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Old 11-07-2014, 06:56 PM   #31
Dr.Shree Vijay
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"हम्प्टी शर्मा की दुल्हनिया" :....


Genre: रोमांटिक कॉमेडी,
Director: शशांक खेतान,


Plot :'हम्प्टी शर्मा की दुल्हनिया' में धर्मा प्रोडक्शन की फिल्मों का इमोशंस, रोमांस, गाने और सबसे बढ़कर हीरोइन के बाप का यह कहना कि 'जा जीले अपनी जिंदगी' पर्दे पर फिर देखने को मिलेगी। पुराने हिंदी फिल्मों के फॉर्मूले पर युवाओं को खूब लुभाएगी हम्पटी शर्मा की ये 'पटाका' दुल्हनिया।

कहानी :
फिल्म की कहानी काव्या प्रताप सिंह (आलिया भट्ट) और हम्पटी शर्मा (वरुण धवन) के इर्द-गिर्द घूमती है। काव्या की डेढ़ महीने में अपने पिता की पसंद के एक एनआरआई लड़के से शादी होने वाली है और वह घर में डिमांड रखती है कि अपनी शादी में डिजाइनर लहंगा पहनकर ही शादी करेगी। उसके घर वाले लहंगे को महंगा बताकर उससे लोकल लहंगा पहनने के लिए कह देते हैं। काव्या जो जिद्दी और जिंदादिल किस्म की लड़की है, अपना लहंगा अरेंज करने के लिए खुद ही अपने मामा के पास दिल्ली पहुंच जाती है। यहां काव्या की मुलाकत राकेश उर्फ हम्प्टी शर्मा से होती है। दिल्ली ब्वॉय हम्प्टी एक खुशमिजाज और मजाकिया लड़का है। हम्पटी को पहली मुलाकात में ही काव्या से प्यार हो जाता है। वह अपने दोस्तों की मदद से काव्या के बारे में जानकारी लेता है और उससे दोस्ती कर लेता है। धीरे-धीरे काव्या और हम्प्टी एक-दूसरे के करीब आ जाते हैं।

कहानी में ट्विस्ट तब आता है, जब काव्या वापस अपने शहर अंबाला लौट जाती है। उसे लगता है कि उसके पिता उसके प्यार को नहीं समझेंगे। उधर, हम्प्टी काव्या को अपनी दुल्हनिया बनाने के लिए अंबाला पहुंच जाता है। वह काव्या के सख्तमिजाज पिता मिस्टर सिंह (आशुतोष राणा) को मनाने की कोशिश करता है, लेकिन वह उसे पिटवाकर वापस अंबाला न आने की धमकी देते हैं। हम्प्टी बजाय दिल्ली जाने के फिर अंबाला पहुंच जाता है और मिस्टर सिंह को उनकी इंटरकास्ट शादी की याद दिलवाता है। मिस्टर सिंह हम्प्टी की तो नहीं, लेकिन अपनी बेटी की बात मान लेते हैं और उसे एक मौका देते हैं। वह हम्प्टी को काव्या के होने वाले पति अंगद (सिद्धार्थ शुक्ला) में पांच दिन के अंदर कोई ऐसी कमी ढूंढने को कहते हैं, जिससे वह काव्या की शादी अंगद के बजाय हम्प्टी से कर दें। इसके बाद क्या हम्प्टी मिस्टर सिंह को मना पाता है? क्या हम्प्टी मिस्टर परफेक्ट सरीखे अंगद में कमियां ढूंढ पाता है? यदि हम्प्टी कमियां नहीं ढूंढ पाता तो फिर क्या वह दोनों भागकर शादी करते हैं? मिस्टर सिंह क्यों हम्प्टी से काव्या की शादी नहीं करना चाहते? इन्हीं तमाम सवालों, इमोशंस, नाच-गाना और थोड़ी मारधाड़ के बाद फिल्म अपने अंत तक पहुंचती है।

निर्देशन : शशांक खेतान का डायरेक्शन कुछेक कमियों को नजरंदाज कर दिया जाए तो ओवरऑल अच्छा है, लेकिन उन पर फिल्म 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' की छाया साफ़ नजर आती है। कुछेक सीन उन्होंने लंबे जरूर खींचे हैं, लेकिन ये बोर नहीं करते। हां, अगली दफा शशांक को यह जरूर याद रखना चाहिए कि नई गाड़ी जब शोरूम से बाहर निकलती है, तो उस पर नंबर प्लेट नहीं लगी होती।

