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Old 02-03-2013, 06:23 PM   #31
jai_bhardwaj
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फिर घाव दे गया भारत को, कर गया कलंकित लोकतंत्र !
कायर सा छिपकर परदे में, देकर बयान बहलाते हो !
हो गई छिन्न कितनी काया, कितने घायल लाचार हुए !
पुंसत्वहीन कापुरुष ! व्यर्थ तुम जन-नायक कहलाते हो !!
.
था ज्ञात कि होगी अनहोनी, फिर भी प्रतिकार न कर पाये !
कर सके नहीं कोई उपाय, जिससे यह संकट टल जाये !
भारत की जनता की आँखें, कर रही प्रश्न यह बार-बार !
” आतंकी खूनी पंजे ” का, कबतक झेलेंगे हम प्रहार !!
.
फिर से तुमको दे गया चोट, गालों पर चाँटा मार गया !
फिर एक नया खूनी मंजर, दे कर तुमको उपहार गया !
सोने-चाँदी से भरा पेट, अब लाशें गिन, दिल बहलाओ !
“हम कड़ी सजा देंगे” ऐसा कह फिर जनता को समझाओ !!
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

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Old 02-03-2013, 06:24 PM   #32
jai_bhardwaj
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जाकर पूछो उन बच्चों से, होकर अनाथ जो रोते हैं !
आँखों में उनके अश्रु नहीं, लोहू से गाल भिगोते हैं !
जाकर पूछो उन माँओं से, विधवावों से, अबलाओं से !
उस घर से, गली मोहल्ले से, जाकर पूछो उन गाँवों से !!
.
हो गए काल-कवलित कितने, कितने घायल लाचार हुए !
जाने कितने जीवन भर को, बेबस-अपंग बेकार हुए !!
पर तुमको क्या, तुम तो मुआवजा देकर छुट्टी पा लोगे !
तुम तो ऐसे नर-राक्षस हो, जो सड़ी-गली भी खा लोगे !!
.
पर रहे ध्यान अब जाग रहा है, भारत का बच्चा-बच्चा !
तुम लाख छिपाओ अपने को, नंगा हो रहा घृणित चेहरा !
“तुम हो विशिष्ट” यह बारूदी विस्फोट नहीं पहचानेगा !
श्रीमन्त आज कहलाते हो, पल में “स्वर्गीय” बना देगा !!


(अंतरजाल के पिटारे से )
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Old 11-03-2013, 07:27 PM   #33
jai_bhardwaj
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पुनर्जन्म : सत्य और कल्पना के मध्य झूलता एक विषय


पिछले जन्म के किस्से और अतीत की यादों से जुड़ी कहानियां तो आपने कई बार सुनी होंगी, जिनमें से कुछ को आपने मनगढ़ंत कहा होगा तो कुछ इतनी मजेदार होंगी जिन्हें सुनकर जिज्ञासा भले ही ना हो लेकिन अच्छा टाइम पास तो आपके लिए जरूर होंगी. लेकिन यहां हम आपको जिस घटना के बारे में बताने जा रहे हैं उस पर विश्वास करना आपके लिए मजबूरी बन जाएगी क्योंकि वह ना तो मनगढ़ंत है और ना ही फिजूल.


आप क्या राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी एक बार सकते में आ गए थे कि क्या वाकई शांति देवी और उनके पिछले जन्म का आज भी कुछ नाता है. इस केस को सुलझाने के लिए महात्मा गांधी ने जांच एजेंसी भी गठित करवाई और इससे संबंधित रिपोर्ट जब 1936 में प्रकाशित हुई तब लोगों ने जाना शांति देवी और उनके अतीत की कहानी को.

