03-09-2013, 12:06 PM | #31 |
Super Moderator
Join Date: Aug 2012
Location: Faridabad, Haryana, India
Posts: 13,293
Rep Power: 242 |
मेरी कहानियाँ / दत्तक पुत्र
मेरी कहानियाँ / दत्तक पुत्र बजरंगी जी का क्रोध बड़ा प्रसिद्ध था. साठ की उम्र में भी ऐसा जोरदार क्रोध कि आस पास के दुकानदार भी उनकी लीला देख देख कर परेशान हो जाते थे.कभी कोई बच्चा सौदा सुल्फा लेने आता और गलती से कह बैठता, “लाला, धनिया अच्छा वाला देना ...!” सुनते ही बजरंगी लाला का पारा सातवें आसमान पर. “भेज देवें हैं पैदा होते ही छोरे छोरियों को सौदा लेने के लिये. अबे हमारे पास घटिया सामान का क्या काम? सुसरे कहीं के .. “ अब सौदा लेने कौन आया है? स्त्री है या वृद्ध है? अथवा कोई नौजवान. इसका उनके उनके व्यवहार पर कोई असर नहीं होता था. अभी कल ही की बात है. एक स्त्री का पैर साबुत लाल मिर्चों की बोरी से स्पर्श कर गया. बस फिर क्या था. उन्होंने आव देखा न ताव, फट पड़े, “टाबर लियां लियां घूमती फिरो. किसी दुकान पर कैसे खड़ा हुआ जावे है, यह भी मालूम नहीं. पावली की चीज लेनी है कोई दूकान तो नां खरीदनी?” लाला बजरंगी के घर में उनके और ललायिन के अलावा छोटा वीजू भी था. दोनों की कोई संतान जीवित न रह सकी थी. एक लड़का तो जवान उम्र में ही भगवान को प्यारा हुआ था. पूरा अट्ठारह का था जब एक अजीब सी बिमारी का शिकार हो कर दो दिन में ही चल बसा था. दो बच्चे बचपन में ही मृत्यु का शिकार हो गये थे. भाग्य के इस न्यारे खेल का बजरंगी लला और उनकी धर्मपत्नी पर भिन्न भिन्न प्रभाव हुआ. बजरंगी लाला इस सब को शांतिपूर्वक सहन तो कर गये लेकिन मन में एक रिक्तता, तिक्तता व एक कड़वापन स्थाई रूप से व्याप गया था. ढलती उम्र में जिसका एकमात्र जवान बेटा साथ छोड़ कर चला गया हो, वह किससे लड़ेगा, किससे बदला लेगा या इसके वास्ते किसे कोसेगा? बजरंगी लाला ने बदले की किसी भी भावना को मन में ही दमित कर दिया था. कहीं अपना क्षोभ प्रगट नहीं किया. किसी को कोई इलज़ाम नहीं दिया. उन्होंने होनी को ईश्वर प्रदत्त मान कर स्वीकार कर लिया था. किन्तु उनका बदला हुआ कसैला व्यवहार इस बात से इनकार कर रहा था. हर समय गुस्सा, हर समय कुढ़न, हर समय चुभन. |
03-09-2013, 12:08 PM | #32 |
Super Moderator
Join Date: Aug 2012
Location: Faridabad, Haryana, India
Posts: 13,293
Rep Power: 242 |
Re: मेरी कहानियाँ / दत्तक पुत्र
दूसरी ओर ललाइन का ध्यान भजन पूजन में लगने लगा था. जो स्त्री कभी अपनी मीठी बोलचाल से घर भर और मोहल्ले में मिठास भर देती थी, ऐसा प्रतीत होता था जैसे उसके चेहरे पर उभरती उम्र की लकीरें अब उसके मन पर भी खिंच आयी थीं. बोलना बतियाना जैसे उससे रूठ गये थे. बजरंगी लाला अपनी पत्नि का यद्यपि बहुत आदर करते थे और उनसे बेहद लगाव भी रखते थे, किन्तु गुस्सा !! तौबा ..... तौबा ... बात बाद में निकलती, गुस्सा पहले प्रगट हो जाता. वो मूर्तिमान क्रोध थे. क्रोध बजरंगी जी के व्यक्तित्व का हिस्सा हो कर उनसे से चिपक गया था जैसे. ललाइन पर भी बिगड़ जाते, किन्तु ललाइन के सहनशील स्वभाव के आगे वे दब जाते.