कैसी है एक्टिंग : आलिया और वरुण की केमेस्ट्री पर्दे पर अच्छी लगी है। दोनों ने अपने किरदार के साथ न्याय किया है। आलिया ने 'हाईवे' और '2 स्टे्टस' के बाद फिर से अपनी एक्टिंग से दर्शकों को लुभाया है। पंजाबी कुड़ी के रोल में आलिया का बिंदास अवतार और दिल्ली का चालू टाइप, लेकिन अंदर से अच्छा लड़का हम्प्टी, दोनों आपको आकर्षित करेंगे। फिल्म में हम्प्टी के दोस्तों की भूमिका में नजर आए गौरव पांडे और साहिल वैद्य ने अच्छा काम किया है। मिस्टर सिंह के किरदार में आशुतोष राणा की एक्टिंग प्रभावित करती है। सिद्धार्थ शुक्ला भी फिल्म में जमे हैं।


कैसा है म्यूजिक : फिल्म का संगीत कर्णप्रिय है, लेकिन राहत फ़तेह अली खान के गीत 'मैं तैनू समझावां' को आप पहले ही सुन चुके हैं। इस फिल्म का एक अन्य गीत 'सैटरडे सैटरडे' भी पहले ही पंजाबी में बन चुका है। सचिन-जिगर का संगीत अच्छा है।

क्या फिल्म देखी जा सकती है ?
शशांक खेतान की फिल्म 'हम्प्टी शर्मा की दुल्हनिया' में हिंदी फिल्मों का वह सब मसाला मौजूद है, जो हिंदी सिनेप्रेमी देखना चाहते हैं। यह 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' का आज का कॉन्सेप्ट है, लेकिन यह याद रखें कि यह 'DDLJ' नहीं है। धर्मा प्रोडक्शन की फिल्में लुभाती तो हैं ही। आप यह फिल्म देख सकते हैं। :.........


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Old 15-07-2014, 05:40 PM   #32
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"फिल्मिस्तान" :....


Genre: कॉमेडी,
Director: नितिन कक्कर,


Plot :'फिल्मिस्तान बॉलीवुड फिल्मों की दीवानगी को नए सिरे से दिखाती एक ऐसी फिल्म है, जिसमें पाकिस्तान भी साथ-साथ चलता दिखता है। फिल्म की कहानी ताजा और मजेदार है।

इधर कुछ समय से कमर्शियल फिल्मों के साथ ही एक-दो फिल्में लगातार लीक से हटकर सामने आई हैं, जिन्होंने अपनी अलग पटकथा से सिने प्रेमियों का ध्यान खींचा है। पिछले हफ्ते सिनेमाघरों में 'सिटी लाइट्स' ने बॉक्स ऑफिस पर अच्छी शुरुआत कर यह साबित किया कि कमर्शियल फिल्मों के इतर भी सिने प्रेमियों की अच्छी-खासी जमात है। इस हफ्ते भी बॉलीवुड की मसाला फिल्मों से हटकर एक ताजा कहानी 'फिल्मिस्तान' के रूप में सिनेमाघरों में अपने अलग सब्जेक्ट के चलते चर्चाओं में है।

युवा निर्देशक नितिन कक्कड़ की इस फिल्म को थिएटर तक पहुंचने में बड़ी मशक्कत करनी पड़ी है। करीब दो वर्ष पूर्व इस फिल्म को नेशनल अवॉर्ड तो मिला, लेकिन फिल्म को कोई खरीदार नहीं मिल पाया। अब जाकर यह फिल्म सिनेमाघरों तक पहुंच सकी है।

हालांकि, फिल्म की डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी ने अक्षय कुमार स्टारर मेगा बजट फिल्म 'हॉलिडे' के सामने रिलीज का जोखिम उठाया। फिल्म को देख कर लगता है कि 100 करोड़ रुपए क्लब फिल्मों के इस दौर में भी लीक से हटकर फिल्म बनाने का जोखिम लेने वाले जुनूनी फिल्मकारों की कोई कमी नहीं है।

कहानी :
सनी अरोड़ा (शारीब हाशमी) बॉलीवुड की फिल्मों का दीवाना है और वह खुद को बॉलीवुड के किसी हीरो से कम नहीं आंकता। सनी के बोलने का अंदाज, उसके हंसने, रोने और चलने का अंदाज पूरा फिल्मी है। सिल्वर स्क्रीन पर चमकने का उसका यही जुनून उसे एक दिन मायानगरी मुंबई खींच लाता है। यहां आने पर उसे फिल्म इंडस्ट्री के कायदा और उसकी रफ्तार के बारे में समझ आता है।

