06-10-2011, 11:35 AM | #31 |
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Re: आरतियाँ
जो नर तुमको ध्याता, मनवांछित फल पाता॥ जय गंगे माता॥1॥ चन्द्र सी जो तुम्हारी जल निर्मल आता। शरण पड़े जो तेरी, सो नर तर जाता॥ जय गंगे माता॥2॥ पुत्र सगर के तारे सब जग को ज्ञाता। कृपा दृष्टि तुम्हारी त्रिभुवन सुख दाता॥ जय गंगे माता॥3॥ एक ही बार जो तेरी शरणागति आता। यम की त्रास मिटाकर परमगति पाता॥ जग गंगे माता॥4॥ आरती मात तुम्हारी जो जन नित्य गाता। अर्जुन वहीं सहज में मुक्ति को पाता॥ जय गंगे माता॥5॥
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06-10-2011, 04:12 PM | #32 |
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Re: आरतियाँ
बहुत अच्छी प्रस्तुति पेश की भावना जी
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08-10-2011, 11:07 AM | #33 |
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Re: आरतियाँ
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08-10-2011, 11:09 AM | #34 |
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Re: आरतियाँ
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा । माता जाकी पारवती पिता महादेवा ॥ एकदन्त दयावन्त चारभुजाधारी माथे पर तिलक सोहे मूसे की सवारी । पान चढ़े फल चढ़े और चढ़े मेवा लड्डुअन का भोग लगे सन्त करें सेवा ॥ अंधे को आँख देत कोढ़िन को काया बाँझन को पुत्र देत निर्धन को माया । ' सूर' श्याम शरण आए सफल कीजे सेवा जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा ॥
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08-10-2011, 11:09 AM | #35 |
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Re: आरतियाँ
जय जगदीश हरे प्रभु ! जय जगदीश हरे !
मायातीत, महेश्वर, मन-बच-बुद्धि परे ॥टेक॥ आदि, अनादि, अगोचर, अविचल, अविनाशी । अतुल, अनंत, अनामय, अमित शक्ति-राशी ॥१॥ जय० अमल, अकल, अज, अक्षय, अव्यय, अविकारी । सत-चित-सुखमय, सुंदर, शिव, सत्ताधारी ॥२॥ जय० विधि, हरि, शंकर, गणपति, सूर्य, शक्तिरूपा । विश्व-चराचर तुमही, तुमही जग भूपा ॥३॥ जय० माता-पिता-पितामह-स्वामिसुह्रद भर्ता । विश्वोत्पादक-पालक-रक्षक-संहर्ता ॥४॥ जय० साक्षी, शरण, सखा, प्रिय, प्रियतम, पूर्ण प्रभो । केवल काल कलानिधि, कालातीत विभो ॥५॥ जय० राम कृष्ण, करुणामय, प्रेमामृत-सागर । मनमोहन, मुरलीधर, नित-नव नटनागर ॥६॥ जय० सब विधिहीन, मलिनमति, हम अति पातकि जन । प्रभु-पद-विमुख अभागी कलि-कलुषित-तन-मन ॥७॥ जय० आश्रय-दान दयार्णव ! हम सबको दीजे । पाप-ताप हर हरि ! सब, निज-जन कर लीजे ॥८॥ जय०
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13-10-2011, 05:16 PM | #36 |
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Re: आरतियाँ
जय जय श्री बदरीनाथ, जयति योग ध्यानी।
निर्गुण सगुण स्वरूप, मेघवर्ण अति अनूप, सेवत चरण सुरभूप, ज्ञानी विज्ञानी। जय जय झलकत है शीश छत्र, छवि अनूप अति विचित्र, वरनत पावन चरित्र सकुचत बरबानी। जय जय .. तिलक भाल अति विशाल, गले में मणिमुक्त माल, प्रनतपाल अति दयाल, सेवक सुखदानी। जय जय .. कानन कुडण्ल ललाम, मूरति सुखमा की धाम, सुमिरत हो सिद्धि काम, कहत गुण बखानी। जय जय .. गावत गुण शम्भु, शेष, इन्द्र, चन्द्र अरु दिनेश, विनवत श्यामा जोरि जुगल पानी। जय जय ..