इन दोनों के अलावा घर में तीसरा प्राणी था वीजू. पुत्र की मृत्यु के बाद सहारे के लिए तथा गहन अकेलेपन को पूरने के लिए बजरंगी लाला ने इष्ट मित्रों से सलाह ले कर अपनी बुआ के पोते वीजू को गोद ले लिया था. आरम्भ में यह सोचा गया था कि वीजू अधिकतर घर पर ही रहेगा ताकि ललाइन का मन लगा रहे. किन्तु यह क्रम अधिक दिनों तक न चल सका. धीरे धीरे लाला जी ने उसे दूकान पर बिठाना शुरू किया. स्कूल से आने के बाद खाना खाता और सीधे दूकान चला जाता. एक बच्चा तिखुंटे में बंध कर रह गया – घर, स्कूल, दुकान. खेलकूद बंद, हमजोलियों से मिलना बंद और सबसे बढ़ कर पतंगबाजी बंद. उसे पतंग उड़ाने का बहुत शौक था. |
03-09-2013, 12:10 PM | #33 |
Super Moderator
Join Date: Aug 2012
Location: Faridabad, Haryana, India
Posts: 13,293
Rep Power: 242 |
Re: मेरी कहानियाँ / दत्तक पुत्र
बजरंगी लाला के क्रोध का यदि कोई शख्स बुरी तरह शिकार बना था तो वह वीजू था. वह जितनी देर तक दुकान में लाला जी के साथ रहता उसका मन अस्थिर रहता. शरीर स्वतः कांपता रहता. छोटी से छोटी बात भी बजरंगी लाला को कब कितना क्रोधित कर दे, कोई नहीं जानता था. बेचारा वीजू उनके सामने क्या बोल सकता था? वह तो जैसे शेर के सामने एक मेमना था, अतः हमेशा भयभीत रहता. पिता का प्यार क्या होता है उसने देखा ही न था.
एक दिन की बात है कि एक कटी हुई पतंग सामने वाली छत पर आ गिरी. संध्या समय जब दुकान बढ़ाने से पहले, बजरंगी लाला सामान अन्दर रख रहे थे, और वीजू से भी रखवा रहे थे, वीजू वहां से रफ़ू चक्कर हो गया. लाला बाहर आये तो तो हैरान! कहाँ गया लड़का? दो ही मिनट में वीजू पीछे हाथ बांधे हुये आ पहुंचा. लाला सातवें आसमान से बोले, “कहाँ गया था??” “ प ..प... प..तंग ..” अभी बेचारे के मुंह से पूरी बात भी न निकली थी कि लला ने उसको अपने बाएं हाथ से झकझोरते हए अपने निकट खींचा और दाए हाथ से ऐसा झन्नाटेदार तमाचा मारा कि वीजू लड़खड़ाता हुआ सड़क पे आ गिरा. पतंग की डोर उसके हाथ में ही रही. वीजू को गिरते देख कर आसपास के कई दुकानदार भागकर आये और उसको सड़क से उठा कर बजरंगी लाला को बुरा भला कहने लगे. “पागल हो गये हो क्या?” “मार ही डालोगे बेचारे को ....?” “छोटे बड़े का भी कोई ध्यान नहीं ...?” “लाला ! अपनी उम्र का ख़याल तो रखो ...!” “अपना नहीं है न .... अपना होता तो ...!” |
03-09-2013, 12:11 PM | #34 |
Super Moderator
Join Date: Aug 2012
Location: Faridabad, Haryana, India
Posts: 13,293
Rep Power: 242 |
Re: मेरी कहानियाँ / दत्तक पुत्र
पहले तो लाला गुस्से में बोलते ही बोलते थे, लेकिन पिछले कुछ माह से हाथ भी उठाने लगे थे. कभी कान उमेठना, बांह पकड़ कर खींचना, गाल में चुटकी काटना आदि आम बातें थीं. अब थप्पड़बाजी पर भी आ गये थे. जब जी में आया जड़ दिया. वीजू घर पर आता तो ललाइन के सामने खूब रोता. कहता,
“चाची, देखो चाचा मुझ पर सारा दिन कितना गुस्सा करते हैं. मैं दूकान पर नहीं जाऊँगा चाची. मुझे दूकान पर मत भेजना.” और भी न जाने कितनी बातें कह जाता. ललाइन उसका पक्ष ले कर बजरंगी लाला से कहा सुनी करती. उन्हें अपना व्यवहार फेरने की बात कहती. लाला जी अंत में यह कह कर बार को विराम लगाने की कोशिश करते, “रमेश की मां, पक्की ठीकरी में अब क्या जोड़ लगेगा. मैं नहीं जानता कि मैं ऐसा क्यों करता हूँ. लेकिन अब यह निश्चित है कि मेरे जीते जी तो अब यह दोष जाने वाला नहीं.” वीजू परेशानी में चाची से कह देता कि उसे उसके मां बाप के यहां भेज दें. किन्तु बचपन से ही वह यहां आ गया था. अतः अपने मां बाप के प्रति भी वह निरपेक्ष ही रहा था. फिर भी उसे इस विचार से एक आशा की किरण फूटती दिखाई पड़ती. |
03-09-2013, 12:13 PM | #35 |
Super Moderator
Join Date: Aug 2012
Location: Faridabad, Haryana, India
Posts: 13,293
Rep Power: 242 |
Re: मेरी कहानियाँ / दत्तक पुत्र
बजरंगी लाला का क्रोध एक दिन शांत हो ही गया. उस दिन लाला जैसे मूक हो गये थे. किन्तु उनमे यह परिवर्तन यूं ही नहीं आ गया था बल्कि उन्होंने इसका बड़ा भारी मूल्य चुकाया था. वीजू घर से भाग गया था.