जब शांति देवी महज चार साल की थी तभी उन्हें उनके पिछले जन्म की यादें परेशान करने लगी थीं. दिल्ली में रहने वाली शांति देवी का कहना था कि उनका घर मथुरा में है जहां उनका पति उनकी राह देख रहा है. जब परिवारवालों ने उसकी यह बातें नजरअंदाज कर दी तो मथुरा पहुंचने के लिए वह छ: साल की उम्र में घर से भाग गई. जब उसे स्कूल में दाखिल करवाया गया तो वो वहां सभी को यही कहती कि वह शादीशुदा है और बच्चे के जन्म देने के 10 दिन बाद उसकी मृत्यु हो गई थी.

जब उनके अध्यापकों और स्कूल में पढ़ने वाले अन्य बच्चों से इस मसले पर बात की गई तो सभी का यह कहना था कि वह मथुरा की क्षेत्रीय भाषा में बात करती थी और बार-बार अपने पति केदारनाथ का नाम लेती थी.


स्कूल के हेडमास्टर का कहना था कि इस घटना के बाद उन्होंने मथुरा में रहने वाले केदारनाथ को भी ढूंढ़ निकाला था जिनकी पत्नी लुग्दी देवी की मौत बच्चे के जन्म के दस दिन बाद ही हो गई थी. केदारनाथ और उनके बेटे को दिल्ली बुलाया गया, शांति देवी के सामने उन्हें अलग नाम देकर पेश किया गया लेकिन शांति देवी ने उन्हें देखते ही पहचान लिया कि वह लुग्दी देवी का परिवार है.


शांति देवी ने केदारनाथ को कई ऐसी घटनाओं के बारे में बताया जिसे जानने के बाद केदारनाथ को यह विश्वास हो गया कि वह उसी की पत्नी है.

यह मसला महात्मा गांधी के पास आया तो उन्होंने एक एजेंसी का गठन करवाया जिसे इस केस की जांच करने की जिम्मेदारी सौंपी गई. इसके बाद जांच अधिकारी शांति देवी के साथ मथुरा गए और वहां जाकर उन्हें कई हैरतंगेज घटनाओं से दो-चार होना पड़ा.

शांति देवी वहां सभी को पहचानती थीं. केदारनाथ और लुग्दी देवी के सभी रिश्तेदार, घर आदि सब कुछ शांति को पता था. जब शांति देवी का कहना था कि लुग्दी देवी जब अपना देह त्यागने वाली थी तब उनके पति ने कई वायदे किए थे जिन्हें वह अब तक पूरा नहीं कर पाया है.

जांच में घटित समिति ने यह निष्कर्ष निकाला था कि शांति देवी के रूप में लुग्दी देवी ने ही दूसरा जन्म लिया है.

शांटि देवी उम्रभर अविवाहित रहीं, खुद को सही साबित करने के लिए उन्हें अपने जीवन में कई साक्षात्कारों से गुजरना पड़ा. उन्होंने अंतिम साक्षात्कार अपनी मौत से महज 4 दिन पहले दिया था जिसमें उन्होंने लुग्दी देवी के दर्द को बयां किया जब वह अपने जीवन के अंतिम क्षणों में थी.
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Old 11-03-2013, 07:31 PM   #34
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शांत नदी

पांच हजार साल पुरानी एक ऐसी कहानी जिसे सुनकर आपके होश उड़ जाएंगे. कहते हैं चेनाब नदी का बहाव अन्य किसी भी नदी से बहुत तेज है. तो फिर क्या कारण है कि वह चलती तो लहराती है लेकिन उसका शोर किसी को सुनाई देता? चेनाब नदी को लोग तेज रफ्तार से बहने वाली नदी के तौर पर जानते हैं लेकिन अचानक ऐसा क्या हुआ कि वो बहती तो है लेकिन इतने शांत तरीके से कि किसी को भी उसकी आवाज सुनाई नहीं देती?

इस सवाल का जवाब हमारे इतिहास के पन्नों में दर्ज है. महाभारत काल में हुए कौरव-पांडव युद्ध के बारे में तो आपने सुना ही होगा. इस दौरान पांडवों को मिले अज्ञातवास के विषय में भी आप सभी जानते होंगे. लेकिन शायद आप यह नहीं जानते कि इस अज्ञातवास के दौरान कुछ ऐसा घटित हुआ था जिसने चेनाब से उसका शोर, उसकी आवाज सब कुछ छीन लिया था.


