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Old 17-12-2012, 08:38 PM   #31
ALEX
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दो टांगों वाला रेवड धीमा होकर बगलें झांकता हुआ निकलता रहा| शहर अस्त - व्यस्तहो गया| आज रेवड बगैर टैम्पो ही भागा सिटीबसों और ट्रेनों से| टैक्सी - टैम्पो नहीं मिले कान ऊंचे कर पूरा दिन रेवड बुदबुदाता रहा _ ' आम आदमी परेशान है| '
'' भुगतता तो आम आदमी हीहै| ''
'' सभी एक जैसे हैं| ''
'' इस देश का तो राम रखवाला है| ''
उन तीनों के ' रहते ' रामरखवाला कैसे हो सकता है| सो एक्स के चम्पू ने रेवड क़ो घूरा| रेवड सरपट भाग लिया|
आज शहर बन्द रहेगा| रेवड ने अखबार में पढा| दो टांगो वाले जिनावर बालकनी से गपियाने लगे| आज सब कुछ बन्द था| न गाडी न घोडा| न पेट्रोल पंप खुलेंगे न सरकारी इमारतें| सरकारी इमारतें तो खैर वैसे ही कर्मचारियों - अफसरों को उडीक़ती रहती हैं सो आज ताले खोलकर चौकीदार सो जाऐगा| हेलमेट के विरोध में जुलूस व सभा होगी कलेक्ट्री के सामने| वाई हेलमेट विरोधियों के शरीर में उतर गया| फिर कलेक्ट्री का रास्ता दोनों तरफ से बन्द| फिर जुलूस शहर में होता हुआ कलेक्ट्री पहुंचा और आम सभा में बदला|
'' नहीं सहेंगे|नहीं सहेंगे| '', '' अत्याचार नहीं सहेंगे| '' फिर पी का पुतला जला| हर वक्ता वाई से इशारा पाते ही ' भौं - भौं ',' भौं - भौं ' करता सामने बैठे श्रोता तुरंत पूंछ हिलाकर कूं - कूं करते हैं|
दो टांगों वाला रेवड धीमा होकर बगलें झांकता हुआ निकलता रहा| शहर अस्त - व्यस्तहो गया| आज रेवड बगैर टैम्पो ही भागा सिटीबसों और ट्रेनों से| टैक्सी - टैम्पो नहीं मिले कान ऊंचे कर पूरा दिन रेवड बुदबुदाता रहा _ ' आम आदमी परेशान है| '
'' भुगतता तो आम आदमी हीहै| ''
'' सभी एक जैसे हैं| ''
'' इस देश का तो राम रखवाला है| ''
उन तीनों के ' रहते ' रामतक बात कैसे पहुंची|अबकी वाई के चम्पू ने रेवड क़ो घूरा| रेवड सरपट भाग लिया|
जेलों में चम्पू सुविधाएं मांगने लगे|मिलने वाले हवलदारों ने तम्बाकू - बीडी क़ा प्रबंध तो किया ही| एक्स , वाई , जेड़ का सभी थानों में आकर थानेदारों को समझाने आये कि चम्पुओं को हाथ - पांव - मुंह - दांतकुछ नहीं लगाए वरना एस पी तो आते जाते रहते हैं| थानेदारों की मूंछों के बाल भविष्य की चिंता के मारे खडे हो गए|
'' लगता है , सा ' ब जाऐंगे| '' हवलदार पी केसिंह बडबडाया|
'' चोप्प यार , ये रहेंगे| ईमानदारी इनके अन्दर तक है और पहुंच के बाहर तक| '' हेड हवलदार बिना पी के सिंह रिरियाया|
'' लगी दस की| ''
'' क्या दस की , पचास की लगा| देगा तो तू वैसे ही नहीं| सामने वाले ठेले से ले लेंगे| ''
'' सो तो आप जानते ही हैं गरीबी का आलम| ''
'' तो लगा पचास की| ''
'' अबे थोडी रेवडी अौर दे और थोडी बांध| '' पी के सिंह और बिना पी के सिंह ने रेवडी वाले को देखा| रेवडी आ गई| एकदूसरे को बांटने लगे|
नुक्कड ो ं पर जनसभाएंशुरु| मोहल्लों में संघर्ष समितियां बनीं| चम्पुओं की दीन मुद्राओं वाले फोटो अखबार में छापे जाने लगे| शीर्षक होता _ '' पुलिसिया कहर , नीरीह पर जुल्म| '' '' रक्षक बनाभक्षक| '' वगैरह वगैरह|
शहर में हैण्डपंप , पानी की कमी , बिजली की कटौती , डैड टेलीफोन्स , पेट्रोल के बढे दाम मंहगाई आदि टुच्ची औरव्यर्थ की समस्याएं गौण हो गईं और कानून में बढती अराजकता मुख्य हो गई| प्रभात फेरियां निकाली जाने लगीं| मुख्यालयों तक मैराथन होने लगी| एक्स , वाई , जेड़ ने सयुंक्त मोर्चा का गठन कर लिया| ' नागरिक अधिकार संगठन '| रेवड क़ो भागने से रोक दिया गया| अलग अलग सभाओं में बांट दिया गया| हाथों में तख्तियां दी गईं| चंपुओं ने पोजिशन ले ली| रेवड नीरीह आंखों से सब कुछ ताकता रहा| चंपुओं ने रेवड हांकासो रेवड दौड पडा| एक्स , वाई , जेड़ उन्हें ' शाबास लगे रहो ' कहते रहे| चंपू संघर्ष करते रहे| कलेक्ट्री के सामने वाला विशाल मैदान रेवड से ठसाठस भर गया| पूरे मैदान में बैं - बैं और मिमियाने की आवाज आ रही थीं|
पुलिस ने पूरा मैदान घेर लिया| विशेष जाब्ता लगा| कलेक्ट्री के दरवाजे जड दिए गए|
'' हाय हाय भौं भौं '''' हाय हाय भौं भौं '' आकाश में उडने लगे| रह रह कर चम्पू भौंकारे मारते रेवड ख़दबदाता| | एक्स , वाई , जेड़ ने एक अस्थायी मंच पर कुण्डली मारी| फिर फन ऊंचा किया और फुंफकारा _
'' फुंऽऽ ''
वाई ने भी एक्स की तरफ स्नेह से देखते हुए फन ऊंचा कर फुंफकारा _
'' फुंऽऽ ''
जेड ने तुरन्त उसका अनुसरण किया _
'' फुंऽऽ ''
रेवड घबरा गया| रेवड उठ खडा हुआ| चम्पुओं ने भौंकार मारी|
' एक दो , एक दो यह दरवाजा तोड दो| '
_ पथराव
_ लाठीचार्ज
_ गोलीबारी
अगले दिन अखबारों के पहले पेज को खून से छापा गया , '' तीन , दो टंाग वाले जिनावर गोली खाकर शहीद हुए| '' जनरल डायर से पी की तुलना की गयी| एक्स , वाई , जेड के कॉलम बयान छपे| शहर अशान्त हो गया| नौ बजे तक पूरा शहर चुपचाप पडा रहा मगर दस बजे बजते बेचैनी बाहर| रेवड भागने की बजाय उत्सुकता से फुदकने लगा _
'' अब क्या होगा ?''
चम्पू बोले ,'' यह अत्याचार है| ''
रेवड ने दोहराया|
चम्पू बोले ,'' पी खूनी है| ''
रेवड ने दोहराया|
चम्पू बोले ,'' जब तक पी नहीं हटेगा शहर में जन र्कफ्यू रहेगा| ''
रेवडदास दौडक़र अपने दडबों में घुस गया| तीन दिन बीत गए मगर चौथे दिन का सूरज सुख शांति का संदेश लाया| पी का तबादला हो गया| पी चला गया| दो टांगों वाला रेवड फ़िर सरपट भागने लगा| एक्स वाई जेड अपनी अपनी छाबडियों में जा बैठे| एक साथ फुंफकारे ' मर गया साला| '
चम्पुओं ने जयकारा लगाया|
शहर में आनन - फानन मेंअमन - शान्ति फैल कर सोगयी सूरज फिर रेवड क़े साथ सुबह ऑफिस जाने लगा| शहर फिर चल पडा|
' चलो अच्छा हुआ पुलिसवाला मर गया वरना सब कुछ ठीक नहीं था| ' सूरज ने अपना टिफिन खोलते हुए किसीसरकारी दफ्तर में कहा| चम्पू फिर ' भौंकारे _ जै हो ! '' शहर फिर चलने लगा| रेवड फ़िर भागने लगा|
डॉ . अरविंद सिंह
अप्रेल 1, 2007
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अतीत की एक ढीठ खिडक़ी !!!(राजेन्द्र कृष्ण )

