My Hindi Forum

Go Back   My Hindi Forum > Art & Literature > Mehfil
Home Rules Facebook Register FAQ Community

Reply
 
Thread Tools Display Modes
Old 12-11-2011, 10:49 AM   #31
malethia
Special Member
 
Join Date: Oct 2010
Posts: 3,570
Rep Power: 43
malethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond repute
Default Re: कुछ यहाँ वहां से............

आएगा कब 'लिटिल बच्चन - मदन मोहन बाहेती'घोटू'
--------------------------------
लगा कर के टकटकी सब
प्रतीक्षा में लगे है अब
जल्द आये वह मधुर क्षण
आएगा जब 'लिटिल बच्चन'
अमित जी उत्सुक बहुत है
जया जी व्याकुल बहुत है
उल्लसित अभिषेक जी है
प्रतीक्षा में ये सभी है
मगन मन बेचेन श्वेता
आएगा नन्हा चहेता
एश्वर्या दर्द पीड़ित
किये मन में प्यार संचित
राह पर है प्रसूति की
एक नयी अनुभूति की
ह्रदय में आनंद ज्यादा
बनेंगे अमिताभ दादा
और 'गुड्डी 'जया दादी
खबर ने खुशियाँ मचा दी
टिकटिकी कर रही टक टक
धड़कने बढ़ रही धक धक
प्रतीक्षा में है सभी जन
आएगा कब 'लिटिल बच्चन'

__________________
मांगो तो अपने रब से मांगो;
जो दे तो रहमत और न दे तो किस्मत;
लेकिन दुनिया से हरगिज़ मत माँगना;
क्योंकि दे तो एहसान और न दे तो शर्मिंदगी।
malethia is offline   Reply With Quote
Old 13-11-2011, 10:19 AM   #32
malethia
Special Member
 
Join Date: Oct 2010
Posts: 3,570
Rep Power: 43
malethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond repute
Default Re: कुछ यहाँ वहां से............

जो न धरा से धर्म मिटा दे नेता वो किस बात का -शंशाक जौहरी


आओ तुम आरक्षण मांगो अपनी-अपनी जात का
जात-जात को जो न लड़ा दे नेता वो किस बात का
हम हैं धर्म निरपेक्ष धर्म को धर्म-धर्म से काटेंगे
पढ़ी लिखी जनता को हम सब अनपढ़ मिलकर बांटेंगे
नारी मोर्चा बाल मोर्चा है जूता इस लात का
कोमल मन में आग लगा दो झगड़ा हो दिन रात का
आओ तुम......


नारी घर में हक मांगेगी बच्चे रपट लिखाएंगे
घर में जब कोहराम मचेगा स्वामी खुद मर जायेंगे
अबला नेता की होगी झंडा ढोये बिन बाप का
आओ तुम ....


मधुशाला घर-घर खुलवादो बर्तन खुद बिक जायेंगे
पढ़े लिखे और समझदार कर्जे में जान गंवाएंगे
युवा नारियां कपड़े पहनेंगीं बच्चों के नाप का
जो न डरे भगवन से उसको डर क्या होगा बाप का
आओ तुम ...


अब सुभाष आज़ाद भगत सिंह पुस्तक में रह जायेंगे
देश विदेशी को देकर हम अरबपति बन जायेंगे
अगर मल्लिका और शिल्पा बनना सपना है आपका
तो समझो इमरान हाशमी है ये नेता आपका
आओ तुम ...



बाप नहीं होगा कोई अब बॉयफ्रेंड रह जायेंगे
मात पिता का नाम जानने फोन ओ फ्रेंड लगायेंगे
टी वी पर बैठे ज्योतिष दुःख दूर करेंगे आपका
इन्टरनेट पर होगा सबकुछ चाहे ज़हर लो सांप का
आओ तुम ...



राम नाम है सत्य न मरने पर भी अब कह पायेंगे
करूणानिधि जब पूछेंगे तो प्रूफ कहाँ से लायेंगे
समझदार खामोश रहेंगे आप मज़ा लो आपका
जो न धरा से धर्म मिटा दे नेता वो किस बात का
आओ तुम ...
__________________
मांगो तो अपने रब से मांगो;
जो दे तो रहमत और न दे तो किस्मत;
लेकिन दुनिया से हरगिज़ मत माँगना;
क्योंकि दे तो एहसान और न दे तो शर्मिंदगी।
malethia is offline   Reply With Quote
Old 21-12-2011, 02:13 PM   #33
malethia
Special Member
 
Join Date: Oct 2010
Posts: 3,570
Rep Power: 43
malethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond repute
Default Re: कुछ यहाँ वहां से............

थप्पड़ के साइड इफेक्ट - किशोर कुमार मालवीय॥

थप्पड़
से डर नहीं लगता साहब , प्यार से लगता है - यह रोमांटिक डायलॉग ' दबंग ' में हिट हो सकता है , पर रीयल दबंगों पर हिट नहीं हो सकता। यह अजीब संयोग है कि इस डायलॉग के हिट होते ही हर तरफ थप्पड़ों की बरसात होने लगी। जिसे देखो दबंगई दिखा रहा है , जहां - तहां थप्पड़ जमा रहा है। जिनकी डिक्शनरी में प्यार जैसे शब्द नहीं हैं , उनका पाला थप्पड़ से ज्यादा पड़ रहा है - कहीं चला रहे हैं तो कहीं खुद खा रहे हैं। थप्पड़ों का मानो अखिल भारतीय अभियान चल पड़ा हो। थप्पड़ों की बढ़ती मांग ( या फरमाइश ) या एकाएक थप्पड़ों के बढ़ते प्रचलन ने मुझे इस पर शोध करने को मजबूर कर दिया। शोध में कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए।

थप्पड़ दो तरह के होते हैं - एक , जिनमें आवाज नहीं होती या बहुत कम होती है। जरूरी नहीं कि इसमें चोट भी कम हो। आवाज और चोट में कोई संबंध नहीं है। ये थप्पड़ मारने या थप्पड़ खाने वाले की औकात से सीधा जुड़ा होता है। दूसरे तरह के थप्पड़ में आवाज बड़ी तेजी से होती है। इसमें भी जरूरी नहीं कि चोट ज्यादा लगे। इसमें आवाज का महत्व होता है क्योंकि इस तरह के थप्पड़ का सीधा संबंध थप्पड़ खाने वालों से जुड़ा होता है। यानी थप्पड़ खाने वाला व्यक्ति जितना बड़ा दबंग , उसकी आवाज का वॉल्यूम उतना ही ज्यादा। और कभी - कभी इसकी गूंज अति सुरक्षा वाले संसद भवन तक पहुंच जाती है।

