dishonesty.
Cheating.
These existed thousands of years ago.
They exist today.
They will continue to exist a thousand years hence.
सारगर्भित प्रतिक्रिया के लिये आपका हार्दिक धन्यवाद.

__________________
आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
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Old 05-02-2014, 03:34 PM   #32
rajnish manga
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Default Re: लोककथा संसार

झारखंड की लोककथा
लालच का फल

एक गांव में एक समृद्ध व्यक्ति रहता था. उसके पास धातु से बने हुए कई बरतन थे. गांव के लोग शादी आदि के अवसरों पर यह बरतन उससे मांग लिया करते थे. एक बार एक आदमी ने ये बरतन मांगे. वापस करते समय उसने कुछ छोटे बरतन बढा कर दिये.
समृद्ध व्यक्ति ने पूछा- बरतन कैसे बढ गये?


उसने कहा- मांग कर ले जाने वाले बरतनों में से कुछ गर्भ से थे. उनके छोटे बधे हुए हैं.

समृद्ध व्यक्ति को छोटे बरतनों से लोभ हो गया. उसने बरतन लौटाने वाले व्यक्ति को ऐसे देखा, जैसे उसे कहानी पर विश्वास हो गया हो. उसने सारे बरतन रख लिये.

कुछ दिन बाद वही व्यक्ति फिर से बरतन मांगने आया. समृद्ध व्यक्ति ने मुस्कुराते हुए बरतन दे दिये. काफी समय तक बरतन वापस नहीं मिले.

इस पर बरतनों के मालिक ने इसका कारण पूछा.

बरतन मांग कर ले जाने वाले व्यक्ति ने जवाब दिया- मैं वह बरतन नहीं दे सकता, क्योंकि उनकी मृत्यु हो गयी है.
समृद्ध व्यक्ति ने पूछा- परंतु बरतन कैसे मर सकते हैं
?
उत्तर मिला- यदि बरतन बधे दे सकते हैं, तो वे मर भी सकते हैं.
अब उस समृद्ध व्यक्ति को अपनी गलती का अहसास हुआ और वह हाथ मलता रह गया.

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Old 06-02-2014, 03:05 AM   #33
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Default Re: लोककथा संसार

First prepare the trap.
Then entrap.
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Old 06-02-2014, 12:08 PM   #34
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Default Re: लोककथा संसार

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Originally Posted by internetpremi View Post
first prepare the trap.
Then entrap.
इस छोटे से प्रसंग से यही पता चलता है कि जो व्यक्ति छोटे प्रलोभन में आ सकता है वह बड़े प्रलोभन में भी फंसाया जा सकता है. आपके विचार कथा के सन्दर्भ में सटीक बैठते हैं. आपका हार्दिक धन्यवाद, विश्वनाथ जी.
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Old 07-02-2014, 03:35 PM   #35
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बुंदेलखंड की लोककथा
पंछी बोला चार पहर –
(आलेख: रामकान्त दीक्षित)


दोस्तों, पुराने समय की बात है। एक राजा था। वह बड़ा समझदार था और हर नई बात को जानने को इच्छुक रहता था। उसके महल के आंगनमें एक बकौली का पेड़ था। रात को रोज नियम से एक पक्षी उस पेड़ पर आकर बैठता और रात के चारों पहरों के लिए अलग-अलग चार तरह की बातें कहा करता।

पहले पहर में कहता :


किस मुख दूध पिलाऊं,
किस मुख दूध पिलाऊं



दूसरा पहर लगते बोलता :

ऐसा कहूं न दीख,
ऐसा कहूं न दीख !


जब तीसरा पहर आता तो कहने लगता :


अब हम करबू का,
अब हम करबू का
?”

जब चौथा पहर शुरू होता तो वह कहता :


सब बम्मन मर जायें,
सब बम्मन मर जायें !


राजा रोज रात को जागकर पक्षी के मुख से चारों पहरों की चार अलग-अलग बातें सुनता। सोचता, पक्षी क्या कहता? पर उसकी समझ में कुछ न आता। राजा की चिन्ता बढ़ती गई। जब वह उसका अर्थ निकालने में असफल रहा तो हारकर उसने अपने पुरोहित को बुलाया। उसे सब हाल सुनाया और उससे पक्षी के प्रश्नों का उत्तर पूछा। पुरोहित भी एक साथ उत्तर नहीं दे सका। उसने कुछ समय की मुहलत मांगी और चिंता में डूबा हुआ घर चला आया। उसके सिर में राजा की पूछी गई चारों बातें बराबर चक्कर काटती रहीं। वह बहुतेरा सोचता, पर उसे कोई जवाब न सूझता। अपने पति को हैरान देखकर ब्राह्रणी ने पूछा, “तुम इतने परेशान क्यों दीखते हो ? मुझे बताओ, बात क्या है
?”

