18-11-2017, 08:00 AM | #31 |
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Re: किस्सा तीन बहनों का
परीजाद चिड़िया के बताए रास्ते पर चल कर जंगल में गई और वहाँ से गानेवाले पेड़ की टहनी तोड़ लाई। वह बहुत प्रसन्न थी कि तीनों चीजें मिल गई हैं। फिर भी उसे अपने भाइयों का ख्याल बना हुआ था। उसने चिड़िया से पूछा, यहाँ आने की राह में मेरे दोनों बड़े भाई काले पत्थर बने पड़े हैं। क्या यह संभव है कि मैं उन्हें फिर से जीवित करूँ? मैं तो यह नहीं पहचानती कि उन पत्थरों में कौन-से मेरे भाई हैं। चिड़िया ने कहा, तुम यह करो कि सुराही में जो सुनहरा पानी लाई हो उसकी एक-एक बूँद सारे शिला खंडों पर डाल दो। वे सभी लोग अपने पूर्व रूप में आ जाएँगे और उनके घोड़े भी। उन्हीं में तुम्हारे भाई भी होंगे जिनके पुनर्जीवित होने पर उन्हें पहचान लोगी। शहजादी चिड़िया की बातें सुन कर प्रसन्न हुई और पिंजड़ा, सुराही और टहनी ले कर पहाड़ से उतरने लगी। जहाँ भी काले पत्थर दिखाई दिए उसने उन पर एक-एक बूँद सुनहरा जल छिड़क दिया। सारे पत्थर आदमी बन गए और उनके घोड़े भी असली रूप में आ गए। इन लोगों में बहमन और परवेज भी थे जो अपने-अपने घोड़ों के साथ जी उठे। परीजाद दोनों भाइयों को पहचान कर उनके गले लग कर रोने लगी। फिर उसने कहा, तुम्हें मालूम है, तुम्हारा क्या हाल था? उन्होंने कहा कि हमें तो ऐसा लग रहा है जैसे अभी तक हम लोग सो रहे थे ओर अभी-अभी सो कर उठे हैं।
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19-11-2017, 02:46 PM | #32 |
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Re: किस्सा तीन बहनों का
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परीजाद ने कहा, कुछ याद है तुम्हें? तुम लोग मेरे लिए बोलनेवाली चिड़िया, गानेवाला पेड़ और सुनहरा पानी लेने आए थे और यहाँ अपने काम को और मेरी याद को भूल कर सोने लगे। दोनों भाई अचकचा कर उसे देखने लगे तो उसने कहा, महानुभावो, तुम लोग सो नहीं रहे थे, तुम काले पत्थर की चट्टान बन कर यहाँ पड़े हुए थे। तुमने आते समय बहुत-सी काली चट्टानें देखी होंगी। अब देखो, उनमें से कोई मौजूद है या नहीं। यह सब लोग जो यहाँ दिखाई दे रहे हैं यही वे चट्टानें बने हुए थे। तुम्हें ताज्जुब हो रहा होगा कि तुम सबके सब जी कैसे उठे। जब मुझे चिड़िया, पानी और पेड़ की टहनी मिल गई तो इनके मिलने से भी तुम्हारे बगैर मुझे बुरा लग रहा था। मैंने इसी चिड़िया से पूछा कि क्या करूँ तो उसने कहा कि सुनहरे पानी की एक- एक बूँद सभी चट्टानों पर डाल कर उन्हें फिर से जीवित कर लो। मैंने इस समय यही किया है। यह सुन कर बहमन और परवेज तो धन्य-धन्य कर ही उठे, अन्य लोग भी कहने लगे कि तुमने हमें जीवन दान दिया है, हम आजीवन तुम्हारे कृतज्ञ रहेंगे और तुम्हारी आज्ञा का पालन करेंगे। परीजाद बोली, मैंने तुम लोगों पर कोई अहसान नहीं किया। मैं अपने भाइयों को जिलाना चाहती थी। इसमें अगर तुम्हारा लाभ भी हो गया तो मेरे लिए खुशी की बात है। अब तुम लोग अपने-अपने निवास स्थानों के लिए प्रस्थान करो।
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19-11-2017, 02:48 PM | #33 |
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Re: किस्सा तीन बहनों का