कई दिनों तक भटकने के बाद पांडव एक गुफा में आए. जब उन्हें पता चला कि यह इलाका राजा विराट का है तो उनके पास वेष बदलकर रहने के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचा. वेष बदलकर वह राजा विराट के पास नौकरी मांगने पहुंचे. जब पांडव राजा के दरबार में पहुंचे तो राजा विराट ने उन्हें देखते ही पहचान लिया कि यह अति बलशाली पांडवों की सेना है जो कौरवों से मिली शिकस्त के बाद अज्ञातवास में रहने के लिए विवश है. सब कुछ जानने और समझने के बावजूद राजा विराट कुछ नहीं बोले.

विराट पांडवों को अपने यहां नौकरी पर रखने के लिए राजी हो गए और सौ हाथियों की ताकत लिए भीम को रसोई में खाना पकाने का काम सौंपा गया.


दिनभर खाना बनाने, सब्जी काटने जैसे काम करने के बाद भीम चेनाब के किनारे तपस्या करने चले जाते. उनकी इस तपस्या के बारे में राज्य का कोई अन्य व्यक्ति क्या खुद उनके अपने भाई ही नहीं जानते थे. यहां तक कि नगर के राजा विराट भी यह नहीं समझ पा रहे थे कि आखिर शाम ढलते ही भीम कहां चले जाते हैं, जाहिर है उनसे पूछने की हिम्मत तो किसी की थी नहीं इसीलिए राजा भी अपनी जिज्ञासा का समाधान नहीं ढूंढ़ पा रहे थे.

भीम की तपस्या के साथ ही शुरू हुई चेनाब नदी की शांत दास्तां जिसे सुनकर आपको यह एहसास हो जाएगा कि महाबली भीम का गुस्सा कितना खतरनाक था.

अखनूर (जम्मू) में चेनाब नदी के किनारे स्थित किले में एक गुफा है जिसमें एक गाय और छोटे बच्चों के पैरों के निशान दिखाई देते हैं, जिनका संबंध कौरवों के उसी अज्ञात वास से है जिसका जिक्र हम पहले भी कर चुके हैं. इन गुफाओं के अंदर जो दस्तावेज मिले हैं वह ऐतिहासिक दृष्टि से आज भी बेहद महत्वपूर्ण हैं.

पुराने और कटे-फटे दस्तावेजों में भीम की तपस्या और चेनाब की शांति से जुड़ी एक कहानी दर्ज है और वह यह कि जब अज्ञातवास के दौरान पांडव नौकरी करने लगे तब उन्हें नौकरी में तो दिक्कत नहीं आई लेकिन भीम जब तपस्या करने जाते तो उन्हें बहुत दिक्कत आती थी और वह भी सिर्फ चेनाब के शोर की वजह से.

भीम चाहते तो एक ही बार में अपनी इस परेशानी को भी हल कर सकते थे लेकिन वह डरते थे कि अगर उनका राज खुल गय तो अज्ञातवास की सीमा और ज्यादा बढ़ जाएगी इसीलिए भीम को अपना गुस्सा शांत रखना पड़ता था.


समय ऐसा ही गुजरता रहा और भीम का क्रोध भी दिनोंदिन बढ़ने लगा. लेकिन एक दिन जब भीम अपनी तपस्या में लीन थे तो उसी समय चेनाब तेज आवाज के साथ बहने लगी. भीम की तपस्या बाधित हुई. भीम ने शांतिपूर्वक पहले चेनाब को बोला कि वह बहते हुए इतना शोर ना करे क्योंकि इससे उनकी तपस्या में खलल पड़ता है.

वह हर संभव प्रयत्न करते रहे कि उन्हें क्रोध ना आए क्योंकि क्रोध आ जाने पर उनका राज खुल जाता. वह चेनाब से मिन्नतें करते रहे और चेनाब उनकी एक मानने को तैयार नहीं हुई. इसके विपरीत भीम जितना चेनाब से शांत रहने को कहते वह उतना ज्यादा ही शोर करती.