गहन छानबीन के बाद मुझे आश्चर्यजनक जानकारियां मिलीं। कई बार कुछ थप्पड़ प्यार और आपसी मेलजोल बढ़ाते हैं। कई दिनों से संसद में कामकाज बंद था। रोज हंगामा चल रहा था और पक्ष - विपक्ष एक - दूसरे को सुनने को तैयार नहीं थे। लेकिन संसद के बाहर चले एक थप्पड़ ने कमाल कर दिया। जनता पर हर रोज पड़ रहे महंगाई और भ्रष्टाचार के चाबुक एक तरफ धरे रह गए। महंगाई पर ' आगबबूला ' विपक्ष अचानक चाबुक भूल गया और तमाम विरोध और बहिष्कार को निलंबित करते हुए एकजुट हो गया। दस दिन में केवल कुछ समय के लिए एक बार बहस हुई - महंगाई और भ्रष्टाचार पर नहीं , थप्पड़ पर। यानी एक थप्पड़ ने ' नफरत ' करने वालों के सीने में ' प्यार ' भर दिया। बड़े - बड़े नेताओं ने इसका असर कम करने के लिए और थप्पड़ खाने वाले के साथ सहानुभूति दिखाने के लिए अपने तरकश के सारे बाण छोड़ दिए। महंगाई और काले धन के लिए एक भी बचाकर नहीं रखा। पर इसमें सहानुभूति कम और डर ज्यादा था कि कहीं अगली बारी उनकी न हो।

लेकिन हर थप्पड़ एक जैसे नहीं होते। मैंने पहले ही कहा कि थप्पड़ का महत्व इस पर निर्भर करता है कि थप्पड़ मारने वाला या थप्पड़ खाने वाला कौन है। उसकी क्या औकात है। अब अगर थप्पड़ खाने वाला एक टीचर है , वह भी महिला तो उसकी आवाज नक्कारखाने में तूती की आवाज साबित होगी। पहली बात तो वह टीचर है , ऊपर से महिला। इसके बावजूद मुकाबला कर बैठी दबंगों से। उस महिला टीचर को शायद कोई गलतफहमी हो गई थी। कुछ दिन पहले उसने टीवी पर थप्पड़ के साइड इफेक्ट देखे थे। कैसे उसकी गूंज लोकसभा में सुनाई दी थी। कैसे थप्पड़ मारने वाला सलाखों के पीछे पहुंच गया। कैसे पक्ष - विपक्ष ने सदन को सर पर उठा लिया था। फिर उसके मामले में तो बवाल ज्यादा होगा। आखिर सदन की स्पीकर स्वयं एक महिला हैं , सरकारी पक्ष की नेता भी महिला हैं। और तो और विपक्ष की नेता भी एक महिला हैं। ऐसे में थप्पड़ मारने वाले सरपंच की अब खैर नहीं। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। मेरा शोध ये कहता है कि इसमें गलती उस महिला की है क्योंकि थप्पड़ के सिद्धांत के मुताबिक आवाज तभी ज्यादा होती है , जब थप्पड़ मारने वाला नहीं , थप्पड़ खाने वाला दबंग हो। अगर मारने वाला बड़ा है तो उसकी आवाज चार कदम भी नहीं जा पाएगी। मेरा शोध कहता है , थप्पड़ के साइड इफेक्ट तभी होते हैं , जब थप्पड़ मारने वाला नहीं , थप्पड़ खाने वाला मजबूत हो। तभी तो थप्पड़ मारने वाला एक आदमी आज जेल में है , जबकि बाकी थप्पड़मारू दबंग बाहर मौज कर रहे हैं।
__________________
मांगो तो अपने रब से मांगो;
जो दे तो रहमत और न दे तो किस्मत;
लेकिन दुनिया से हरगिज़ मत माँगना;
क्योंकि दे तो एहसान और न दे तो शर्मिंदगी।

Last edited by malethia; 21-12-2011 at 02:15 PM.
malethia is offline   Reply With Quote
Old 23-12-2011, 07:08 PM   #34
malethia
Special Member
 
Join Date: Oct 2010
Posts: 3,570
Rep Power: 43
malethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond repute
Default Re: कुछ यहाँ वहां से............

चोरों की जमात पूछे अन्ना की औकात!-नरेंद्र नागर



कल लालू प्रसाद यादव को लोकसभा में बोलते हुए सुना। वह भड़के हुए थे। वह इस बात पर नाराज़ थे कि केंद्र की यूपीए सरकार अन्ना हजारे नाम के एक इंसान के आंदोलन से डरकर एक ऐसा बिल ला रही है जिससे संसद के कानून बनाने के एकाधिकार पर आंच आती है। उनके अनुसार कानून बनाने का अधिकार संसद को है और सड़कों पर होनेवाले आंदोलनों के दबाव में उसे नहीं आना चाहिए। वह कांग्रेस सरकार से पूछ रहे थे कि आखिर वह क्यों अन्ना हजारे से इतना डर रही है कि आनन-फानन में लोकपाल बिल ला रही है।

लालू लोकपाल बिल का विरोध कर रहे थे इस पर हैरत नहीं हुई। लालू, मुलायम, मायावती, जयललिता जैसे नेताओं से हम उम्मीद कर ही कैसे सकते थे कि वे एक ऐसे बिल का समर्थन करेंगे जिससे उनकी गरदन फंसने की रत्ती भर भी आशंका हो। उनके लिए तो मौजूदा व्यवस्था बहुत बढ़िया है जहां करोड़ों के घपले करने के बाद भी आज वे लोकसभा के माननीय सांसद या किसी राज्य की मुख्यमंत्री के पद पर आसीन हैं। देश की न्यायिक प्रक्रिया इतनी कमाल की है कि महंगे वकीलों के बल पर ये सारे नेता अपने खिलाफ चल रहे मामलों को सालोंसाल खींच सकते हैं, खींच रहे हैं और अदालतों से बरी होकर निकल रहे हैं। तो फिर ऐसे नेता ऐसा लोकपाल क्यों बनने देंगे जो छह महीने में उन्हें अंदर कर दे! क्या वे पागल हैं?