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जब वह घोड़े पर चढ़ी तो बहमन ने चाहा कि पिंजड़ा आदि सारी चीजें अपने घोड़े पर लादे ताकि परीजाद का बोझ हलका हो। परीजाद ने कहा, चिड़िया की मालिक तो मैं हूँ, वह मेरे पास रहेगी। तुम लोग चाहो तो एक टहनी और दूसरा पानी की सुराही ले लो। अतएव बहमन ने टहनी और परवेज ने सुनहरे पानी की सुराही ले ली। फिर अन्य पुनर्जीवित लोग भी अपने-अपने घोड़ों पर बैठे और सभी चलने को तैयार हुए क्योंकि काफी दूर तक सभी का एक ही रास्ता था। परीजाद ने कहा, तुम लोगों में जो सर्वश्रेष्ठ हो वह इस समूह का नायक बन कर आगे चले। सभी लोगों ने एक स्वर में कहा, सुंदरी, तुम से श्रेष्ठ कौन होगा? तुम हमारी जीवनदात्री हो। तुम्हीं सबके आगे चलो। परीजाद शालीनता से बोली, मैं अवस्था में सब से छोटी हूँ और किसी प्रकार भी दल की नेत्री बनने के योग्य नहीं हूँ। किंतु तुम लोग विवश कर रहे हो तो तुम्हारे प्रति आभार प्रकट करते हुए मैं भी दल के आगे चलती हूँ। यह दल आगे बढ़ा। सभी लोग उस सिद्ध के दर्शन करना चाहते थे जिसने सभी को राह बताई थी। किंतु जब यह दल उसकी कुटिया पर आया तो उसका कुछ पता न पाया। मालूम नहीं वह काल-कवलित हो गया था या वहाँ पर तीन अद्भुत वस्तुओं की राह बताने के लिए ही मौजूद था और उन चीजों के न रहने पर वहाँ से गायब हो गया।
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19-11-2017, 02:50 PM | #34 |
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Re: किस्सा तीन बहनों का
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सब लोगों को इस बात का बड़ा खेद रहा कि अंतिम बार उसे धन्यवाद न दे सके। यह दल आगे बढ़ा। हर आदमी जहाँ-जहाँ से मार्ग अलग होता था वहाँ-वहाँ से परीजाद के प्रति कृतज्ञता प्रकाशन करके चला गया। यह तीनों भाई बहन खुशी-खुशी अपने घर में आए। मकान की बारहदरी के सामने जो बाग का हिस्सा था उसमें परीजाद ने बोलनेवाली चिड़िया का पिंजड़ा लटका दिया। कुछ ही देर में उसके आसपास बीसियों तरह के पक्षी जमा हो गए और उसके स्वर में स्वर मिला कर बोलने की कोशिश करने लगे। उसी जगह थोड़ी दूर पर परीजाद ने गानेवाले वृक्ष की टहनी जमीन में रोप दी। कुछ ही देर में बढ़ते-बढ़ते वह पूरा पेड़ हो गई और हवा चलने पर पत्तों की रगड़ से उसमें से ऐसा ही संगीत उठने लगा जैसे मूल वृक्ष से उठ रहा था। परीजाद ने कारीगरों को बुलवा कर एक संगमरमर का हौज बनवाया। उसके बन जाने पर उसमें एक स्वर्ण पात्र रखा और उस पात्र में चाँदी की सुराही से निकाल कर सुनहरे पानी की कुछ बूँदें डालीं। तुरंत ही पानी बढ़ने लगा और बरतन उससे भर गया और फिर उसमें से एक बीस हाथ ऊँचा फव्वारा उठने लगा। फव्वारे का पानी फिर आ कर बरतन ही में गिरता था और इस तरह बरतन में पानी की कमी नहीं होती थी और पानी बाहर भी नहीं बहता था। दो-चार दिन ही में बागों के दारोगा के महल की इन चीजों की चर्चा सारे शहर में होने लगी। सारे शहर के लोग तमाशा देखने के लिए परीजाद के बाग में आने लगे। परीजाद ने सैर के लिए आनेवाले नागरिकों के प्रवेश पर कोई रोक नहीं लगाई और इस प्रकार यह तीनों भाई-बहन नगर में सर्वप्रिय हो गए।
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20-11-2017, 01:38 PM | #35 |
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Re: किस्सा तीन बहनों का
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कुछ दिनों तक आराम करने के बाद बहमन और परवेज ने पहले की तरह मृगया का मनोरंजन शुरू किया। वे अपने घिरे हुए जंगल के बाहर भी शिकार खेलने के लिए जाने लगे। एक रोज वे शहर से लगभग एक कोस की दूरी पर स्थित एक जंगल में शिकार खेल रहे थे। संयोग से उसी समय बादशाह भी वहाँ शिकार खेलने आया हुआ था। इन दोनों ने यह देख कर चाहा कि शाही फौजियों की निगाह बचा कर निकल जाएँ क्योंकि वह जंगल शाही शिकारगाह था। लेकिन बच निकलने के चक्कर में वे ऐसे रास्ते पर पड़ गए जहाँ से हो कर बादशाह की सवारी आ रही थी। यह देख कर उन्होंने चाहा कि बगल के किसी रास्ते से निकल जाएँ। यह संभव न