इतने वर्षों के बाद , जिन्दगी की जद्दोजहद और जिम्मेदारियों के बीच कभी कभी मन की बहुत जिद के बाद जब भी मैंने अतीत की ढीठ खिडक़ी खोली है , नन्हे दस वर्षीय रघु को वहां उस मोड पर खडे पाया है , उसी एक शाम केझुटपुटे में गुमसुम उदास .... अधूरे छूट गये सपनों और बेगाने से हो गये अपनों की पीडा के साथ । वही मोड ज़हां रघु छूट गया ठिठक कर और जिन्दगी राघव के कान उमेठ ले गयी अपने टेढे मेढे रास्तों पर ...

उस शाम मैं दादी के पलंग पर बैठ स्कूल से मिला होमवर्क पूरा कररहा था । दादी बैठी मेरी युनीफॉर्म का नया स्वेटर अपनी बूढी आ ंखों और दर्द करती उंगलियों के बावजूद पूरा कर रही थीं । अरुणा होमवर्क अधूरा छोड स्टापू खेलने मेंलगी थी । तभी बाऊ जी की साईकल के साथ साथ अरुणा की उत्साह भरी आवाज आ ई ,

'' बाऊ जी आ गये! ''

'' अम्मा आज बाऊ जी दुकान से जल्दी कैसे आ गये ? ''

दादी खामोश थीं । बाऊ जी अन्दर आ चुके थे , आते ही मेरे पास बैठ कर सर पर हाथ फेरने लगे ,

'' क्यों रे रघु आज होमवर्क पूरा नहीं किया ? ''

'' ज्यादा था बाऊजी। ''

'' रघु बता न अपने बाऊजीको कि तुझे आज ज्यादातर सारे विषयों में सबसे ज्यादा नम्बर मिले हैं कक्षा में। ''

'' सच अम्मा! क्यों रघु ? मेरा बेटा एक दिन मेरा नाम ऊंचा करेगा।तेरे हेडमास्टर साहब दुकान पर आये थे कह रहे थे हिन्दी और अंग्रेजी दोनों के कविता पाठ में तू र्फस्ट आया है। तुझे अगले साल मैं आर्मी स्कूल में डाल दूंगा। ''

'' हाँ! वो सब देखा जाएगा , आज तू दुकान से जल्दी कैसे उठ गया ?'' अम्मा बोली

'' अम्मा कार्डस छप कर आगये हैं। ''

''''

'' ऐ रघु-अरुणा तुम बाहरजाकर खेलो। ''

'' अम्मा मेरा होमवर्क जरा सा बचा है! ''

'' बाद में...मुझे तेरे बाऊजी से बात करनी है।

'' बेटा बस दो मिनट। ''

मैं किताबें उठाते हुए सोच रहा था कि ऐसी क्या बात है जो दादी और बाऊजी को हम बच्चों के पीछे से करनी है । ऐसा तो कभी हुआ नहीं । कुछ तो है .... घर में अजीब सी हलचल है । पिछले कई दिनों से वह स्कूल से घर लौटने पर कुछ लोगों को दादी के पास बैठा देखता आया है । पिछले सोमवार तो शाम को उन लोगों के आने पर बाऊ जी दुकान से घर आ गये थे और हम याने मैं और अरुणा दुकान पर दो घंटे बैठे थे । घर जाने पर दादी ने मिठाई खिलाई थी ।

मैं बाहर आकर चबूतरे पर बैठ गया , दादी के मूढे पर । अरुणा फिर स्टापू खेलने लगी मैना के साथ , मैना ने बडी बडी आँखों से मुझेदेखा और अरुणा से पूछने लगी , '' आज क्या हुआ राघव को ? '' अरुणा ने कंधे उचका दिये । एक मैना ही है जो यहां मोहल्ले में मुझे मेरे पूरे नाम से बुलाती है । मेरी कक्षा में जो पढती है । मैना लंगडी टांग से कूदते हुए मुझे देखतेहुए आऊट हो गयी ।

'' क्या मैना , तुझे नहींखेलना तो तू जा। ''

मुझे हंसी आ गयी और अरुणा चिढ ग़यी । तभी बाऊजी का बुलावा आ गया और हम दोनों घर के अन्दर चले गये ।

'' चलो दोनों तैयार हो जाओ , बहुत दिन हो गये तुम्हें घुमा कर लाये। आज पहले कनॉट प्लेस चलेंगे कुछ खरीदारी करेंगे , फिर वहां से तुम्हारी मनपसन्द जगह से डोसा और छोलेभटूरे खिला करलाएंगे। ''

हम दोनों ही उत्साह से खिल पडे । अरुणा दादी से चोटी बनवाते हुए बार बार आग्रह कर रही थी -

'' चलो न अम्मा मजा आएगा। ''

'' नाबेटा मुझसे चला नहीं जाता पैदल। ''

'' आप हमेशा टालती होहमारी मम्मी तो हैंनहीं और आप हो कि चलती नहीं। ''

बाऊ जी ने अम्मा को देखा अम्मा ने बाऊजी को , फिर कहने लगी ,

'' अगर नारायण सब ठीक करें तो तेरी ये इच्छा भी पूरी होगी। ''

'' अरुणा जिद नहीं करते बच्चे। साईकल पर हम चार नहीं आ सकते। ''

'' बाऊजी! मेरा होमवर्क... ''

'' आकर कर लेना ''

कनाट प्लेस जाकर हमनेखूब खरीदारी की मेरे अरुणा के नये कपडे , ज़ूते , खिलौने , गुब्बारेआज बाऊ जी नेआर्थिक परेशानियों की परवाह किये बिना दिल खोल कर रख दिया था हमारे लिये । घूम घाम कर भूख लग आई थी तब हमने अपने मन पसन्द नॉवल्टी रेस्टोरेन्ट आकर डोसा और छोले भटूरे का आर्डर किया ।