जैसा कि मैंने ऊपर कहा, मुझे लालू या मुलायम द्वारा इस बिल का विरोध करने पर हैरत नहीं है। हैरत इस बात पर है कि वे सड़कों पर होनेवाले आंदोलनों पर सवाल उठा रहे हैं, उन्हें हिकारत की नज़र से देख रहे हैं और कह रहे हैं कि अन्ना या उनके समर्थकों की औकात ही क्या है। विश्वास नहीं होता कि ये वही नेता हैं जो राममनोहर लोहिया और जयप्रकाश नारायण को अपना नेता मानते हैं (या शायद थे) और जिनके साथ सड़कों पर आंदोलन करते हुए वे आज इस जगह पर पहुंचे हैं। मुझे याद है, 1974 में जयप्रकाश नारायण के बिहार आंदोलन की जब उन्होंने तब की अब्दुल गफ्फूर सरकार के खिलाफ आंदोलन छेड़ा था। अगले साल उन्होंने दिल्ली में सत्तासीन इंदिरा गांधी की सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए देश भर में आंदोलन छेड़ा था। क्या उस समय विधानसभा में अब्दुल गफ्फूर को बहुमत का समर्थन नहीं था? क्या इंदिरा गांधी को तब की लोकसभा में बहुमत प्राप्त नहीं था? अगर था तो इन बहुमत-प्राप्त नेताओं को हटाने के लिए सड़कों पर आंदोलन क्यों छेड़ा गया? तब इन लालू यादव ने क्यों नहीं कहा कि भारतीय संविधान के तहत विधानसभा और संसद जन आंदोलनों से बड़ी होती हैं।

इसी तरह मुलायम सिंह यादव जिन समाजवादी नेता लोहिया को गाहे-बगाहे याद कर लेते हैं, उन्हीं राममनोहर लोहिया का मशहूर बयान है कि जिंदा कौमें पांच साल तक इंतज़ार नहीं करतीं। इस वाक्य का मतलब क्या है – यही न कि चुनाव में विधायक या सांसद चुनने के बाद भी जनता अपने विधायकों और सांसदों या सरकारों से सवाल पूछ सकती है, उन्हें वापस बुला सकती है, उनके खिलाफ सड़कों पर उतर सकती है।

सड़कों से अपनी राजनीति शुरू करके संसद या विधानसभा तक पहुंचने वाले ये नेता आज सड़कों से शुरू और सड़कों पर ही खत्म होने वाली अन्ना की राजनीति से खौफ खा रहे हैं। आज उन्हें सड़कों पर जमा होनेवाली भीड़ से डर लगने लगा है। शायद इसलिए कि उनको पता है, यह भीड़ किराए की नहीं है। इसलिए भी कि यह भीड़ किसी धर्म, किसी जाति, किसी वर्ग के संकीर्ण हितों की मांग के लिए इकट्ठा नहीं हुई है। और शायद इसलिए भी कि इस भीड़ का जो नेता है, वह किसी कुर्सी या सुविधा के लालच में आगे नहीं बढ़ा है।

एक टीवी चैनल पर कल रामविलास पासवान बोल रहे थे – यह अन्ना हजारे क्या है! मैं अगर उनको जवाब देने की हालत में होता तो यही कहता – पासवान जी, अन्ना हजारे वह हैं जिन्होंने अपनी जिंदगी में शायद ही कभी कोई ऐसा काम किया हो जिसमें उनका कोई निजी फायदा हो। और आपलोग! आपलोगों ने अपनी ज़िंदगी में शायद ही कभी कोई ऐसा काम किया हो जिसमें आपका अपना कोई फायदा न हो।
__________________
मांगो तो अपने रब से मांगो;
जो दे तो रहमत और न दे तो किस्मत;
लेकिन दुनिया से हरगिज़ मत माँगना;
क्योंकि दे तो एहसान और न दे तो शर्मिंदगी।
malethia is offline   Reply With Quote
Old 31-12-2011, 12:14 PM   #35
malethia
Special Member
 
Join Date: Oct 2010
Posts: 3,570
Rep Power: 43
malethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond repute
Default Re: कुछ यहाँ वहां से............

बन्दर के हाथ में भारत है -शैलेश कुमार



आज लोकपाल दम तोड़ चूका है/ जहां सिविल सोसाइटी और प्रबुद्ध वर्गों ने जीवनदान देने के लिए हर संभंव् प्रयास में जुटी हुई है / वहीँ लोकपाल को दुर्योधन के दरवार में चीर हरण करने का दु: साहस करने वाले दु:शासन ,(लालू यादव द्व )और मामा शकुनी के चालो का शिकार होना पड़ा/
महाभारत में सिर्फ एक ही शकुनी था/ जिसने कुरु वंश में कौरवो का नाश करवाया और पांडवो को गृह विहीन करवाया/ इन्द्रप्रस्थ के प्रागन में भ्रष्टाचार के रखवालो ने जन लोकपाल बिल के साथ जो तांडव किया / वह तांडव सविधान के पन्नो में काले अक्षरों में मुद्रित हो गया/ इस अकर्मण्य नृत्य करो ने यही नृत्य महिला विधेयक पर किया जो आज तक लंबित पड़ा हुआ है/
जनता को सतानेवाले हजारो शकुनी मामा शीतकालीन सत्र के बाद कोठो, दारू खानों और रंगदारी की मजमा लगाने बैठेगे. ऐसे लोगो से क्या उम्मीद/ कहावत सही है बन्दर के हाथ में नारियल/ मद्यप्रदेश से निकलने वाले मासिक पत्रिका में प्रथम पृष्ट पर हैडिंग था:- बन्दर के हाथ में बिहार/ इस पर लालू यादव ने भयंकर रोष प्रकट किया था/ इस हैडिंग की भविष्यवाणी लोगो ने अपने आँखों से बिहार में देखा/ उसी परिणाम की प्रतिक्रया है की आज नितीश कुमार है/ जो बिहार को मानचित्र में लाने का प्रयास कर रहे है/
वही आज बन्दर के हाथ में भारत है/ जो हर विधेयक के पन्नो के साथ बंदरीकरण से पेश आ रहा है/
बिल का विरोध करना/ बिल में संसोधन / ये सब बाते समझ में आता है / लेकिन बिल के प्रति को फाड़ा जाना कान्हा तक संबैधानिक है/ इससे तो संबैधानिक गरिमा को मिटटी में मिलाने जैसा है/ बिल का फाड़ने से जनता को ठेंगा दिखाना ही नहीं वरण संसद को अपमानित करना है/
माना की जन लोकपाल बिल से सांसद और मंत्री को एक दरोगा जेल में ठूस देंगे/ लेकिन महिला विधेयक में कौन से सांसद जेल में ठुसे जाते/ सांसद और मंत्री को जेल में ठूसना जरुरी है/ क्योंकि 100 अपराधो में 90 अपराधी इसी सांसदों और मंत्री के कारकून होते है/ जो फोन में छोड़े जाते है/ धमकी पर जमानत मिलती है/ अगर पुलिश सीधे तौर पर उक्त मंत्री और सांसद को जेल में बंद कर दे तो शत प्रतिशत अपराध बंद हो जायेंगे/ बिल के पन्नो को फाड़ने वालो ( सांसद) को जनता के अधिकार को हनन करने के अधीन दंड देने का प्रावधान भी होना चाहिए/
जन लोकपाल बिल को सरकार चुनावो में भुनाना चाहती है/ ये ऐसे छुद्र सरकार है / अगर पता लग जाए की देश पर बम गिराने से सरकार की सत्ता बरक़रार रह पायेगी तो यह सरकार देश पर बम भी गिरा देगी/ इसलिए ऐसी बन्दर के हाथ से सत्ता जल्द से जल्द वापस होना चाहिए/
मतदाता किसी पार्टियों के बातो में न आये / मत देते वक्त बुधजीवी बर्गो ( विद्वान प्रोफेसर, विद्वान समाजसेवी और विद्वान् अधिवक्ता से अवश्य सलाह ले) जो आपको सही रहा बता सके/ फिर आप को भी सोचने का अधिकार है/देश में होने वाले किसी भी घटनाओ से आप भी पीड़ित होंगे/ देश आपका है/ भविष्य आप है/ जाती नहीं/ धनामल सेठ नहीं/ आप को कर्ज देने वाला नहीं/ आप अपने बीमारी का इलाज स्वंय करे/ ये प्रधानमंत्री और आपके इलाके के सांसद और मंत्री नहीं/ इसलिए सोच समझ कर पार्टियो को मत दे/
__________________
मांगो तो अपने रब से मांगो;
जो दे तो रहमत और न दे तो किस्मत;
लेकिन दुनिया से हरगिज़ मत माँगना;
क्योंकि दे तो एहसान और न दे तो शर्मिंदगी।
malethia is offline   Reply With Quote
Old 07-05-2012, 07:18 PM   #36
malethia
Special Member
 