हुआ और वे बादशाह के सामने पड़ गए। मजबूरी में वे घोड़ों से उतरे और बादशाह को झुक कर सलाम करने लगे। पहले बादशाह ने समझा कि वे उसके सामंतों में से हैं और देखने को ठहर गया कि कौन हैं। उसने उन्हें उठने की आज्ञा दी। वे उठे और सिर झुका कर खड़े हो गए। बादशाह उनकी सूरतें देख कर ठगा-सा रह गया। फिर उसने उनका नाम और निवास स्थान पूछा। बहमन ने हाथ जोड़ कर कहा, हुजूर, हम लोग आपके भूतपूर्व बागों के दारोगा के पुत्र हैं। हमारे पिता नहीं रहे। हम जंगल के किनारे उस महल में रहते हैं जो उन्होंने आपसे अनुमति ले कर बनवाया था। हमें वे इसीलिए अच्छे वातवरण में रखते थे कि बड़े हो कर हम आपकी सेवा करें।
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20-11-2017, 01:39 PM | #36 |
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Re: किस्सा तीन बहनों का
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बादशाह ने कहा, यह तो ठीक है। लेकिन लगता है कि तुम यहाँ शिकार खेल रहे थे। क्या तुम्हें मालूम नहीं कि यह शाही शिकारगाह है जहाँ और कोई शिकार नहीं खेल सकता? बहमन ने निवेदन किया, सरकार, हमारे पिता असमय ही जाते रहे और हमारा निर्देशक कोई नहीं रहा, इसीलिए हम लोगों का ज्ञान अधूरा है और अन्य नौजवानों की तरह हमसे भी भूल हो जाती है। बादशाह उनकी इस चतुराई पर मुस्कुरा उठा। फिर उसने पूछा, शिकार खेलना आता भी है? दोनों ने कहा, आप अवसर दें तो हम भी देखें हमें कितना शिकार खेलना आता है। बादशाह ने कहा, शिकार खेल कर दिखाओ। जंगल में पहुँचे तो बहमन ने एक शेर और परवेज ने एक रीछ को बरछियों से मार कर बादशाह के आगे रखा। दोबारा घने जंगल में जा कर बहमन ने एक रीछ और परवेज ने एक शेर मारा। बादशाह ने कहा, बस करो, क्या सारे जंगली जानवर आज ही मार डालोगे? मैं तो सिर्फ यह देखना चाहता था कि तुम लोगों में कितना शौर्य है।
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20-11-2017, 01:41 PM | #37 |
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Re: किस्सा तीन बहनों का
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बादशाह उनके शिष्टाचार, शारीरिक सौंदर्य और वीरता से अत्यधिक प्रभावित हुआ। वह उन्हें अपने से अलग करना ही नहीं चाहता था। उसने कहा, मैं चाहता हूँ कि तुम लोग यहाँ से मेरे साथ महल में चलो और मेरे साथ भोजन करो। बहमन ने कहा, हुजूर, इस समय आपका साथ न कर सकेंगे। इस उद्दंडता के लिए क्षमा चाहते हैं। बादशाह ने आश्चर्य से पूछा, क्यों? बहमन बोला, हमारी एक बहन है। हम तीनों जो भी करते हैं तीनों की सलाह से करते हैं। हम बहन की सलाह ले कर ही आपके यहाँ आ सकेंगे। बादशाह ने कहा, मुझे इस बात की बड़ी खुशी है कि तुम भाई-बहन एक-दूसरे की सलाह ही से काम करते हो। आज तुम अपने घर जाओ। अपनी बहन से सलाह करके कल यहीं शिकार खेलने आना और मुझे बताना कि तुम लोगों में क्या सलाह हुई है। बहमन और परवेज बादशाह से विदा हो कर अपने घर आए किंतु उन्हें बादशाह की कही हुई बात याद न रही और उन्होंने बहन से कोई सलाह नहीं ली। दूसरे रोज वे शिकार खेलने गए तो वापसी में बादशाह ने पूछा कि तुमने अपनी बहन से सलाह ली या नहीं। अब यह दोनों घबराए।
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20-11-2017, 01:44 PM | #38 |
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Re: किस्सा तीन बहनों का
