22-12-2014, 08:00 PM | #31 |
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Re: कुछ पल जगजीत सिंह के नाम :देवराज के साथ
साथ आया है तुम्हारे जो तुम्हारे घर से, अपने माथे से हटा दो ये चमकता हुआ ताज, फेंक दो जिस्म से किरणों का सुनहरी जेवर, तुम्ही तनहा मेरा ग़म खाने में आ सकती हो, एक मुद्दत से तुम्हारे ही लिए रखा है, मेरे जलते हुए सीने का दहकता हुआ चाँद..
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************************************ मेरी चित्रशाला : दिल दोस्ती प्यार ....या ... . तुमने मजबूर किया हम मजबूर हो गये ,... तुम बेवफा निकले हम मशहूर हो गये .. एक " तुम " और एक मोहब्बत तेरी, बस इन दो लफ़्ज़ों में " दुनिया " मेरी.. ************************************* |
22-12-2014, 08:00 PM | #32 |
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Re: कुछ पल जगजीत सिंह के नाम :देवराज के साथ
हम तो यूँ अपनी ज़िन्दगी से मिले,
अजनबी जैसे अजनबी से मिले, हर वफ़ा एक जुर्म हो गया, दोस्त कुछ ऎसी बेरुखी से मिले, फूल ही फूल हमने मांगे थे, दाग ही दाग ज़िंदगी से मिले, जिस तरह आप हम से मिलते हैं, आदमी यूँ न आदमी से मिले..
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22-12-2014, 08:01 PM | #33 |
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Re: कुछ पल जगजीत सिंह के नाम :देवराज के साथ
होंठों से छू लो तुम मेरा गीत अमर कर दो,
बन जाओ मीत मेरे मेरी प्रीत अमर कर दो, न उम्र की सीमा हो न जनम का हो बंधन, जब प्यार करे कोई तो देखे केवल मन, नयी रीत चला कर तुम ये रीत अमर कर दो, आकाश का सूनापन मेरे तन्हा मन में, पायल छनकाती तुम आ जाओ जीवन में, साँसें देकर अपनी संगीत अमर कर दो, जग ने छीना मुझसे मुझे जो भी लगा प्यारा, सब जीता किये मुझसे मैं हर दम ही हारा, तुम हार के दिल अपना मेरी जीत अमर कर दो..
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22-12-2014, 08:01 PM | #34 |
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Re: कुछ पल जगजीत सिंह के नाम :देवराज के साथ
ये करें और वो करें ऐसा करें वैसा करें,
ज़िन्दगी दो दिन की है दो दिन में हम क्या क्या करें, जी में आता है की दें परदे से परदे का जवाब, हम से वो पर्दा करें दुनिया से हम पर्दा करें, सुन रहा हूँ कुछ लुटेरे आ गये हैं शहर में, आप जल्दी बांध अपने घर का दरवाजा करें, इस पुरानी बेवफ़ा दुनिया का रोना कब तलक, आइये मिलजुल के इक दुनिया नयी पैदा करें..
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22-12-2014, 08:03 PM | #35 |
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Re: कुछ पल जगजीत सिंह के नाम :देवराज के साथ
मेरे दिल में तू ही तू है दिल की दावा क्या करूँ,
दिल भी तू है जान भी तू है तुझपे फ़िदा क्या करूँ, खुद को खोके तुझको पाकर क्या क्या मिला क्या कहो, तेरी होके जीने में क्या आया मज़ा क्या कहूँ, कैसे दिन हैं कैसी रातें कैसी फिजा क्या कहूँ, मेरी होके तुने मुझको क्या क्या दिया क्या कहूँ, मेरे पहलू में जब तू है फिर मैं दुआ क्या करूँ, दिल भी तू है जान भी तू है तुझपे फ़िदा क्या करूँ, है ये दुनिया दिल की दुनिया मिलके रहेंगे यहाँ, लूटेंगे हम खुशियाँ हर पल दुःख न सहेंगे यहाँ, अरमानो के चंचल धारे ऐसे बहेंगे यहाँ, ये तो सपनो की जन्नत है सब ही कहेंगे यहाँ, ये दुनिया मेरे दिल में बसी है दिल से जुदा क्या करूँ, दिल भी तू है जान भी तू है तुझपे फ़िदा क्या करूँ..