Join Date: Oct 2010
Posts: 3,570
Rep Power: 43
malethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond repute
Default Re: कुछ यहाँ वहां से............

चड्डी बने राष्ट्रीय परिधान-arvind mishra


एक फिल्म प्रेमी मित्र के साथ चर्चा के दौरान आने वाली फिल्म फात्सो के प्रसंग में चड्डी की चर्चा शुरू हो गयी. दरअसल इस फिल्म का नायक चड्डी नहीं पहनता. फिर तो चड्डी को लेकर मित्र ने चटखारे लेकर और भी बातें करनी शुरू कीं...याद है एक ब्लॉगर ने किस तरह ब्लॉगजगत में यह कह कर धमाका कर दिया था कि वह इस इह लोक में महज पति की चड्डी धोने के लिए ही नहीं अवतरित हुई हैं...हां हां भला उन्हें कौन भुला सकता है, आज वे बिना चड्डी धोये जीवन को सार्थकता के नए आयाम दे रही हैं। फिर तो एक वृहद् चड्डी चर्चा ही शुरू हो गयी. आस पास के जो लोग इधर ही कान लगाये थे थोडा और पास खिसक आये।

गुलजार के चड्डी लगाव पर चर्चा हुई। क्या गाना था वो भी...चड्डी पहन के फूल खिला है...बच्चों के साथ बड़े भी लहालोट हो जाते थे यह गीत सुन कर। तब भी यही लगता था कि चड्डी निश्चय ही फूल जैसे बच्चों की ही ड्रेस हो सकती है. इनोसेंट प्यारे बच्चे चड्डी में और भी कितने प्यारे लगने लगते हैं. मगर नाश हो इन नासपीटों होजरी उद्योग वालों का जिन्होंने विज्ञापन के चलते चड्डी को युवाओं का भी ड्रेस - अन्तःवस्त्र बना दिया और उसके साथ कुछ रोमांटिसिज्म भी जोड़ दिया। नए प्रतीक भी गढ़ लिए गए। मुओं ने इस बचपने को यौनाकर्षण से भी जोड़ दिया ...अगर तुम वह वाली चड्डी पहनोगे तो वह तुम्हारे पास खिंची चली आयेगी - हुंह ऐसा भी होता है भला? मगर चड्डी उद्योग परवान चढ़ता गया...नारियों ने अपने लिए गुलाबी रंग चुन कर इस रंग को भी एक फुरफुरी झुर्झुरीनुमा संवेदना से जोड़ दिया -पिछले दिनों एक चड्डी अभियान दरअसल इसी संवेदना की एक निगेटिव पब्लिसिटी ही तो थी . किसी राम सेना को इस चड्डी अभियान में पूरी तरह गुलाबी बना दिया गया था.

हमारे यहां गांव गिराव में तो बच्चे ही चड्डी पहनते आये हैं...बड़े हुए तो लंगोट ढाल ली. कहते हैं लंगोट और ब्रह्मचर्य में एक घनिष्ठ रिश्ता है...अगर बात इधर मुडी तो तगड़ा विषयांतर हो जाएगा...इसलिए अभी यह चड्डी चर्चा पूरी हो जाने दीजिये। लंगोट महात्म्य फिर कभी...मैंने तो कभी पहनी नहीं, किसी लंगोटधारी से पूछ पछोर कर ही कुछ बता पाऊंगा...वैसे भी लंगोट मुझे हमेशा सांप की प्रतीति कराती है। जाहिर है लंगोट से डर लगता है। तो हां...चड्डी.....गांव में अभी भी बहुत से लोग चड्डी नहीं पहनते...यह नागर सभ्यता की देन है. हां नेकर गावों में जरूर पहना जाता है, जिसे जांघिया भी कहते हैं...मगर वह एक बहिर्वस्त्र है अंतःवस्त्र नहीं। हां कुछ उजबक किस्म के लोग जांघिया के ऊपर पायजामा, पैंट पहन कर अपनी समृद्धता का बेजा प्रदर्शन भी करते हैं - ऐसे लोग मुझे अच्छे नहीं लगते (याद दिला दूं चल रही चड्डी चर्चा में ज्यादा हिस्सेदारी मेरे मित्र की है, इसलिए जिस भी वक्तव्य के बारे में तनिक भी शंका हो उसे मेरे मित्र का माना जाये) गांव की गोरियां भी अमूमन अन्तःवस्त्र नहीं पहनतीं...एक ग्राम्य पंचायत में अभी खुलासा हुआ कि एक ग्राम्या को उसका शहरी हसबैंड जबरदस्ती चड्डी पहनने को कहता है...पञ्च लोग गरजे...अबे कलुआ ऐसा काहे करता है बे...उसने बहुत झेंप झांप के बताया कि यह फॉर्मूला अपनाने से उसे जोर का कुछ कुछ होता है...मगर उस ग्राम्या को यही ऐतराज था...मामला तलाक पर जा पहुंचा था। मुझे लगता है ग्राम्या होशियार थी...उसे भी रोज रोज चड्डी साफ़ करने की मुसीबत से छुटकारा चाहिए था।

जाहिर है यह चड्डी संस्कृति बहुत गहरे घुस गयी है हमारे जीवन में। एक मित्र दंपती को जब शादी के कई साल बाद भी संतान की प्राप्ति नहीं हुई तो ओझाई सोखाई शुरू हुई...कहां क�����ां नहीं गए बिचारे, कौन कौन सा नेम व्रत नहीं किया...किसकी मिन्नतें नहीं हुईं, देवी औलिया दरगाह सब जगह शीश नवाया...मगर संतान नहीं हुई। एक काबिल डॉक्टर ने जांच परख की तो मित्र से कहा कि अब से चड्डी पहनना छोड़ो...बच्चा हो जाएगा...आश्चर्यों का आश्चर्य दंपती को अगले वर्ष ही बच्चा नसीब हो गया....मगर कैसे? डॉक्टर ने बताया कि लगातार चड्डी पहनने से स्पर्म काउंट घट गया था- यह भी कि पुरुष जननांग के पास एक ख़ास स्थिर तापक्रम शुक्राणुओं को सक्रिय समर्थ रहने के लिए आवश्यक है...मेरे मित्र ने तबसे चड्डी ऐसी उतार फेंकी कि फिर आज तक नहीं पहनी. कई होनहार बच्चों के गर्वित पिता हैं....और चड्डी न पहनने की कई सहूलियतों का भी वर्णन करते नहीं अघाते।
ब्लॉगर आशीष श्रीवास्तव इस चड्डी पुराण से इतने प्रभावित हुए हैं कि कई ब्लॉगरों के साथ उन्होंने इसे भारत का राष्ट्रीय परिधान घोषित किये जाने की मांग की है.


