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Old 16-01-2012, 11:18 PM   #31
sombirnaamdev
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Default Re: दुश्यन्त कुमार की कविताएँ

फिर तुम्हे याद किया
इश्क के फूल के पत्ते किताब में संभाले रखे हैं
आज खोल के देखा
तो पत्ते चूर चूर हो मेरे दामन में आ गिरे
और पंखे की हवा से सारे कमरे में उड़ कर
कमरे के कोने कोने में जा छुप बैठे
फिर तुम्हे याद किया
रात का अन्धेरा और गहरा हो गया
चाँद भी बादलों के पीछे जा छिपा
दिल की सूनसानी पूरे कमरे में फैल गयी
बाहर गली में कुत्ते के रोने की आवाज़ ……
क्या मोहब्बत सलामत तो है ?
फिर तुम्हे याद किया
जहाँ इश्क बहा करता था वहां शोक की नदी बहती है
एक सपना जिसकी पूर्ती ना हो पायी हो
मुझे लगा जैसे शून्य मेरे अन्दर फैल सा रहा है
एक नासूर की तरह,इतना बढता हुआ
के शायद तुम तक पहुँच जाए ?
फिर तुम्हे याद किया
कमरे के कोने में तुम्हारी किताब अभी भी सजी हुई
रोज़ उसके पन्ने पलटती हूँ
और वोह घड़ी जो तुम मेरे लिए तोहफा लाये थे
अपनी टिक टिक कर रात भर मेरा साथ देती हैं
जैसे उसको पता हो की तुम नहीं हो
अब कभी नहीं हो
sombirnaamdev is offline   Reply With Quote
Old 27-02-2014, 10:49 PM   #32
helloprajna
Junior Member
 
Join Date: Aug 2013
Posts: 1
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helloprajna is on a distinguished road
Default Re: दुष्यंत कुमार की कविताएँ

kya koi mujhe kripaya in gazalon ka matlab bata sakta he? akhir Dushyant ji inke madhyam se kya sandesh dena chahte hain?

ये जो राहतीर है पलकों पे उठा लो यारों
अब कोई ऐसा तरीका भी निकालो यारों

दर्दे-िदल वक़्त कोे पैग़ाम भी पहुँचाएगा
इस क़बूतर को ज़रा प्यार से पालो यारो

लोग हाथों में लिए बैठे हैं अपने िपंजरे
आज सैयाद को महफ़िल में बुला लो यारो

आज सीवन को उधेड़ो तो ज़रा देखेंगे
आज संदूक से वो ख़त तो निकालो यारो

रहनुमाओं की अदाओं पे फ़िदा है दुनिया
इस चहकती हुई दुनिया को सँभालो यारो

कैसे आकाश में सूराख़ हो नहीं सकता
एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो

लोग कहते थे कि ये बात नहीं कहने की
तुमने कह दी है तो कहने की सज़ा लो यारो
helloprajna is offline   Reply With Quote
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dushyant kumar, hindi poems, poems


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