जब भीम से सहन नहीं हुआ तो वह अपनी जगह पर खड़े होकर इतना तेज गरजे कि चेनाब की लहरें शांत हो गईं और कहते हैं तब से लेकर अब तक चेनाब बहती तो है लेकिन शांत गति से
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Old 11-03-2013, 08:01 PM   #35
jai_bhardwaj
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राम-रावण युद्ध और उसमें हुई रावण की हार के बारे में तो आप सभी जानते हैं. यह युद्ध क्यों हुआ था इस तथ्य से भी आप भली-भांति परिचित हैं. शिव भक्त और एक महान विद्वान होने के बाद भी रावण ने सीता हरण जैसा अक्षम्य अपराध कर स्वयं अपनी मौत को आमंत्रित किया था. अभिमानी और अतिरेक आत्मविश्वासी होने के कारण रावण सही–गलत जैसी बातों से दूर होता चला गया जिसके परिणामस्वरूप भगवान श्रीराम के हाथों उसका वध हुआ. रावण के विषय में यह सभी बातें तो हम जानते ही हैं लेकिन असुर राज रावण के संबंध में कुछ ऐसी बातें भी हैं जिनसे कभी आपका परिचय नहीं हुआ. इस लेख में हम आपको विद्वानों में श्रेष्ठ रहे रावण से जुड़ी कुछ विशेष जानकारियों से अवगत करवा रहे हैं.

1. महिलाओं को भोग की वस्तु समझता था रावण: रावण के चरित्र की सबसे बड़ी खामी थी उसका महिलाओं के साथ एक वस्तु जैसा व्यवहार करना. और वो भी ऐसी वस्तु जिसका कभी भी उपभोग किया जा सकता है. उसके इसी स्वभाव के कारण रंभा और सीता द्वारा दिए गए श्राप के कारण ही उसका विनाश हुआ. कहते हैं दुनिया में सबसे पहले जो पांच संतानें पैदा हुई उनमें से पहली तीन लड़कियां थी. भगवान ने महिलाओं को आगे रखा और जो उनके प्रति दुर्भावना रखना है ईश्वर उन्हें कभी माफ नहीं करता. बस यही रावण के लिए सबसे अधिक विनाशकारी साबित हुआ.

2. विरोधियों को क्षमा ना कर पाना: रावण को अपनी तारीफ सुनने की बहुत बुरी आदत थी. वह उन लोगों को कभी माफ नहीं कर पाता था जो उसकी निंदा करते थे. वह भले ही अपनी जगह कितना ही गलत क्यों ना हो लेकिन अगर कोई उसे उसकी गलती का अहसास करवाने की कोशिश भी करता था तो भी उसे बहुत क्रोध आता है. वह अपने शुभचिंतकों को अपने से दूर कर बैठा जैसे उसका भाई विभीषण, नाना माल्यवंत आदि.

3. शराब को प्रचारित करना: रावण चाहता था कि शराब से दुर्गंध समाप्त कर दी जाए ताकि अधिक से अधिक लोग इसे पीना शुरू कर दें. रावण का मानना था कि शराब पीने से लोगों का विवेक शून्य हो जाएगा और वे अधर्म के रास्ते पर चल पड़ेंगे.

4. ईश सत्ता को चुनौती: रावण स्वर्ग तक पहुंचने के लिए सीढ़ियों का निर्माण करना चाहता था. वह इतनी लंबी सीढ़ियां बनाना चाहता था जो सीधे स्वर्ग तक पहुंचती हों. रावण का उद्देश्य था कि लोग ईश्वर को मानना बंद कर दें और उसे ही भगवान समझकर पूजें.

