07-02-2011, 09:48 AM | #31 |
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Re: !! कुछ गजलें !!
आ कि मेरी जान को क़रार नहीं है ताक़ते-बेदादे-इन्तज़ार नहीं है देते हैं जन्नत हयात-ए-दहर के बदले नश्शा बअन्दाज़-ए-ख़ुमार नहीं है गिरिया निकाले है तेरी बज़्म से मुझ को हाये! कि रोने पे इख़्तियार नहीं है हम से अबस है गुमान-ए-रन्जिश-ए-ख़ातिर ख़ाक में उश्शाक़ की ग़ुब्बार नहीं है दिल से उठा लुत्फे-जल्वाहा-ए-म'आनी ग़ैर-ए-गुल आईना-ए-बहार नहीं है क़त्ल का मेरे किया है अहद तो बारे वाये! अगर अहद उस्तवार नहीं है तू ने क़सम मैकशी की खाई है "ग़ालिब" तेरी क़सम का कुछ ऐतबार नहीं है मिर्ज़ा ग़ालिब
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07-02-2011, 09:27 PM | #32 |
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यही तोहफ़ा है यही नज़राना मैं जो आवारा नज़र लाया हूँ रंग में तेरे मिलाने के लिये क़तरा-ए-ख़ून-ए-जिगर लाया हूँ ऐ गुलाबों के वतन पहले कब आया हूँ कुछ याद नहीं लेकिन आया था क़सम खाता हूँ फूल तो फूल हैं काँटों पे तेरे अपने होंटों के निशाँ पाता हूँ मेरे ख़्वाबों के वतन चूम लेने दे मुझे हाथ अपने जिन से तोड़ी हैं कई ज़ंजीरे तूने बदला है मशियत का मिज़ाज तूने लिखी हैं नई तक़दीरें इंक़लाबों के वतन फूल के बाद नये फूल खिलें कभी ख़ाली न हो दामन तेरा रोशनी रोशनी तेरी राहें चाँदनी चाँदनी आंगन तेरा माहताबों के वतन kaifi azmi
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07-02-2011, 09:38 PM | #33 |
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Re: !! कुछ गजलें !!
दिल-ए नादां तुझे हुआ क्या है
अख़िर इस दर्द की दवा क्या है हम हैं मुश्ताक़ और वह बेज़ार या इलाही यह माज्रा क्या है मैं भी मुंह में ज़बान रख्ता हूं काश पूछो कि मुद्द`आ क्या है जब कि तुझ बिन नहीं कोई मौजूद फिर यह हन्गामह अय ख़ुदा क्या है यह परी-चह्रह लोग कैसे हैं ग़म्ज़ह-ओ-`इश्वह-ओ-अदा क्या है शिकन-ए ज़ुल्फ़-ए अन्बरीं क्यूं है निगह-ए चश्म-ए सुर्मह-सा क्या है सब्ज़ह-ओ-गुल कहां से आए हैं अब्र क्या चीज़ है हवा क्या है हम को उन से वफ़ा की है उम्मीद जो नहीं जान्ते वफ़ा क्या है हां भला कर तिरा भला होगा और दर्वेश की सदा क्या है जान तुम पर निसार कर्ता हूं मैं नहीं जान्ता दु`आ क्या है मैं ने माना कि कुछ नहीं ग़ालिब मुफ़्त हाथ आए तो बुरा क्या है ग़ालिब
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07-02-2011, 10:40 PM | #34 |
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Re: !! कुछ गजलें !!