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13-10-2011, 05:17 PM | #37 |
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Re: आरतियाँ
जयति जय गायत्री माता, जयति जय गायत्री माता।
आदि शक्ति तुम अलख निरंजन जगपालक कत्री॥ जयति .. दु:ख शोक, भय, क्लेश कलश दारिद्र दैन्य हत्री। ब्रह्म रूपिणी, प्रणात पालिन जगत धातृ अम्बे। भव भयहारी, जन-हितकारी, सुखदा जगदम्बे॥ जयति .. भय हारिणी, भवतारिणी, अनघेअज आनन्द राशि। अविकारी, अखहरी, अविचलित, अमले, अविनाशी॥ जयति .. कामधेनु सतचित आनन्द जय गंगा गीता। सविता की शाश्वती, शक्ति तुम सावित्री सीता॥ जयति .. ऋग, यजु साम, अथर्व प्रणयनी, प्रणव महामहिमे। कुण्डलिनी सहस्त्र सुषुमन शोभा गुण गरिमे॥ जयति .. स्वाहा, स्वधा, शची ब्रह्माणी राधा रुद्राणी। जय सतरूपा, वाणी, विद्या, कमला कल्याणी॥ जयति .. जननी हम हैं दीन-हीन, दु:ख-दरिद्र के घेरे। यदपि कुटिल, कपटी कपूत तउ बालक हैं तेरे॥ जयति .. स्नेहसनी करुणामय माता चरण शरण दीजै। विलख रहे हम शिशु सुत तेरे दया दृष्टि कीजै॥ जयति .. काम, क्रोध, मद, लोभ, दम्भ, दुर्भाव द्वेष हरिये। शुद्ध बुद्धि निष्पाप हृदय मन को पवित्र करिये॥ जयति .. तुम समर्थ सब भांति तारिणी तुष्टि-पुष्टि द्दाता। सत मार्ग पर हमें चलाओ, जो है सुखदाता॥
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16-10-2011, 07:07 PM | #38 |
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Re: आरतियाँ
जयति जयति वन्दन हर की
गाओ मिल आरती सिया रघुवर की .. भक्ति योग रस अवतार अभिराम करें निगमागम समन्वय ललाम . सिय पिय नाम रूप लीला गुण धाम बाँट रहे प्रेम निष्काम बिन दाम . हो रही सफल काया नारी नर की गाओ मिल आरती सिया रघुवर की .. गुरु पद नख मणि चन्द्रिका प्रकाश जाके उर बसे ताके मोह तम नाश . जाके माथ नाथ तव हाथ कर वास ताके होए माया मोह सब ही विनाश .. पावे रति गति मति सिया वर की गाओ मिल आरती सिया रघुवर की ..
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16-10-2011, 07:08 PM | #39 |
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Re: आरतियाँ
जय पार्वती माता, जय पार्वती माता।
ब्रह्म सनातन देवी, शुभ फल की दाता॥ जय.. अरिकुल पद्म विनासनि जय सेवक त्राता। जग जीवन जगदम्बा, हरिहर गुण गाता॥ जय.. सिंह को वाहन साजे, कुण्डल है साथा। देव वधू जह गावत, नृत्य करत ता था॥ जय.. सतयुग रूपशील अतिसुन्दर, नाम सती कहलाता। हेमांचल घर जन्मी, सखियन संगराता॥ जय.. शुम्भ निशुम्भ विदारे, हेमांचल स्याता। सहस्त्र भुज तनु धरि के, चक्र लियो हाथा॥ जय.. सृष्टि रूप तुही है, जननी शिवसंग रंगराता। नन्दी भृङ्गी बीन लही सारा मदमाता॥ जय.. देवन अरज करत हम चित को लाता। गावत दे दे ताली, मन में रङ्गराता॥ जय.. श्री प्रताप आरती मैया की, जो कोई गाता। सदासुखी नित रहता सुख सम्पत्ति पाता॥ जय..
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24-10-2011, 08:47 PM | #40 |
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Re: आरतियाँ
ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता तुम को निस दिन सेवत, मैयाजी को निस दिन सेवत हर विष्णु विधाता । ॐ जय लक्ष्मी माता ॥ उमा रमा ब्रह्माणी, तुम ही जग माता ओ मैया तुम ही जग माता । सूर्य चन्द्र माँ ध्यावत, नारद ऋषि गाता ॐ जय लक्ष्मी माता ॥ दुर्गा रूप निरन्जनि, सुख सम्पति दाता ओ मैया सुख सम्पति दाता । जो कोई तुम को ध्यावत, ऋद्धि सिद्धि धन पाता ॐ जय लक्ष्मी माता ॥ तुम पाताल निवासिनि, तुम ही शुभ दाता ओ मैया तुम ही शुभ दाता । कर्म प्रभाव प्रकाशिनि, भव निधि की दाता ॐ जय लक्ष्मी माता ॥ जिस घर तुम रहती तहँ सब सद्गुण आता ओ मैया सब सद्गुण आता । सब संभव हो जाता, मन नहीं घबराता ॐ जय लक्ष्मी माता ॥ तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न कोई पाता ओ मैया वस्त्र न कोई पाता । खान पान का वैभव, सब तुम से आता ॐ जय लक्ष्मी माता ॥ शुभ गुण मंदिर सुंदर, क्षीरोदधि जाता ओ मैया क्षीरोदधि जाता । रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता ॐ जय लक्ष्मी माता ॥ महा लक्ष्मीजी की आरती, जो कोई जन गाता ओ मैया जो कोई जन गाता । उर आनंद समाता, पाप उतर जाता ॐ जय लक्ष्मी माता ॥
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