बाऊजी अचानक यहां बैठकर चुप से हो गये जैसे कहीं कुछ अटक रहा हो भीतर । मम्मी के गुजर जाने के बाद से एक मैं ही था जो बाऊजी के सबसे करीब रहा था ।
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Old 20-12-2012, 04:43 PM   #33
ALEX
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उनके एकान्त , दर्द और संघर्ष को मन ही मन बांटते हुए । यहाँ तक कि सात साल की उमर में मम्मी के दाह संस्कारके समय भी श्मशान में मैं उनके साथ खडा था । माँ की मृत्यु ने मुझेअतिरिक्त रूप से संवेदनशील बना दिया था । उनके चेहरे के हर बनते बिगडते भाव को अपनी सीमाओं तक तो मैं थोडा-बहुत भांप लेता था । आज कुछ था जो उन्हें उलझा रहा था ।
अरुणा अपनी गुडिया केबाल संवारने में व्यस्त थी । मैं ने अपने खिलौने बगल में रख दिये थे और हू-ब-हू अपने पिता की ही मुद्रा में टेबल पर हाथ बांध बैठ गया । आर्डर सर्व होने की प्रतीक्षा के दौरान बाऊ जी ने कुछ कहने की मुद्रा में मेरी आँखों में झाँका घनी बरौनियों वाली मेरी गहरी भूरी आँखों में उस पल न जाने क्या था कि वो फिर हिचक गये ।
'' रघु। '' कहीं दूर से आती मालूम हुई पापा की आवाज।
'' ज़ी! ''
उन्होने शर्ट की जेब से कार्ड निकाल कर मेरे सामने रख दिया।
'' आने वाले इतवार को शादी है। ''
'' किसकी बाऊजी ? '' अरुणाचहकी।
मैं कार्ड उलट पुलट कर देख चुका था। दादी का नाम , घर का पता , पापा का नाम और '' संग '' लग कर जुडा कोई अनजाना नाम। विश्वास नहीं करता अगर पापा स्वयं न कहते।
'' शादी क्या है , बस गुरुद्वारे में रस्म है , तुम्हारी नई मम्मी को घर लाने की। फिर दावत बस्स। ''
अरुणा पर मैं नहीं जान सका कि उस क्षण क्या बीता । मैं चौंक गया था , नई मम्मी! कोई अनजाना नाम मम्मी कैसे हो सकता है ? मम्मी तो मम्मी हीं थीं , नई मम्मी कैसे आ सकती है ? छोले भटूरे ठण्डे हो गये ... बाऊजी के बहुत कहने पर भी आधा भी गले से नहीं उतरा ।
हम लौट आए । मुझसे दो साल छोटी चंचल अरुणा उस पल अचानक जैसे सयानी हो गयी थी । उसने गुडिया लाकर मेरे अनछुए खिलौनों के पास रख दी और अम्मा के पलंग पर खेस ओढ क़र सो गयी । मुझे नये खटोले का राज समझ आ गया कि क्यों अम्मा पिछले कई दिनों से मुझे अलग सुलाने की आदत डाल रही थी । आज बिना जिद किये मैं खटोले पर पड ग़या । अम्मा दो गिलास दूध लेकर आई हम दोनों ने मना कर दिया । न जाने कब दादी की सुनाई , किताब में पढी सौतेलीमां और उनके बच्चों की कहानियां याद आती रहींदो आंसू लुढक़ आए और मैं न जाने कब सो गया ।
सुबह देर से जागा और स्कूल न जा सका , अरुणा जा चुकी थी । नाश्ते के समय अम्मा ने समझाया , '' रघु , देख बेटा , तेरे पापा बहुत अकेले हैं । उन्हें साथी की जरूरत है । आज मैं हूँ कल मेरे मरने पर तुम्हें कौन संभालेगा ?''
हजारों प्रश्न उठा देता था अम्मा का एक एक वाक्य । तब नहीं समझ सका था रघु हजार अम्मा के समझाने के बाद भी , कि इतने बडे क़ुटुम्ब में होने के बावजूद , एक प्रौढ होता आदमी अपनी अम्माऔर बच्चों के होते हुए भी कैसे अकेला हो सकता है ? अम्मा भी तो भरी जवानी में विधवा हो गई थी , क्या उसे भी कोई ऐसी तलाश रही होगी ? बाऊ जी के तो सौतेला पिता नहीं था फिर वे अपने बच्चों के लिए नई मां क्यों ला रहे थे ? नहीं समझ सका रघु वे सामाजिक तौर तरीके जो पति विहीन महिला को तो रोकते हैं पर पत्नी विहीन आदमी को नहीं ? नहीं समझा तब रघु पुरूष के अकेलेपन की व्यथा और कमजोरी को औरनारी का स्वयं में सम्पूर्ण और शक्ति होना । आज समझता है वह कि उसकी अम्मा हमेशा के लिये क्यों एक आर्दश नारी बन गई थी उसके लिये , क्यों उसके समय समय पर कहे गये वाक्य उसके लिये जीवन में ब्रह्म वाक्य साबित हुए!
किन्तु उस एक शाम ने मुझे सयाना बना दिया थाजो होना था हुआ । उस रात जो होमवर्क छूटा वो अकसर छूटने लगा नई माँ आई ... मुझे आर्मी स्कूल में डाला गया ... लेकिन पढाई से मेरा मन एक बार जो उचट गया थावो कभी नहीं लगा । सच्चा , सयाना होशियाररघुवहीं छूट गया ... जिन्दगी ने जिसके कानपकड क़र राह पर लाने की कोशिश की वो विद्रोही , जिद्दी राघव थापता नहीं जिन्दगी मुझे ढर्रे पर ला सकी या नहीं पर अपनी शर्तों पर मैं ने जिन्दगी को झुका ही लिया । आज जब मैं सफल हूं , संतुष्ट भी ... फिर भी अतीत की ढीठ खिडक़ी के बाहर उस मोड पर खडा रघु अकसर अपनी आँखों में यह प्रश्न लिये खडा रहताहै कि -
अगर उस दिन वैसा न हुआ होता तो राघव तो जिन्दगी क्या होती ? सफल तो आज भी है तब भी होता पर क्या जिन्दगीसे इतना कुछ सीखा होता ? स्वयं सक्षम होने का गर्व जो उसे हर स्थिति में ऊंचा बनाता है वह तब होता ? बहुत अधिक सुरक्षित और बचपन का सा बचपन तो सब बिताते हैं तेरा अनोखा जीवन के पाठ जल्दी जल्दी पढाता बचपन किसका होता है
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Old 22-12-2012, 06:14 AM   #34
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Roman font