किसी छोटी सी त्रुटि पर वह आपे से बाहर हो गये थे और उन्होंने इतनी बुरी तरह वीजू को पीटा कि उसके मुंह और नाक से खून आने लगा. रात को बजरंगी लाला और ललाइन में खूब विवाद हुआ. बाद में दोनों ने खाना खाने के लिए वीजू की बहुत चिरौरी की. उसने खाना न खाया तो लाला और ललाइन भी निराहार सो रहे. सुबह तक वीजू काफी दूर जा चुका था. ** |
06-09-2013, 06:52 PM | #36 |
Exclusive Member
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 100 |
Re: मेरी कहानियाँ / दत्तक पुत्र
इतिहास साक्षी है कि क्रोध का परिणाम सदैव विनाश ही हुआ है .. इस सी कथा में भी इसी उक्ति को सार्थक किया गया है। भाषा सरल एवं ग्राह्य होने के कारण सर्वसाधारण को भी क्रोध के परिणाम को समझने और इससे दूर रहने में सहायता मिल सकती है।
साझा करने के लिए आभार बन्धु।
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
07-09-2013, 12:00 AM | #37 |
Super Moderator
Join Date: Nov 2010
Location: Sherman Oaks (LA-CA-USA)
Posts: 51,823
Rep Power: 183 |
Re: मेरी कहानियाँ / दत्तक पुत्र
अद्भुत कथा है, मित्र। आप चाहते, तो कथा को बहुत विस्तार दे सकते थे, किन्तु आपने गागर में ही विचार और ज्ञान का वह सागर भर दिया, जिसके लिए कभी-कभी उपन्यास भी लघु सिद्ध हो जाते हैं। साधुवाद आपको।
__________________
दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु |
09-09-2013, 08:13 PM | #38 |
Super Moderator
Join Date: Aug 2012
Location: Faridabad, Haryana, India
Posts: 13,293
Rep Power: 242 |
मेरी कहानियाँ / एक टुकड़ा मौत
मेरी कहानियाँ / एक टुकड़ा मौत (1)“दादा जी ....” “आओ बेटा अशोक .... यहीं आ जाओ ...” अशोक ने देखा कि दादा जी फुलवारी में पानी लगा रहे हैं. “अरे दादा जी, ये किन्हें पानी लगा रहे हैं? इन जंगली पौधों को. आप फूलों के पौधे लगाइए न.” “अब फूल के पौधे नहीं लगाए जाते मुझसे. अब तो जो पेड़ पत्ते अपने अप ही उग आते हैं उन्हीं की देखभाल कर लेता हूँ.” “आप फूल क्यों नहीं उगाते? मैं लगाऊंगा. मैं माली से आपके लिए बीज लाऊंगा. दादा जी आपकी मुर्गियां कहाँ हैं?” “बेटा, उन्हें मैंने दड़बे में बंद कर दिया है. परसों बिल्ली ने एक मुर्गी को खा लिया था न इसलिए इनको अब जल्दी बंद कर देता हूँ.” “दादा जी, ये बिल्लियाँ भी कितनी खराब होती हैं. रोज रोज मुर्गियां खा जाती हैं. दूध भी गिरा जाती हैं ... “ “हाँ, ये बिल्लियाँ बड़ी खराब होती हैं, बेटा. बहुत खराब.” दादा जी ने उसकी बात पर सहमती व्यक्त करते हए कहा. |
09-09-2013, 08:15 PM | #39 |
Super Moderator
Join Date: Aug 2012
Location: Faridabad, Haryana, India
Posts: 13,293
Rep Power: 242 |
Re: मेरी कहानियाँ / एक टुकड़ा मौत
(2)
