28-06-2015, 09:29 PM | #31 | |
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Re: पता नहीं बेटा
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दुखती रग पर चोट कर दी रजनीश जी!
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28-06-2015, 11:17 PM | #32 |
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Re: पता नहीं बेटा
इस सुंदर से सूत्र ने बचपन की यादेँ ताजातरीन करदी.........
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29-06-2015, 09:11 AM | #33 | |
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Re: पता नहीं बेटा
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आपकी सुंदर टिप्पणियों के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, दीप जी व डॉ श्री विजय जी.
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29-06-2015, 11:28 PM | #34 |
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Re: पता नहीं बेटा
पता नहीं बेटा
पिता जी! हाँ, बेटा? तिहाड़ (जेल) को तो सुरक्षा की दृष्टि से भारत की सबसे मजबूत जेल माना जाता है न? हाँ, बेटा! यही वजह है कि कुख्यात से कुख्यात अपराधी भी तिहाड़ के नाम से घबराते हैं. मगर, पिता जी? अगर वहाँ इतनी अधिक सुरक्षा है तो वहाँ चोरी छुपे मोबाइल फोन या ड्रग्स कैसे पहुँच जाते हैं? इसमें तो, बेटा ! अंदर वालों की ही मिलीभगत हो सकती है !! कुछ कर्मचारी पैसों के लालच में अपना ज़मीर तक बेचने को तैयार रहते हैं. पिता जी, हद तो यह हुई कि दो कैदी इसी तिहाड़ जेल की मजबूत दीवारों को फांद कर निकल भागने में सफल हो गये. यह तो गनीमत हुयी कि एक कैदी बाहरी दिवार से लगे नाले में गिर गया और पकड़ा गया. दूसरा अभी लापता है. इसकी चार दीवारों में से तीन तो 13 फुट ऊँची और बाहरी दीवार 16 फुट ऊँची है. बताया जाता है कि उन्होंने एक सुरंग भी बनाई थी. वे वाच टावर के संतरियों की नज़र से बचने में भी सफल रहे. हाँ, बेटा! यह तो बड़ी चिंता का विषय है. दिल्ली के मुख्यमंत्री और उपराज्यपाल दोनों ने इसकी जांच के आदेश दे दिए हैं. केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने भी रिपोर्ट तलब की है. क्या जाँचकर्ता अधिकारी सुरक्षा में हुई इस भयंकर चूक व कोताही की तह तक पहुँच पायेंगे? क्या सभी दोषियों को कानून द्वारा दंडित किया जायेगा? क्या बड़े अधिकारी भी जिम्मेदार ठहराये जायेंगे? क्या नैतिक आधार पर सम्बंधित मंत्री को इस्तीफ़ा नहीं देना चाहिये?? पता नहीं, बेटा!!!
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29-06-2015, 11:58 PM | #35 | |
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Re: पता नहीं बेटा
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नग्न सत्य !
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01-07-2015, 01:29 PM | #36 |
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Re: पता नहीं बेटा
पिता जी!