सनी को यहां आकर हीरो बनने का मौका तो नहीं मिल पाता, लेकिन एक विदेशी प्रोडक्शन कंपनी में बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर काम मिल जाता है। यहीं से सनी का सफर शुरू होता है। उसे पता चलता है कि खाली वह कहने भर को असिस्टेंट डायरेक्टर है, जबकि उसे स्पॉट ब्वॉय तक का काम करना होता है। सनी फिल्म की यूनिट के साथ राजस्थान बॉर्डर से सटे एक छोटे से गांव में शूटिंग के लिए आता है।

पाकिस्तान बॉर्डर से सटे इस एरिया में फिल्म की शूटिंग के दौरान विदेशी प्रोडक्शन कंपनी के लोगों को बंदी बनाने के लिए पाकिस्तानी आंतकवादी हमला कर देते हैं, और रात के अंधेरे में सनी को उसके कैमरे सहित उठाकर अपने साथ ले जाते है। पाकिस्तानी बॉर्डर से सटे एक छोटे से गांव में सनी को आफताब (इनामउल हक) के घर में बंदी बनाकर रखा जाता है।

आफताब हिंदी फिल्मों के साथ-साथ पोर्न फिल्मों की पाइरेटेड सीडी बेचने के बिजनेस में लिप्त है। आफताब का भी सपना है कि वह फिल्म बनाए। सनी को बंधक बनाने वाले आतंकवादी अब उसके अपहरण का विडियो बनाकर भारत सरकार से अपनी मांगें मनवाना चाहते है। आगे सनी का क्या होता है? क्या सनी भारत पहुंच पाता है? क्या आफताब अपनी फिल्म बनाने में कामयाब हो पाता है और आतंकवादी जो विदेशी फिल्मकारों को अपने साथ ले आए हैं उनका क्या होता है? यही फिल्म की कहानी है।

निर्देशन : फिल्म के निर्देशक और लेखक नितिन कक्कड़ की तारीफ पहले तो इसलिए करनी चाहिए कि उन्होंने इस तरह के सब्जेक्ट पर फिल्म बनाने का जोखिम उठाया है। अपने काम में नितिन ने पूरी ईमानदारी दिखाई है जो पर्दे पर नजर आती है। नितिन ने कहीं ना कहीं भारत-पाक के रिश्तों पर बनी अपनी इस फिल्म को अन्य हिंदी मसाला फिल्मों से दूर रखा और एक बेहद ताजी कहानी में व्यंग्यों के जरिए अपनी बात कही। कुछ एक सीन्स को छोड़ दें तो नितिन ने बेहद खूबसूरती से फिल्म के दृश्यों को कैमरे में कैद किया है।

कैसी है एक्टिंग : सनी अरोडा के किरदार में शारिफ हाशमी ने अपनी दमदार अदाकारी से जान फूंक दी है। कहीं-कहीं शारिफ के ऐसे सीन्स भी फिल्म में ठूंसे हुए लगते हैं, जिनकी बहुत ज्यादा जरूरत महसूस नहीं होती। बॉलीवुड फिल्मों की पायरेटेड फिल्में बेचकर अपनी फैमिली का पेट पालने वाले आफताब के रोल में इनामउल हक की अदाकारी भी फिल्म में देखने लायक है।

आफताब बेचता तो इंडियन फिल्मों की पायरेटेड सीडी है, लेकिन उसका सपना पाकिस्तानी फिल्म इंडस्ट्री लॉलीवुड को बॉलीवुड से आगे देखने का है। उसके अंदर गलत धंधों के बावजूद एक कलाकार को निर्देशक ने बखूबी पर्दे पर दिखाया है। आतंकवादी सरगना के किरदार में कुमुद मिश्रा भी अपनी अदाकारी से ध्यान खींचते हैं।

क्या फिल्म देखी जा सकती है ?
नई कहानी देखने से गुरेज ना हो तो यह फिल्म जरूर देखें। लीक से हटकर अच्छी फिल्मों के शौकीन सिने प्रेमियों के लिए यह फिल्म संजोने लायक है :.........


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Old 18-07-2014, 10:08 PM   #33
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"पिज्जा 3D" :....


