20-01-2015, 09:24 PM | #31 |
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Re: खलील जिब्रान और उनकी रचनायें
आस्तिक और नास्तिक एक ही तो हैं <<< ईश्वर है या नहीं इस तरह की बहस अनंत है, ईश्वर है - के भी हजार उदाहरण हैं, और ईश्वर नहीं है - के भी हजार उदाहरण हैं।कोई किसी से कम नहीं है. न नास्तिक और न ही आस्तिक. इसी कारण जब बुद्ध सेपूछा जाता था कि ईश्वर है या नहीं तो बुद्ध मौन रह जाया करते थे॥ क्योंकिबहस बेमानी है। नास्तिक का मतलब है जिसने मानने से इंकार कर दिया. औरआस्तिक वह है जो मान कर बैठा है कि ईश्वर है. वह ग्रंथों से हजार उदाहरणढूंढ कर आपके सामने रख देगा . देखो! इस ग्रन्थ में लिखा है. लेकिन उसकाअपना कोई अनुभव नहीं है उसकी अपनी कोई खोज नहीं है उसे सिखा दिया गया है, कि ईश्वर है, उसकी पूजा करो अब वह दिमाग को एक तरफ रख कर ईश्वर की पूजाकरने लगता है. कुछ दिनों में यह आदत बन जाती है. ओशो आस्तिक औरनास्तिक दोनों को खूब छकाते थे । यदि कोई कहता कि ईश्वर है, तो वह कहते थेनहीं है, और यदि कोई कहता था कि ईश्वर नहीं है तो वह कहते थे कि है, तुमभूल कर रहे हो. >>>
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20-01-2015, 09:29 PM | #32 |
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Re: खलील जिब्रान और उनकी रचनायें
खलील जिब्रान
आस्तिक और नास्तिक एक ही तो हैं <<< असल में बात अस्तित्व की होनी चाहिए। अस्तित्व महत्त्व पूर्ण है, उसको समझा जाये। वैज्ञानिक ढंग से, दार्शनिक रूप से, भीतर की यात्रा करके, किसी भी तरह, रास्ते कई हो सकते हैं. दूसरोंके शब्द हो सकते हैं, लेकिन अनुभव स्वयं का ही होगा. अपना ही दीया स्वयं बनकर जो ईश्वर सम्बन्धी विचार आयेगा. वह सांसारिक ईश्वर नहीं होगा, वहतुलसी के राम की तरह अवतार भी नहीं होगा. वह पूजा पाठ वाला ईश्वर कदापि नहीं हो सकता। उस ईश्वर को आइंस्टाइन और कार्ल मार्क्स भी पूरी तरह से स्वीकार करेंगे वह विचार अस्तित्व से एकाकार हो जायेगा। [अहोभाव! जिस रोज हृदय में आ गया, हम ईश्वर है या नहीं इसके पचड़े में नहीं पड़ेंगे। गाँधी और कबीर का राम तुलसी का राम कभी नहीं था. क्योंकि तुलसी के राम मनुष्यों की तरह व्यवहार करते हैं. ईश्वर का मानवीकरण नहीं हो सकता. समग्र को अल्प में कैसे कैद किया जा सकता है. मानव का ईश्वरीकरण हो सकता है. मनुष्य में ही भगवान बनने की प्रबल सम्भावना है]
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20-01-2015, 09:58 PM | #33 |
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Re: खलील जिब्रान और उनकी रचनायें
खलील जिब्रान