5. अपनी शक्ति पर अत्याधिक भरोसा: रावण अपनी शक्ति पर बहुत ज्यादा भरोसा करता था. उसे अपनी ताकत पर गुरूर था इसीलिए वह कई बार बिना सोचे-समझे युद्ध के लिए चला जाता था. रावण भगवान शिव, सहस्त्रबाहु, बाली आदि से युद्ध में पराजित हुआ था. अपनी शक्ति पर भरोसा कर वह किसी को भी युद्ध के लिए ललकार देता था.


6. रक्त का रंग सफेद: रावण ने युद्ध में बहुत से लोगों का खून बहाया. इतना की नदियां तक लाल रंग से रंगीन हो गईं. प्रकृति का संतुलन बिगड़ता देख देवता और अन्य लोग रावण से नाराज हो गए इसीलिए रावण यह चाहता था कि खून का लाल ना होकर सफेद हो जाए ताकि युद्ध में कितने लोग मारे गए या कितने लोगों का खून बहा किसी को पता ही ना चल पाए.

7. काला रंग: रावण का रंग बेहद काला था. कई बार उसे अपने रंग की वजह से शर्मिंदा भी होना पड़ा. उसके गुप्त इच्छा थी कि धरती पर जितने भी लोग हैं उन सभी का रंग काला हो जाए ताकि कभी कोई उसका अपमान ना कर सके.

8. संगीत का जादूगर: रावण संगीत का एक महान ज्ञानी था. विद्या और संगीत की देवी सरस्वती के हाथ में जो वीणा है उसका आविष्कार भी रावण ने ही किया था. रावण ज्योतिष, तंत्र-मंत्र और आर्युवेद का भी अच्छा ज्ञाता था.

9. सोने की सुगंध: रावण दुनियाभर के जितने भी सोने की खदाने हैं या फिर स्वर्ण मुद्राएं हैं सभी पर अपना अधिकार स्थापित करना चाहता था. वह चाहता कि सोने में एक विशेष प्रकार की सुगंध डाल दी जाए ताकि यह आसानी से पता चल सके कि सोना कहां छिपा है.

10. रावण की हार: राजा बालि ने रावण को अपनी बाजू में दबा कर चार समुद्रों की परिक्रमा की थी. आपको विश्वास नहीं होगा लेकिन यह सत्य है कि बालि इतना ताकतवर था कि वो रोज सुबह चार समुद्रों की परिक्रमा कर सूर्य को अर्घ्य देता था. अत्याधिक ताकतवर होने के बावजूद जब रावण पाताल के राजा बलि के साथ युद्ध करने गया तो राजा बलि के भवन में खेल रहे बच्चों ने ही उसे पकड़कर अस्तबल में घोड़ों के साथ बांध दिया था. इसके अलावा सहस्त्रबाहु अर्जुन ने अपने हजार हाथों से नर्मदा के बहाव को रोक कर पानी इकट्ठा किया और उस पानी में रावण को सेना सहित बहा दिया था. बाद में जब रावण युद्ध करने पहुंचा तो सहस्त्रबाहु ने उसे बंदी बनाकर जेल में डाल दिया. रावण भगवान शिव से भी युद्ध में हारा था. इस हार के बाद रावण ने शिव को अपना गुरू बना लिया था.
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जहां एक तरफ पारंपरिक भारतीय समाज में विवाह पूर्व शारीरिक संबंधों को पूरी तरह निंदनीय और निषेध माना जाता है वहीं भारत में रहने वाली एक जनजाति ऐसी भी है जहां किसी भी जोड़े को विवाह योग्य तभी माना जाता है जब विवाह से पहले ही उनकी संतान जन्म ले ले. हो सकता है यह सुनकर आपको थोड़ा अटपटा लगे लेकिन सच यही है कि जलपाईगुड़ी (पश्चिम बंगाल) के टोटोपाड़ा में रहने वाली जनजाति ‘टोटो’ ऐसा ही एक समुदाय है जहां विवाह वैध ही तब माना जाता है जब महिला-पुरुष विवाह से पहले एक-वर्ष तक साथ रहे हों और उनकी एक संतान हो.