Genre: हॉरर,
Director: अक्षय अक्कानी,


Plot :'बहुत सारी तकनीकी कमियों के बावजूद 'पिज्जा 3D' आपको मायूस नहीं करेगी। यह आपको डराएगी भी और एंटरटेन भी करेगी।

बॉलीवुड में कई हॉरर फिल्में आती हैं, जो डराने के नाम पर अपना मूल आधार ही छोड़कर खाली खून और घटिया आवााजों से हॉरर पैदा करने की कोशिशें करती हैं। इन फिल्मों में न तो तो ढंग की कहानी होती है और न दर्शक खुद को इनसे ठीक ढंग से जोड़ ही पाते हैं। खुशकिस्मती से 'पिज्जा 3D' ऐसे सारे मिथक तोड़ती है जो अब तक हमने बॉलीवुड की हॉरर फिल्मों को देखकर अपने दिमाग में बिठा लिए थे। 'पिज्जा 3D' हॉरर तो है ही, इसका मूल आधार है फिल्म की मजबूत कहानी। इस फिल्म को देखकर एकता कपूर और भट्ट कैंप के हॉरर ड्रामा रचने वाले फिल्मकारों को जरूर सबक लेना चाहिए कि फालतू की ओझा-बाबा गिरी से इतर भी लोगों को एक साफ-सुथरी हॉरर फिल्म परोसी जा सकती है, जो वास्तव में 'पिज्जा 3D' की तरह 'डिलीशियस' हो..!

कहानी :
फिल्म न्यूली मैरिड कपल कुणाल (अक्षय ओबेराय) और निक्की (पार्वती ओमनाकुट्टन) के इर्द-गिर्द घूमती है। कुणाल एक कंपनी में पिज्जा डिलिवरी ब्वॉय का काम करता है, जबकि निक्की एक स्ट्रगलिंग राइटर है। निक्की अक्सर अपने कंटेट में भुतहा किस्से-कहानियों को तवज्जो देती है। दोनों की जिंदगी छोटे-छोटे संघर्षों के बावजूद मजे में कट रही है। एक दिन पता लगता है कि निक्की गर्भवती है, लेकिन कुणाल का मानना है कि उनके हालात ऐसे नहीं हैं कि घर में एक और सदस्य का खर्चा वह दोनों उठा सकें। दोनों में इसी बात पर विवाद होता है, मगर जल्द ही दोनों इसे आपसी सहमति से सुलझा लेते हैं। दोनों अपने-अपने कामों में मशगूल हो जाते हैं कि तभी एक दिन कुणाल ऐसे बंगले में पिज्जा डिलीवर करने पहुंचता है, जहां अंदर जाते ही दरवाजे बंद हो जाते हैं। कुणाल घर से निकलने की कोशिश करता है, लेकिन वह नहीं निकल पाता। यही फिल्म का टर्निंग प्वाइंट है। इसके बाद कुणाल के साथ एक के बाद एक रोमांचित करने वाली घटनाएं घटने लगती हैं। सब कुछ कुणाल के लिए किसी पहेली से कम नहीं होता। इसके बाद की कहानी कुणाल के बंगले से बाहर निकलने और पहेलियों से पर्दा उठने की है। क्या कुणाल बंगले से बाहर निकलने में कामयाब हो पाता है? क्या बंगले में भूत हैं? भूत नहीं तो फिर दरवाजे कैसे खुद ब खुद बंद होने लगे? निक्की कुणाल की गैरमौजूदगी में क्या करेगी? इन्हीं तमाम सवालों के जवाब देते हुए फिल्म अपने अंत तक पहुंचती है।

निर्देशन : अक्षय अक्कानी का निर्देशन कुछ कमियों को यदि नजरअंदाज कर दिया जाए तो बढिय़ा है। उन्होंने घटिया साउंड और डरावने चेहरों को बस फ्रेम में इधर-उधर फेंकने से हॉरर पैदा करने के बजाय परिस्थितियों से खौफ पैदा करने की कोशिश की है, जो रोमांचित करता है। फिल्म की मजबूत पटकथा अक्षय को स्वतंत्रता देती है, जिससे उनका निर्देशन स्क्रीन पर साफ निखर कर सामने आता है।

एक्टिंग : कुणाल की भूमिका में अक्षय का काम सराहने योग्य है। अक्षय के हाव-भाव खौफ तो पैदा करते ही हैं आपको रोमांचित भी करेंगे। पार्वती ओमनाकुट्टन के हिस्से जितने भी सीन आए वह अपनी भूमिका में जंची हैं। फिल्म के सह-कलाकार भी इसकी जान हैं, जिनके बारे में चर्चा करने से बेहतर है कि उन्हें फिल्म में अदाकारी करते हुए देखा जाए। ओवरऑल इस फिल्म में सभी किरदारों ने शानदार अभिनय किया है।