ईश्वर की तलाश प्राचीन काल में जब मेरे होंट पहली बार हिले तो मैंने पवित्र पर्वत पर चढ़ कर ईश्वर से कहा : "स्वामिन! में तेरा दास हूँ. तेरी गुप्त इच्छा मेरे लिए कानून है. में सदैव तेरी आज्ञा का पालन करूंगा." लेकिन ईश्वर ने मुझे कोई जबाव नहीं दिया. और वह जबरदस्त तूफान की तरह तेजी से गुजर गया. एक हजार वर्ष बाद में फिर उस पवित्र पहाड़ पर चढा और ईश्वर से प्रार्थना की," परमपिता में तेरी सृष्टि हूँ, तूने मुझे मिटटी से पैदा किया है और मेरे पास जो कुछ है, सब तेरी ही देन है." किन्तु परमेश्वर ने फिर भी कोई उत्तर न दिया और वह हजार हजार पक्षियों की तरह सन्न से निकल गया. हजार वर्ष बाद में फिर उस पवित्र पहाड़ पर चढा और ईश्वर को संबोधित कर कहा," हे प्रभु में तेरी संतान हूँ, प्रेम और दया पूर्वक तूने मुझे पैदा किया है. और तेरी भक्ति और प्रेम से ही में तेरे साम्राज्य का अधिकारी बनूंगा .' लेकिन ईश्वर ने कोई जबाव नहीं दिया और एक ऐसे कुहरे की तरह, जो सुदूर पहाडों पर छाया रहता है, निकल गया. एक हजार वर्ष बाद मैं फिर उस पवित्र पहाड़ पर चढा और परमेश्वर को संबोधित करके कहा: "मेरे मालिक ! तू मेरा उद्देश्य है और तू ही मेरी परिपूर्णता है. मैं तेरा विगत काल और तू मेरा भविष्य है. मैं तेरा मूल हूँ और तू आकाश में मेरा फल है. और हम दोनों एक साथ सूर्य के प्रकाश में पनपते हैं." तब ईश्वर मेरी तरफ झुका और मेरे कानों में आहिस्ता से मीठे शब्द कहे और जिस तरह समुद्र अपनी और दौड़ती हुई नदी को छाती से लगा लेता है उसी तरह उसने मुझे सीने से लिपटा लिया. और जब में पहाडों से उतर कर मैदानों और घाटियों में आया तो मैंने ईश्वर को वहां भी मौजूद पाया.
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21-01-2015, 03:50 PM | #34 |
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Re: खलील जिब्रान और उनकी रचनायें
सारगर्भित कहानी .. बहुत अच्छी कहानी है रजनीश जी बहुत बहुत धन्यवाद इतनी अच्छी कहानी को शेयर किया आपने हम सबके साथ .
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25-01-2015, 08:53 PM | #35 |
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Re: खलील जिब्रान और उनकी रचनायें
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नींद में चलने वाले जिस स्थान पर मैं पैदा हुआ था, वहां एक स्त्री और उसकी पुत्री रहते थे. दोनों को ही नींद में चलने की आदत या बिमारी थी. एक बार रात के समय चारों ओर निस्तब्धता का आलम था. वे दोनों घूमती घूमती कोहरे में लिपटी हुई एक वाटिका में जा पहुंची और नींद की अवस्था में बातचीत करने लगीं. माँ ने बेटी से कहा, “हाँ...हाँ...अब मुझे पता चल गया है कि मेरी शत्रु तू ही है, जिसमे मेरी जवानी को नष्ट कर दिया. तू ही है जिसने अपनी जवानी का महल मेरे जीवन की जीर्ण इमारत पर खड़ा किया है. अच्छा होता कि मैं तेरा गला दबा देती.” बेटी भी यह बात सुन कर भड़क गई. उसने कहा, “ओ स्वार्थी बुढ़िया, तू मेरे और मेरी आज़ादी के बीच एक रोड़ा बनी हुई है. कौन मुझे तेरी प्रतिच्छाया कह सकता है. काश ! ईश्वर तुझे उठा ले.” इसी समय वहां मुर्गे ने बांग दी जिसे सुनते ही दोनों माँ-बेटी अपनी नींद से जाग गयीं. उन्हें नींद में की गई बातें याद नहीं थीं. बुढ़िया ने अपनी बेटी को बड़े प्यार से निहारते हुए कहा, “यह तुम हो मेरी प्यारी बेटी?” बेटी ने बड़े प्यार से उत्तर दिया, “हाँ, मेरी अच्छी अम्मा!!”