सर फ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है। करता नहीं क्यूं दूसरा कुछ बात चीत देखता हूं मैं जिसे वो चुप तिरी मेहफ़िल में है। ऐ शहीदे-मुल्को-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार अब तेरी हिम्मत का चर्चा ग़ैर की महफ़िल में है। वक़्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमाँ हम अभी से क्या बताएं क्या हमारे दिल में है। खींच कर लाई है सब को क़त्ल होने की उम्मीद आशिक़ों का आज झमघट कूचा-ए-क़ातिल में है। है लिए हथियार दुश्मन ताक़ में बैठा उधर और हम तैयार हैं सीना लिए अपना इधर खून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्किल में है। हाथ जिन में हो जुनून कटते नहीं तलवार से सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से और भड़केगा जो शोला सा हमारे दिल में है। हम तो घर से निकले ही थे बांध कर सर पे क़फ़न जान हथेली पर लिए लो बढ चले हैं ये क़दम ज़िंदगी तो अपनी मेहमाँ मौत की महफ़िल में है। दिल में तूफ़ानों की टोली और नसों में इंक़िलाब होश दुशमन के उड़ा देंगे हमें रोको ना आज दूर रह पाए जो हम से दम कहां मंज़िल में है। यूं खड़ा मक़तल में क़ातिल कह रहा है बार बार क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है। रामप्रसाद बिस्मिल
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07-02-2011, 10:46 PM | #35 |
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Re: !! कुछ गजलें !!
की वफ़ा हम से तो ग़ैर उस को जफ़ा कह्*ते हैं होती आई है कि अच्*छों को बुरा कह्*ते हैं आज हम अप्*नी परेशानी-ए ख़ातिर उन से कह्*ने जाते तो हैं पर देखिये क्*या कह्*ते हैं अग्*ले वक़्*तों के हैं यह लोग उंहें कुछ न कहो जो मै-ओ-नग़्*मह को अन्*दोह-रुबा कह्*ते हैं दिल में आ जाए है होती है जो फ़ुर्*सत ग़श से और फिर कौन-से नाले को रसा कह्*ते हैं है परे सर्*हद-ए इद्*राक से अप्*ना मस्*जूद क़िब्*ले को अह्*ल-ए नज़र क़िब्*लह-नुमा कह्*ते हैं पा-ए अफ़्*गार पह जब से तुझे रह्*म आया है ख़ार-ए रह को तिरे हम मिह्*र-गिया कह्*ते हैं इक शरर दिल में है उस से कोई घब्*राएगा क्*या आग मत्*लूब है हम को जो हवा कह्*ते हैं देखिये लाती है उस शोख़ की नख़्*वत क्*या रन्*ग उस की हर बात पह हम नाम-ए ख़ुदा कह्*ते हैं वह्*शत-ओ-शेफ़्*तह अब मर्*सियह कह्*वें शायद मर गया ग़ालिब-ए आशुफ़्*तह-नवा कह्*ते हैं मिर्ज़ा ग़ालिब
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08-02-2011, 08:55 PM | #36 |
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Re: !! कुछ मशहूर गजलें !!
हम घूम चुके बस्ती-वन में इक आस का फाँस लिए मन में कोई साजन हो, कोई प्यारा हो कोई दीपक हो, कोई तारा हो जब जीवन-रात अंधेरी हो इक बार कहो तुम मेरी हो जब सावन-बादल छाए हों जब फागुन फूल खिलाए हों जब चंदा रूप लुटाता हो जब सूरज धूप नहाता हो या शाम ने बस्ती घेरी हो इक बार कहो तुम मेरी हो हाँ दिल का दामन फैला है क्यों गोरी का दिल मैला है हम कब तक पीत के धोखे में तुम कब तक दूर झरोखे में कब दीद से दिल की सेरी हो इक बार कहो तुम मेरी हो क्या झगड़ा सूद-ख़सारे का ये काज नहीं बंजारे का सब सोना रूपा ले जाए सब दुनिया, दुनिया ले जाए तुम एक मुझे बहुतेरी हो इक बार कहो तुम मेरी हो इब्ने इंशा
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08-02-2011, 08:59 PM | #37 |
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Re: !! कुछ मशहूर गजलें !!