टोटोपाड़ा, भारत और भूटान सीमा से लगा हुआ ऐसा क्षेत्र है जहां की परंपरा और संस्कृति अलग है. यहां के लोगों का रहन-सहन अनोखा और हैरान कर देने वाला है. अन्य समाजों और समुदायों की तरह इस जनजाति की भी विवाह से संबंधित कुछ शर्ते होती हैं जिसमें विवाह से पहले लड़की का मां बनना सबसे महत्वपूर्ण है.

टोटो जनजाति से संबंधित लड़के को जो भी लड़की पसंद आती है वह रात के समय उसे लेकर भाग जाता है. लड़की को भगाने के पश्चात वह एक वर्ष तक उसे अपने घर में रखता है. साथ रहने के दौरान अगर वह लड़की मां बन चुकी या बनने वाली होती है तभी उनके जोड़े को विवाह करने की स्वीकृति दी जाती है. लड़का और लड़की के परिवार वाले मिलकर बड़ी धूमधाम के साथ उन दोनों की शादी करवा देते हैं.



अगर आपको यह लग रहा है कि टोटो जनजाति के लोग विवाह की महत्ता को नहीं समझते तो आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि वैवाहिक संबंधों की मर्यादा को बनाए रखने के लिए ही कठोर नियम बनाए हैं जिनके अनुसार अगर कोई जोड़ा अलग होना चाहता है तो इसके लिए उसे बहुत अधिक खर्च करना पड़ता है. उन्हें एक विशेष प्रकार की पूजा का आयोजन करना पड़ता है जो बहुत महंगी साबित होती है. इसका खर्च विवाह से भी ज्यादा हो जाता है.

ऐसा माना जाता है कि टोटो जनजाति दुनिया की लुप्त हो चुकी या सबसे कम जनसंख्या वाली जनजातियों में से एक है. उल्लेखनीय है कि इस जनजाति पर परिवार नियोजन या नसबंदी कार्यक्रम चलाया जाना प्रतिबंधित है. उनकी कुल संख्या केवल 1265 है. 1991 की जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक़ उनकी आबादी 936 थी.
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जाकर पूछो उन बच्चों से, होकर अनाथ जो रोते हैं !
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(अंतरजाल के पिटारे से )


उक्त पूरी रचना में भावों की सशक्त अभिव्यक्ति हुयी है. इसमें एक निरीह व निर्दोष व्यक्ति का आतंक के प्रति दुःख, क्रोध, नफ़रत, प्रतिशोध अपने पूरी तीव्रता से हमारे आमने आते हैं. इस रचना के ज्ञात या अज्ञात कवि को हमारा नमन.
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jai_bhardwaj
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चीनी महिलायें पैर की उंगलियाँ तुड़वाकर करती हैं सौन्दर्य विधान

विश्व पटल पर भारत की छवि एक ऐसे देश की है जो हमेशा से अपनी परंपराओं और मान्यताओं के विषय में गंभीर रहा है. आमतौर पर यही समझा जाता है कि भारतीय प्रथाएं चाहे कितनी ही क्रूर या जटिल क्यों ना हों फिर भी पूरी तन्मयता के साथ उनका पालन किया जाता है.

लेकिन अगर आप भी ऐसा ही कुछ सोचते हैं तो आपको अपनी जानकारी के क्षेत्र को थोड़ा विस्तारित करने की आवश्यकता है. क्योंकि भले ही भारत में अनेक जटिल परंपराएं विद्यमान हैं या रही हों लेकिन भारत के पड़ोसी देश चीन में व्याप्त सदियों पुरानी परंपराएं किसी को भी हैरान करने के लिए काफी हैं.

आपको यह जानकर बेहद आश्चर्य होगा कि एक लंबे समय तक चीन में फुटबाइंडिंग नाम से एक ऐसी अमानवीय प्रथा विद्यमान थी जिसके अंतर्गत बचपन में ही महिलाओं के पैर को इस तरह बांध दिया जाता था ताकि वह ज्यादा ना बढ़ सके. उल्लेखनीय है कि पौराणिक चीनी मान्यताओं में महिलाओं के छोटे पैरों को ही सुंदरता की पहचान समझा जाता था. इसीलिए महिलाओं की सुंदरता बनाए रखने के लिए उनकी फुटबाइंडिंग की जाती थी.