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26-01-2015, 08:03 PM | #36 |
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Re: खलील जिब्रान और उनकी रचनायें
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दूसरी भाषा अपने जन्म के तीसरे दिन जब में रेशमी पालने में पड़ा हुआ था और अपने चारों ओर आश्चर्य से देख रहा था तो मेरी माँ ने दाई अन्ना से पूछा, “मेरा लाल कैसा है, बता तो?” अन्ना ने उत्तर दिया, “देवी, बच्चा तो बहुत अच्छा है. मैंने उसे तीन बार दूध पिलाया है. मैंने आज तक इतना प्रसन्न रहने वाला बच्चा नहीं देखा.” मैंने जब यह सुना तो मैं व्याकुल हो कर चिल्लाया, “माँ, यह सच नहीं है, क्योंकि मेरा बिस्तर सख्त है और जो मैंने दूध पिया है, वह भी कड़वा था. और दाई के वक्ष की गंध भी मुझे अप्रिय लगती है. मैं यहाँ बड़ा दुखी हूँ.” लेकिन मेरी बात न मेरी माँ की समझ में आ सकी और न ही मेरी दाई अन्ना की क्योंकि मैं जिस भाषा में बोल रहा था वह इस संसार की भाषा न थी. वह उस दुनिया की भाषा थी जहाँ से मैं आया था. मेरे जन्म के इक्कीसवें दिन हमारे घर में मुल्ला आया. उसने मेरी माँ से कहा, “तुम्हें तो खुश होना चाहिए कि तुम्हारा बच्चा जन्म से ही धर्मशील है.” उसकी यह बातें सुन कर मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ मैंने मुल्ला से कहा, “फिर तो तुम्हारी स्वर्गीय माता को अफ़सोस होना ही चाहिए. क्योंकि तुम जन्मजात धर्मशील नहीं थे.” लेकिन अफ़सोस कि मुल्ला भी मेरी बात को समझ नहीं सका. >>>
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26-01-2015, 10:12 PM | #37 |
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Re: खलील जिब्रान और उनकी रचनायें
सात महीने बाद मुझे एक ज्योतिषी ने देखा और माँ से कहा, “तुम्हारा बेटा बहुत बड़ा राजनीतिज्ञ बनेगा अर संसार के लोगों के लिए पथ-प्रदर्शक बनेगा.”
यह सुन कर मैं चीख उठा, “यह भाविश्वानी बिलकुल झूठ है क्योंकि मैं एक गायक के सिवा कुछ नहीं बनूँगा.” लेकिन इस आयु में भी मेरी भाषा को कोई न समझ सका.मुझे महान आश्चर्य हुआ. अब मेरी आयु 33 वर्ष की है और मेरी माँ, मेरी अन्ना दाई और मुल्ला सब मर चुके हैं. लेकिन वह ज्योतिषी अभी तक जीवित है. कल वह मुझे मंदिर के द्वार के बाहर मिल गया. हम दोनों आपस में बात करने लगे. उसने कहा, “मैं तो शुरू से ही जानता था कि तुम एक गायक बनोगे, मैंने तुम्हारे बचपन में ही यह भविष्यवाणी की थी.” मैंने उसकी बात का विश्वास कर लिया क्योंकि अब मैं स्वयं अपनी पहली वाली भाषा को भूल चुका था. **
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26-01-2015, 10:16 PM | #38 |
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Re: खलील जिब्रान और उनकी रचनायें
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प्रणय गीत एक कवि ने एक प्रणय गीत लिखा. गीत था भी बहुत सुन्दर. उसने गीत की बहुत सारी प्रतियां तैयार कीं और उन्हें अपने मित्रों, परिचित स्त्री-पुरुषों के पास भेजा. उन ओगों में एक खूबसूरत नवयुवती भी थी जिसे वह जीवन में केवल एक बार मिला था. वो नवयुवती पहाड़ों के पार रहती थी. कुछ दिन के बाद उस नवयुवती की ओर से एक सन्देशवाहक एक पत्र लेकर आया. पत्र में उसने लिखा था, “मैं तुम्हें विश्वास दिलाती हूँ कि मुहब्बत के इस गीत ने, जो कि तुमने मेरे लिए लिखा है, मेरे दिल को छू लिया है. तुम मेरे माता-पिता से जल्द आकर बात करो ताकि हमारी शादी की बात पक्की हो सके.” इस पत्र का उत्तर देते हुए कवि ने लिखा, यह तो कवि के हृदय से निकला हुआ स्वाभाविक गीत था. संसार के प्रत्येक पुरुष की ओर से संसार की हर स्त्री के लिए.” पत्र के प्राप्त होते ही नवयुवती ने कवि को लिख भेजा, “तुम शब्दों के जाल में फँसाने वाले एक पाखंडी हो. जाओ, आज से ले कर मृत्युपर्यंत मेरे हृदय में दुनिया भर के कवियों के लिए सिर्फ नफरत ही रहेगी और ऐसा सिर्फ तुम्हारे कारण होगा.”