>>>



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Last edited by rajnish manga; 07-02-2014 at 03:37 PM.
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Old 07-02-2014, 03:36 PM   #36
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Default Re: लोककथा संसार

ब्राह्मण ने कहा, “क्या बताऊं ! एक बड़ी ही कठिन समस्या मेरे सामने आ खड़ी हुई है। राजा के महल का जो आंगन है, वहां रोज रात को एक पक्षी आता है और चारों पहरों मे नित्य नियम से चार आलग-अलग बातें कहता है। राजा पक्षी की उन बातों का मतलब नहीं समझा तो उसने मुझसे उनका मतलब पूछा। पर पक्षी की पहेलियां मेरी समझ में भी नहीं आतीं। राजा को जाकर क्या जवाब दूं, बस इसी उधेड़-बुन में हूं।

ब्राह्राणी बोली, “पक्षी कहता क्या है? जरा मुझे भी सुनाओ।


ब्राह्राणी ने चारों पहरों की चारों बातें कह सुनायीं। सुनकर ब्राह्राणी बोली। वाह, यह कौन कठिन बात है! इसका उत्तर तो मैं दे सकती हूं। चिंता मत करो। जाओ, राजा से जाकर कह दो कि पक्षी की बातों का मतलब मैं बताऊंगी।


ब्राह्राण राजा के महल में गया और बोला, “महाराज, आप जो पक्षी के प्रश्नों के उत्तर जानना चाहते हैं, उनको मेरी स्त्री बता सकती है।


पुरोहित की बात सुनकर राजा ने उसकी स्त्री को बुलाने के लिए पालकी भेजी। ब्राह्राणी आ गई। राजा-रानी ने उसे आदर से बिठाया। रात हुई तो पहले पहर पक्षी बोला:


किस मुख दूध पिलाऊं,

किस मुख दूध पिलाऊं
?”

राजा ने कहा, “पंडितानी, सुन रही हो, पक्षी क्या बोलता है
?”

वह बोली, “हां, महाराज ! सुन रहीं हूं। वह अधकट बात कहता है।


>>>




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Old 07-02-2014, 03:39 PM   #37
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राजा ने पूछा, “अधकट बात कैसी ?”

पंडितानी ने उत्तर दिया, “राजन्, सुनो, पूरी बात इस प्रकार है-


लंका में रावण भयो बीस भुजा दश शीश,

माता ओ की जा कहे, किस मुख दूध पिलाऊं।


किस मुख दूध पिलाऊं ?”

लंका में रावण ने जन्म लिया है, उसकी बीस भुजाएं हैं और दश शीश हैं। उसकी माता कहती है कि उसे उसके कौन-से मुख से दूध पिलाऊं
?”

राज बोला, “बहुत ठीक ! बहुत ठीक ! तुमने सही अर्थ लगा लिया।


दूसरा पहर हुआ तो पक्षी कहने लगा :


ऐसो कहूं न दीख,

ऐसो कहूं न दीख।


राजा बोला, ‘पंडितानी, इसका क्या अर्थ है ?”

पडितानी नेसमझाया, “महाराज ! सुनो, पक्षी बोलता है :


घर जम्ब नव दीप

बिना चिंता को आदमी,

ऐसो कहूं न दीख
,

ऐसो कहूं न दीख !


चारों दिशा, सारी पृथ्वी, नवखण्ड, सभी छान डालो, पर बिना चिंता का आदमी नहीं मिलेगा। मनुष्य को कोई-न-कोई चिंता हर समय लगी ही रहती है। कहिये, महाराज! सच है या नहीं
?”

राजा बोला, “तुम ठीक कहती हो।



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Old 07-02-2014, 03:41 PM   #38
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Default Re: लोककथा संसार

तीसरा पहर लगा तो पक्षी ने रोज की तरह अपनी बात को दोहराया :

अब हम करबू का
,

अब हम करबू का
?”

ब्राह्मणी राजा से बोली, “महाराज, इसका मर्म भी मैं आपको बतला देती हूं। सुनिये:

पांच वर्ष की कन्या साठे दई ब्याह
,

बैठी करम बिसूरती, अब हम करबू का
,

अब हम करबू का।

पांच वर्ष की कन्या को साठ वर्ष के बूढ़े के गले बांध दो तो बेचारी अपना करम पीट कर यही कहेगी-अब हम करबू का, अब हम करबू का ?” सही है न, महाराज !


राजा बोला, “पंडितानी, तुम्हारी यह बात भी सही लगी।


चौथा पहर हुआ तो पक्षी ने चोंच खोली :

सब बम्मन मर जायें
,

सब बम्मन मर जायें !


तभी राजा ने ब्राह्मणी से कहा, “सुनो, पंडितानी, पक्षी जो कुछ कह रहा है, क्या वह उचित है
?”

ब्रहाणी मुस्कायी और कहने लगी, “महाराज ! मैंने पहले ही कहा है कि पक्षी अधकट बात कहता है। वह तो ऐसे सब ब्राह्मणों के मरने की बात कहता है :

विश्वा संगत जो करें सुरा मांस जो खायें
,

बिना सपरे भोजन करें, वै सब बम्मन मर जायें

वै सब बम्मन मर जायें।

जो ब्राह्मण वेश्या की संगति करते हैं, सुरा ओर मांस का सेवन करते हैं और बिना स्नान किये भोजन करते हैं, ऐसे सब ब्रह्राणों का मर जाना ही उचित है। जब बोलिये, पक्षी का कहना ठीक है या नहीं
?”