हाँ, बेटा? आज मैंने एक कहानी लिखी है. वाह ..... बेटा ! तुमने तो कमाल कर दिया ! .... पढ़ कर सुनाओ ... पिता जी, कहानी इस कागज़ पर लिखी है. आप खुद पढ़ लें.... लाओ .... बेटा .... इधर दो .... फिर पिता जी कहानी पढ़ने में मशगूल हो गये जो नीचे दी जा रही है - दिल्ली की जनता परेशान थी. एक दिन हार कर उसने विशेषज्ञ डाक्टर से सलाह लेने का निश्चय किया. उसने डॉ संविधान स्वरूप को फोन कर मिलने का समय लिया. निश्चित समय पर दिल्ली की जनता डॉ साहब के नर्सिंग होम में जा पहुंची. डॉ साहब visit निबटा कर अभी लौटे थे. दोनों की बातचीत कुछ इस प्रकार चली- “डॉ साहब, नमस्कार. हम दिल्ली की जनता हैं. हमारा आज का अपॉइंटमेंट था.” “ओ .... हाँ ... हाँ. लेकिन क्या आप सभी को एक ही बिमारी है.” “हाँ डॉक्टर साहब ! हम ‘आल इन वन’ हैं.” “बताइये .... ?” “हमारी बीमारी “सीएम छोटे पापा” और “एलजी बड़े पापा” से जुड़ी है. दोनों ही हमारे भारी शुभचिन्तक हैं और दोनों ही हमारी सेवा करने को कृत-संकल्प हैं. होता यह है कि आजकल हर आदेश डुप्लीकेट में निकलता है- एक सीएम ऑफिस से और दूसरा एलजी ऑफिस से. मुख्य सचिव की नियुक्ति करनी है तो दो-दो नाम सामने आ जायेंगे. एंटी-करप्शन-ब्यूरो के चीफ की नियुक्ति होनी है तो दो-दो चीफ दफ्तर सम्हाल लेंगे. छोटे पापा और बड़े पापा दोनों एक-दूसरे को कानून की किताबें दिखाते रहते हैं. इसका परिणाम यह हुआ है कि प्रशासन जैसी कोई चीज नहीं रह गयी. सारी व्यवस्था ठप पड़ी है. हम बेहाल हैं साहब.” “ऐसा कब से है?” “जब से नई सरकार सत्ता में आयी है, हुजूर !!” “उससे पहले कैसे काम चलता था?” “उससे पहले तो एक आंटी थीं, जो दंगल हारने के बाद जंगल में चली गयीं.” “क्या उस समय भी ऐसी समस्या थी?” “नहीं, जनाब! पिछले तीस साल में कभी ऐसा नहीं हुआ, चाहे सरकार किसी पार्टी की रही हो.” “क्या अन्य राज्यों में भी ऐसा देखने में आया है?” “नहीं, डॉक्टर साहब. कभी सुना नहीं.” “इसका मतलब है, यहाँ सत्ता के दो-दो केन्द्र बन गए हैं. दोनों में संवादहीनता की स्थिति है. जब-जब एक ही स्थान पर सत्ता के दोहरे केन्द्र स्थापित होते हैं, तब-तब अव्यवस्था फैलती है. निर्णय प्रक्रिया सुस्त पड़ जाती है.” “हाँ, डॉक्टर साहब, यही लगता है. परन्तु, इसका इलाज क्या है?” “समस्या गंभीर है. आप अभी अपने घर जाओ. मैं अपने ऑपरेशन थिएटर में जा कर पहले तो “संघर्ष” और फिर “एक fool दो माली” की सीडी लगाता हूँ, उसके बाद फ्रायडवाद का डेटाबेस चैक करूँगा. मानसिक बिमारी भी हो सकती है. विचित्र समस्या का समाधान भी तो विचित्र होगा. जैसा भी होगा आपको बाद में सूचित करूँगा.” “आपकी फ़ीस?” “समाधान मिलने पर ले लूँगा.” इतना कह कर डॉक्टर संविधान स्वरूप अंदर चले गये और हताश जनता बाहर आ गयी.
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11-07-2015, 08:58 PM | #37 |
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Re: पता नहीं बेटा
पता नहीं बेटा
पिता जी! हाँ, बेटा? आजकल इफ़्तार पार्टियों की बहुत चर्चा है, पिता जी? हाँ, बेटा! यह हमारे देश की गंगा-जमुनी संस्कृति की प्रतीक के रूप में जानी जाती हैं. दिन भर के रोज़े के बाद खाने की दावत को इफ़्तार की संज्ञा दी जाती है. जब रमज़ान के पवित्र माह में रोज़ा रखने वाले अपने मुस्लिम भाइयों के सम्मान में रोज़ा समाप्ति के बाद हमारे हिंदु भाई दावत का आयोजन करते हैं तो इससे आपसी भाई-चारे को बढ़ावा मिलता है. आजकल राजनैतिक हलकों में इनका चलन अधिक हो गया है. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने 13 जुलाई को इफ़्तार की जो पार्टी आयोजित की है, उसमे उन्होंने लालू यादव को भी निमंत्रित किया था, लेकिन लालू जी उस दिन पटना में अपनी अलग इफ़्तार पार्टी रख रहे हैं. इस बात को ले कर भी कई प्रकार की अटकलें लगाई जा रही हैं. नहीं, बेटा! यह तो महज़ एक इत्तफ़ाक है, इससे अधिक कुछ नहीं. कहीं ऐसा तो नहीं कि लालूजी 13 के अंक से विचलित हो गए हों, पिता जी ? पता नहीं, बेटा!!