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27-02-2015, 03:22 PM | #39 |
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Re: खलील जिब्रान और उनकी रचनायें
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तीन उपहार किसी समय बुखारा नगर में एक अत्यंत उदार राजकुमार था. उसकी प्रजा उसे जी जान से चाहती थी और बहुत आदर करती थी. उन्हीं दिनों उस राज्य में एक और व्यक्ति रहता था जो अत्यंत दरिद्र था, वह हर समय राजकुमार की निंदा करता और जिव्हा से ज़हर उगलता रहता था. राजकुमार को उस व्यक्ति के बारे में मालूम हुआ, फिर भी वह शांत रहा. लेकिन एक दिन वह इस विषय पर गंभीरतापूर्वक विचार करने लगा. इसके कुछ दिन बाद एक शाम को उस दरिद्र व्यक्ति के द्वार पर राजकुमार का एक कारिन्दा उपस्थित हुआ. वह अपने साथ एक आटे की बोरी, एक साबुन की थैली और एक शक्कर की थैली लाया था जिसे उसने उस दरिद्र को दे दिया. राजकुमार का कारिन्दा उससे कहने लगा, “राजकुमार ने ये वस्तुएं आपके लिए उपहार स्वरुप भेजी हैं क्योंकि आप उन्हें बहुत याद करते हैं.” वह व्यक्ति गर्व से फूल गया. उसने सोचा की हो ना हो राजकुमार ने यह वस्तुएं उसे आदर स्वरुप भेजी हैं. उसी अभिमान में वह पादरी के पास गया और राजकुमार के इस कार्य की चर्चा करते हुए कहने लगा, “देखा आपने ! राजकुमार भी मेरी सद्भावना लेना चाहते हैं.” इस पर पादरी ने उत्तर दिया, “देखो, तुम्हें पता नहीं है, राजकुमार कितना चतुर है और तुम कितने नासमझ. वह तुम्हें इशारे से समझाना चाहता है. थोड़ी समझ से काम लो. आटा तुम्हारा खाली पेट भरने के लिए है. साबुन तुम्हारे दुर्गन्ध युक्त शरीर को साफ़ करने के लिए और शक्कर तुम्हारी कड़वी ज़बान को मधुर करने के लिए भेजी गयी है.” उस दिन के बाद उसे राजकुमार से और अधिक घृणा हो गयी. साथ ही पादरी द्वारा ऐसा विश्लेषण करने के कारण वह पादरी से भी जल-भुन गया. लेकिन इस प्रसंग के उपरान्त उसकी जिव्हा शांत हो गयी.
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27-02-2015, 03:25 PM | #40 |
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Re: खलील जिब्रान और उनकी रचनायें
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नर्तकी एक बार बिरकासा के राजा के दरबार में अपनी कला का प्रदर्शन करने के लिए एक नर्तकी उपस्थित हुयी. उसके साथ उसके संगीतकारों की टोली भी थी. राजा के सामने उसने बांसुरी, वीणा और इकतारा आदि की लय पर नृत्य प्रस्तुत किये. उसने जो नृत्य प्रस्तुत किये उनमे अग्नि-नृत्य, खंग-नृत्य और त्रिशूल नृत्य शामिल थे. अंत में उसने नक्षत्र-नृत्य व वायु में झूमते हुए फूलों का नृत्य प्रस्तुत किया. नृत्य प्रदर्शन के बाद उसने राजा के सामने जा कर उसका अभिवादन किया. राजा ने उसे अपने निकट बुला कर कहा, ”हे सुन्दरी ! तुम्हारे नृत्य ने हमारी रूह को तृप्त कर दिया है. यह बताओ कि तुमने ताल, लय और स्वर का समन्वय किस प्रकार सिद्ध किया है.” नर्तकी ने राजा के सामने झुकते हुए उत्तर दिया, “हे शक्तिशाली, प्रजावत्सल महाराज, आपके प्रश्न का उत्तर तो मैं नहीं जानती परन्तु इतना अवश्य कहना चाहती हूँ कि दार्शनिक की आत्मा उसके मस्तिष्क में, कवि की आत्मा उसके हृदय में, गायक की आत्मा उसके गले में बसती है लेकिन नर्तकी की आत्मा उसके शरीर के अंग-प्रत्यंग में बसती है.”
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