नन्हें अशोक को दादा जी के स्वर की उदासी ने द्रवित कर दिया.अशोक दादा जी के पड़ोस में रहने वाला लड़का था. आसपास के अन्य बच्चे भी दादा जी को दादा जी कह कर ही सम्बोधित करते थे. दादा जी अपने मकां में अकेले रहते थे. उन्हें रिटायर हए कोई 5-6 बरस हो गये थे. ज्यादातर घर ही में रहते थे. बच्चों से उनको बड़ा स्नेह था. अशोक ने दादा जी को उदास देखा तो वहीँ बैठ गया. कहने लगा, “दादा जी, मेरे पापा कहते हैं कि मुर्गियां पालने के लिए बैंक वाले भी पैसे देते हैं. आप भी और मुर्गियां ले आओ न ...” अशोक बेचारा क्या जाने दादा जी के दर्द को. वे उसे समझाते हए बोले, “ज्यादा मुर्गियां ला कर मैं क्या करूँगा, बेटा. मैंने कोई व्यापार तो करना नहीं. यही पांच छः मुर्गियां बहुत हैं सम्हालने को.” इस प्रकार अशोक दादा जी से घुलमिल गया था. अक्सर शाम के समय यहीं आ जाता और देर तक बैठा बतियाता रहता. एक दिन बहुत सोच विचार के बाद दादा जी से बोला, आप अकेले क्यों रहते हैं? यहां कोई भी तो ऐसे नहीं रहता जैसे आप रहते हैं. सब लोग अच्छे अच्छे कपडे पहनते हैं, स्कूटर मोटरों पर घुमते हैं, सिनेमा देखने जाते हैं. और कभी कभी पिकनिक पर भी जाते हैं. सच कितना मजा आता है पिकनिक में ! बताओ न दादा जी?” दादा जी कुछ सोच कर बोले, “तू बहुत समझदार बच्चा है, अशोक. तू मेरे बारे में कितना सोचता है. कितना ख्याल रखता है मेरा. मैं तुझे सब बताऊंगा. मैं आ रहा हूँ, तू दो मिनट बैठ.” |
09-09-2013, 08:17 PM | #40 |
Super Moderator
Join Date: Aug 2012
Location: Faridabad, Haryana, India
Posts: 13,293
Rep Power: 242 |
Re: मेरी कहानियाँ / एक टुकड़ा मौत
(3)
दादा जी उठ कर दूसरे कमरे से एक पुरानी एल्बम ले आये.उसे खोल कर अशोक को दिखाने लगे. दिखाते हुये बोलते भी जाते, “यह मेरा पोता है- दीपक, और ये हैं इसके मम्मी पापा. ये देख दीपक अपने पापा के कंधे पर बैठा है. और देख तो यहां वो तीन पहिये वाली साइकिल चला रहा है. और देख ... ये ...और .... और ...” दादा जी का गला भर आया. उनके मुख-मंडल पर उदासी की बदली छा गयी थी. अशोक एकटक दादा जी को देखता रहा. फिर पूछ बैठा, “तो दीपक और उसके मम्मी पापा यहां क्यों नहीं रहते? कुछ लोग कहते हैं कि वो मर गये. लोग ऐसा क्यों बोलते हैं दादा जी?” दादा जी अपने विचारों में डूब गये थे. अशोक की बात सुन कर उनका मन टीस से भर उठा. उनके दिल पर मानो हथोड़े से चोट की गयी हो. वो बोले, “हाँ वो मर गये बेटा. वो मुझे छोड़ कर चले गये. वो तीनों एक ट्रेन हादसे में मारे गये. काश उस दिन उनकी जगह मैं होता. अरे ... तू जानता है अगर वो जीवित होते तो क्या यह घर यूँही सुनसान पड़ा रहता? नहीं न? बोल?” अपने विचारों में डूबे हुये और अपनी यादों को टटोलते हुये उन्हें ये भी नहीं मालूम पड़ा कि कब अशोक की मां ने उसे आवाज दी वह उनके पास से उठ कर अपने घर चला गया. अशोक ने खाली जमीन में फूलों और सब्जियों के बीज बो दिये. कुछ ही दिनों में दादा जी के आँगन में गुलाब की गंध तैरने लगी, सूरजमुखी इतराने लगा और सब्जियों की बेलें लहराने लगीं. दादा जी और अशोक मिल कर पानी डाला करते. अब वहां पर जंगली पौधों के स्थान पर रंग-बिरंगे अति कोमल फूl दिखाई देने लगे. क्यारियों के नित बदलते रंग के साथ साथ दादा जी का मन भी क्रियाशील होने लगा. |
Bookmarks |
|
|