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13-09-2015, 11:08 PM | #38 |
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Re: पता नहीं बेटा
पता नहीं बेटा
पिता जी! हाँ, बेटा? आजकल समाचार चेनलों पर खूब गरमागरम बहसें और डिबेट दिखाए जा रहे हैं. आज तो एक चैनल पर लाइव बहस के दौरान दो मेहमानों के बीच हाथापाई और थप्पड़बाजी शुरू हो गई. ऐसी नौबत क्यों आई, पिता जी? बेटा, चैनलों द्वारा बहस ले लिये अलग अलग क्षेत्र से ऐसे लोगों को बुलाया जाता है जो मुद्दे की अच्छी जानकारी और पकड़ रखते हैं. लेकिन कभी कभी बहस के दौरान वे भावनाओं में बह कर अपना आपा खो बैठते हैं. यही कारण है कि कई बार तो बहुत से मेहमान दूसरे मेहमान को चुप कराने की कोशिश करते हैं या एक साथ बोलने लगते हैं और ऐसे में किसी की बात भी पल्ले नहीं पड़ती. आज तो हद ही हो गई. हिंदु धर्म से जुड़े मेहमानों में जिसमे से एक हिंदु महासभा (ओ) के कर्ताधर्ता ओम जी और महिला धर्मगुरु दीपा शर्मा जी व ज्योतिषाचार्य वी. राखी जी के बीच चलती बहस में पहले तो गाली गलौच शुरू हुआ जो बाद में पहले वर्णित दो मेहमानों (ओम जी व दीपा शर्मा जी) के बीच हाथापाई पर पहुँच गया व थप्पड़बाजी भी होने लगी. बहस में राधे माँ के कार्यक्रमों की चर्चा पर गरमा गरमी हुई. चैनल वालों ने इस बारे में खेद व्यक्त किया है और लिखा है कि हम ऐसी घटना की भर्त्सना करते हैं. वे चाहते हैं कि सामाजिक मुद्दों पर सार्थक बहस हो लेकिन मेहमानों को मर्यादा का ध्यान रखना चाहिए. तो पिता जी, सिर्फ ऐसे लोगों को ही क्यों न बहस में बुलाया जाये जो कभी उग्र रूप में न देखे गए हों? या जिनके पास अच्छे व्यवहार का प्रमाणपत्र हो? बेटा, चैनल वाले तो कहते हैं कि ये मेहमान पहले भी उनके कार्यक्रमों की शोभा बढ़ा चुके हैं. लेकिन पहले कभी ऐसी बात नहीं हुई. पिता जी, मैं इन सभी समाचार चैनलों को एक सुझाव देना चाहता हूँ ताकि ऐसी शर्मनाक घटनाएं भविष्य में न हों. कैसा सुझाव, बेटा? पिता जी, बहस के दौरान हर मेहमान को अलग अलग पिंजरे में पूरी सुख-सुविधा तथा सम्मान के साथ बिठाया जाये ताकि आपस में भिडंत की नौबत ही न पैदा हो. यह कैसा रहेगा, पिता जी? पता नहीं, बेटा.
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14-09-2015, 02:03 PM | #39 |
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Re: पता नहीं बेटा
[QUOTE=rajnish manga;554700]पता नहीं बेटा
पिता जी![size=3] [font="]हाँ, बेटा? [font=courier new]आजकल समाचार चेनलों पर खूब गरमागरम बहसें और डिबेट दिखाए जा रहे हैं. आज तो एक चैनल पर लाइव बहस के दौरान दो मेहमानों के बीच हाथापाई और थप्पड़बाजी शुरू हो गई. ऐसी नौबत क्यों आई, पिता जी? बेटा, चैनलों द्वारा बहस ले लिये अलग अलग क्षेत्र से ऐसे लोगों को बुलाया जाता है जो मुद्दे की अच्छी जानकारी और पकड़ रखते हैं. लेकिन कभी कभी बहस के दौरान वे भावनाओं में बह कर अपना आपा खो बैठते हैं. यही कारण है कि कई बार तो बहुत से मेहमान दूसरे मेहमान को चुप कराने की कोशिश करते हैं या एक साथ बोलने लगते हैं और ऐसे में किसी की बात भी पल्ले नहीं पड़ती. आज तो हद ही हो गई. हिंदु धर्म से जुड़े मेहमानों में जिसमे से एक हिंदु महासभा (ओ) के कर्ताधर्ता ओम जी और महिला धर्मगुरु दीपा शर्मा जी व ज्योतिषाचार्य वी. राखी जी के बीच चलती बहस में पहले तो गाली गलौच शुरू हुआ जो बाद में पहले वर्णित दो मेहमानों (ओम जी व दीपा शर्मा जी) के