1.Humsafar...Nagpur to delhi road.
2.Na Jaane kyun..
3.Qurbani.
4.The Scenry of The Wall.
Hindi font
5.एक पुलिस वाले की मौत....
6.अतीत की एक ढीठ खिडक़ी!!!
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Old 23-12-2012, 08:34 AM   #35
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अधूरी तस्वीरें....( मनीषा कुलश्रेष्ठ)
'' अविनाश पहुँचते ही फोन कर देना वरना तुम्हारी माँ को चिन्ता हो जाएगी। ''
'' जी मामा जी। '' और बस चलपडी थी।
बस मामा जी और माँ की ही जिद है , उसका तो बिलकुल मन नहीं था माऊन्टआबू जाने का । उसकी एक शादी से माँ का जी नहीं भरा जो इस दूसरी शादी के लिये माँ ने मामा से कह - कहलवा कर विवश कर दिया है । माना मामा अन्त तक कहते रहे हैं कि -
'' अविनाश तू यह मत समझ कि तुझे शादी के लिये भेजा जा रहा है। वहाँ मेरे दोस्त ब्रिगेडियर सिन्हा का घर और बाग हैं , वहाँतू बस उनके परिवार के साथ छुट्टियाँ बिताने जा रहा है। उन्होंने तुझे बचपन में देखा था। बडा बुला रहे थे। मैं अगले सप्ताह पहुँच जाऊंगा। ''
पर वह जानता है यह जाल शादी के लिये ही बिछाया जा रहा है ।
बस चलते ही , अच्छा मौसम होने के बावजूद , यह बात सोच अविनाश का मन कडवी स्मृतियों सेभर गया , आँखे जलने लगीं और उस अपमान को याद कर पूरा ही वजूद तिलमिला गया । नहीं करनी अब उसे दूसरी शादी ।
हालांकि पहली ही शादीशादी न थी , कोर्ट में शून्य साबित कर दी गई थी । पर उसका मन ही मर गया था । उसके बाद , हर स्त्री एक छलावा लगतीथी । नौ साल हो गये उस बात को । पर मन के छाले हैं कि सूखते नहीं बल्कि बार बार फूट कर उसे आहत करते हैं । उसका क्या गुनाह था ?
कितने अरमानों के साथउसकी विधवा माँ ने स्कूल में टीचिंग कर उसे अच्छे आदर्शों केसाथ पाला , और फलस्वरूप उसका एन डी ए में सलेक्शन हुआ । जब वह आर्मी ऑफिसर बन कर माँ के सामने आया तो माँ कितनी गर्वित थी । उसने बडे चाव से ढेरों रिश्तों में सेएक बेहतरीन रिश्ता चुना था उसके लिये , एक बहुत बडे आ ई ए एस अधिकारी की बेटी अल्पना । माँ तो बस घर बार और लडक़ी की सुन्दरता पर और उनकी शानदार मेहमाननवाजी पर रीझ गईं । देखने दिखाने की रस्म के बाद सबके कहने पर एकांत में उसने एक संक्षिप्त बात की और वह अचानक उठ कर चली गई , तब उसे लगा था कि शर्मा रही होगी ।
उन लोगों और माँ की जल्दी की वजह से उसे शादी के लिये छुट्टी लेनी पडी । तब भी एक दो बार उसने फोन पर बात करना चाहा पर किसी न किसी वजह से बात न हो सकी । उसने सोचा लिया था कि अब तो शादी हो ही रही है । शादी के ताम झाम के बाद जब अपनी जीवन संगिनी से मिलनेकी वो इत्मीनान की , एक दूसरे को जानने की रात आई तो शादी के शानदार पलंग पर फूलोंकी सजावट के बीच उसे लाल जोडे में अपनी दुल्हन नहीं मिली । काली नाईटी में अल्पना पैर सिकोडे सोई थी । जगाने पर बहुत ठण्डी आवाज में उसने कहा था ,
'' मुझे छूना मत। यह शादी नहीं है , अविनाश , समझौता है। ''
'' किस तरह का समझौता ?''
'' मैं बात नहीं करना चाहती इस वक्त। ''
'' अरे , तभी मना कर देना था तुम्हें। ''
'' किया था बहुत , कोई माना नहीं। ''
'' ...अब ?''
'' अब क्या! कुछ भी नहीं। मैं नहीं रहूंगी यहाँ। ''
वह सुन्दर चेहरा वितृष्णा से भर गया था ।
उसके बाद जब वह अगले दिन मायके गई तो उसकी जगह लौट कर विवाह को शून्य साबित करने के लिये उसके वकील का नोटिस आया , जिसमें आरोप था कि वह नपुंसक है और विवाह के योग्य नहीं । वह जड होकर रह गया । माँ और मामाजी ने उसके घरवालों से कहासुनी की , कोर्ट का फैसला होने तक अपमान उसे जलाता रहा । हालांकि वह आरोप साबित न हो सका , पर अब उसका ही मन न था कि यह सम्बंध बना रहे । उसनेतलाक मंजूर कर लिया ।
उसके बाद उसने अपनी पोस्टिंग लेह करवा लीथी वहाँ से भी लगातार फील्ड पोस्टिंग्स लेता रहा जानबूझ कर और मां की दूसरे विवाह की जिद को टाल गया था । पर अब माँ की अस्वस्थता की वजह से उसे जोधपुर पोस्टिंग करवानी पडी । और माँ के साथ रह कर उनकी जिद न टाल सका । बार बार शादी की उम्र निकल जाने की बात कह कर भी माँ को जीवन भर अविवाहित रहने की बातके लिये मना न सका । हर बार वही बहस
'' माँ इस अगस्त में 35 का हो जाऊंगा। अब कोई उमर है शादी की। ''
'' चुप कर! 35 की कोई उमर होती है आजकल। ''
पिछले कई दिनों से यह माऊंट आबू प्रकरण माँ और मामा चलाए जा रहे थे । माँ के इमोशनल ब्लैकमेल और पिता जैसे मामा के समझाने पर वह टाल न सका । इस बार मामा छाछ भी फूंक फूंक कर पीना चाहते थे सो वह उसे लडक़ी और उस के परिवार के साथ पूरे पन्द्रह बीस दिनछोडना चाह रहे थे ।
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ब्रिगेडियर सिन्हा मामा के कलीग रह चुके हैं , उनकी एक बहन है अविवाहित , उसने भी किन्हीं कारणों से शादी नहीं की ।
उसके मन में किसी बात को लेकर कोई उत्साह नहीं है । उसे मलाल हो रहा है , उसने सोचा था कि इस बार एनुअल लीव लेकर माँ के साथ ज्यादा से ज्यादा समयबिताएगा और माँ के साथलम्बी यात्राओं पर जाएगा पूरा भारत घूमेगा । पर माँ ने ही कह दिया कि-