साभार-नवभारत टाइम्स

__________________
मांगो तो अपने रब से मांगो;
जो दे तो रहमत और न दे तो किस्मत;
लेकिन दुनिया से हरगिज़ मत माँगना;
क्योंकि दे तो एहसान और न दे तो शर्मिंदगी।
malethia is offline   Reply With Quote
Old 08-05-2012, 08:27 PM   #37
malethia
Special Member
 
Join Date: Oct 2010
Posts: 3,570
Rep Power: 43
malethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond repute
Default Re: कुछ यहाँ वहां से............

सारे रोगों का रामबाण इलाज़ -सत्येन्द्र कुमार



जी मैं सच कह रहा हूँ मेरे द्वारा बताये गए इस नुस्खे को अपनाने से आपके सारे रोग भाग जायेंगे मेरा यकीन करें | पता नहीं मेरा आज का ये विषय आप सबों को अच्छा लगे या न लगे , लेकिन इतना जरूर जानता हूँ मैंने जो विषय उठाया है यह खाने में नमक जैसा महत्वपूर्ण है | विष रूपी संसार में अमृत रूपी जीवन है | नीरसता रूपी रेगिस्तान में आशा रूपी बरसात है | डूबते को तिनके का सहारा है | परमात्मा के द्वार की पहली सीढ़ी है | तुलसीदास जी के ये पद बड़े हीं प्यारें हैं |
राम हीं केवल प्रेम पिआरा |
जानहिं केवल जाननीहारा ||

जी मैं प्रेम की बात कर रहां हूँ जो आजकल नदारद है और बहुत ढूंढे इनके दर्शन नहीं होते | बहुत ढूंढा नहीं मिला | मिला ! मिला ! अपने हीं भीतर मुझे यह मिला और आँख तरेर कर मुझसे सवाल कर बैठा सिर्फ दूसरे में हीं मुझे ढूंढोगे या खुद के भीतर भी तलाशोगे | हम हमेशा दूसरे से हीं प्रेम तलाशते हैं| और खुद को रुखा सूखा रखते हैं भला ऐसे में परिणाम क्या आएगा |

एक बात कहूँ सारे रोगों का अचूक उपाय है आप दूसरे से प्रेम करना शुरू कर दो आपका इलाज तय | अगर शुरू शुरू में परेशानी मालूम हो तो छोटे छोटे बच्चों से हीं प्रेम करें उनको पुचकारें उनके साथ खेलें बल्कि आप भी बच्चे बन जाएँ |बशीर बद्र साहब ने भी कहा है की ,घर से मस्जिद है बहुत दूर ,चलो किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाये | हो गयी बंदगी | अपने पडोस की बूढी अम्मा के पास चलें जाएँ उनसे मीठी मीठी बातें करें सच कहूँ बहुत आनंद आएगा | आज बहुत से वृद्ध माता पिता अकेले हैं कारण उनके पुत्र पुत्रियां विदेश में हैं रुपया कमाने के चक्कर में लानत है ऐसे रुपया पर | आज भारत में वृद्धा आश्रम खुल रहें हैं शर्म ! शर्म ! शर्म ! दादा दादी , नाना नानी की कहानियों के लिए प्रसिद्ध ये भारत और आज उन्हीं दादा दादीयों नाना नानियों के लिए वृधाश्रम ! सोचें हम कहाँ खडें हैं |
लगभग सारे विश्व में अब भारत में भी एक बीमारी अपने पाँव पसार रही है वह है अवसाद (depression) इसका इलाज मेरे हिसाब से एक हीं है प्रेम प्रेम करो !प्रेम करो ! बस और कुछ नहीं सबसे प्रेम करो | किसी दुखी बुजुर्ग का हाँथ अपने हाँथ में ले कर दो शब्द प्रेम के बतिया लें देखिये कैसी उर्जा जाग जायेगी आपके भीतर और अगले के भीतर भी प्राण उर्जा ! शुद्ध चैतन्य उर्जा !

प्रेम ! धरती से यह रफूचक्कर होने के मूड में है | जरूरत है इसे कस कर पकड़ने की वर्ना .................... आप खुद हीं सोंच ले

प्रेमसहित
आपका सत्येन्द्र



साभार-नवभारत टाइम्स

__________________
मांगो तो अपने रब से मांगो;
जो दे तो रहमत और न दे तो किस्मत;
लेकिन दुनिया से हरगिज़ मत माँगना;
क्योंकि दे तो एहसान और न दे तो शर्मिंदगी।
malethia is offline   Reply With Quote
Old 12-05-2012, 07:16 PM   #38
malethia
Special Member
 
Join Date: Oct 2010
Posts: 3,570
Rep Power: 43
malethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond repute
Default Re: कुछ यहाँ वहां से............

पॉलिटिकल साइंस पर एनसीईआरटी की एक किताब में छपे आंबेडकर के कार्टून पर आज लोकसभा में भारी हंगामा हुआ। मामला साउथ की एक नामालूम-सी पार्टी के नामालूम-से सांसद ने उठाया था लेकिन कांग्रेस, बीजेपी समेत सभी पार्टियों के सांसदों ने उनकी हां में हां मिलाई। लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने भी इसे गंभीर मामला बताया है। मायावती भी मैदान में कूद पड़ी हैं। मामला और तूल न पकड़े, इसके लिए किताब से कार्टून हटाने की घोषणा भी हो गई है। मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल ने इसके लिए सार्वजनिक तौर पर माफी भी मांग ली है।


मैंने खुद यह कार्टून देखा और मुझे इसमें कुछ भी आपत्तिजनक नहीं लग रहा। इसमें संविधान नामक घोंघे पर आंबेडकर बैठे दिखाए गए हैं और नेहरू पीछे से घोंघे को सोंटा लगा रहे हैं ताकि वह थोड़ा तेज़ चले। और किताब में यह संविधान से जुड़े चैप्टर के साथ ही लगाया गया है।

