28-12-2012, 09:30 PM | #31 |
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Re: श्रीमद् भगवद् गीता
यद्यप्येते न पश्यन्ति लोभो पहतचेतसः । कुलक्षयकृतं दोषं मित्रद्रोहे च पातकम् ॥३८॥ कथं न ज्ञेयमस्माभिः पापादस्मान्निवर्तितुम् । कुलक्षयकृतं दोषं प्रपश्यद्भिर्जनार्दन ॥३९॥ यद्यपि लोभसे भ्रष्टचित्त हुए ये लोग कुलके नाशसे उत्पन्न होनेवाले दोषोंको और मित्रोंसे विरोध करनेमें पाप नहीं देख पाते, फिर भी हे जनार्दन ! कुलनाशसे उत्पन्न दोषोंको जाननेवाले हमलोगोंने, इस पापसे हटनेके लिये क्यों नहीं सोचना चाहिये ? |
28-12-2012, 09:30 PM | #32 |
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Re: श्रीमद् भगवद् गीता
कुलक्षये प्रणश्यन्ति कुलधर्माः सनातनाः। धर्मे नष्टे कुलं कृत्स्न्मधर्मोऽभिभवत्युत॥४०॥ कुलके नाशसे सनातन कुल-धर्म नष्ट हो जाते हैं, धर्मके नाश हो जाने पर सम्पूर्ण कुलमें बहुत पाप भी फैल जाता है । |
28-12-2012, 09:30 PM | #33 |
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Re: श्रीमद् भगवद् गीता
अधर्माभिभवात्कृष्ण प्रदुश्यन्ति कुलस्त्रियः । स्त्रीषु दुष्टासु वार्ष्णेय जायते वर्णसङ्करः ॥४१॥ हे कृष्ण ! पापके अधिकतम होनेसे कुलकी स्त्रियाँ दूषित हो जाती हैं और हे वार्ष्णेय ! स्त्रियोंके दूषित हो जानेपर वर्णसड्कर प्रजा उत्पन्न होती है । |
28-12-2012, 09:31 PM | #34 |
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Re: श्रीमद् भगवद् गीता
सङ्करो नरकायैव कुलघ्नानां कुलस्य च । पतन्ति पितरो ह्येषां लुप्तपिन्डोदकक्रियाः ॥४२॥ वर्णसड्कर प्रजा कुलघातियोंको और कुलको नरकमें ही ले जाती है । पिण्ड-जलादि क्रिया लुप्त होनेसे (अर्थात् श्राद्ध और तर्पणसे वञ्चित) इनके पितरलोग भी अधोगतिको प्राप्त होते हैं । |
28-12-2012, 09:31 PM | #35 |
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Re: श्रीमद् भगवद् गीता
दोषैरेतैः कुलघ्नानां वर्णसङ्करकारकैः । उत्साद्यन्ते जातिधर्माः कुलधर्माश्च शाश्वताः ॥४३॥ इन वर्णसड्करकारक दोषोंसे कुलघातियोंके सनातन कुल-धर्म और जाति-धर्म नष्ट हो जाते हैं । |
28-12-2012, 09:32 PM | #36 |
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Re: श्रीमद् भगवद् गीता
उत्सन्न्कुलधर्माणां मनुष्याणां जनार्दन । नरकेऽनियतं वासो भवतीत्यनुशुश्रुम ॥४४॥ हे जनार्दन ! जिनका कुल-धर्म नष्ट हो गया है, ऐसे मनुष्योंका अनिश्चित कालतक नरकमें वास होता है, ऐसा हम सुनते आये हैं । |
28-12-2012, 09:32 PM | #37 |
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Re: श्रीमद् भगवद् गीता
अहो बत महत्पापं कर्तुं व्यवसिता वयम् । यद्राज्यसुखलोभेन हन्तुं स्वजन्मुद्यताः ॥४५॥ अरे ! यह व्यथापूर्ण है कि हम बुद्धिमान होकर भी महान पाप करने तैयार हो गये हैं, जो राज्य और सुखके लोभसे स्वजनोंको मारनेके लिये उद्यत हो गये हैं । |
28-12-2012, 09:32 PM | #38 |
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Re: श्रीमद् भगवद् गीता
यदि मामप्रतीकारमशस्त्रं शस्त्रपाणयः। धार्तराष्ट्रा रणे हन्युस्तन्मे क्षेमतरं भवेत् ॥४६॥ यदि मुझ शस्त्ररहित एवं सामना न करनेवालेको, धुतराष्ट्रके सशस्त्र पुत्र रणमें मार डाले तो वह मरना भी मेरे लिये अधिक कल्याणकारक होगा । |
28-12-2012, 09:33 PM | #39 |
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Re: श्रीमद् भगवद् गीता
सञ्जय उवाच एवमुक्तवार्जुनः सङ्ख्ये रथोपस्थ उपाविशत् । विसृज्य सशरं चापं शोकसंविग्नमानसः ॥४७॥ सञ्जय बोले- रणभूमिमें शोकसे उद्विग्न मनवाले अर्जुन इस प्रकार कहकर, बाणसहित धनुष्यको त्यागकर रथके पिछले भाग में बैठ गये । |
28-12-2012, 09:33 PM | #40 |
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Re: श्रीमद् भगवद् गीता
************************ प्रथम अध्याय सम्पूर्ण ********************** |
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