क्या फिल्म देखी जा सकती है ?
पिज्जा 3D' में तकनीकी रूप से मसलन एडिटिंग, एनिमेशन और कुछ अस्पष्ट सीन्स कमियों का अहसास जरूर करवाते हैं, लेकिन बावजूद इसके यह बॉलीवुड में बनने वाली हॉरर फिल्मों से बहुत उम्दा और शानदार है। इसमें कहानी, अदाकारी, मनोरंजन और रोमांच सब कुछ है। आप इस हफ्ते यह फिल्म देखेंगे, तो आपके पैसे वेस्ट तो नहीं जाएंगे। हां एक बात जरूर याद रखियेगा कि इसे 2D फॉर्मेट से 3D में बदला गया है, इसलिए 2D में ही देखें तो ज्यादा बेहतर होगा :.........


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Old 18-07-2014, 10:14 PM   #34
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"हेट स्टोरी 2" :....


Genre: थ्रिलर ड्रामा,
Director: विशाल पंड्या,


Plot :'आपने 'मर्डर' देखी है तो यह भट्ट कैंप की उस से ज्यादा बोल्ड फिल्म नहीं है और आपने 'हेट स्टोरी' देखी है तो इसे देखने की जरूरत ही नहीं है। 'हेट स्टोरी 2' बेसिर-पैर की एक कहानी है, जिसे वाहियात जुनून करार दिया जा सकता है। फिल्म देखते हुए कई जगह आपको यही समझ में नहीं आएगा कि पुलिस का रोल होता क्या है। क्या कोई बुरी तरह से जख्मी महिला बिना ट्रीटमेंट के चार हत्याएं कर सकती है? क्या ऐसा संभव है कि महिला का बदला लेने का जुनून इस कदर हो कि वह अस्पताल से भागकर एक-एक कर अपने दुश्मनों को ठिकाने लगा दे और खूंखार दुश्मन आसानी से मरते जाएं? क्या एक गैंगस्टर मिजाज के नेता को मारना इतना आसान है, जबकि उसके सामने महिला की हर वक्त घिग्घी बंधी रहती हो? सनी लियोनी का गाना पिंक लिप्स अचानक कौन-सी उत्तेजना पैदा करने के लिए फिल्म में आता है? यही कुछ सवाल हैं, जो आपको पूरी फिल्म में परेशान करेंगे, क्योंकि इनके जवाब फिल्म सही तर्क के साथ देने में नाकाम साबित होती है :.........


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"किक" :....


Genre: एक्शन कॉमेडी ड्रामा,
Director: साजिद नाडियाडवाला,


Plot :'सलमान खान इस दफा डेविल बनकर अपने ही अंदाज में अपनी ईदी लेने आए हैं, जिसे वह लेकर आराम से निकल जाएंगे। यह फिल्म आपको हिला-डुलाकर 'किक' दे ही देगी।

'किक' 2009 में इसी नाम से आई तेलुगु फिल्म की रीमेक है। सलमान का वही अंदाज, वही राग लेकिन 'किक' नई। फिल्म देखते हुए आपको लगेगा कि ये हो क्या रहा है। सलमान को देसी रॉबिनहुड कहें तो शक ना करें, क्योंकि फिल्म में तो वह रॉबिनहुड के भी बाप हैं। वह जब चाहें, जो चाहें कर सकते हैं? पुलिस की भीड़ पीछे और बच कर निकल सकते हैं? वह 45 की उम्र में भी पुलिस में भर्ती हो सकते हैं और सीधे होम मिनिस्टर की सिफारिश पर केस हैंडल कर सकते हैं। वह एमएलए की बेटी को उठाकर 25-30 गुंडों के बीच शादी करवा सकते हैं। यही नहीं और भी बहुत कुछ। चेतन भगत के ऊल-जलूल लॉजिक में सलमान के स्टारडम के तड़के वाली डिश है 'किक', जिसमें हॉलीवुड फिल्मों के एक्शन को पिरो दिया गया है :.........


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"एंटरटेनमेंट" :....