महान कार्टूनिस्ट शंकर द्वारा बनाए गए इस कार्टून से साफ झलक रहा है कि संविधान बनने में हो रही देरी पर वह व्यंग्य कर रहे हैं। कार्टूनिस्ट एक विचारवान कलाकार है जिसको बड़े से बड़े आदमी की खिल्ली उड़ाने का अधिकार है। कार्टूनिस्ट व्यंग्य या मज़ाक नहीं करेगा तो क्या आरती उतारेगा?अगर मज़ाक नहीं होगा तो फिर कार्टून क्या होगा! इसमें घोंघे पर आंबेडकर इसीलिए बिठाए गए हैं कि वही संविधान प्रारूप समिति के अध्यक्ष थे। यदि कोई और इस समिति का अध्यक्ष होता तो उसका कार्टून होता आंबेडकर की जगह।

यदि आंबेडकर के दलित होने का इस कार्टून में मज़ाक उड़ाया गया होता तो आपत्ति का कारण समझ में आ सकता था। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं है इसमें।

कार्टून से नाराज़गी का एक मसला हाल ही में बंगाल में भी सामने आया था, जब ममता बनर्जी की पुलिस ने एक प्रफेसर के खिलाफ इस आधार पर मामला दायर कर दिया था कि उन्होंने ममता बनर्जी पर बने कार्टून सोशल नेटवर्किंग साइट पर शेयर किए थे। इससे पहले अन्ना आंदोलन के बाद पब्लिक द्वारा बनाए गए और शेयर किए गए मनमोहन सिंह, सोनिया गांधी आदि के कार्टूनों-मॉर्फ्ड पिक्चरों पर भी सरकार को परेशानी हुई थी।

कार्टून आलोचना का एक मज़ाकिया तरीका है और किसी भी लोकतांत्रिक देश में इसका अधिकार सबको मिला हुआ है। आंबेडकर या नेहरू या गांधी या मोदी – ये सारे लोग भले ही किसी खास तबके के लिए भगवान हों लेकिन निष्पक्ष नागरिकों के लिए ये सारे इंसान हैं या थे और उनके कामों की भी बाकियों की तरह आलोचना हो सकती है।

आम जनता अपनी चर्चाओं में और हमारे जैसे लेखक अपनी लेखनी द्वारा जो बात कहते हैं, वही बात कार्टूनिस्ट अपने व्यंग्यचित्रों द्वारा छोटे में और बेहतर तरीके से कहते हैं।


लेखक-नरेंद्र नागर

साभार-NBT

__________________
मांगो तो अपने रब से मांगो;
जो दे तो रहमत और न दे तो किस्मत;
लेकिन दुनिया से हरगिज़ मत माँगना;
क्योंकि दे तो एहसान और न दे तो शर्मिंदगी।
malethia is offline   Reply With Quote
Old 23-05-2012, 12:38 PM   #39
malethia
Special Member
 
Join Date: Oct 2010
Posts: 3,570
Rep Power: 43
malethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond repute
Default Re: कुछ यहाँ वहां से............

हम जहां कहेंगे बस वहीं छपेंगे कार्टून -सहीराम॥

यह वो भीड़ नहीं थी, जो सिनेमाघरों पर हमले करती थी। यह वो भीड़ तो नहीं थी जो वाटर जैसी फिल्मों की शूटिंग नहीं होने देती थी। यह वो भीड़ भी नहीं थी जो हुसैन की प्रदर्शनियों में घुस जाती थी और तोड़-फोड़ करती थी। यह वो भीड़ तो नहीं थी जो सहमत की प्रदर्शनियों पर हंगामा करती थी। यह वो भीड़ तो नहीं थी जिसके डर से आर्ट गैलरियां हुसैन की पेंटिंगें प्रदर्शित नहीं करती थी और सरकारी आयोजनों में भी उन्हें शामिल नहीं किया जाता था। ये वो लोग भी नहीं थे जो देश में जगह-जगह हुसैन पर मुकदमे दायर करते रहते थे और जिन्होंने उन पर इतने मुकदमे लाद दिए थे कि वे देश छोड़कर ही चले गए। देश निकाला ऐसे भी दिया जाता है। वे फिर कभी वापस नहीं आए। यह वो भीड़ भी नहीं थी जो हबीब तनवीर के नाटक नहीं होने देती थी। यह वह भीड़ भी नहीं थी जो महाराष्ट्र में लेन की लिखी शिवाजी वाली पुस्तक पर प्रतिबंध की मांग करती थी और भंडारकर इंस्टीट्यूट में तोड़फोड़ करती थी। यह महाराष्ट्र में ही रोहिंग्टन मिस्त्री के उपन्यास सच ए लांग जर्नी पर प्रतिबंध की मांग करनेवाली भीड़ भी नहीं थी।

ये वे लोग भी नहीं थे जिन्होंने कभी जेएनयू में पाकिस्तानी शायर फहमीदा रियाज की एक नज्म पर हंगामा बरपा कर दिया था। ये वे लोग भी नहीं थे जो कभी अमृता प्रीतम की कविताओं पर नाराज हो उठे थे। ये वे लोग भी नहीं थे जिनसे तस्लीमा नसरीन भागी फिरती हैं। ये वे धर्म के रक्षक भी नहीं थे जो कभी सलमान रश्दी के खून के प्यासे हो उठते हैं और कभी किसी डैनिश कार्टूनिस्ट के सिर पर करोड़ों का इनाम रखने लगते हैं। ये सिर्फ तृणमूल कांग्रेसवाले भी नहीं थे, जिन्होंने अपनी नेता का एक कैरीकेचर फारवर्ड करने के जुर्म में एक प्रोफेसर को जेल पहंुचा दिया था। ये इनमें से बेशक कोई नहीं थे, पर उन्हीं की जमात के लग रहे थे, उनसे काफी मिलते जुलते। वे कोई उन्मादी भीड़ नहीं थे, फिर भी उन्माद पता नहीं क्यों वैसा ही दिखता था। वे कोई हुड़दंगी भी नहीं थे। पर आक्रामक उतने ही थे। लोग पहचानने की कोशिश कर रहे थे कि आखिर वे हैं कौन?