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22-12-2014, 08:04 PM | #36 |
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Re: कुछ पल जगजीत सिंह के नाम :देवराज के साथ
हमसफ़र बन के हम साथ हैं आज भी,
फिर भी है ये सफ़र अजनबी अजनबी, राह भी अजनबी मोड़ भी अजनबी, जाएँ हम किधर अजनबी अजनबी, ज़िन्दगी हो गयी है सुलगता सफ़र, दूर तक आ रहा है धुंआ सा नज़र, जाने किस मोड़ पर खो गयी हर ख़ुशी, देके दर्द-ऐ-जिगर अजनबी अजनबी, हमने चुन चुन के तिनके बनाया था जो, आशियाँ हसरतों से सजाया था जो, है चमन में वही आशियाँ आज भी, लग रहा है मगर अजनबी अजनबी, किसको मालूम था दिन ये भी आयेंगे, मौसमों की तरह दिल बदल जायेंगे, दिन हुआ अजनबी रात भी अजनबी, हर घडी हर पहर अजनबी अजनबी..
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22-12-2014, 08:07 PM | #37 |
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Re: कुछ पल जगजीत सिंह के नाम :देवराज के साथ
उसकी बातें तो फूल हो जैसे,
बाकि बातें बाबुल हो जैसे, छोटी छोटी सी उसकी वो आंखे, दो चमेली के फूल हो जैसे, उसकी हसकर नज़र झुका लेना, साडी शर्ते कुबूल हो जैसे, कितनी दिलकश है उसकी ख़ामोशी, सारी बातें फिजूल हो जैस..
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22-12-2014, 08:07 PM | #38 |
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Re: कुछ पल जगजीत सिंह के नाम :देवराज के साथ
परखना मत परखने में कोई अपना नहीं रहता,
किसी भी आईने में देर तक चेहरा नहीं रहता, बड़े लोगो से मिलने में हमेशा फासला रखना, जहा दरिया समंदर से मिला दरिया नहीं रहता, तुम्हारा शहर तो बिलकुल नए अंदाज़ वालाहाई, हमारे शहर में भी अब कोई हमसा नहीं रहता, मोहब्बत एक खुसबू है हमेशा साथ चलती है, कोई इंसान तन्हाई में भी तनहा नहीं रहता..
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22-12-2014, 08:10 PM | #39 |
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Re: कुछ पल जगजीत सिंह के नाम :देवराज के साथ
बादल की तरह झूम के लहरा के पियेंगे,
सकी तेरे मएखाने पे हम जा के पियेंगे, उन मदभरी आखों को भी शर्मा के पियेंगे, पएमाने को पएमाने से टकरा के पियेंगे, बादल भी है बादा भी है मीना भी तुम भी, इतराने का मौसम है अब इतराके पियेंगे, देखेंगे की आता है किधर से गम-ए-दुनिया, साकी तुझे हम सामने बैठा के पियेंगे..
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22-12-2014, 08:11 PM | #40 |
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Re: कुछ पल जगजीत सिंह के नाम :देवराज के साथ
कभी गुंचा कभी शोला कभी शबनम की तरह,
लोग मिलते हैं बदलते हुए मौसम की तरह, मेरे महबूब मेरे प्यार को इलज़ाम न दे, हिज्र में ईद मनाई है मुहर्रम की तरह, मैंने खुशबू की तरह तुझको किया है महसूस, दिल ने छेड़ा है तेरी याद को शबनम की तरह, कैसे हमदर्द हो तुम कैसी मसीहाई है, दिल पे नश्तर भी लगाते हो तो मरहम की तरह..
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