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Old 12-11-2010, 06:38 AM   #31
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आरती कुँज बिहारी की
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

गले में वैजन्ती माला, माला
बजावे मुरली मधुर बाला, बाला
श्रवण में कुण्डल झलकाला, झलकाला
नन्द के नन्द,
श्री आनन्द कन्द,
मोहन बॄज चन्द
राधिका रमण बिहारी की
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

गगन सम अंग कान्ति काली, काली
राधिका चमक रही आली, आली
लसन में ठाड़े वनमाली, वनमाली
भ्रमर सी अलक,
कस्तूरी तिलक,
चन्द्र सी झलक
ललित छवि श्यामा प्यारी की
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

जहाँ से प्रगट भयी गंगा, गंगा
कलुष कलि हारिणि श्री गंगा, गंगा
स्मरण से होत मोह भंगा, भंगा
बसी शिव शीश,
जटा के बीच,
हरे अघ कीच
चरण छवि श्री बनवारी की
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

कनकमय मोर मुकुट बिलसै, बिलसै
देवता दरसन को तरसै, तरसै
गगन सों सुमन राशि बरसै, बरसै
अजेमुरचन
मधुर मृदंग
मालिनि संग
अतुल रति गोप कुमारी की
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

चमकती उज्ज्वल तट रेणु, रेणु
बज रही बृन्दावन वेणु, वेणु
चहुँ दिसि गोपि काल धेनु, धेनु
कसक मृद मंग,
चाँदनि चन्द,
खटक भव भन्ज
टेर सुन दीन भिखारी की
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
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Old 12-11-2010, 06:46 AM   #32
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जय बृहस्पति देवा, ॐ जय बृहस्पति देवा।
छिन छिन भोग लगाऊं, कदली फल मेवा॥

तुम पुरण परमात्मा, तुम अंतर्यामी।
जगतपिता जगदीश्वर, तुम सबके स्वामी॥

चरणामृत निज निर्मल, सब पातक हर्ता।
सकल मनोरथ दायक, कृपा करो भर्ता।

तन, मन, धन अर्पण कर, जो जन शरण पड़े।
प्रभु प्रकट तब होकर, आकर द्वार खड़े॥

दीनदयाल दयानिधि, भक्तन हितकारी।
पाप दोष सब हर्ता, भव बंधन हारी॥

सकल मनोरथ दायक, सब संशय हारो।
विषय विकार मिटाओ, संतन सुखकारी॥

जो कोई आरती तेरी, प्रेम सहित गावे।
जेठानंद आनंदकर, सो निश्चय पावे॥

सब बोलो विष्णु भगवान की जय!
बोलो बृहस्पतिदेव भगवान की जय!!
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Old 12-11-2010, 06:48 AM   #33
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आरती युगलकिशोर की कीजै। तन मन न्यौछावर कीजै॥टेक॥
गौरश्याम मुख निरखत लीजै। हरि का स्वरूप नयन भरि पीजै॥

रवि शशि कोटि बदन की शोभा। ताहि निरखि मेरे मन लोभा॥
ओढ़े नील पीत पट सारी। कुंजबिहारी गिरिवरधारी॥

फूलन की सेज फूलन की माला। रत्*न सिंहासन बैठे नन्दलाला॥
मोरमुकुट कर मुरली सोहै। नटवर कला देखि मन मोहै॥

कंचनथार कपूर की बाती। हरि आए निर्मल भई छाती॥
श्री पुरुषोत्तम गिरिवर धारी। आरती करें सकल ब्रज नारी॥

नन्दनन्दन बृजभानु किशोरी। परमानन्द स्वामी अविचल जोरी॥
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Old 12-11-2010, 07:01 AM   #34
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आरती श्रीकृष्ण कन्हैयाकी।
मथुरा कारागृह अवतारी,

गोकुल जसुदा गोद विहारी,
नंदलाल नटवर गिरधारी,

वासुदेव हलधर भैया की॥
आरती ..
मोर मुकुट पीताम्बर छाजै,

कटि काछनि, कर मुरलि विराजै,
पूर्ण सरक ससि मुख लखि जाजै,

काम कोटि छवि जितवैया की॥
आरती ..
गोपीजन रस रास विलासी,
कौरव कालिय, कंस बिनासी,

हिमकर भानु, कृसानु प्रकासी,
सर्वभूत हिय बसवैयाकी॥ आरती ..