न हुई गर मेरे मरने से तसल्ली न सही इम्तिहाँ और भी बाक़ी हो तो ये भी न सही ख़ार-ख़ार-ए-अलम-ए-हसरत-ए-दीदार तो है शौक़ गुलचीन-ए-गुलिस्तान-ए-तसल्ली न सही मय परस्ताँ ख़ूम-ए-मय मूंह से लगाये ही बने एक दिन गर न हुआ बज़्म में साक़ी न सही नफ़ज़-ए-क़ैस के है चश्म-ओ-चराग़-ए-सहरा गर नहीं शम-ए-सियहख़ाना-ए-लैला न सही एक हंगामे पे मौकूफ़ है घर की रौनक नोह-ए-ग़म ही सही, नग़्मा-ए-शादी न सही न सिताइश की तमन्ना न सिले की परवाह् गर नहीं है मेरे अशार में माने न सही इशरत-ए-सोहबत-ए-ख़ुबाँ ही ग़नीमत समझो न हुई "ग़ालिब" अगर उम्र-ए-तबीई न सही Mirza galib
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08-02-2011, 09:03 PM | #38 |
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Re: !! कुछ मशहूर गजलें !!
मुझ से पहली सी मोहब्बत मेरी महबूब न माँग मैं ने समझा था कि तू है तो दरख़शाँ है हयात तेरा ग़म है तो ग़म-ए-दहर का झगड़ा क्या है तेरी सूरत से है आलम में बहारों को सबात तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है तू जो मिल जाये तो तक़दीर निगूँ हो जाये यूँ न था मैं ने फ़क़त चाहा था यूँ हो जाये और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा मुझ से पहली सी मोहब्बत मेरी महबूब न माँग अनगिनत सदियों के तारीक बहिमाना तलिस्म रेशम-ओ-अतलस-ओ-कमख़्वाब में बुनवाये हुये जा-ब-जा बिकते हुये कूचा-ओ-बाज़ार में जिस्म ख़ाक में लिथड़े हुये ख़ून में नहलाये हुये जिस्म निकले हुये अमराज़ के तन्नूरों से पीप बहती हुई गलते हुये नासूरों से लौट जाती है उधर को भी नज़र क्या कीजे अब भी दिलकश है तेरा हुस्न मग़र क्या कीजे और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा मुझ से पहली सी मोहब्बत मेरी महबूब न माँग फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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12-02-2011, 08:28 AM | #39 |
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Re: !! कुछ मशहूर गजलें !!
देखा है मैंने इश्क में ज़िन्दगी को संवरते हुए
चाँद की आरजू में चांदनी को निखरते हुए इक लम्हे में सिमट सी गई है ज़िन्दगी मेरी महसूस किया है मैंने वक्त को ठहरते हुए डर लगने लगा है अब तो, सपनो को सजाने में भी जब से देखा है हंसी ख्वाबों को बिखरते हुए अब तो सामना भी हो जाये तो वो मुह फिर लेते हैं अपना पहले तो बिछा देते थे नजरो को अपनी, जब हम निकलते थे उनके रविस से गुजरते हुए... |
12-02-2011, 08:29 AM | #40 |
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Re: !! कुछ मशहूर गजलें !!
तू परछाई है मेरी, तो कभी मुझे भी दिखाई दिया कर ऐ जिंदगी ! कभी तो इक जाम फुर्सत में मेरे संग पिया कर मै भी इन्सान हूँ, मेरे भी दिल में बसता है खुदा मेरी नहीं तो न सही, कम से कम उसकी तो क़द्र किया कर इनायत समझ कर तुझको अबतलक जीता रहा हूँ मै मिटा कर क़ज़ा के फासले, मै तुझमे जियूं तू मुझमे जिया कर मेरा क्या है ? मै तो दीवाना हूँ इश्क-ऐ-वतन में फनाह हो जाऊंगा वतन पे मिटने वालों की न जोर आजमाइश लिया कर........... |
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