My Hindi Forum

Go Back   My Hindi Forum > Art & Literature > Hindi Literature
Home Rules Facebook Register FAQ Community

Reply
 
Thread Tools Display Modes
Old 01-08-2013, 12:22 PM   #31
VARSHNEY.009
Special Member
 
Join Date: Jun 2013
Location: रामपुर (उत्*तर प्&#235
Posts: 2,512
Rep Power: 17
VARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really nice
Default Re: कथा संस्कृति

अनुत्तरित प्रश्न / गणेश जी बागी

"चल कल्लुआ जल्दी से दारु पिला, आज मैं बहुत खुश हूँ।"
"अरे वाह, पर ऐसी क्या विशेष बात हो गई बिल्लू दादा ?
"यार, कल शाम जिस गुप्ता के घर में हम लोगो ने चोरी की थी न, उसने थाने में रपट दर्ज करा दी है।"
"तो दादा इसमें कौन सी ख़ुशी की बात है ?"
"ख़ुशी की बात तो यह है कल्लुआ, हम लोगों ने उसके घर से करीब २० लाख का माल उड़ाया और गुप्ता ने महज ३ लाख चोरी की ही रपट लिखाई है"
"वाह यह तो सचमुच ख़ुशी की बात है, दरोगा को हिस्सा भी कम देना पड़ा होगा"
"अरे नहीं रे, ऊ ससुरा दरोगा बहुत काइयां है, वो पहले ही भांप गया था कि हम लोगों ने लम्बा हाथ साफ़ किया है सो अपना हिस्सा पूरा ले लिया"
"पर दादा एक बात समझ में नहीं आई कि गुप्ता ने केवल तीन लाख की चोरी की ही रपट क्यों लिखाई ?"
"कल्लुआ तू समझता नहीं है, वो गुप्ता इनकम टैक्स चुराने के लिए ये सब नाटक कर रहा है "
"ओह तो यह बात है"
"तो दादा, लोग चोर हमें ही क्यों कहते हैं ?"
__________________
Disclamer :- Above Post are Free Available On INTERNET Posted By Somebody Else, I'm Not VIOLATING Any COPYRIGHTED LAW. If Anything Is Against LAW, Please Notify So That It Can Be Removed.
VARSHNEY.009 is offline   Reply With Quote
Old 01-08-2013, 12:23 PM   #32
VARSHNEY.009
Special Member
 
Join Date: Jun 2013
Location: रामपुर (उत्*तर प्&#235
Posts: 2,512
Rep Power: 17
VARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really nice
Default Re: कथा संस्कृति

अन्तर्दृष्टा / ख़लील जिब्रान / बलराम अग्रवाल

मैंने और मेरे दोस्त ने देखा कि मन्दिर के साए में एक अन्धा अकेला बैठा था। मेरा दोस्त बोला, "देश के सबसे बुद्धिमान आदमी से मिलो।"
मैंने दोस्त को छोड़ा और अन्धे के पास जाकर उसका अभिवादन किया। फिर बातचीत शुरू हुई।
कुछ देर बाद मैंने कहा, "मेरे पूछने का बुरा न मानना; आप अन्धे कब हुए?"
"जन्म से अन्धा हूँ।" उसने कहा।
"और आप विशेषज्ञ किस विषय के है?" मैंने पूछा।
"खगोलविद हूँ।" उसने कहा।
फिर अपना हाथ अपनी छाती पर रखकर उसने कहा, "ये सारे सूर्य, चन्द्र और तारे मुझे दिखाई देते हैं।"
__________________
Disclamer :- Above Post are Free Available On INTERNET Posted By Somebody Else, I'm Not VIOLATING Any COPYRIGHTED LAW. If Anything Is Against LAW, Please Notify So That It Can Be Removed.
VARSHNEY.009 is offline   Reply With Quote
Old 01-08-2013, 12:24 PM   #33
VARSHNEY.009
Special Member
 
Join Date: Jun 2013
Location: रामपुर (उत्*तर प्&#235
Posts: 2,512
Rep Power: 17
VARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really nice
Default Re: कथा संस्कृति