कहुं रन चढ़ै, भागि कहुं जाव,
कहुं नृप कर, कहुं गाय चरावै,

कहुं जागेस, बेद जस गावै,
जग नचाय ब्रज नचवैया की॥ आरती ..

अगुन सगुन लीला बपु धारी,
अनुपम गीता ज्ञान प्रचारी,

दामोदर सब विधि बलिहारी,
विप्र धेनु सुर रखवैया की॥ आरती ..

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Old 12-11-2010, 07:11 AM   #35
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आरती श्री रामायणजी की ।
कीरति कलित ललित सिय पी की ॥

गावत ब्रह्मादिक मुनि नारद ।
बालमीक बिग्यान बिसारद ॥

सुक सनकादि सेष और सारद ।
बरन पवन्सुत कीरति नीकी ॥

गावत बेद पुरान अष्टदस ।
छओं सास्त्र सब ग्रंथन को रस ॥

मुनि जन धन संतन को सरबस ।
सार अंस सम्म्मत सब ही की ॥

गावत संतत संभु भवानी ।
अरु घटसंभव मुनि बिग्यानी ॥

ब्यास आदि कबिबर्ज बखानी ।
कागभुसुंडि गरुड के ही की ॥

कलि मल हरनि बिषय रस फीकी ।
सुभग सिंगार मुक्ति जुबती की ॥

दलन रोग भव भूरि अमी की ।
तात मात सब बिधि तुलसी की ॥
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Old 12-11-2010, 07:17 AM   #36
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आरती श्री वृषभानुसुता की।
मन्जु मूर्ति मोहन ममता की।
आरती ..

त्रिविध तापयुत संसृति नाशिनि,
विमल विवेक विराग विकासिनि,
पावन प्रभु पद प्रीति प्रकाशिनि,
सुन्दरतम छवि सुन्दतरा की॥
आरती ..

मुनि मनमोहन मोहन मोहनि,
मधुर मनोहर मूरति सोहनि,
अविरल प्रेम अमित रस दोहनि,
प्रिय अति सदा सखी ललिता की॥
आरती ..

संतत सेव्य संत मुनिजन की,
आकर अमित दिव्यगुन गन की,
आकर्षिणी कृष्ण तन मन की,
अति अमूल्य सम्पति समता की॥
आरती ..

कृष्णात्मिका, कृष्ण सहचारिणि,
चिन्मयवृन्दा विपिन विहारिणि,
जगजननि जग दु:ख निवारिणि,
आदि अनादि शक्ति विभुता की॥
आरती ..
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Old 12-11-2010, 07:23 AM   #37
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आरती साईबाबा ।
सौख्यदातारा जीवा ।
चरणरजतळीं निज दासां विसावां ।

भक्तां विसावा ॥धृ॥
जाळुनियां अनंग ।

स्वस्वरुपी राहे दंग ।
मुमुक्षुजना दावी ।

निजडोळां श्रीरंग ॥१॥
जया मनीं जैसा भाव ।

तया तैसा अनुभव ।
दाविसी दयाघना ।

ऐसी ही तुझी माव ॥२॥
तुमचें नाम ध्यातां ।

हरे संसृतिव्यथा ।
अगाध तव करणी ।

मार्ग दाविसी अनाथा ॥३॥
कलियुगीं अवतार ।

सगुणब्रह्म साचार ।
अवतीर्ण झालासे ।

स्वामी दत्त दिगंबर ॥४॥
आठा दिवसां गुरुवारी ।

भक्त करिती वारी ।
प्रभुपद पहावया ।

भवभय निवारी ॥५॥
माझा निजद्रव्य ठेवा ।

तव चरणसेवा ।
मागणें हेंचि आता ।

तुम्हा देवाधिदेवा ॥६॥
इच्छित दीन चातक ।

निर्मळ तोय निजसुख ।
पाजावें माधवा या ।

सांभाळ आपुली भाक ॥७॥

Last edited by Hamsafar+; 12-11-2010 at 07:27 AM.
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Old 12-11-2010, 07:25 AM   #38
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जयति जयति वन्दन हर की
गाओ मिल आरती सिया रघुवर की ॥