और देखो, वे तो अपने सांसद ही निकले। हमारे भाग्यविधाता। वे संसद की सर्वोच्चता के लिए चिंतित थे और उसे स्थापित करने के लिए प्रतिबद्ध थे। वे नेताओं की बिगड़ती छवि को लेकर चिंतित थे। पर खुद अपनी बेहतर छवि गढ़ने की बजाय या किसी पी आर एजेंसी की मदद लेने की बजाय यह चाहते थे कि पाठ्यपुस्तकों से उनकी बेहतर छवि बनाई बनाई जाए। वे बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के लिए उतने चिंतित नहीं थे, जितने चिंतित वे इस बात को लेकर थे कि बच्चों के दिलोदिमाग में उनकी छवि अच्छी बने। और इसीलिए वे उन्हें ऐसी शिक्षा से, ऐसी पुस्तकों से दूर रखना चाहते थे, जिनसे उन्हें आशंका थी, बल्कि डर लग रहा था कि उनके मस्तिष्क प्रदूषित हो सकते हैं। पर वास्तव में यह प्रदूषण की चिंता नहीं थी। क्योंकि वे उन पुस्तकों को लेकर तो कभी चिंतित नजर नहीं आए जो बच्चों के दिलो-दिमाग को सांप्रदायिकता से प्रदूषित कर रही हैं, विषाक्त बना रही हैं और जिन्हें कुछ शिक्षण संस्थाएं बाकायदा अपने पाठ्यक्रमों में रखे हुए हैं।

खैर , वे बेहद नाराज थे। क्योंकि वे चिंतित थे। वे उन पुस्तकों से नाराज थे , जिनमें नेताओं के कार्टून छपे हैं। वे आजकल के नहीं , बल्कि साठ साल पुराने कार्टूनों से भी नाराज थे। वे बेहद गुस्से में थे , क्योंकि वे चिंतित थे कि नेताओं की छवि बिगाड़ी जा रही है। वे सरकार को घेर रहे थे , सरकार अपने मंत्रियों को घेर रही थी , घिरे हुए मंत्री तुरंत कार्रवाई करने पर तत्पर थे। क्योंकि वे सब एक थे। अपनी छवि से चिंतित और जनता से पीडि़त। वे कह रहे थे कि हमें कार्टूनों से एतराज नहीं हैं। वे पत्र - पत्रिकाओं में छपें , पर पाठ्यपुस्तकों में न छपें। आखिर तो वे हमारी अभिव्यक्ति की आजादी के रक्षक हैं। अभिव्यक्ति की आजादी जिंदाबाद !

__________________
मांगो तो अपने रब से मांगो;
जो दे तो रहमत और न दे तो किस्मत;
लेकिन दुनिया से हरगिज़ मत माँगना;
क्योंकि दे तो एहसान और न दे तो शर्मिंदगी।
malethia is offline   Reply With Quote
Old 24-05-2012, 11:44 AM   #40
malethia
Special Member
 
Join Date: Oct 2010
Posts: 3,570
Rep Power: 43
malethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond repute
Default Re: कुछ यहाँ वहां से............

पेट्रोल बम को सरकार के सिर फोड़ दो -राजेश कालरा


कीमत में एक बार में साढ़े सात रुपये प्रति लीटर बढ़ोतरी करके सरकार ने जनता की ओर पेट्रोल बम उछाल दिया है। पेट्रोल के दाम में यह एकमुश्त अब तक की सबसे बड़ी बढ़ोतरी है। दुनिया की अर्थव्यवस्था डांवाडोल है, कच्चे तेल की कीमतें बढ़ रही हैं और हमारा अपना रुपया डॉलर के मुकाबले मटियामेट होता जा रहा है। इस स्थिति में यह बात समझी जा सकती है कि सरकार के पास काफी कम विकल्प बचे थे। आखिर किसी को तो इसकी भरपाई करनी ही होगी। तेल कंपनियों को अगर टिकना है तो उससे लंबे समय तक लागत मूल्य से कम कीमत पर तेल बेचने की उम्मीद नहीं की जा सकती है। सरकार भी बिना सोच-समझे हो रही खपत पर लंबे समय तक सब्सिडी नहीं जारी रख सकती।
उम्मीद के मुताबिक ही विपक्ष समेत सरकार के कुछ घटक दलों (खासकर ममता बनर्जी) ने मूल्य वृद्धि को लेकर अपना गुस्सा दिखाना शुरू कर दिया है। सबके एक से बयान हैं। गरीबों पर बुरा असर पड़ेगा, पहले से ही दैनिक खर्चे लगातर बढ़ने की वजह से मुश्किल से जीवन यापन कर पा रहे आम आदमी के लिए पेट्रोल की कीमत में बढ़ोतरी का हर चीज पर असर पड़ने से जीना दुश्वार हो जाएगा। ये सारी बातें सही हैं। इससे किसी को इनकार नहीं है।

लेकिन ज्यादातर बयानवीर जो असहाय जनता पर आंकड़ों की बमबारी करके इसे सही ठहराने की कोशिश करेंगे, उनकी जिंदगी पर कोई असर नहीं पड़ने वाला। उनके लिए तो हर दिन मजे का होगा। वे इससे अनजान बने रहेंगे कि उनके तमाम तर्कों के बावजूद कीमत बढ़ोतरी का बोझ तो केवल आम आदमी को ही उठाना होगा।

मैं जब कह रहा हूं कि सिर्फ आम आदमी भुगतता है, इसकी वजह यह है कि इस देश में फैसले लेने वाले कीमतों के उतार-चढ़ाव या किसी भी और चीज से परे हैं और उन्हें मिलने वाली इस सुविधा की कीमत हम आम आदमी को चुकानी पड़ती है। वे या तो सिस्टम से इतनी मलाई निकाल चुके होते हैं कि दाम 10 गुना बढ़ जाए तो भी उनकी कई पीढ़ियों पर इसका कोई असर नहीं पड़ेगा या फिर वे हर सुविधा सरकार से किसी भी कीमत पर हासिल कर लेते हैं। सवाल यह है कि उनके इस 'भोग-विलास' की कीमत किसे चुकानी पड़ती है? हमें और किसे?

अगर यह सिर्फ उनके आधिकारिक काम से जुड़ा हो तो समझ में भी आता है। सरकार चाहे जो भी तर्क दे पर हकीकत यह है कि अगर दुरुपयोग पर अंकुश लगा दिया जाए तो सरकार का फ्यूल बिल आधा हो जाएगा। आप अपने आस-पास देखिए और समझ जाएंगे कि मैं किस ओर इशारा कर रहा हूं। सबसे खराब बात यह है कि चूंकि उन्हें सब मुफ्त मिल रहा होता है इसलिए वे न तो सुविधा की इज्जत करते हैं और न ही सदुपयोग की चिंता। प्रमाणित है कि स्वार्थ राष्ट्रहित पर भारी पड़ रहा है।

मसलन, आप किसी सुबह या शाम दिल्ली की “शान” संस्कृति स्कूल के बाहर खड़े हो जाएं। यानी ऐसे वक्त में जब बच्चों को स्कूल छोड़ा जा रहा हो या स्कूल के बाद लिया जा रहा हो। आपको सरकारी गाड़ियों की कतारें नजर आएंगी। कुछ में मेम साहब होंगी तो कुछ में क्लर्क या चपरासी होंगे। बच्चों की सेवा में। ये तो बहुत दूर की बात है। आप दिन में किसी सरकारी कॉलोनी की सड़कों पर टहल लीजिए, जब सरकारी अफसरों के दफ्तरों में होने वक्त हो। सरकारी गाड़ियां घरों के बाहर उन अफसरों की पत्नियों या पतियों को इधर उधर ले जाने के लिए इंतजार करती खड़ी दिख जाएंगी। किटी पार्टी, शॉपिंग, बच्चों को घुमाने या फिर किसी और निजी काम के लिए। फिर वही गाड़ियां शाम को दफ्तर जाएंगी अफसरों को लाने के लिए। और शाम को भी सरकार का काम खत्म होगा, सरकारी गाड़ियों का नहीं। साहबों के परिवारों को शाम भी तो बितानी होती है! ये सब अ-सरकारी है।