फुटबाइंडिंग नामक यह प्रथा 10वीं से 20वीं शताब्दी तक प्रचलित रही. इसके अंतर्गत 6 वर्ष या उससे भी छोटी आयु में लड़कियों की फुटबाइंडिंग की जाती थी. फुटबाइंडिंग के कारण महिलाओं के पैर 4-5 इंच से ज्यादा नहीं बढ़ पाते थे. लंबे समय तक प्रचलित इस प्रथा के कारण कई महिलाएं अपंगता की शिकार हो गईं क्योंकि उनके पैरों का सही विकास नहीं हो पाया था.

कैसे की जाती थी फुटबाइंडिंग
फुटबाइंडिंग की शुरूआत में सबसे पहले दोनों पैरों को जानवरों के रक्त और विभिन्न जड़ी बूटियों के गर्म मिश्रण में भिगोया जाता था. इसके बाद बच्चियों के पैर के नाखूनों को जितना हो सकता था काटा जाता था. मिश्रण में भीगे पैरों की कुछ देर तक मालिश की जाती थी उसके बाद पैर की सभी अंगुलियों को अमानवीय तरीके से तोड़ दिया जाता था. अंगुलियां तोड़ने के बाद उस मिश्रण में भिगोई एक इंच चौड़ी और दस फीट लंबी रस्सी से उनके पैरों को बांध दिया जाता था. बांधने के दौरान यह बात ध्यान रखी जाती थी कि टूटी अंगुलियों की दिशा एड़ी की तरफ हो ताकि पैर का विकास ना हो पाए.
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बर्मा और थाइलैंड की पर्वत चोटियों के बीच रहने वाली कायन जनजाति हमेशा से ही वहां जाने वाले पर्यटकों को आकर्षित करती रही है. कायन या पाडाउंग जनजाति का संबंध बर्मा और तिब्बत में रहने वाले जनजातियों के साथ माना जाता है. 80 के दशक के अंत और 90 के दशक के शुरूआती समय में जब बर्मा पर सेना ने शासन स्थापित कर लिया था उस समय बर्मा में रहने वाली यह जनजातियां अपना निवास स्थान छोड़कर थाइलैंड के बॉर्डर क्षेत्रों में रहने आ गई थीं. लेकिन आज भी इन्हें कुछ खास कानूनी अधिकार नहीं दिए गए हैं. कायन जनाजाति की जनसंख्या 40,000 के आसपास है

कायन जनजाति के प्रति बढ़ती दिलचस्पी का प्रमुख और एकमात्र कारण इस जनजाति की महिलाओं का विचित्र पहनावा और इनकी सदियों पुरानी मान्यताएं हैं. आमतौर पर महिलाओं को नाजुक और कोमल समझा जाता है, लेकिन कायन महिलाएं इस धारणा की अपवाद हैं. आपको यह जानकर बेहद अश्चर्य होगा कि यह कायन महिलाएं अपनी नाजुक गर्दन में भारी-भारी कांस्य के छल्ले पहनती हैं जिनकी संख्या उम्र के साथ-साथ बढ़ती जाती है. जब बच्ची पांच वर्ष की होती है तब से यह सिलसिला प्रारंभ होता है और जैसे जैसे उसकी आयु बढ़ती है छल्लों का भार और उनका आकार भी बढ़ता जाता है.



सदियों से यह परंपरा कायन जाति की महिलाओं की पहचान रही है. इस प्रथा को अपनाने का मुख्य कारण गर्दन की लंबाई को बढ़ाना है जिससे कायन महिलाएं और अधिक सुंदर और आकर्षक लगें. हालांकि कुछ लोगों का यह भी मानना है कि इस प्रथा का उद्देश्य कभी भी महिलाओं को सुंदर दर्शाना नहीं था बल्कि महिलाओं को दास-प्रथा से बचाने के लिए उन्हें भद्दा और बदसूरत प्रदर्शित किया जाता था.