भक्ति योग रस अवतार अभिराम
करें निगमागम समन्वय ललाम ।

सिय पिय नाम रूप लीला गुण धाम
बाँट रहे प्रेम निष्काम बिन दाम ।

हो रही सफल काया नारी नर की
गाओ मिल आरती सिया रघुवर की ॥

गुरु पद नख मणि चन्द्रिका प्रकाश
जाके उर बसे ताके मोह तम नाश ।

जाके माथ नाथ तव हाथ कर वास
ताके होए माया मोह सब ही विनाश ॥

पावे रति गति मति सिया वर की
गाओ मिल आरती सिया रघुवर की ॥
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Old 12-11-2010, 07:32 AM   #39
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आरती हरि श्री शाकुम्भरी अम्बा जी की आरती कीजो।
ऐसो अद्भुत रूप हृदय धर लीजो शताक्षी दयालु की आरती कीजो।

तुम परिपूर्ण आदि भवानी माँ।
सब घट तुम आप बखानी माँ॥

शाकुम्भरी अम्बाजी की आरती कीजो।
तुम्हीं हो शाकुम्भरी, तुम ही हो शताक्षी माँ।

शिव मूर्ति माया, तुम ही हो प्रकाशी माँ॥
श्री शाकुम्भरी..

नित जो नर-नारी अम्बे आरती गावे माँ।
इच्छा पूरण कीजो, शाकुम्भरी दर्शन पावे माँ॥

श्री शाकुम्भरी..
जो नर आरती पढ़े पढ़ावे माँ

जो नर आरती सुने सुनावे माँ
बसे बैकुण्ठ शाकुम्भर दर्शन पावे,

श्री शाकुम्भरी अम्बा जी की आरती कीजो
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Old 12-11-2010, 08:02 AM   #40
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जगजननी जय! जय! माँ! जगजननी जय! जय!
भयहारिणी, भवतारिणी, भवभामिनि जय जय।
जगजननी ..

तू ही सत्-चित्-सुखमय, शुद्ध ब्रह्मरूपा।
सत्य सनातन, सुन्दर पर-शिव सुर-भूपा॥
जगजननी ..

आदि अनादि, अनामय, अविचल, अविनाशी।
अमल, अनन्त, अगोचर, अज आनन्दराशी॥

जगजननी ..

अविकारी, अघहारी, अकल कलाधारी।
कर्ता विधि, भर्ता हरि, हर संहारकारी॥

जगजननी ..
तू विधिवधू, रमा, तू उमा महामाया।
मूल प्रकृति, विद्या तू, तू जननी जाया॥

जगजननी ..
राम, कृष्ण तू, सीता, ब्रजरानी राधा।
तू वाâ€*छाकल्पद्रुम, हारिणि सब बाघा॥
जगजननी ..

दश विद्या, नव दुर्गा नाना शस्त्रकरा।
अष्टमातृका, योगिनि, नव-नव रूप धरा॥
जगजननी ..

तू परधामनिवासिनि, महाविलासिनि तू।
तू ही श्मशानविहारिणि, ताण्डवलासिनि तू॥
जगजननी ...

सुर-मुनि मोहिनि सौम्या, तू शोभाधारा।
विवसन विकट सरुपा, प्रलयमयी, धारा॥
जगजननी ..

तू ही स्नेहसुधामयी, तू अति गरलमना।
रत्नविभूषित तू ही, तू ही अस्थि तना॥
जगजननी ..

मूलाधार निवासिनि, इह-पर सिद्धिप्रदे।
कालातीता काली, कमला तू वरदे॥
जगजननी ..

शक्ति शक्तिधर तू ही, नित्य अभेदमयी।
भेद प्रदर्शिनि वाणी विमले! वेदत्रयी॥
जगजननी ..

हम अति दीन दु:खी माँ! विपत जाल घेरे।
हैं कपूत अति कपटी, पर बालक तेरे॥
जगजननी ..

निज स्वभाववश जननी! दयादृष्टि कीजै।
करुणा कर करुणामयी! चरण शरण दीजै॥
जगजननी ..

अम्बे तू है जगदम्बे, काली जय दुर्गे खप्पर वाली।
तेरे ही गुण गाएं भारती॥
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