अन्धेर नगरी / ख़लील जिब्रान / बलराम अग्रवाल

राजमहल में एक रात भोज दिया गया।
एक आदमी वहाँ आया और राजा के आगे दण्डवत लेट गया। सब लोग उसे देखने लगे। उन्होंने पाया कि उसकी एक आँख निकली हुई थी और खखोड़ से खून बह रहा था।
राजा ने उससे पूछा, "तुम्हारा यह हाल कैसे हुआ?"
आदमी ने कहा, "महाराज! पेशे से मैं एक चोर हूँ। अमावस्या होने की वजह से आज रात मैं धनी को लूटने उसकी दुकान पर गया। खिड़की के रास्ते अन्दर जाते हुए मुझसे गलती हो गई और मैं जुलाहे की दुकान में घुस गया। अँधेरे में मैं उसके करघे से टकरा गया और मेरी आँख बाहर आ गई। अब, हे महाराज! उस जुलाहे से मुझे न्याय दिलवाइए।"
राजा ने जुलाहे को बुलवाया। वह आया। निर्णय सुनाया गया कि उसकी एक आँख निकाल ली जाय।
"हे महाराज!" जुलाहे ने कहा, "आपने उचित न्याय सुनाया है। वाकई मेरी एक आँख निकाल ली जानी चाहिए। मुझे दु:ख के साथ कहना पड़ रहा है कि कपड़ा बुनते हुए दोनों ओर देखना पड़ता है इसलिए मुझे दोनों ही आँखों की जरूरत है। लेकिन मेरे पड़ोस में एक मोची रहता है, उसके भी दो ही आँखें हैं। उसके पेशे में दो आँखों की जरूरत नहीं पड़ती है।"
राजा ने तब मोची को बुलवा लिया। वह आया। उन्होंने उसकी एक आँख निकाल ली।
न्याय सम्पन्न हुआ।
__________________
Disclamer :- Above Post are Free Available On INTERNET Posted By Somebody Else, I'm Not VIOLATING Any COPYRIGHTED LAW. If Anything Is Against LAW, Please Notify So That It Can Be Removed.
VARSHNEY.009 is offline   Reply With Quote
Old 01-08-2013, 12:24 PM   #34
VARSHNEY.009
Special Member
 
Join Date: Jun 2013
Location: रामपुर (उत्*तर प्&#235
Posts: 2,512
Rep Power: 17
VARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really nice
Default Re: कथा संस्कृति

अपना देश / दीपक मशाल

जब से ब्रिटेन आया उसे अपने देश की हर बात नकली, झूठी और बेमानी लगती। यहाँ के साफ़ और चमकदार बाज़ार, गली, घर, कारें और बगीचों के अलावा यहाँ के लोगों की ईमानदारी, खान-पान, चिकित्सा-व्यवस्था, तनख्वाह हर बात की तो वो भारत से तुलना करने लगता और फिर स्वयं को बेहतर हालात में ही पाता।
जो घर उसने किराए पर ले रखा था उसमे टी।वी।, डीवीडी से लेकर माइक्रोवेव, वाशिंग मशीन सब मकान मालिक का दिया हुआ था वो तो सिर्फ उसमें आकर टिक गया था। सारे खर्चे का हिसाब लगाने पर पता चला कि जितना वह भारत में कमाता था उससे ६ गुना ज्यादा की तो हर महीने सीधी-सीधी बचत है। पहले महीने ही उसने एक नया लैपटॉप खरीद लिया।
एक दिन दोपहर को अचानक एक जाँच अधिकारी उसके घर आ धमका। घर में टी।वी।, डीवीडी, इंटरनेट कनेक्शन, लैपटॉप सब अपने साथ लाये एक फॉर्म में दर्ज कर लिये और अंततः उसे टी।वी। लाइसेंस ना लेने का दोषी बताया।
वह लाख रिरियाता रहा कि ना तो वह टी।वी। देखने का शौक़ीन है ना ही इंटरनेट पर लाइव समाचार ही सुनता है। पर अधिकारी को ना एक सुनना था ना उसने सुनी। एक हज़ार पाउंड का जुर्माना सुनकर आज उसे अपना देश सबसे प्यारा लग रहा था।
__________________
Disclamer :- Above Post are Free Available On INTERNET Posted By Somebody Else, I'm Not VIOLATING Any COPYRIGHTED LAW. If Anything Is Against LAW, Please Notify So That It Can Be Removed.
VARSHNEY.009 is offline   Reply With Quote
Old 01-08-2013, 12:31 PM   #35
VARSHNEY.009
Special Member
 
