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#31 |
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![]() ******* शाह जहाँ ने ताज महल की हर दीवार को देखा,चार मीनार को देखा और कहा “माँ कसम कितना खर्चा हो गया”. ******* फूलों से क्या दोस्ती करते हो वह तो मुरझा जाते हैं,करना है तो कांटो से दोस्ती करो जो चुभ कर भी याद आते हैं |
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#32 |
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नींद भी खुली न थी कि हाय धूप ढल गई,
पाँव जब तलक उठे कि ज़िन्दगी फिसल गई, पात-पात झर गये कि शाख़-शाख़ जल गई, चाह तो निकल सकी न, पर उमर निकल गई, गीत अश्क़ बन गए, छंद हो दफ़न गए, साथ के सभी दिऐ धुआँ-धुआँ पहन गये, और हम झुके-झुके, मोड़ पर रुके-रुके उम्र के चढ़ाव का उतार देखते रहे कारवां गुज़र गया, गुबार देखते रहे। |
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#33 |
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हाथ थे मिले कि जुल्फ चाँद की सँवार दूँ,
होंठ थे खुले कि हर बहार को पुकार दूँ, दर्द था दिया गया कि हर दुखी को प्यार दूँ, और साँस यूँ कि स्वर्ग भूमी पर उतार दूँ, हो सका न कुछ मगर, शाम बन गई सहर, वह उठी लहर कि दह गये किले बिखर-बिखर, और हम डरे-डरे, नीर नयन में भरे, ओढ़कर कफ़न, पड़े मज़ार देखते रहे कारवां गुज़र गया, गुबार देखते रहे! |
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#34 |
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किसी की आँखों मे मोहब्बत का सितारा होगा
एक दिन आएगा कि कोई शक्स हमारा होगा कोई जहाँ मेरे लिए मोती भरी सीपियाँ चुनता होगा वो किसी और दुनिया का किनारा होगा काम मुश्किल है मगर जीत ही लूगाँ किसी दिल को मेरे खुदा का अगर ज़रा भी सहारा होगा |
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#35 |
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कौन रो रहा है रात के सन्नाटे मे
शायद मेरे जैसा तन्हाई का कोई मारा होगा अब तो बस उसी किसी एक का इन्तज़ार है, किसी और का ख्याल ना दिल को ग़वारा होगा ऐ ज़िन्दगी! अब के ना शामिल करना मेरा नाम ग़र ये खेल ही दोबारा होगा |
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#36 |
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अपने जज्बात को,
नाहक ही सजा देती हूँ... होते ही शाम, चरागों को बुझा देती हूँ... जब राहत का, मिलता ना बहाना कोई... लिखती हूँ हथेली पे नाम तेरा, लिख के मिटा देती हूँ...................... |
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#37 |
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एक पल का एहसास बनकर आती हो तुम !
दुसरे ही पल खुशबू के तरह उड़ जाती हो तुम !! जानती हो डर लगता हैं तनहइयो से हमें ! फिर भी तनहा हमें छोड़ जाती हो तुम !! |
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#38 |
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तुम आए हो जिंदगी में कहानी बनकर !
तुम आए हो जिंदगी में रात की चांदनी बन कर !! बसा लेते हैं जिंदगी हम आँखों में ! तुम अक्सर निकल जाती हो आँखों से पानी बन कर ! |
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#39 |
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तनहा तनहा हम रो लेंगे महफ़िल महफ़िल गायेंगे
जब तक आंसू पास रहेंगे तब तक गीत सुनायेंगे तुम जो सोचो वो तुम जानो हम तो अपनी कहते हैं देर न करना घर जाने में वरना घर खो जायेंगे बच्चों के छोटे हाथों को चाँद सितारे छूने दो चार किताबें पढ़ कर वो भी हम जैसे हो जायेंगे किन राहों से दूर है मंजिल कौन सा रास्ता आसान है हम जब थक कर रुक जायेंगे औरों को समझायेंगे अच्छी सूरत वाले सारे पत्थर-दिल हो मुमकिन है हम तो उस दिन राए देंगे जिस दिन धोका खाएँगे तनहा हम रो लेंगे महफ़िल महफ़िल गायेंगे जब तक आंसू पास रहेंगे तब तक गीत सुनायेंगे
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#40 |
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गुमनामियों मे रहना, नहीं है कबूल मुझको..
चलना नहीं गवारा, बस साया बनके पीछे.. वोह दिल मे ही छिपा है, सब जानते हैं लेकिन.. क्यूं भागते फ़िरते हैं, दायरो-हरम के पीछे.. अब “दोस्त” मैं कहूं या, उनको कहूं मैं “दुश्मन”.. जो मुस्कुरा रहे हैं,खंजर छुपा के अपने पीछे.. तुम चांद बनके जानम, इतराओ चाहे जितना.. पर उसको याद रखना, रोशन हो जिसके पीछे.. वोह बदगुमा है खुद को, समझे खुशी का कारण.. कि मैं चेह-चहा रहा हूं, अपने खुदा के पीछे.. इस ज़िन्दगी का मकसद, तब होगा पूरा “नीरज”.. जब लोग याद करके, मुस्कायेंगे तेरे पीछे.. |
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