'' औ मेरे श्रवणकुमार , मैं तो तीर्थ कर ही लूंगी , पहले तेरी शादी करके गंगा नहा लूं। ''
बहुत सारे ख्यालों सेउसका मन भारी हो चला है , वह सर झटक कर बस के बाहर झांकता है , शाम का झुटपुटा रास्तों और पहाडियों पर उतर आया है , झुण्ड का झुण्ड तोते शोर मचातेहुए लौट रहे हैं , हवा में सर्दी के आगमन की खुनकी महसूस होने लगीहै , वह पूरी खुली खिडक़ी जरा सी सरका देता है , बस के अन्दर नजर डालता है । सामने वाली सीट पर एक विदेशी युवति बैठी है , उसे देख मुस्कुरा देती है । वह उस बेबाक निश्छल मुस्कान पर जवाब में मुस्कुराए बिना नहीं रह पाता । अचानक न जाने किस गुमान में उसके हाथ बाल संवारने लगते हैं । अपनी इस कॉलेज के लडक़ों जैसी हरकत पर उसे स्वयं हंसी आ जाती है और उसे दबाने के लिये खिडक़ी के बाहर देखने लगता है । मन हल्का हो गया है । वैसे आजादी में कितनासुकून है । अब उम्र के पैंतीस साल मुक्त रह कर विवाह के पक्ष में वह जरा भी नहीं पर यहाँ भारत में जिस तरहबडी उमर की लडक़ियों का कुंवारा रहना संदिग्ध होता है वहींबडी उम्र के कुवांरे भी संदेहों से अछूते नहीं रह पाते । समाज का इतना दबाव होता है कि आप को कोई चैन से नहीं बैठने दे सकता । वह बस अपनी नौकरी के बीस साल पूरे करते ही , एब्रोड चला जाएगा । नहीं करनी शादी-वादी । बेकार का बवाल! उसकी नजर फिर उधर चली गई , वहभी इधर ही देख रही थी । दोनों ने फिर मुस्कानबांटी ।
लडक़ी आकर्षक है ।
शाम ढलने लगी थी । लगता है आबू रोड से उपर माऊंट आबू पहुंचते पहुंचते दो घंटे और लग जाएंगे और रात आठ बजे से पहले नहीं पहूँचे गा वह । फिर वह रात किसी होटल में ठहर कर सुबह ही ब्रिगेडियर सिन्हा के घर जाएगा । ठण्ड गहराने लगी थी , उसने मां की जबरदस्ती रखी हुई जैकेट निकाल कर पहन ली । उस लडक़ी ने फिर उसे देखा इस बार उसकी आँखों में आकर्षण था उसके प्रतिवह मुस्कुराया नहीं इस बारएक गहरी नजर डाल , खिडक़ी के बाहर फैलते अंधेरे में दृष्टि डालने लगा । पहाडों - पेडों की सब्ज आ कृतियां धीरे धीरे स्याही में बदल रही थीं , उसके मन पर अन्यमनस्कता के साये फिर घिर आए । कहाँ जा रहा है वह और क्यों बेवजह ? क्या समझौते की तरह दो लोगों के बंधने से जरूरी काम कुछ और नहीं ? बेकार हैयह विवाह नामक संस्था । मामा क्यों कहते हैंकि शारीरिक जरूरतें तो हैं ही , एक साथी के लिये मानसिक जरूरत भीहोती है । शारीरिक जरूरतों का क्या है , उस जैसे आकर्षक पुरुषके लिये लडक़ियों की कमी है क्या ?
जैसे जैसे अंधेरा गहरा रहा है , वह उस विदेशी युवति की नजरों को अपने चेहरे पर महसूस कर रहा है । उसने चेहरा घुमा लियाहै खिडक़ी की तरफ फिर से हालांकि इस एक पोस्चर में उसकी गर्दन दुखने लगी है । पर वह किसी किस्म की गलतफहमी उसे नहीं पालने देना चाहता ।
बस ने आठ की जगह साढे आठ बजा लिये हैं । बसस्टॉप पर उतर कर वह अपना सामान डिक्की सेनिकलवा रहा है । तभी उसके कन्धे पर उसे हाथ महसूस हुआ ,
'' हलो , जेन्टलमेन , आय एम ब्रिगेडियर सिन्हा। ''
'' गुडईवनिंग सर। ''
'' वेलकम डियर। ''
'' आपने क्यों तकलीफ की सर मैं पहुंच जाता । ''
'' तुम हमारे मेहमान हो आखिर। रामसिंग सामान गाडी में रखो। ''
'' सर। ''
'' अविनाश तुम हमारे साथ ठहरोगे। ''
'' लेकिन। ''
'' लेकिन क्या भाई ? ''
'' आपने मुझे पहचाना कैसे ? ''
'' ओह , हा हा हा। यार इतने सारे यात्रियों में एक फौजी अफसर को पहचानना क्या मुश्किल है ?''
अंधेरे में पहाडी रास्तों से होकर ब्रिगेडियर सिन्हा के बंगले पर पहुंचते पहुंचते पन्द्रह मिनट लग गये । सारे रास्ते वे बोलते रहे वह सुनता रहा , कि कैसे फौज छोड क़र वे यहा सैटल हुए , यहाँ उनका फार्म हाउस भी है । फार्मिंग में उनकी शुरू से रुचि रही है
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Old 23-12-2012, 08:39 AM   #37
ALEX
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वे उसमें स्ट्राबैरीज उगाना चाह रहे हैं इस बार । माऊंट आबू का मौसम कैसा है ? यहाँ वे बहुत लोकप्रिय हैं आदि आदि । उनके बंगले के गेट से पोर्च तक एक मिनट की ड्राईव से लग रहा था कि खूब बडी ज़गह लेकर घर बनाया गया है । अन्दर पहुंच कर , रामसिंग को उनका सामान गेस्टरूम में रखने का आदेश देकर , उसे हालनुमा ड्राईंगरूम में बिठा कर वे अन्दर कहीं गायब हो गये । हॉल की सज्जा कलात्मक थी । किसी के हाथ से बनी सुन्दर पेन्टिंग्स , जिनमें ज्यादातर राजस्थानी स्त्रियों के चेहरे थे , सांवला रंग लम्बोतरे चेहरे , खिंची हुई काजल भरी आंखें और तीखी नाक वाले । पूरे हॉल पर नजर घूमती हुई एक जगह आ टिकी , दरवाजें में हल्के नीले परदों पर बने आर्किड्स के जामुनी फूलों के बीच एक पेन्टिंग का सा ही चेहरा चस्पां था , वह चकराया , उसके गौर से देखने पर उस चेहरे ने पलकें झपकाईं और चेहरा हंस पडादूधिया हंसी ।