बीच हाथापाई पर पहुँच गया व थप्पड़बाजी भी होने लगी. बहस में राधे माँ के कार्यक्रमों की चर्चा पर गरमा गरमी हुई. चैनल वालों ने इस बारे में खेद व्यक्त किया है और लिखा है कि हम ऐसी घटना की भर्त्सना करते हैं. वे चाहते हैं कि सामाजिक मुद्दों पर सार्थक बहस हो लेकिन मेहमानों को मर्यादा का ध्यान रखना चाहिए. तो पिता जी, सिर्फ ऐसे लोगों को ही क्यों न बहस में बुलाया जाये जो कभी उग्र रूप में न देखे गए हों? या जिनके पास अच्छे व्यवहार का प्रमाणपत्र हो? बेटा, चैनल वाले तो कहते हैं कि ये मेहमान पहले भी उनके कार्यक्रमों की शोभा बढ़ा चुके हैं. लेकिन पहले कभी ऐसी बात नहीं हुई. पिता जी, मैं इन सभी समाचार चैनलों को एक सुझाव देना चाहता हूँ ताकि ऐसी शर्मनाक घटनाएं भविष्य में न हों. कैसा सुझाव, बेटा? पिता जी, बहस के दौरान हर मेहमान को अलग अलग पिंजरे में पूरी सुख-सुविधा तथा सम्मान के साथ बिठाया जाये ताकि आपस में भिडंत की नौबत ही न पैदा हो. यह कैसा रहेगा, पिता जी? पता नहीं, बेटा. कटाक्ष के साथ साथ सही सुझाव, " पता नहीं बेटा" में बहुत सही बाते लिखीं है आपने भाई .. |
30-10-2015, 06:00 PM | #40 |
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Re: पता नहीं बेटा
पता नहीं बेटा
> पिता जी! > हाँ, बेटा? > पिता जी, आजकल बिहार के चुनाव में बड़े बड़े नेता फिल्मों के उदाहरण देने लगे हैं. > हाँ बेटा, कई बार अच्छी फिल्मों से छोटे बड़े व्यक्तियों को गहरी प्रेरणा मिलती है. तुम किस फिल्म का ज़िक्र कर रहे हो? > “थ्री इडियट्स” > ज़रा इसका खुलासा करो. > पिता जी, बिहार के सीएम नितीश कुमार ने एक जनसभा में इस फिल्म के एक गीत की मजेदार पैरोडी प्रस्तुत की. कुछ इसके बोल कुछ कुछ ऐसे थे: गुजरात से आया था वो कालाधन वापिस लाने वाला था कहाँ गया उसे ढूँढो! इसके प्रत्युत्तर में एक अन्य जनसभा में प्रधानमन्त्री मोदी ने भी चुटकी ली. > वह क्या, बेटा? > पिता जी! उन्होंने लोगों को याद दिलाया कि नितीश जी आजकल “थ्री इडियट्स” के बारे में ही सोचते हैं और उनके अनुसार ही काम करते है. उनका इशारा महागठबंधन के तीन प्रमुख घटकों की ओर था. > हाँ बेटा, प्रभावशाली भाषण देने में उनका कोई जवाब नहीं है. > लेकिन पिता जी! यह जरुरी तो नहीं कि जिस भाषा का प्रयोग विरोधी करते हैं उसी भाषा का इस्तेमाल प्रधानमंत्री भी करें? > बेटा! युद्ध और प्यार में सब वाजिब है. भारत में यह बात चुनाव के सन्दर्भ में पूरी तरह लागू होती है. दूसरे, जनसभा में दूर दूर से जो लोग आते हैं, उनका मनोरंजन करना भी तो ज़रूरी है. इसमें छोटे बड़े नेता का कोई भेद नहीं है. > एक अन्य बात और? > वह क्या, बेटा? > बीजेपी के नेता शत्रुघन सिंह को शिकायत है कि बिहारी नेता होने के बावजूद उन्हें बिहार के चुनाव प्रचार से दूर रखा जा रहा है. क्यों? > बेटा! अंदर की बात तो पता नहीं. इसका उत्तर गडकरी जी ने यह कह कर दिया है कि राजनीति में आने वाले लोग किसी न किसी बात से हमेशा परेशान रहते हैं. टिकट न मिले तो परेशानी. चुनाव जीतने पर मंत्री न बनने की परेशानी. मंत्री बन गए तो मनपसंद विभाग न मिलने की परेशानी आदि आदि. > लेकिन पिता जी. यदि वह चुनाव प्रचार में उतारे जायेंगे तो किस धड़े की ओर से प्रचार करेंगे? > पता नहीं, बेटा !!
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) Last edited by rajnish manga; 30-10-2015 at 06:04 PM. |
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