आज कायन महिलाएं इस प्रथा को अपनी पहचान समझने लगी हैं जो उनकी सुंदरता से संबंध रखती है. गले में पहने गए यह छल्ले इस बात को निश्चित करते हैं कि कायन महिलाएं केवल अपने समुदाय के पुरुषों के साथ ही विवाह करने के लिए बाध्य हैं. एक बार कांस्य के यह छल्ले पहनने के बाद इन्हें उतारना लगभग असंभव है. हालंकि अगर उन्हें कभी चिकित्सीय जांच की जरूरत पड़े तो वह इन छल्लों को उतार सकती हैं लेकिन अब यह भारी छ्ल्ले जिनका वजन पांच किलो तक होता है, उनके शरीर का एक आवश्यक हिस्सा बन गए हैं.



वैसे तो यह कायन महिलाएं अपनी कलाई और जोड़ों पर भी यह छल्ले पहनती हैं पर यह कभी भी पर्यटकों को उतना आकर्षित नहीं कर पाया जितना गले में पड़े यह छ्ल्ले करते हैं. कायन समुदाय को देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं जो राजस्व का एक बहुत महत्वपूर्ण जरिया बन गया है.
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कहीं नोट जलें .... कही दिल ....


दुनियां में जहां एक ओर धनवान व्यक्तियों का बैंक-बैलेंस और अधिक बढ़ता जा रहा है, वहीं निर्धनता का स्तर भी कम होने का नाम नहीं ले रहा. यद्यपि भारत जैसे प्रगतिशील देश अभी अपने नागरिकों के आर्थिक स्तर को सुधारने का प्रयत्न कर रहे हैं लेकिन फिर भी बहुत से ऐसे लोग हैं जो अपनी न्यूनतम जरूरतों को पूरा कर पाने में भी असमर्थ हैं. हां, यह बात और है कि इन लोगों की सहायता के लिए सरकार या फिर निजी स्तर पर कई कार्यक्रमों का संचालन किया जाता रहा है, जिसके चलते वंचित वर्ग को थोड़ी ही सही राहत अवश्य मिल जाती है.

लेकिन अगर आप ऐसा सोच रहे हैं कि गरीबी का दंश केवल प्रगतिशील देशों को ही अपनी चपेट में ले रहा है तो हो सकता है आपको यह जानकर हैरानी हो लेकिन हंगरी (यूरोप) में गरीबी का स्तर काफी अधिक है. यहां पर भी बड़ी संख्या में लोग जीवन के लिए आवश्यक सुविधाओं से पूरी तरह वंचित हैं.

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि यूरोपियन देशों में बहुत अधिक ठंड पड़ती है. इतनी कि ठंड के कारण कितने ही लोग हर वर्ष अपनी जान गंवा देते हैं.

ठंड में दूसरों की सहायता करने के उद्देश्य से कंबल और चादरों का दान करने जैसी बात तो आपने अवश्य सुनी होगी लेकिन बढ़ती सर्दी में निर्धनों की सहायता करने के लिए बुडापेस्ट का एक बैंक अपने नोट जला रहा है ताकि उनकी सेंक से निर्धन लोग सर्दी से बचाव कर सकें.

बुडापेस्ट स्थित हंगरी का सैंट्रल बैंक हर वर्ष लगभग 40-50 टन पुराने नोटों को जलाता है. इस बार उन्होंने निर्णय किया कि इन नोटों को चैरेटी में दान कर गरीबों की सहायता की जानी चाहिए. अपने इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए बैंक इन पुराने नोटों की गड्डियों को एक विशेष प्रकार के ईंधन (भूरे कोयले की तरह) में तब्दील कर रहा है ताकि इस ईंधन से गरीब लोगों को सर्दी से राहत प्रदान की जा सके
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