'' ऐ नॉटी गर्ल। '' ब्रिगेडियर साहब आते आते उस जीती जागती पेन्टिंग को साथ लेकरपरदे में से बाहर आए।

'' अविनाश ये मेरी बेटी है नीलांजना। बी एस सी सैकण्ड ईयर में पढती है। ''

'' हलो । ''

'' हलो। ''

'' बेटा जाओ मम्मी को भेजो और किचन में चाय और स्नैक्स के लिये कहना। ''

'' अविनाश ड्रिन्क्स ? ''

'' सर आज नहीं! टयूजड़ेज मैं नहीं पीता। ''

'' ओह नाईस! ''

श्रीमति सिन्हा के साथ साथ अरदली चाय का टीमटाम लेकर आ गया । श्रीमति सिन्हा एक सुन्दर व सभ्रान्त महिला लगीं । चाय की औपचारिकता के बाद वह र्फस्ट फ्लोर पर बने गेस्टरूम में आ गया । रूम क्या था एक छोटा मोटा सा समस्त सुविधाओं से युक्त फ्लैट ही था । पूरा घूमघाम कर देख कर उसे याद आया दस बजे डिनर के लिये नीचे उतरना है ।
'' अविनाश अंजना मेरी वाईफ से तुम मिल चुके हो। नीला से भी , ये सुधा है मेरी बहन , जे जे आर्टस में फाईन आर्टस की लैक्चरर है , वैसे बॉम्बे रहती है , पर अभी मेरे साथ वेकेशन्स बिताने आई है। मयंक मेरा बेटा , आई आई टी बॉम्बे से इलेक्ट्रानिक्स में इंजीनियरिंग कर रहा है। ये मयंक का दोस्त केतन है। ये सभी लस्ट वीक से यहीं थे कल जा रहे हैं।और ये हैं मेजर अविनाश मेरे कलीग और दोस्त लेफ्टीनेंट कर्नल चौहान के भतीजे। ये भी हमारे साथ छुट्टियां बिताएंगे। ''
औपचारिक अभिवादन के बाद हल्के फुल्के ड्रिन्क्स , सूप के साथ औपचारिक बात चीत होने लगी ।
'' सुधा तुम तो रुकोगी ना! ''
'' जी दादा , परवोएक एक्जीबीशन थी मेरे स्टूडेन्ट्स की ''
'' बुआ! रूक जाओ नाभाई को जाने दो कल , आप अभी तो आई थीं। ''
'' ठीक है। ''
उसने पहली बार सुधा को गौर से देखा । ताम्बई रंग , स्निग्ध त्वचा , बडी बडी क़ाजल से लदी आँखे , भरे होंठ और थोडी चौडी नाक चेहरे पर बहुत परिपक्व सधा हुआ भाव । भरे सानुपातिक जिस्म पर बातिक प्रिन्ट का भूरा कुर्ता और जीन्स , घने काले लम्बे बालों को आकर्षक मगर बेतरतीब जूडे में लपेटा हुआ । एकाएक आप पर छा जाने वाला प्रभावशाली दृढ व्यक्तित्व । बात करने के ढंग और शब्दों के चयन से लगता है कि बुध्दिजीवी और कलाकार बात कर रहा है । फिर नजर घूमी तो नीला पर जा टिकी चम्पई रंग , बुआ की सी ही बडी-बडी लम्बी आँखे पर नाक और होंठ मां जैसे सुघढ । पतली दुबली सी लम्बी काया ।
'' क्या देख रहे हैं आप , पापा देखो ना आपके मेहमान खाना तो खा ही नहीं रहे। ''
'' ओह हाँ अविनाश लो न । ''
सुबह वह देर से उठ सका । उठते ही खिडक़ी में आया तो देखा नीचे मयंक और उसका दोस्त जिप्सी में सामान रख रहे थे ।
मयंक ने वहीं से चिल्ला कर अलविदा ली और ब्रिगेडियर सिन्हा उन्हें छोडने चले गये । वह नहा धोकर नीचे उतर आया । नीलांजना जल्दी जल्दी ब्रेकफास्ट कर कॉलेज जाने की तैयारीमें थी । उसके लिये भी वहीं चाय आ गई ।
'' मेरा मन नहीं कर रहा कॉलेज जाने का पर आज मेरा प्रेक्टिकल पीरीयड है , बाहर बुआ एक पेन्टिंग बना रही है , देखते रहियेगा बोर नहीं होंगे। शाम को मैं आऊंगी तब घूमने चलेंगे। ''
वह हंस पडा । चाय पीकर वह बाहर आ गया । सुधा सचमुच एक पेन्टिंग में व्यस्त थी । वह पीछे जाकर खडा हो गया ।
'' ओहआप। ''
'' जी। ''
'' आप ने छोड क्यों दियाइसे पूरा करिये ना। ''
'' कोई बात नहीं। वैसे भी यह पिछले साल से चल रही है पूरी हो ही नहीं पाती। इसके बीच न जाने कितनी पेन्टिंग्स बना डालीं। यह अटकी हुई है। दरअसल बॉम्बे होती तो पूरी हो जाती , इसे नीला ले नहीं जाने देती है। ''
'' फिर तो यह जरूर आपक मास्टर पीस होने वालीहै। ''
दोनों हंस दिये । हंसती हुई सुधा अच्छीलगती है । हंसी के चेहरे पर से गंभीरता के मुखौटे को खिसका जाती है । उसने पेन्टिंग को ध्यान सेदेखा , उसे वह नीला की पोर्ट्रेट लगी
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Old 23-12-2012, 08:41 AM   #38
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बडी आँखें , चेहरे पर बिखरे सुनहरे बालों का गुच्छा , लैस वाला गुलाबी टॉपबाकि पीछे बैकग्राउण्ड अधूरा थातस्वीर अधूरी होने की वजह से उदास सी लग रही थी । सुधा ने बालों से लकडी क़ा मछली के सिर वाला कांटा निकाला , जो कि उसकी रुचि के अनुसार कलात्मक था और बाल कमर तक फैल गये और पहाडी बयार में उडने लगे । वह गौर से देखे बिना न रह सका सुधा ने उसकी नजर को उपेक्षितकर दिया और ब्रेकफास्ट यहीं लाने के लिये कह कर चली गई । ब्रेकफास्ट बाहर लॉन में लग गया और परिवार के बचे हुए सदस्य वहीं आ गये । ब्रिगेडियर सिन्हा ने कश्मीर मसले पर बात छेड दी तो वह चर्चा देर तक चलती रही । सुधा ज्यादा रुचि नहीं ले रही थी । वह उठ कर लाईब्रेरी में चली गई तो ब्रिगेडियर साहब मुद्दे पर आ गये ।
'' तो अविनाश तुम्हारा सुधा को लेकर क्या ख्याल है ?
वह अचकचा गया । क्या कहे ?
'' देखो बेटा , मुझे तुम्हारा अतीत मालूम है , सुधा को भी मैं ने बताया है। अब तुम दोनों को ही विवाह को लेकर निर्णय ले लेना चाहिये। यह समझ लो यह आखिरी गाडी हैउसके बाद या तो सफर टाल दो , या इसी में चढ ज़ाओ। ''
'' जी। ''
'' मैं चाहता हूँ तुम दोनों अधिक से अधिक समय साथ बिता कर अपना अपना निर्णय बता दो। ''
लंच के बाद वह अपने कमरे में आने के बाद देर तक इस विषय पर सोच सोच कर उलझता रहा । सुधा आर्मी के माहौल में रही है , अच्छी लडक़ी है । क्या हाँ कह दे ?
'' हाय! क्या सोच रहे थे ? बुआ के बारे में ?''
'' नीला तुम कब आई ? ''
'' अरे कब से आकर खडी हूँ , कॉफी लेकर । आप हैं कि गहरी सोच में गुम हैं। ''
'' कॉलेज कैसा रहा ?''
'' एज यूजवल। ''
शलवार कुर्ते में नीला बडी बडी लगी । दोनों ने कॉफी पी ली तो नीला ने उसे खींच कर उठा दिया -
'' जाईये जल्दी चैन्ज करिये ना। हम घूमने चलेंगे। ''
'' हम कौन कौन। ''
