My Hindi Forum

Go Back   My Hindi Forum > Art & Literature > Hindi Literature
Home Rules Facebook Register FAQ Community

Reply
 
Thread Tools Display Modes
Old 31-10-2010, 01:58 PM   #31
ABHAY
Exclusive Member
 
ABHAY's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: Bihar
Posts: 6,261
Rep Power: 35
ABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud of
Post

सिंहासन बत्तीसी 29

एक दिन राजा विक्रमादित्य ने सपना देखा कि एक सोने का महल है, जिसमें तरह-तरह के रत्न जड़े हैं, कई तरह के पकवान और सुगंधियां हैं, फुलवाड़ी खिली हुई है, दीवारों पर चित्र बने हैं, अंदर नाच और गाना हो रहा है और एक तपस्वी बैठा हुआ है। अगले दिन राजा ने अपने वीरों को बुलाया और अपना सपना बताकर कहा कि मुझे वहां ले चलो, जहां ये सब चीजें हों। वीरों ने राजा को वहीं पहुंचा दिया।

राजा को देखकर नाच-गान बंद हो गया। तपस्वी बड़ा गुस्सा हुआ। विक्रमादित्य ने कहा, "महाराज! आपके क्रोध की आग की कौन सह सकता है? मुझे क्षमा करें।" तपस्वी प्रसन्न हो गया और बोला, "जो जी में आये, सो मांगो।" राजा ने कहा, "योगिराज! मेरे पास किसी चीज की कमी नहीं है। यह महल मुझे दे दीजिये।" योगी वचन दे चुका था। उसने महल राजा को दे दिया।

महल दे तो दिया, पर वह स्वयं बड़ा दुखी होकर इधर-उधर भटकने लगा। अपना दुख उसने एक दूसरे योगी को बताया। उसने कहा, "राजा विक्रमादित्य बड़ा दानी है। तुम उसे पास जाओ और महल को मांग लो। वह दे देगा।"

तपस्वी ने ऐसा ही किया। राजा विक्रमादित्य ने मांगते ही महल उसे दे दिया। पुतली बोली, "राजन्! हो तुम इतने दानी तो सिंहासन पर बैठो?"

अगले दिन रुपवती नाम की तीसवीं पुतली की बारी थी। सो उसने राजा को रोककर यह कहानी सुनायी:
__________________
Follow on Instagram , Twitter , Facebook, YouTube.
ABHAY is offline   Reply With Quote
Old 31-10-2010, 02:20 PM   #32
ABHAY
Exclusive Member
 
ABHAY's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: Bihar
Posts: 6,261
Rep Power: 35
ABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud of
Post

सिंहासन बत्तीसी 30

एक दिन रात के समय राजा विक्रमादित्य घूमने के लिए निकला। आगे चलकर देखता क्या है कि चार चोर खड़े आपस में बातें कर रहे हैं। उन्होंने राजा से पूछा, 'तुम कौन हो?" राजा ने कहा, "जो तुम हो, वहीं मैं हूं।" तब चोरों ने मिलकर सलाह की कि राजा के यहां चोरी की जाय। एक ने कहा, "मैं ऐसा मुहूर्त देखना जानता हूं कि जायं तो खाली हाथ न लौटें।" दूसरे ने कहा, "मैं जानवरों की बोलियां समझता हूं।" तीसरा बोला, "मैं जहां चोरी को जाऊं, वहां मुझे कोई न देख सके, पर मैं सबको देख लूं।" चौथे ने कहा, "मेरे पास ऐसी चीज है कि कोई मुझे कितना ही मारे, मैं ने मरुं।" फिर उन्होंने राजा से पूछा तो उन्होंने कहा, "मैं यह बता सता हूं कि धन कहां गड़ा है।"

पांचों उसी वक्त राजा के महल में पहुंचे। राजा ने जहां धन गड़ा था, वह स्थान बता दिया। खोदा तो सचमुच बहुत-सा माल निकला। तभी एक गीदड़ बोला, जानवरों की बोली समझने वाले चोर ने कहा, "धन लेने में कुशल नहीं है।" पर वे न माने। फिर उन्होंने एक धोबी के यहां सेंध लगाई। राजा को अब क्या करना था। वह उनके साथ नहीं गया।

अगले दिन शोर मच गया कि राज के महल में चोरी हो गई। कोतवाल ने तलाश करके चोरों को पकड़कर राजा के सामने पेश किया। चोर देखते ही पहचान गये कि रात को उनके साथ पांचवां चोर और कोई नहीं, राज था। उन्होंने जब यह बात राजा से कही तो वह हंसने लगा। उसने कहा, "तुम लोग डरो मत। हम तुम्हारा कुछ भी नहीं बिगड़ने देंगे। पर तुम कसम लो कि आगे से चोरी नहीं करोगे।

जितना धन तुम्हें चाहिए, मुझसे ले लो।"

राजा ने मुंहमांगा धन देकर विदा किया।

पुतली बोली, "हे राज भोज! है तुममें इतनी उदारता?"