Join Date: Jun 2013
Location: रामपुर (उत्*तर प्&#235
Posts: 2,512
Rep Power: 17
VARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really nice
Default Re: कथा संस्कृति

अपना-अपना दर्द / श्याम सुन्दर अग्रवाल

मिस्टर खन्ना अपनी पत्नी के साथ बैठे जनवरी की गुनगुनी धूप का आनंद ले रहे थे। छत पर पति-पत्नी दोनों अकेले थे, इसलिए मिसेज खन्ना ने अपनी टाँगों को धूप लगाने के लिए साड़ी को घुटनों तक ऊपर उठा लिया। मिस्टर खन्ना की निगाह पत्नी की गोरी-गोरी पिंडलियों पर पड़ी तो वह बोले, "तुम्हारी पिंडलियों का मांस काफी नर्म हो गया है। कितनी सुंदर हुआ करती थीं ये! " "अब तो घुटनों में भी दर्द रहने लगा है, कुछ इलाज करवाओ न! " मिसेज खन्ना ने अपने घुटनों को हाथ से दबाते हुए कहा। "धूप में बैठकर तेल की मालिश किया करो, इससे तुम्हारी टाँगें और सुंदर हो जाएँगी।" पति ने निगाह कुछ और ऊपर उठाते हुए कहा, "तुम्हारे पेट की चमड़ी कितनी ढलक गई है! " "अब तो पेट में गैस बनने लगी है। कई बार तो सीने में बहुत जलन होती है।" पत्नी ने डकार लेते हुए कहा। "खाने-पीने में कुछ परहेज रखा करो और थोड़ी-बहुत कसरत किया करो। देखो न, तुम्हारा सीना कितना लटक गया है! " पति की निगाह ऊपर उठती हुई पत्नी के चेहरे पर पहुँची, "तुम्हारे चेहरे पर झुर्रियाँ पड़ गई हैं, आँखों के नीचे काले धब्बे पड़ गए हैं।" "हां जी, अब तो मेरी नज़र भी बहुत कमजोर हो गई है, पर तुम्हें मेरी कोई फिक्र नहीं है! " पत्नी ने शिकायत-भरे लहज़े में कहा। "अजी फिक्र क्यों नहीं, मेरी जान ! मैं जल्दी ही किसी बड़े अस्पताल में ले जाऊँगा और तुम्हारी प्लास्टिक सर्जरी करवाऊँगा। फिर देखना तुम कितनी सुन्दर और जवान लगोगी।" कहकर मिस्टर खन्ना ने पत्नी को बाँहों में भर लिया।
__________________
Disclamer :- Above Post are Free Available On INTERNET Posted By Somebody Else, I'm Not VIOLATING Any COPYRIGHTED LAW. If Anything Is Against LAW, Please Notify So That It Can Be Removed.
VARSHNEY.009 is offline   Reply With Quote
Old 01-08-2013, 12:44 PM   #36
VARSHNEY.009
Special Member
 
Join Date: Jun 2013
Location: रामपुर (उत्*तर प्&#235
Posts: 2,512
Rep Power: 17
VARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really nice
Default Re: कथा संस्कृति

अपना-पराया / हरिशंकर परसाई

'आप किस स्*कूल में शिक्षक हैं?'
'मैं लोकहितकारी विद्यालय में हूं। क्*यों, कुछ काम है क्*या?'
'हाँ, मेरे लड़के को स्*कूल में भरती करना है।'
'तो हमारे स्*कूल में ही भरती करा दीजिए।'
'पढ़ाई-*वढ़ाई कैसी है?
'नंबर वन! बहुत अच्*छे शिक्षक हैं। बहुत अच्*छा वातावरण है। बहुत अच्*छा स्*कूल है।'
'आपका बच्*चा भी वहाँ पढ़ता होगा?'
'जी नहीं, मेरा बच्*चा तो 'आदर्श विद्यालय' में पढ़ता है।'
__________________
Disclamer :- Above Post are Free Available On INTERNET Posted By Somebody Else, I'm Not VIOLATING Any COPYRIGHTED LAW. If Anything Is Against LAW, Please Notify So That It Can Be Removed.
VARSHNEY.009 is offline   Reply With Quote
Old 01-08-2013, 12:45 PM   #37
VARSHNEY.009
Special Member
 