'' जाना तो मुझे भी है पर मम्मी कहती है आप और बुआ ही जाएंगे। प्लीज अविनाश अंकल आपकहिये ना मम्मी को कि मैं भी चलूंगी। ''
'' अंकल ? क्या मैं इतना बडा लगता हूँ। ''
'' लगते तो नहीं परतो क्या कहूँ फिलहाल अविनाश जी चलेगा!
'' हाँ। ''
उसने नीला को साथ ले ही लिया । सुधा ने भी पैरवी की क्योंकि दोनों ही टाल रहे थे एकान्त का साथ । एक उमर के बाद कितना मुश्किल हो जाता है किसी को अपनाना , प्रेम करना और जिन्दगी भर निभाने काप्रण लेना , महज कुछ शारीरिक जरूरतों और सहारे के लिये । वह भी शायद यही सोच रही होगीअपनी अपनी आजादियों की लत लग गई है हमें । और उम्र में तो वह मुझसे भी दो साल बडी ही है । उम्र कोई मायने नहीं रखती , क्या उसके कई अच्छे दोस्त उससे बडे नही ? पर फिर भीनहीं कर सकेगा अभी वह हाँ।
'' हाय अविनाश जी , चलें! '' नीला ने आकर हाथ पकड लिया , एक उष्ण और उत्साह से भरा स्पर्श।
'' आपकी बुआ जी कहाँ हैं ? ''
'' उन्हें तैयार होने में बहुत वक्त लगता है। ''
सुधा आ गई । साडी में भी वही कलात्मक स्पर्श ।
'' कौन ड्राईव करेगा ?''
'' ऑफ कोर्स मैं नीलू , अविनाश जी को कहाँ इन पहाडी रास्तों का अन्दाजा होगा! और तुम्हें दादा ने मना किया था न। ''
नीला ही बोलती रही सारे रास्ते दोनों खामोश थे अपने अपने दायरों मे । एक मंदिर की सीढियों के पास जाकर सुधा ने गाडी रोक दी । उपर चढते हुए उसने कहा मैं अभी आई ।
'' क्या तुम्हारी बुआ जी बडी धार्मिक हैं ? ''
'' ऑ.. ज्यादा तो नहीं अभी तो वह इस पुराने मंदिर में अपने एक स्कैच के लिये फोटो लेने गई हैं। आपने क्या सोचा कि वे मन्नत मांगने गईं हैंकि है भगवान इस हैण्डसम फौजी से अब मेरी मंगनी हो ही जाए। गलत फहमी में मत रहियेगा। मेरी बुआ हीसबको रिजेक्ट करती हैवरना कब से शादी हो जाती। वो तो मिस बॉम्बे भी रह चुकी है अपने जमाने में। ''
'' ''
'' बुरा तो नहीं माना न। ''
'' नहीं नीला , बच्चों कीबात का बुरा मानते हैं क्या ?''
'' बाय द वे अविनाश जी मैं बच्ची नहीं हूँ , एक बार अंकल क्या कह दिया आपने बच्चों मेंशुमार कर लिया। ''
'' अच्छा मिस नीलांजनातो आप क्या कह रही थीं। ''
'' श्श्बुआ आ गई। '' कह कर उसने मेरा हाथ दबा दिया।
वह अब नीला के बारे में सोच रहा था , कितनी जीवन्त है यह लडक़ी । कितनी निश्छल
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Old 23-12-2012, 08:43 AM   #39
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नक्की लेक पर पहुंचतेपहुंचते शाम हो गई थी । सुधा को बोटिंग में जरा भी दिलचस्पी नहींथी , सो वह शॉल लेकर किनारे रखी एक बैन्च पर बैठ गई , मैं न चाह कर भी नीला के साथ बोटिंग पर चला गया ।
'' अविनाश जी , सन सेट के वक्त सबकी आँखों का रंग बदल जाता है ,
देखोआपकी और मेरी। ''
नीलांजना की आँखों में समुद्र उफान पर था । उसके खुले सीधे सीधे भूरे बाल सोने के तार लग रहे थे । हवा में उडता उसका लैस वाला कॉलर ।
'' अविनाशजी! ''
'' क्या देख रहे थे ? ''
'' यही कि तुम बहुत सुन्दर हो। ''
'' हाँ हूँ तो। पर उससे क्या फर्क पडता है। प्रकृति में हर चीज सुन्दर है। मुझे तो हर चीज सुन्दर लगती है। ''
'' हाँ तुम्हारी उम्र में मुझे भी सब कुछ सुन्दर लगता था। ''
'' अब। ''
'' अब! अब नजरिया बदल गया है। रियेलिटीज अलग होती हैं। ''
'' सबका सोचने का ढंग हैअपना अपना! क्या ये झील रियल नहीं ? वो जलपांखियों का झुण्ड रियल नहीं ?''
'' है नीला। ''
'' अविनाश जी , पापा से सुना था आप कविताएं लिखते थेफिर छोड क्यों दीं ? ''
'' तुम्हें रुचि है ? ''
'' हाँ। बहुत। पर आपने क्यों छोडा ''
'' वही। ''
'' रियेलिटीज। '' नीला नेदोहराया और दोनों हँसपडे।
नीला तुम जैसी वास्तविक प्रेरणा होती तो , शायद लिखता रहता । तुम्हें क्या मालूम जिन्दगी कितनी बडी ग़ि्रम रियेलिटी है , जिसे तुम्हें बता कर डराना नहीं चाहता । ईश्वर करे तुम्हें जिन्दगी उन्हीं सुन्दर सत्यों के रूपमें मिले । डरावने मुखौटे पहन कर नहीं ।
'' अविनाश जी , चलिये किनारा आ गया। आप क्या सोचते रहते हैं ? ''
'' कैसी रही बोटिंग , अविनाश जी। '' सुधा चलकर पास आ गई थी।
'' इंटेरैस्टिंग। ''
थोडी चढाई चढ क़र हम सेमीप्रेशयस स्टोन और चांदी की ज्यूलरी की दुकान पर आ गई ।
'' नमस्ते सुधा जी। ब्रिगेडियर साहब कैसे हैं ? ''
'' अच्छे हैं गुप्ता जी। आप बताईये इस बार मेरे लिये क्या है ?''
'' आप बहुत दिनों बाद आईहैं। पता है आपने जो फिरोजा का पेन्डेन्ट डिजायन कर के बनवाया था , वो फॉरेनर्स में बहुत पॉपुलर हुआ। ''
'' आपने मेरी डिजायन कॉमन कर दी गुप्ता जी। ''
मैं और नीला बाहर की ओर बैठ गये ।
'' तुम्हें ज्यूलरी में इन्टरैस्ट नहीं। ''
'' बुआ जैसी ज्यूलरी में नहीं। कहाँ कहाँ से आदिवासियों के डिजायन कॉपी करवा के , सिल्वर का ऑक्सीडाईज्ड़ करवा कर पहनती है। मेरा बस चले तो कानों में बबूल के गोल फूल पहनूं , बालों में रंगबिरंगे पंख लगा लूं। ''
'' वनकन्या की तरह( दोनों हंस दिये )वैसे नीला सुन्दर स्त्रियों को जेवर कीजरूरत ही कहाँ होती है ?''
'' हां। जैसे मुझे! ( फिर एक साझी हंसी खिली) जब से आप आए हैं हम कितना ह/से हैं ना। हमारे घर में किसी को हंसने का शौक ही नहीं है। ''
'' नीलू। ''
'' जी बुआ। ''
'' देख ये एमेथिस्ट जडा कडा पसन्द है तुझे ? तेरे परपल सूट के साथ मैच करेगा। ''
'' अच्छा है बुआ। ''
'' अविनाश जी यह आपके लिये। ''
'' मेरे लियेक्या। ''
'' देख लीजिये। ''
एक्वामेराईन स्टोन के बहुत सुन्दर कफलिंक्स थे ।
'' थैंक्स। ''
पहली बार सुधा ने अपनी आँखों में आत्मीयता भर मुस्कुरा कर उसे देखाथा । यानि ? फिर भी अभी भी वह वक्त लेगा । हाँ करने से पहले । ऐसे ही न जाने तीन दिन कब बीत गये । वो और नीला बहुत आत्मीय हो गये थे दो दोस्तों की तरह ।