अगले दिन राजा ने जैसे ही सिंहासन की ओर पैर बढ़ाया कि कौशल्या नाम की इकत्तीसवीं पुतली ने उसे रोक दिया। बोली, "हे राजा! पीतल सोने की बराबरी नहीं कर सकता। शीशा हीरे के बराबर नहीं होता, नीम चंदन का मुकाबला नहीं कर सकता तुम भी विक्रमादित्य नहीं हो सकते। लो सुना:"
__________________
Follow on Instagram , Twitter , Facebook, YouTube.
ABHAY is offline   Reply With Quote
Old 31-10-2010, 02:22 PM   #33
ABHAY
Exclusive Member
 
ABHAY's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: Bihar
Posts: 6,261
Rep Power: 35
ABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud of
Post

सिंहासन बत्तीसी 31

राजा विक्रमादित्य को जब मालूम हुआ कि उसका अंतकाल पास आ गया है तो उसने गंगाजी के किनारे एक महल बनवाया और उसमें रहने लगा। उसने चारों ओर खबर करा दी कि जिसको जितना धन चाहिए, मुझसे ले ले। भिखारी आये, ब्राह्मण आये। देवता भी रुप बदलकर आये। उन्होंने प्रसन्न होकर राजा से कहा, "हे राजन्! तीनों लोकों में तुम्हारी निशानी रहेगी। जैसे सतयुग में सत्यवादी हरिश्चंद्र, त्रेता में दानी बलि और द्वापर में धर्मात्मा युधिष्ठिर हुए, वैसे ही कलियुग में तुम हो। चारों युग में तुम जैसा राजा न हुआ है, न होगा।"

देवता चले गये। इतने में राजा देखता क्या है कि सामने से एक हिरन चला आ रहा है। राजा ने उसे मारने को तीर-कमान उठाई तो वह बोला, "मुझे मारो मत। मैं पिछले जन्म में ब्राह्मण था। मुझे यती ने शाप देकर हिरन बना दिया ओर कहा कि राजा विक्रमादित्य के दर्शन करके तू फिर आदमी बन जायगा।"

इतना कहते-कहते हिरन गायब हो गया और उसी जगह एक ब्राह्मण खड़ा हो गया। राजा ने उसे बहुत-सा धन देकर विदा किया।

पुतली बोली, "हे राजन्! अगर तुम अपना भला चाहते हो तो इस सिंहासन को ज्यों-का-त्यों गड़वा दो।" पर राजा का मन न माना।

अगले दिन वह फिर उधर बढ़ा तो आखिरी, बत्तीसवीं पुतली ने, जिसका नाम भासमती था, उसे रोक दिया। बोली, "हे राजन्! पहले मेरी बात सुनो।"
__________________
Follow on Instagram , Twitter , Facebook, YouTube.
ABHAY is offline   Reply With Quote
Old 31-10-2010, 02:30 PM   #34
ABHAY
Exclusive Member
 
ABHAY's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: Bihar
Posts: 6,261
Rep Power: 35
ABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud of
Post

सिंहासन बत्तीसी 32

राजा विक्रमादित्य का आखिरी समय आया तो वह विमान में बैठकर इंद्रलोक को चला गया। उसे जाने से तीनों लोकों में बड़ा शोक मनाया गया। राजा के साथ उसके दोनों वीर भी चले गये। धर्म की ध्वजा उखड गई। ब्राह्मण, भिखारी, दुखी होकर रोने लगे। रानियां राजा के साथ सती हो गई। दीवान ने राजकुमार जैतपाल को गद्दी पर बिठाया।