Join Date: Jun 2013
Location: रामपुर (उत्*तर प्&#235
Posts: 2,512
Rep Power: 17
VARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really nice
Default Re: कथा संस्कृति

अपना–अपना नशा / सुभाष नीरव

"जरा ठहरो ..." कहकर मैं रिक्शे से नीचे उतरा। सामने की दुकान पर जाकर डिप्लोमेट की एक बोतल खरीदी, उसे कोट की भीतरी जेब में ठूँसा और वापस रिक्शे पर आ बैठा। मेरे बैठते ही रिक्शा फिर धीमे–धीमे आगे बढ़ा। रिक्शा खींचने का उसका अंदाज देख लग रहा था, जैसे वह बीमार हो। अकेली सवारी भी उससे खिंच नहीं पा रही थी। मुझे भी कोई जल्दी नहीं थी। मैंने सोचा, खरामा–खरामा ही सही, जब तक मैं घर पहुँचूँगा, वर्मा और गुप्ता पहुँच चुके होंगे।
परसों रात कुलकर्णी के घर तो मजा ही नहीं आया। अच्छा हुआ, आज मेहता और नारंग को नहीं बुलाया। साले पीकर ड्रामा खड़ा कर देते हैं।... मेहता तो दो पैग में ही ‘टुल्ल’ हो जाता है और शुरू कर देता है अपनी रामायण। और नारंग?... उसे तो होश ही नहीं रहता, कहाँ बैठा है, कहाँ नहीं।... अक्सर उसे घर तक भी छोड़कर आना पड़ता है।
"अरे–अरे, क्या कर रहा है?" एकाएक मैं चिल्लाया, "रिक्शा चला रहा है या सो रहा है?... अभी पेल दिया होता ठेले में।"..
रिक्शावाले ने नीचे उतरकर रिक्शा ठीक किया और फिर चुपचाप खींचने लगा। मैं फिर बैठा–बैठा सोचने लगा– गुप्ता भी अजीब आदमी है। पीछे ही पड़ गया, वर्मा के सामने। बोला, पे–डे को सोमेश के घर पर रही। पता भी है उसे, एक कमरे का मकान है मेरा। बीवी–बच्चे हैं, बूढ़े माँ–बाप हैं। छोटी–सी जगह में पीना–पिलाना।... उसे भी ‘हाँ’ करनी ही पड़ी, वर्मा के आगे। पत्नी को समझा दिया था सुबह ही– वर्मा अपना बॉस है।.. आगे प्रमोशन भी लेना है उससे।... कभी–कभार से क्या जाता है अपना।... पर, माँ–बाऊजी की चारपाइयाँ खुले बरामदे में करनी होंगी। बच्चे भी उनके पास डालने होंगे। कई बार सोचा- एक तिरपाल ही लाकर डाल दूँ, बरामदे में। ठंडी हवा से कुछ तो बचाव होगा। पर जुगाड़ ही नहीं बन पाया आज तक।
सहसा, मुझे याद आया– सुबह बाऊजी ने खाँसी का सीरप लाने को कहा था। रोज रात भर खाँसते रहते हैं। उनकी खाँसी से अपनी नींद भी खराब होती है। पर सौ का नोट तो आज ... चलो, कह दूँगा, दुकानें बन्द हो गयी थीं।
एकाएक, रिक्शा किसी से टकराकर उलटा और मैं ज़मीन पर जा गिरा। कुछेक पल तो मालूम ही नहीं पड़ा कि क्या हुआ !... थोड़ी देर बाद, मैं उठा तो घुटना दर्द से चीख उठा। मुझे रिक्शावाले पर बेहद गुस्सा आया। परन्तु, मैंने पाया कि वह खड़ा होने की कोशिश में गिर–गिर पड़ रहा था। मैंने सोचा, शायद उसे अधिक चोट लगी है।... मैं आगे बढ़कर उसे सहारा देने लगा तो शराब की तीखी गन्ध मेरे नथुनों में जबरन घुस गयी। वह नशे में धुत्त था।
मैं उसे मारने–पीटने लगा। इकट्ठा हो आये लोगों के बीच–बचाव करने पर मैं चिल्लाने लगा, "शराब पी रखी है हरामी ने।.. अभी पहुँचा देता ऊपर।... साला शराबी !... कोई पैसे–वैसे नहीं दूँगा तुझे।... जा, चला जा यहाँ से... नहीं तो सारा नशा हिरन कर दूँगा।...शराबी कहीं का !"
वह खामोश खड़ा उलटे हुये रिक्शा को देख रहा था जिसका अगला पहिया टक्कर लगने से तिरछा हो गया था। मैंने जलती आँखों से उसकी ओर देखा और फिर पैदल ही घर की ओर चल दिया।
रास्ते में कोट की भीतरी जेब को टटोला। मै खुश था– बोतल सही–सलामत थी।
__________________
Disclamer :- Above Post are Free Available On INTERNET Posted By Somebody Else, I'm Not VIOLATING Any COPYRIGHTED LAW. If Anything Is Against LAW, Please Notify So That It Can Be Removed.
VARSHNEY.009 is offline   Reply With Quote
Old 01-08-2013, 12:45 PM   #38
VARSHNEY.009
Special Member
 