मैं चुनौती देता हूं कि आप सरकारी गाड़ियों के किसी नियम के जरिए इसे सही साबित कर दीजिए। इसे जायज ठहराया ही नहीं जा सकता। लेकिन इस पर कोई सवाल नहीं उठाएगा। क्यों? क्योंकि जिसका काम है इस सब पर नजर रखना, वह तो खुद यही कर रहा है। इसलिए बही खाते बढ़िया से तैयार मिलेंगे। अगली बार जब आप रेड लाइट पर खड़े हों और कोई सरकारी नंबर वाली लाल बत्ती चमकाती गाड़ी आपके पास आकर रुके, तो उसका शीशा खटखटाइएगा और उससे पूछिएगा, क्या तुम सरकारी ड्यूटी पर हो? उसका नंबर नोट कीजिएगा और उसे शेयर कर दीजिएगा।

आरटीआई डालकर पूछिए कि सरकार सरकारी गाड़ियों पर कितना खर्च करती है। और हां, ड्राइवरों के ओवरटाइम पर भी। जितना बड़ा अफसर बेजा इस्तेमाल उतना ज्यादा। आईएएस, आईपीएस, आईएफएस, रेवेन्यू सर्विस, मंत्री, उनका स्टाफ, उनके स्टाफ का स्टाफ सब इसे अपने जन्मसिद्ध अधिकार की तरह इस्तेमाल करते हैं। शर्म का तो नामो निशान नहीं है।

सरकार अक्सर खर्च कटौती की बात करती है। आजकल तो ये शब्द खूब सुनाई देते हैं। पर असल में ये सब खोखले नारे हैं जो तभी उछाले जाते हैं जब सरकार को जनता पर कुछ बोझ लादना होता है। सरकार बस लोगों को दिखाना चाहती है कि देखो, हम ताकतवर लोगों को कितनी फिक्र है और हम भी अपना पेट थोड़ा कसने की चाहत रखते हैं।

बेशक, सरकार की यह फिजूलखर्ची सिर्फ तेल तक सीमित नहीं है। यह तो अथाह है और लगभग हर जगह है। आप सरकारी अफसरों के यात्रा बिल देखिए, खासकर उनके जो विदेश यात्राओं में शामिल रहे हों। विदेश मंत्रालय में एक आरटीआई डालकर पता कीजिए, बड़े अधिकारी कितनी बार वर्ल्ड टूर पर जाते हैं। बिजनस क्लास में नहीं तो फर्स्ट क्लास में। आधे दिन की बैठक में शामिल होने के लिए हफ्तेभर का दौरा। और जानते हैं इसमें खराब बात क्या है? लगभग हर देश के दूतावासों में ऐसे अधिकारी हैं जो वहीं बैठे बैठे इस तरह के मामले संभाल सकते हैं। यानी यहां से किसी को भेजने की जरूरत नहीं है।

आप जरा सा ध्यान से देखेंगे तो जान जाएंगे कि 10 में सिर्फ एक यात्रा सही वजहों से हुई होगी। बाकी नौ को फोन या विडियो कॉन्फ्रेंस से ही निपटाया जा सकता था। गोपनीयता की बात होती तो भी काम करने के बहुत सारे तरीके संभव होते। लेकिन नहीं, अगर अफसर इन गैरजरूरी यात्राओं पर नहीं जाएंगे तो उनके हवाई किलोमीटर कैसे जमा होंगे? और फिर वे अपने परिवारों को मुफ्त यात्राओं पर कैसे ले जाएंगे? अब आप यह तो नहीं कह सकते कि अपने परिवार को घुमाने ले जाना गलत बात है। हम तो अपने परिवारों के लिए ही जीते हैं। लेकिन मेहरबानी करके जनता के पैसे को तो बख्श दीजिए!

जनता के पैसे का यह बेजा इस्तेमाल, यह फिजूलखर्ची हर जगह, हर चीज में नजर आ रही है। नारे लगते रहते हैं फिजूलखर्ची जारी है। शोर मचता रहता है, फिजूलखर्ची जारी है। इसके खिलाफ कहीं भी किसी भी तरह की कार्रवाई हुई हो, नहीं दिखता। वजह मैं पहले ही बता चुका हूं। सभी दोषी हैं। तो रास्ता क्या है? मैं दिखावटी अदालतों या सड़क के न्याय में विश्वास नहीं करता। लेकिन लोगों को अपनी आवाज को और ऊंचा तो करना ही होगा। इतना ऊंचा कि जब भी वे अपनी ताकत से इसे दबाने की कोशिश करें, तो आवाज का जोर और लोगों की तादाद देखकर ही डर जाएं। विश्वास कीजिए, वे ज्यादा देर तक नहीं बच सकते। इसलिए अब जागिए और अपने अधिकार मांगना शुरू कीजिए। कहिए कि आपका पैसा, आपकी खून-पसीने की कमाई को चंद लोगों की ऐश के लिए इस्तेमाल नहीं होने दिया जाएगा।

व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए कि जब भी अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें बढ़ें और ईंधन के दाम बढ़ाना जरूरी हो जाए, तो उसका बोझ सिर्फ आम आदमी पर न पड़े, सब पर पड़े। ऐसा न हो कि आम आदमी की कमर टूटती जाए और ताकतवर लोगों के लिए ऐसा हो जैसे कुछ हुआ ही न हो।


साभार -नव भारत टाइम्स
__________________
मांगो तो अपने रब से मांगो;
जो दे तो रहमत और न दे तो किस्मत;
लेकिन दुनिया से हरगिज़ मत माँगना;
क्योंकि दे तो एहसान और न दे तो शर्मिंदगी।
malethia is offline   Reply With Quote
Reply

Bookmarks

Tags
bloggers, hindi, hindi articles, hindi bloggers, hindi blogs, hindi forum, india, indian articles, my hindi forum


Posting Rules
You may not post new threads
You may not post replies
You may not post attachments
You may not edit your posts

BB code is On
Smilies are On
[IMG] code is On
HTML code is Off



All times are GMT +5. The time now is 10:55 AM.


Powered by: vBulletin
Copyright ©2000 - 2024, Jelsoft Enterprises Ltd.
MyHindiForum.com is not responsible for the views and opinion of the posters. The posters and only posters shall be liable for any copyright infringement.