14-12-2014, 02:08 PM | #31 |
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Re: जीवनोपयोगी संस्कृत के श्लोक - अर्थ
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************************************ मेरी चित्रशाला : दिल दोस्ती प्यार ....या ... . तुमने मजबूर किया हम मजबूर हो गये ,... तुम बेवफा निकले हम मशहूर हो गये .. एक " तुम " और एक मोहब्बत तेरी, बस इन दो लफ़्ज़ों में " दुनिया " मेरी.. ************************************* |
16-12-2014, 07:18 PM | #32 |
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Re: जीवनोपयोगी संस्कृत के श्लोक - अर्थ
मैं आया हूँ घोड़े पे सवार ...तेज ...तेज ... सोच रहा हूँ १००० पोस्ट पूरे होने पर एक भी बधाई नहीं दी किसी ने अभी तक अच्छा भाई ...लोग काम पर बीजी हैं मैं खुद ही बधाई ...दे लेता हूँ खुद को ....सबकी और से .... १००० पोस्ट वो भी इतनी जल्दी पूरे होने पर देवराज जी को हार्दिक बधाइयां
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07-01-2015, 05:33 PM | #33 |
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Re: जीवनोपयोगी संस्कृत के श्लोक - अर्थ
अलसस्य कुतो विद्या , अविद्यस्य कुतो धनम् |
अधनस्य कुतो मित्रम् , अमित्रस्य कुतः सुखम् || अर्थात् : आलसी को विद्या कहाँ अनपढ़ / मूर्ख को धन कहाँ निर्धन को मित्र कहाँ और अमित्र को सुख कहाँ |
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07-01-2015, 05:34 PM | #34 |
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Re: जीवनोपयोगी संस्कृत के श्लोक - अर्थ
आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः |
नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति || अर्थात् : मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |
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07-01-2015, 05:34 PM | #35 |
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Re: जीवनोपयोगी संस्कृत के श्लोक - अर्थ
चन्दनं शीतलं लोके ,चन्दनादपि चन्द्रमाः |
चन्द्रचन्दनयोर्मध्ये शीतला साधुसंगतिः || अर्थात् : संसार में चन्दन को शीतल माना जाता है लेकिन चन्द्रमा चन्दन से भी शीतल होता है | अच्छे मित्रों का साथ चन्द्र और चन्दन दोनों की तुलना में अधिक शीतलता देने वाला होता है |
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07-01-2015, 05:34 PM | #36 |
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Re: जीवनोपयोगी संस्कृत के श्लोक - अर्थ
अयं निजः परो वेति गणना लघु चेतसाम् |
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् | अर्थात् : यह मेरा है ,यह उसका है ; ऐसी सोच संकुचित चित्त वोले व्यक्तियों की होती है;इसके विपरीत उदारचरित वाले लोगों के लिए तो यह सम्पूर्ण धरती ही एक परिवार जैसी होती है |
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07-01-2015, 05:35 PM | #37 |
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Re: जीवनोपयोगी संस्कृत के श्लोक - अर्थ
अष्टादश पुराणेषु व्यासस्य वचनद्वयम् |
परोपकारः पुण्याय पापाय परपीडनम् || अर्थात् : महर्षि वेदव्यास जी ने अठारह पुराणों में दो विशिष्ट बातें कही हैं | पहली –परोपकार करना पुण्य होता है और दूसरी — पाप का अर्थ होता है दूसरों को दुःख देना | ———
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07-01-2015, 05:35 PM | #38 |
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Re: जीवनोपयोगी संस्कृत के श्लोक - अर्थ
श्रोत्रं श्रुतेनैव न कुंडलेन ,
दानेन पाणिर्न तु कंकणेन , विभाति कायः करुणापराणां , परोपकारैर्न तु चन्दनेन || अर्थात् :कानों की शोभा कुण्डलों से नहीं अपितु ज्ञान की बातें सुनने से होती है | हाथ दान करने से सुशोभित होते हैं न कि कंकणों से | दयालु / सज्जन व्यक्तियों का शरीर चन्दन से नहीं बल्कि दूसरों का हित करने से शोभा पाता है |
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07-01-2015, 05:35 PM | #39 |
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Re: जीवनोपयोगी संस्कृत के श्लोक - अर्थ
पुस्तकस्था तु या विद्या ,परहस्तगतं च धनम् |
कार्यकाले समुत्तपन्ने न सा विद्या न तद् धनम् || अर्थात् : पुस्तक में रखी विद्या तथा दूसरे के हाथ में गया धन—ये दोनों ही ज़रूरत के समय हमारे किसी भी काम नहीं आया करते |
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07-01-2015, 05:35 PM | #40 |
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Re: जीवनोपयोगी संस्कृत के श्लोक - अर्थ
विद्या मित्रं प्रवासेषु ,भार्या मित्रं गृहेषु च |
व्याधितस्यौषधं मित्रं , धर्मो मित्रं मृतस्य च || अर्थात् : ज्ञान यात्रा में ,पत्नी घर में, औषध रोगी का तथा धर्म मृतक का ( सबसे बड़ा ) मित्र होता है |
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