Join Date: Jun 2013
Location: रामपुर (उत्*तर प्&#235
Posts: 2,512
Rep Power: 17
VARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really nice
Default Re: कथा संस्कृति

अपनी-अपनी ज़मीन / बलराम अग्रवाल

“बुरा तो मानोगे…मुझे भी बुरा लग रहा है, लेकिन…कई दिनों तक देख-भाल लेने के बाद हिम्मत कर रही हूँ बताने की…सुनकर नाराज न हो जाना एकदम-से…।” नीता ने अखबार के पन्ने उलट रहे नवीन के आगे चाय का प्याला रखते हुए कहा और खुद भी उसके पास वाली कुर्सी पर बैठ गई।
“कहो।” अखबार पढ़ते-पढ़ते ही नवीन बोला।
“पिछले कुछ दिनों से काफी बदले-बदले लग रहे हैं पिताजी…” वह चाय सिप करती हुई बोली, “शुरू-शुरू में तो नॉर्मल ही रहते थे—सुबह-सवेरे घूमने को निकल जाना, लौटने के बाद नहा-धोकर मन्दिर को निकल जाना और फिर खाना खाने के बाद दो-चार पराँठे बँधवाकर दिल्ली की सैर को निकल जाना। लेकिन…”
“लेकिन क्या?” नवीन ने पूछा।
“अब वह कहीं जाते ही नहीं हैं!…जाते भी हैं तो बहुत कम देर के लिए।” वह बोली।
“इसमें अजीब क्या है?” अखबार को एक ओर रखकर नवीन ने इस बार चाय के प्याले को उठाया और लम्बा-सा सिप लेकर बोला, “दिल्ली में गिनती की जगहें हैं घूमने के लिए…और पिताजी-जैसे ग्रामीण घुमक्कड़ को उन्हें देखने के लिए वर्षों की तो जरूरत है नहीं…वैसे भी, लीडो या अशोका देखने को तो पिताजी जाने से रहे…मन्दिर…या ज्यादा से ज्यादा पुरानी इमारतें,बस। सो देख ही डाली होंगी उन्होंने।”
“सो बात नहीं।” नीता उसकी ओर तनिक झुककर किंचित संकोच के साथ बोली,“मैंने महसूस किया है…कि…अपनी जगह पर बैठे-बैठे उनकी नजरें…मेरा…पीछा करती हैं…जिधर भी मैं जाऊँ!”
“क्या बकती हो!”
“मैंने पहले ही कहा था—नाराज न होना।” वह तुरन्त बोली,“आज और कल, दो दिन तुम्हारी छुट्टी है…खुद ही देख लो, जैसा भी महसूस करो।”
यों भी, छुट्टी के दिनों में नवीन कहीं जाता-आता नहीं था। स्टडी-रूम, किताबें और वह्। पिछले कई महीनों से पिताजी उसके पास ही रह रहे हैं। गाँव में सुनील है, जो नौकरी भी करता है और खेती भी। माँ के बाद पिताजी कुछ अनमने-से रहने लगे थे, सो सुनील की चिट्ठी मिलते ही नीता और वह गाँव से उन्हें दिल्ली ले आये थे। यहाँ आकर पिताजी ने अपनी ग्रामीण दिनचर्या जारी रखी, सो नीता को या उसको भला क्या एतराज होता। जैसा पिताजी चाहते, वे करते। लेकिन अब! नीता जो कुछ कह रही है…वह बेहद अजीब है। अविश्वसनीय। वह पिताजी को अच्छी तरह जानता है।