राजा ने कहा, “तुम्हारी चारों बातें बावन तोला, पाव रत्ती ठीक लगीं। तुम्हारी बुद्धि धन्य है !


राजा-रानी ने उसको बढ़िया कपड़े और गहने देकर मान-सम्मान से विदा किया। अब पुरोहित का सम्मान दरबार में पहले से भी अधिक बढ़ गया था.

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Old 07-02-2014, 03:50 PM   #39
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वियतनाम की लोककथा
स्वर्ग का चाचा


बहुत पहले की बात है। धरती पर दो सालों तक बिलकुल वर्षा नहीं हुई। अकाल पड़ गया।

अपने तालाब को सूखता देख कर मेढ़क को चिंता हुई। उसने सोचा, अगर ऐसा रहा तो वह भूखा मर जाएगा। उसने सोचा कि इस अकाल के बारे स्वर्ग में जाकर वहां के राजा को बताया जाए।

साहस कर मेंढक अकेला ही स्वर्ग की ओर चल पड़ा। राह में उसे मधुमक्खियों का एक झुंड मिला। मक्खियों के पूछने पर उसने बताया कि भूखे मरने से अच्छा है कि कुछ किया जाए। मक्खियों का हाल भी अच्छा नहीं था। जब फूल ही नहीं रहे तो उन्हें शहद कहां से मिलता। वे भी मेंढक के साथ चल दीं।

आगे जाने पर उन्हें एक मुर्गा मिला। मुर्गा बहुत उदास था। जब फसल ही नहीं हुई, तो उसे दाने कहां से मिलते। उसे खाने को कीड़े भी नहीं मिल रहे थे। इसलिए मुर्गा भी उनके साथ चल दिया।

अभी वे सब थोड़ा ही आगे गए थे कि एक खूंखार शेर मिल गया। वह भी बहुत दुखी था। उसे खाने को जानवर नहीं मिल रहे थे। उनकी बातें सुन शेर भी उनके साथ हो लिया।

कई दिनों तक चलने के बाद वे स्वर्ग में पहुंचे। मेंढक ने अपने सभी साथियों को राजा के महल के बाहर ही रुकने को कहा। उसने कहा कि पहले वह भीतर जाकर देख आए कि राजा कहां है।

मेंढक उछलता हुआ महल के भीतर चला गया। कई कमरों में से होता हुआ वह राजा तक पहुंच ही गया। राजा अपने कमरे में बैठा परियों के साथ बातें कर रहा था। मेंढक को क्रोध आ गया। उसने लम्बी छलांग लगाई और उनके बीच पहुंच गया। परियां एकदम चुप हो गईं। राजा को एक छोटे से मेंढक की करतूत देख गुस्सा आ गया।

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Old 07-02-2014, 03:51 PM   #40
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पागल जीव! तुमने हमारे बीच आने का साहस कैसे किया?’ राजा चिल्लाया। परंतु मेंढक बिलकुल नहीं डरा। उसे तो धरती पर भी भूख से मरना था। जब मौत साफ दिखाई दे तो हर कोई निडर हो जाता है।

राजा फिर चीखा। पहरेदार भागे आए ताकि मेंढक को पकड़ कर महल से बाहर निकाल दें। मगर इधर-उधर उछलता मेंढक उनकी पकड़ में नहीं आ रहा था। मेंढक ने मधुमक्खियों को आवाज दी। वे सब भी अंदर आ गईं। वे सब पहरेदारों के चेहरों पर डंक मारने लगीं। उनसे बचने के लिए सभी पहरेदार भाग गए।

राजा हैरान था। तब उसने तूफान के देवता को बुलाया। पर मुर्गे ने शोर मचाया और पंख फड़फड़ा कर उसे भी भगा दिया। तब राजा ने अपने कुत्तों को बुलाया। उनके लिए भूखा खूंखार शेर पहले से ही तैयार बैठा था।

अब राजा ने डर कर मेंढक की ओर देखा। मेंढक ने कहा, ‘महाराज! हम तो आपके पास प्रार्थना करने आए थे। धरती पर अकाल पड़ा हुआ है। हमें वर्षा चाहिए।

राजा ने उससे पीछा छुड़ाने के लिए कहा, ‘अच्छा चाचा! वर्षा को भेज देता हूं।

जब वे सब साथी धरती पर वापस आए तो वर्षा भी उनके साथ थी। इसलिए वियतनाम में मेंढक को स्वर्ग का चाचाकह कर पुकारा जाता है। लोगों को जब मेंढक की आवाज़ सुनाई देती है वे कहते हैं, ‘चाचा आ गया तो वर्षा भी आती होगी।
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