Genre: कॉमेडी,
Director: साजिद-फरहाद,


Plot :'अक्षय कुमार एक बार फिर सिल्वर स्क्रीन पर दर्शकों को हंसाने के लिए आ चुके हैं। अक्षय ने बतौर कॉमेडियन अभिनेता अपनी अलग पहचान बनाई है, लेकिन इस फिल्म में उनकी कॉमेडी का वही पुराना अंदाज दिखा है। हालांकि, कृष्णा अभिषेक और जॉनी लीवर का साथ इस फिल्म को ज्यादा एंटरटेनिंग बना रहा है |

फिल्म की कहानी :अखिल लोखंडे (अक्षय कुमार) अपने पिता के इलाज के लिए लगातार काम करता है, लेकिन उसके पिता बीमारी का झूठा बहाना बनाकर हॉस्पिटल में आराम से रह रहे हैं। इधर अखिल अपनी गर्लफ्रेंड साक्षी (तमन्ना भाटिया) का हाथ मांगने उसके घर जाता है, तो साक्षी के पिता (मिथुन चक्रवर्ती) ये कहते हैं कि जब करोड़पति बन जाए, तब साक्षी का पति बनना।

इस बीच अखिल को मालूम होता है कि उसके असली पिता तो बैंकाक के डायमंड मर्चेंट पन्नालाल जौहरी हैं और वो उनकी नाजायज औलाद है। अखिल को जैसे ही इस बात का पता चलता है, ठीक उसी वक्त पन्नालाल जौहरी का देहांत हो जाता है। ऐसे में, वो उनकी करोड़ों की प्रॉपर्टी को हासिल करने के लिए बैंकाक जाता है। वहां उसे पता चलता है कि पन्नालाल ने मरने से पहले अपनी सारी प्रॉपर्टी एंटरटेनमेंट (कुत्ता) के नाम कर दी है।

ऐसे में, अखिल एंटरटेनमेंट को मारने का प्लान बनाता है। इधर, जेल में बंद पन्नालाल के कजिन करन और अर्जुन (प्रकाश राज और सोनू सूद) भी उस प्रॉपर्टी को हासिल करने का प्लान बनाते हैं। इसी प्लानिंग के बीच जमकर कॉमेडी शुरू हो जाती है। आगे कहानी में क्या होता है, इसका मजा आप थिएटर में ही लीजिए :.........


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सभी ताज़ा फिल्मों की समीक्षा बहुत संतुलित है. अंत में फिल्म देखने या न देखने के बारे में भी व्यापक नज़रिया रखा गया है.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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Old 16-08-2014, 07:27 PM   #38
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Quote:
Originally Posted by rajnish manga View Post
सभी ताज़ा फिल्मों की समीक्षा बहुत संतुलित है. अंत में फिल्म देखने या न देखने के बारे में भी व्यापक नज़रिया रखा गया है.

प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिए आपका हार्दिक आभार.........

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Old 16-08-2014, 07:31 PM   #39
Dr.Shree Vijay
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Arrow Re: Movie Review :.........


"सिंघम रिटर्न्स" :....


Genre: एक्शन,
Director: रोहित शेट्टी,


Plot :'15 अगस्त के मौके पर रोहित शेट्टी निर्देशित अजय देवगन स्टारर फिल्म सिंघम रिटर्न्स रिलीज़ हो गई है |

फिल्म की कहानी :'सिंघम रिटर्न्स' कहानी है बाजीराव सिंघम की जो कि मुंबई पुलिस का डीसीपी है। इससे पहले आपने फिल्म के प्रीक्वल 'सिंघम' में बाजीराव को अपराधियों के छक्के छुड़ाते देखा होगा। इस फिल्म में भी वह ऐसा ही करते हुए नजर आता है।

इस बार सिंघम और उसके साथी पुलिसवालों का पाला पड़ा है महाभ्रष्ट बाबा (अमोल गुप्ते) और उसके चेलों से जो जनता को मूर्ख बना रहे हैं। बाबा का पर्दाफाश करने में कई बार सिंघम को मुंह की भी खानी पड़ती है, मगर वह हार नहीं मानता।

क्या वह आदर्शवाद का चोला ओढ़े इस भ्रष्ट बाबा के चंगुल से भोली भाली जनता को मुक्त करा पाता है? फिल्म की कहानी इसी के इर्द-गिर्द घूमती है। :.........


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*** Dr.Shri Vijay Ji ***

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Old 16-08-2014, 08:43 PM   #40
rajnish manga
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Default Re: Movie Review :.........

समीक्षा हेतु धन्यवाद. वैसे मैंने दो-दो अखबारों में इस फिल्म की समीक्षा पढ़ी है और दोनों ही स्थानों पर 5 में से 2 या 2.5 अंक दिए गये हैं अर्थात फिल्म में कोई ख़ास दम नहीं है. अजय ने अपना पेटेंट काम किया है.
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