आदमी कितना भी चतुर क्यों न हो, मन में छिपे सन्देह उसके शरीर से फूटने लगते हैं। इन दोनों ही दिन नीता ने अन्य दिनों की अपेक्षा पिताजी के आगे-पीछे कुछ ज्यादा ही चक्कर लगाए; लेकिन कुछ नहीं। उसके हाव-भाव से ही वह शायद उसके सन्देहों को भाँप गए थे। अपने स्थान पर उन्होंने आँखें मूँदकर बैठे या लेटे रहना शुरू कर दिया।…लेकिन इस सबसे उत्पन्न मानसिक तनाव के कारण रविवार की रात को ही उन्हें तेज बुखार चढ़ आया। सन्निपात की हालत में उसी समय उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना जरूरी हो गया। डॉक्टरों और नर्सों ने तेजी-से उनका उपचार किया—इंजेक्शन्स दिये, ग्लूकोज़ चढ़ाया और नवीन को उनके माथे पर ठण्डी पट्टियाँ रखते रहने की सलाह दी…तब तक, जब तक कि टेम्प्रेचर नॉर्मल न आ जाए।
करीब-करीब सारी रात नवीन उनके माथे पर बर्फीले पानी की पट्टियाँ रखता-उठाता रहा। सवेरे के करीब पाँच बजे उन्होंने आँखें खोलीं। सबसे पहले उन्होंने नवीन को देखा, फिर शेष साजो-सामान और माहौल को। सब-कुछ समझकर उन्होंने पुन: आँखें मूँद लीं। फिर धीमे-से बुदबुदाये,“कहीं कुछ खनकता है…तो लगता है कि…पकी बालियों के भीतर गेहूँ खिलखिला रहे हैं…वैसी आवाज सुनकर अपना गाँव, अपने खेत याद आ जाते हैं बेटे…।”
यानी कि नीता की पाजेबों में लगे घुँघरुओं की छनकार ने पिताजी के मन को यहाँ से उखाड़ दिया! उनकी बात सुनकर नवीन का गला भर आया।
“आप ठीक हो जाइए पिताजी…” वह बोला,“फिर मैं आपको सुनील के पास ही छोड़ आऊँगा…गेहूँ की बालें आपको बुला रही हैं न…मैं खुद आपको गाँव में छोड़कर आऊँगा…आपकी खुशी, आपकी जिन्दगी की खातिर मैं यह आरोप भी सह लूँगा कि…छह महीने भी आपको अपने साथ न रख सका…।” कहते-कहते एक के बाद एक मोटे-मोटे कई जोड़ी आँसू उसकी आँखों से गिरकर पिताजी के बिस्तर में समा गए।
पिताजी आँखें मूँदे लेटे रहे। कुछ न बोले।
__________________
Disclamer :- Above Post are Free Available On INTERNET Posted By Somebody Else, I'm Not VIOLATING Any COPYRIGHTED LAW. If Anything Is Against LAW, Please Notify So That It Can Be Removed.
VARSHNEY.009 is offline   Reply With Quote
Old 01-08-2013, 12:46 PM   #39
VARSHNEY.009
Special Member
 
Join Date: Jun 2013
Location: रामपुर (उत्*तर प्&#235
Posts: 2,512
Rep Power: 17
VARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really nice
Default Re: कथा संस्कृति

