06-04-2013, 09:16 PM | #31 |
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Re: इधर-उधर से
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06-04-2013, 09:20 PM | #32 |
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Re: इधर-उधर से
घड़ी |
06-04-2013, 09:22 PM | #33 |
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Re: इधर-उधर से
आज़ादी क्या आज़ादी |
07-04-2013, 02:10 PM | #34 |
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Re: इधर-उधर से
Last edited by rajnish manga; 08-04-2013 at 12:37 AM. |
10-04-2013, 12:26 AM | #35 |
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Re: इधर-उधर से
चलता फिरता फ़रिश्ता
(लेखक: यशपाल जैन) यह उन दिनों की बात है जब चंपारण में किसानों का आन्दोलन चल रहा था. गांधी जी की उस सेना में सभी प्रकार के सैनिक थे. जिनमे आत्मिक बल ता वे उस लड़ाई में शामिल हो सकते थे, सत्याग्रहियों में कुष्ठ रोग से पीड़ित एक खेतिहर मजदूर भी था. उसके शरीर में घाव थे. वह उन पर कपड़ा लपेट कर चलता था. एक दिन शाम को सत्याग्रही अपनी छावनी को लौट रहे थे. पर बिचारे कुष्ठी से चला नहीं जाता था.उसके पैरों पर बंधे कपड़े कहीं गिर गए थे. घावों से खून बह रहा था. सब लोग आश्रम में पहूँच गए. बस, एक वही व्यक्ति रह गया. प्रार्थना का समय हुआ. गाँधी जी ने निगाह उठा कर अपने चारों ओर बैठे सत्याग्रहियों को देखा, पर उन्हें वह महारोगी दिखाई नहीं दिया. उन्होंने पूछताछ की तो पता चला कि लौटते में वह पिछड़ गया था. यह सुन कर गाँधी जी तत्काल उठ खड़े हुए और हाथ में बत्ती लेकर उसकी तलाश में निकल पड़े. चलते चलते उन्होंने देखा कि रास्ते में एक पेड़ के नीचे एक आदमी बैठा है. दूर से ही गाँधी जी को पहचान कर वह चिल्लाया, “बापू!” उसके पास जा कर गाँधी जी ने बड़ी व्यथा से कहा, “अरे भाई, तुमसे चला नहीं जाता था तो मुझसे क्यों नहीं कहा?” तभी उनका ध्यान उसके पैरों की ओर गया. वे खून से लथ-पथ थे. गाँधी जी ने झट अपनी चादर को फाड़ कर उसके पेरों पर कपड़ा लपेट दिया और उसे सहारा दे कर धीरे-धीरे आश्रम में ले आये, उसके पैर धोये और फिर प्यार से अपने पास बिठा कर उन्होंने प्रार्थना की. अपने धर्म ग्रंथों में हम फरिश्तों की काहानियाँ पढ़ते हैं, जो संकट में फंसे लोगों की सहायता के लिए दोड़े चले आते थे. इससे बढ़ कर हमारा सौभाग्य और क्या हो सकता है कि एक चलता फिरता फ़रिश्ता वर्षों तक हमारे बीच रहा. ***** Last edited by rajnish manga; 10-04-2013 at 12:41 AM. |
10-04-2013, 12:30 AM | #36 |
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Re: इधर-उधर से
शहर में किस किस से लेते इन्तक़ाम
घर में आके सबसे पहले सो गए. (निदा फ़ाज़ली) पराई आग़ पे हाथों को तापते रहिये नहीं तो सुब्ह तलक यूं ही कांपते रहिये. (निदा फ़ाज़ली) मंजिल मिले न मिले इसका ग़म नहीं मंजिल की जुस्तजू में मेरा कारवां तो है (संगीतकार नौशाद का एक शे’र) |
10-04-2013, 12:34 AM | #37 |
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Re: इधर-उधर से
सुभाषितम
शैले शैले न माणिक्यं, मौक्तिकं न गजे गजे i साधवो न हि सर्वत्रं, चन्दनं न वने वने ii (भावार्थ: हर पर्वत पर मणियाँ नहीं मिलतीं, हर हाथी के भाल पर मोतियों की सजावट नहीं होती, हर स्थान पर सच्चे साधू नहीं पाये जाते, और हर जंगल में चन्दन के वृक्ष भी प्राप्त नहीं होते) गीतों में राग 1. आयो कहाँ से घनश्याम = खमाज 2. लागा चुनरी मैं दाग = भैरवी 3. नदिया किनारे हेराये = पीलू 4. बोले रे पपीहरा = मल्हार |
10-04-2013, 12:39 AM | #38 |
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Re: इधर-उधर से
कुछ अंग्रेजी शब्द और उनके हिंदी समानार्थक शब्द:
Anomaly = असंगति Entrust... = सौंपना Guiltless = निरपराध Commentators = टीकाकार अब कुछ हिंदी शब्दावली पर विचार करते है: मनोदाह = मन की पीड़ा परिचर्या = सेवा लोकापवाद = लोकनिंदा उद्दंड = अक्खड़ |
11-04-2013, 12:52 AM | #39 |
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Re: इधर-उधर से
*सबसे पहले दो शेर आपकी सेवा में प्रस्तुत हैं: |
11-04-2013, 12:57 AM | #40 |
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Re: इधर-उधर से
Last edited by rajnish manga; 11-04-2013 at 02:49 PM. |
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