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असलियत यह थी कि दोनों का मन शिकार में ऐसा रमा था कि उन्हें शिकार के अलावा हर बात भूल जाती थी। बादशाह ने पूछा तो वे दोनों घबरा कर एक-दूसरे की ओर देखने लगे। आखिर में बहमन ने कहा, हमसे बड़ी भूल हुई, हम अपनी बहन से सलाह लेना बिल्कुल भूल गए। बादशाह ने कहा कि कोई बात नहीं, आज पूछ लेना और कल आ कर मुझे बताना। लेकिन वे उस दिन भी भूल गए और तीसरे दिन फिर बादशाह के सामने लज्जित हो कर कहा कि हम लोग आज भी आपकी आज्ञा का पालन करना भूल गए। बादशाह इस पर भी नाराज न हुआ कि मैं इन लोगों के साथ भोजन कर इनका सम्मान बढ़ाना चाहता हूँ और इन्हें इतनी भी परवा नहीं कि बहन से याद करके मेरे निमंत्रण की बात करें। लेकिन उसने बहमन को सोने की तीन गेंदे दीं और कहा कि इन्हें कमर में बँधे पटके में रख लो, जब कमर खोलोगे तो पटके से यह गेंदें जमीन पर गिरेंगी और उस समय तुम्हें याद आ जाएगा कि मेरे निमंत्रण के बारे में तुम्हें अपनी बहन से सलाह लेनी है।
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21-11-2017, 01:22 PM | #39 |
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Re: किस्सा तीन बहनों का
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इतनी बातचीत होने पर भी दोनों घर जा कर इस बात को भूल गए। लेकिन रात को सोने के लिए जाते समय बहमन ने कमरबंद खोला तो गेंदें जमीन पर गिरीं। वह फौरन अपनी बहन के पास गया और परवेज को भी ले गया। परीजाद अभी तक अपने शयनकक्ष में नहीं गई थी। दोनों भाइयों ने उसे बताया कि बादशाह ने उन्हें भोजन का निमंत्रण दिया है और यह भी कहा कि दो दिन तक तुमने सलाह लेना भूलते रहे। उसने कहा कि यह तो तुम्हारा सौभाग्य है कि बादशाह ने तुम्हें खाने पर बुलाया है किंतु तुमने यह बड़ा बुरा किया कि दो दिन तक बादशाह तक की कही हुई बात को भूले रहे। भला बताओ, जब मुझे इस बात से इतना बुरा लग रहा है तो बादशाह को रंज न हुआ होगा? वैसे तो तुम्हें बादशाह का निमंत्रण मिलते ही उसे सधन्यवाद स्वीकार कर लेना चाहिए था। लेकिन अब जब इतनी बात हो गई तो मैं बोलती चिड़िया से भी सलाह ले लूँ। फिर वह चिड़िया का पिंजड़ा अपने कक्ष में ले गई और बोली, चिड़िया रानी, तुम्हें तो सारी छुपी हुई बातों का पता है और तुम्हारी सलाह हमेशा सही होती है। मुझे तुमसे एक सलाह लेनी है। मेरे भाइयों को बादशाह ने अपने साथ भोजन करने का निमंत्रण दिया है। वे दो-तीन दिन तक यह बात भूल-भूल जाते रहे हैं और आज ही उन्होंने मुझे बताया है। क्या तुम्हारी राय में अब उनका जाना मुनासिब है, बादशाह कहीं नाराज न हों।
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21-11-2017, 01:24 PM | #40 |
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Re: किस्सा तीन बहनों का
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चिड़िया ने कहा, मालकिन, तुम्हारे भाइयों को बादशाह की आज्ञा जरूर माननी चाहिए। वह अपने राज्य काल में सभी का मालिक है। उसका मेहमान बनने में इन दोनों को किसी प्रकार हानि नहीं होगी। वे शौक से जाएँ। लेकिन इसके बाद यह भी जरूरी है कि बादशाह को अपने घर आ कर भोजन करने का निमंत्रण दें। परीजाद ने कहा, मैं अब अपने भाई को उनके साधारण कामों के अलावा कहीं जाने देना नहीं चाहती। मैं उनकी सुरक्षा के लिए डरती रहती हूँ। चिड़िया ने कहा, उन्हें बेखटके भेजो, उन्हें कोई नुकसान नहीं होगा। परीजाद ने कहा, अच्छा, जब बादशाह यहाँ आएँ तो मैं उनके सामने निकलूँ या नहीं। चिड़िया ने कहा, इसमें कोई हर्ज नहीं है। हर बादशाह अपनी सारी प्रजा के लिए पिता के समान होता है और पिता के सामने जाने में किसी को झिझक नहीं होनी चाहिए। परीजाद ने इसके बाद भाइयों से कहा कि तुम बादशाह का निमंत्रण स्वीकार कर लो लेकिन इसके बाद उससे एक बार यहाँ भोजन करने को भी कहो।
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