एक दिन की बात है कि नया राजा जब इस सिंहासन पर बैठा तो वह मूर्च्छित हो गया। उसी हालत में उसने देखा, राजा विक्रमादित्य उससे कह रहे हैं कि तू इस सिंहासन पर मत बैठ। जैतपाल की आंखें खुल गईं और वह नीचे उतर आया। उसने दीवान से सब हाल कहा। दीवान बोला, "रात को तुम ध्यान करके राजा से पूछो कि मैं क्या करुं। वह जैसा कहें, वैसा ही करो।"

जैतपाल ने ऐसा ही किया। राजा विक्रमादित्य ने उससे कहा, "तुम उज्जैन नगरी और धारा नगरी छोड़कर अंबावती नगरी में चले जाओं और राज्य करो। इस सिंहासन को वहीं गड़वा दो।"

सवेरा होते ही राजा जैतवाल ने सिंहासन वहीं गड़वा दिया और स्वयं अंबावती चला गया। उज्जैन और धारा नगरी उजड़ गई। अंबावती नगरी बस गई।

पुतली की यह बात सुनकर राजा भोज बड़ा पछताया और दीवान को बुलाकर आज्ञा दी कि इस सिंहासन को जहां से निकलवाया था, वहीं गड़वा दो। फिर अपना राजपाट दीवान को सौंपकर वह एक तीर्थ में चला गया और वहीं तपस्या करने लगा।
__________________
Follow on Instagram , Twitter , Facebook, YouTube.
ABHAY is offline   Reply With Quote
Old 01-11-2010, 06:33 PM   #35
ABHAY
Exclusive Member
 
ABHAY's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: Bihar
Posts: 6,261
Rep Power: 35
ABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud of
Post

सिंहासन बत्तीसी समाप्त हुआ मगर किसी ने ये नहीं बोला की कयशा लगा चलो कोई बात नहीं !
__________________
Follow on Instagram , Twitter , Facebook, YouTube.
ABHAY is offline   Reply With Quote
Old 01-11-2010, 06:58 PM   #36
abhisays
Administrator
 
abhisays's Avatar
 
Join Date: Dec 2009
Location: Bangalore
Posts: 16,772
Rep Power: 137
abhisays has a reputation beyond reputeabhisays has a reputation beyond reputeabhisays has a reputation beyond reputeabhisays has a reputation beyond reputeabhisays has a reputation beyond reputeabhisays has a reputation beyond reputeabhisays has a reputation beyond reputeabhisays has a reputation beyond reputeabhisays has a reputation beyond reputeabhisays has a reputation beyond reputeabhisays has a reputation beyond repute
Send a message via Yahoo to abhisays
Default

Quote:
Originally Posted by mravay View Post
सिंहासन बत्तीसी समाप्त हुआ मगर किसी ने ये नहीं बोला की कयशा लगा चलो कोई बात नहीं !

बहुत अच्छा था.. शेयर करने के लिए धन्यवाद्..
__________________
अब माई हिंदी फोरम, फेसबुक पर भी है. https://www.facebook.com/hindiforum
abhisays is offline   Reply With Quote
Old 24-11-2010, 08:13 AM   #37
khalid
Exclusive Member
 
khalid's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: सीमाँचल
Posts: 5,094
Rep Power: 36
khalid has a brilliant futurekhalid has a brilliant futurekhalid has a brilliant futurekhalid has a brilliant futurekhalid has a brilliant futurekhalid has a brilliant futurekhalid has a brilliant futurekhalid has a brilliant futurekhalid has a brilliant futurekhalid has a brilliant futurekhalid has a brilliant future
Send a message via Yahoo to khalid
Default Re: सिंहासन बत्तीसी

Quote:
Originally Posted by mravay View Post
सिंहासन बत्तीसी समाप्त हुआ मगर किसी ने ये नहीं बोला की कयशा लगा चलो कोई बात नहीं !
अभय आपका हार्दिक धन्यवाद
बहुत अच्छा था
__________________
दोस्ती करना तो ऐसे करना
जैसे इबादत करना
वर्ना बेकार हैँ रिश्तोँ का तिजारत करना
khalid is offline   Reply With Quote
Reply

Bookmarks


Posting Rules
You may not post new threads
You may not post replies
You may not post attachments
You may not edit your posts

BB code is On
Smilies are On
[IMG] code is On
HTML code is Off



All times are GMT +5. The time now is 02:18 AM.


Powered by: vBulletin
Copyright ©2000 - 2024, Jelsoft Enterprises Ltd.
MyHindiForum.com is not responsible for the views and opinion of the posters. The posters and only posters shall be liable for any copyright infringement.