'' मैं बुआ की जगह होती तो बहुत पहले आपसे शादी के लिये हाँ कह देती। ''
'' मैं किस की जगह होता फिर। ''
फिर एक हँसी।
'' आपके बारे में कुछ सुना था। ''
'' सच ही सुना होगा। ''
'' कैसी होगी वह लडक़ी , जिसने आपको बिना जाने। ''
'' छोडो न नीला , शायद उसकी ही कोई विवशता हो। ''
'' क्या वह किसी और से प्यार करती थी ?''
'' शायद। ''
'' ऐसा क्यों होता है अविनाश जी ? शादी जबरदस्ती का सौदा नहीं होनी चाहिये ना! ऐसे तो अधूरे रिश्तोंकी कतार लग जाएगी। आप से वह प्यार नहीं करती थी और शादी हुई , आप किसी को प्यार करें और शादी किसी से हो जाए , फिर उसकी जिससे शादी होवह । ऐसे जाने कितनी प्यारकी अधूरी तस्वीरें हीरह जाती होंगी हमारे समाज में और फिर शादी एक औपचारिकता बन कर रह जाती है। ''
'' तुम अभी छोटी हो नीला , जिन्दगी के सच समझने के लिये। प्यार से परे दुनिया और समाज बहुत बडा होता है जिसके कर्तव्य भावनाओं पर आधारित नहीं होते। ''
'' यही तोअच्छा आप बुआ से शादी करेंगे ? ''
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' पता नहीं नीला। दरअसल मैं यह सब सोच कर ही नहीं आया हूँ। बस मामा की बात रखने के लिये चला आया। ''
'' आप बहुत भावुक हैं औरबुआ बहुत प्रैक्टीकल। ''
'' मैं भावुक हूँ कैसे जाना ? ''
'' जिन्हें आप एडमायर करते हैं उन्हें आप जान भी लेते हो। ''
'' । ''
'' आप बहुत अच्छे हैं। '' नीला की आंखें तप रही थीं। होंठ अधखुलेनाईट सूट के ढीले कुर्ते में धडक़ते सुकुमार नन्हें वक्षों की धडक़न खामोशी में मुखरहो गई थी।
'' । ''
'' नीला! रात हो गई अब जाओ। ''
'' कॉफी! ''
'' नहीं। ''
'' गुडनाईट। ''
मेरा मन अजानी आशंका और एक अजाने भाव से थरथरा रहा था । ठण्डी रात में भी वह पसीने में डूब गया । सुबह देर से उठा , बाथरूम से मुंह हाथ धोकर निकला तो सामने सुधा चाय और ब्रेकफास्ट दोनों लेकर खडी थी ।
'' देर तक सोये आज आप। लगता है यह नॉवेल पढते रहे देर रात तक। '' सुधा ने नॉवेल उठा कर देखा फिर रख दिया। मैं हतप्रभ था , नॉवेल ?
'' आज आपके मामा जी का फोन आया था , रात को पहुंच रहे हैं। ''
'' ओह हाँ। ''
चुपचाप चाय पी गई । ब्रेकफास्ट भी हुआ । अचानक सुधा ने पूछा ।
'' आज हम दोनों को कनफ्रन्ट किया जाएगा। आपने क्या सोचा है ?''
'' मैं ने तो कुछ सोचा ही नहीं। ''
'' तो सोच लीजिये , जवाब तो देना ही है।यही प्रयोजन है कि आप यहाँ आए और मैं ने अपनी छुट्टियाँ बढवा लीं। ''
'' सुधा... हम जानते ही क्या हैं अभी एक दूसरे के बारे में ?''
'' जानने की मुहलत बस इतनी ही थी अविनाश जी , फिर जिन्दगी भर साथ रह कर भी लोग क्या जान लेते हैं। ''
'' मेरे बारे में सुना होगा। ''
'' हाँ , वह अतीत था अविनाश आपका , सबका कुछ न कुछ होता है। उसे छोडिये। ''
'' क्या तुम्हें पसन्द आएगा इतने दिनों की आजाद जिन्दगी के बाद बंधना ? ''
'' उम्मीद है आप ऐसा नहीं करेंगे। मैं भी व्यक्तिगत स्वतन्त्रता में विश्वास करती हूँ ! ''
'' तुम्हारी जॉब ? ''
'' जॉब तो मैं नहीं छोड सकती अविनाश। लम्बी छुट्टियाँ मीन्स विदाउट पे लीव्ज अफोर्ड कर सकती हूँ। फिर देखते हैं। ''
'' तो...सुधा तुमने फैसला ले लिया है ? ''
'' हाँ अविनाश थक गई हूँ , लोगों की सहानुभूति और सवालों से। ''
'' थक तो मैं भी गया था सुधा , पर क्या यह समझौता नही ? ''
'' शायद अविनाश हम एक दूसरे को पसन्द करने लगें। '' मुस्कुरा कर सुधा प्लेट्स उठाने लगी।
'' तो शाम को डिनर टेबल पर आने तक अपना फैसला कर लेना। मुझे नैगेटिव हो या पॉजिटिव कोई प्रॉब्लम नहीं है। ''
सुधा के जाते ही उसने नावेल उठाया , सेवेन्थहेवेन एक रोमेन्टिक नॉवेल था , उसके अन्दर एक पन्ना
मुझे नहीं पता मैं कहाँ बह रही हूँ। लेकिन जब से आप आए हैं मुझे अपना होना अच्छालगने लगा है । आप बहुत बडे हैं , यह खत पढ क़र जाने क्या प्रतिक्रिया करें । पर अगर मैं ने न लिखा तो मैं घुटन से मर जाऊंगी । आप पहले पुरुष हैंऔर मैं खुद हैरान हूँ कि क्यों खिंची जा रही हूँ मैं आपकी ओरकल रात न जाने क्यों लगा कि सौंप दूं अपने हाथों की नमी और धडक़नों के स्पन्दन आपको । लेकिन
नीला! ओह! उसे लगा कि वह चक्रवात में घिर गया है । उफ यह पेपर सुधा के हाथ लग जाता तो ? वह क्या सोचती ? वह घबरा कर तैयार होकर बाहर निकल आया । रामसिंग ने पूछा भी गाडी के लिये पर मैं मना करके पैदल तीन चार किलोमीटर चला आयावह । पहाडी ढ़लवां रास्ते और पहाडी वनस्पति , बडे पेड और उन पर उछल कूद मचाते बन्दर । वह एक चट्टान पर सुस्ताने लगा और आंखें मूंदते ही नीलाका चेहरा सामने आ गया । मासूम आंखें , सीधे रेशमी बालों में खुल खुल जाती लाल साटिन के रिबन की गिरह , तिर्यक मुस्कान ।
' नीला तुम मुझे प्रिय हो , तुम्हारी निश्छलता मुझे पसन्द हैतुम वह अनगढ क़ोमल स्फटिक शिला हो जिसे मैं मनचाहा गढ सकता हूँ। तुम्हारा समर्पण बहुत कीमती औरनाज़ुक है , और नियति बहुत क्रूर है नीला। जिस संभावना को हम सोचते डरते हैंवह संभव तो हो ही नहीं सकती ना। मैं कल ही यहाँ से चला जाऊंगा। आज रात डिनर पर मामा जी से क्या कहूंगा। मना कर दूंगा। '
जब बहुत देर भटक लिया तो लौटने लगा । वह ब्रिगेडियर सिन्हा के घर के जरा नीचे वाले मोड पर मुडा ही था कि नीला सायकल पर उतरती दिखाई दी । पास आई तो परेशान लगी ।
'' क्या हो गया आपको। पता है पापा और बुआ परेशान थे। ''
'' । ''
'' मेरा इन्टेशन वह नहीं था , अविनाश जी बस , कनफेस किये बिना न रह सकी। ''
'' और मैं किससे कनफेस करुं ? ''
'' आप....ओह अभी यहां से चलिये....घर नहीं मुझे आपसे बात करनी है।
__________________
Kitni ajeeb thi teri ishq-e-mohabbat....
ki ek Aankh Samundar bani to dooji Pyas....
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