अपने–अपने स्वार्थ / तारिक असलम तस्नीम

दिन के आठ बज चुके थे और जमात दूसरे शहर जाने के लिए तैयार थी। मस्जिद में बैठे लोग आपस में कुछ मशविरा कर रहे थे।
अचानक एक नौजवान कुछ पैकेट लेकर हाजिर हुआ। सबके हाथों में एक-एक दे दिया गया। मेरी समझ में कुछ आया। इससे पहले अमीर-ए-जमात ने हँसते हुए बताया-- आप लोगों को पता नहीं क्या? कल असगर साहब की बेटी का रिश्ता शमशाद माहब के बेटे से पक्का हो गया। कल ही उन दोनों का निकाह था न। रस्म की यह मिठाई है। आप सभी भी नाश्ता कर लें। फिर यहाँ से निकलते हैं।
यह जानकर मेरा चौंकना स्वाभाविक था। मैंने पास बैठे एक साहब से जानना चाहा-- करीम साहब, इन दो खानदानों के बीच रिश्ता कैसे पक्का हो गया। असगर साहब तो जात के सैयद हैं और शमशाद साहब अंसारी?
-- तब कैसे हो सकता है? आपको कॉलोनी में रहते हुए अभी हुए भी कितने दिन हैं? मैं बताता हूँ आपको। यह दोनों ही सैयद ही हैं।
-- यह कैसे हो सकता है? शमशाद साहब तो अपने नाम के साथ भी अंसारी लिखते हैं? फिर वे सैयद कैसे हो सकते हैं?
-- बिल्कुल हो सकते हैं, चूंकि आपको मालूम नहीं है। शमशाद साहब को सैयद जात के कारण नौकरी मिलने में कठिनाई हो रही थी, इसलिए उन्होंने न केवल अपने नाम के साथ अंसारी लिखना शुरू किया बल्कि अत्यन्त पिछड़ी जाति का प्रमाण-पत्र बनवा कर नौकरी भी हासिल कर ली। वही है असलियत, समझे आप।
__________________
Disclamer :- Above Post are Free Available On INTERNET Posted By Somebody Else, I'm Not VIOLATING Any COPYRIGHTED LAW. If Anything Is Against LAW, Please Notify So That It Can Be Removed.
VARSHNEY.009 is offline   Reply With Quote
Old 01-08-2013, 12:46 PM   #40
VARSHNEY.009
Special Member
 
Join Date: Jun 2013
Location: रामपुर (उत्*तर प्&#235
Posts: 2,512
Rep Power: 17
VARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really niceVARSHNEY.009 is just really nice
Default Re: कथा संस्कृति

अपराध का ग्राफ़ / दीपक मशाल

“मारो स्सारे खों। हाँथ-गोड़े तोड़ देओ। अगाऊं सें ऐसी हिम्मत ना परे जाकी। एकई दिना में भूखो मरो जा रओ थो कमीन। हमायेई खलिहान सें दाल चुरान चलो.. जौन थार में खात हेगो उअई में छेद कर रओ। जासें कई हती के दो रोज बाद मजूरी दे देहें लेकिन रत्तीभर सबर नईयां..” कहते हुए मुखिया ने दो किलो दाल चुराते पकड़े गए अपने खेतिहर मजदूर पर लात-घूंसे चलाने शुरू कर दिए।
“हाय मर जेँ मालिक, खाली पेट हें, पेट में लातें ना मारो। हाय दद्दा मर जेहें” वो गरीब रोये जा रहा था।
“औकात तो देखो जाकी अब्नों खें जुबान लड़ा रओ। मट्टी को तेल डारो ससुरे पे फूंक तो देओ जाए” नशे में धुत मुखिया का बेटा गुर्राया।
रात बीती तो मुखिया और उसके बेटे का नशा उतर चुका था, दरवाज़े पर पुलिस थी। मजदूर ७० प्रतिशत जली हुई हालत में सरकारी हस्पताल में जिन्दगी और मौत के बीच झूल रहा था।
पुलिस ने दोनों पक्षों को समझाया। मजदूर के सारे इलाज़ कराने की जिम्मेवारी लेने की बात पर दोनों पक्षों में तपशिया करा दिया गया।
बेचारी पुलिस भी क्या करती, राज्य सरकार का दबाव था कि राज्य में अपराध का ग्राफ नीचे जाना चाहिए।
__________________
Disclamer :- Above Post are Free Available On INTERNET Posted By Somebody Else, I'm Not VIOLATING Any COPYRIGHTED LAW. If Anything Is Against LAW, Please Notify So That It Can Be Removed.
VARSHNEY.009 is offline   Reply With Quote
Reply

Bookmarks


Posting Rules
You may not post new threads
You may not post replies
You may not post attachments
You may not edit your posts

BB code is On
Smilies are On
[IMG] code is On
HTML code is Off



All times are GMT +5. The time now is 07:54 AM.


Powered by: vBulletin
Copyright ©2000 - 2024, Jelsoft Enterprises Ltd.
MyHindiForum.com is not responsible for the views and opinion of the posters. The posters and only posters shall be liable for any copyright infringement.